WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 History Book Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास offer valuable context and analysis.

WBBSE Class 10 History Chapter 5 Question Answer – वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
श्रीरामपुर मिशन प्रेस की स्थापना किस वर्ष में हुई थी ?
उत्तर :
1800 ई० में।

प्रश्न 2.
‘बसु विज्ञान मंदिर’ संस्था की स्थापना किसने किया था ?
उत्तर :
जगदीश चन्द्र बसु ने।

प्रश्न 3.
बंगाल के किस सदी को नवजागरण सदी कहा जाता है ?
उत्तर :
बंगाल में 19 वीं सदी को नवजागरण सदी कहा जाता है।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 4.
‘श्री रामपुर त्रयी’ किसको कहा जाता है?
उत्तर :
श्री रामपुर मिशनरी प्रेस के संस्थापक विलियम कैरी, जोशुआ मार्शमैन एवं विलियम वार्ड को संयुक्त रूप से ‘श्री रामपुर त्रयी’ कहा जाता है।

प्रश्न 5.
एक व्यंगचित्र शिल्पी का नाम लिखें।
उत्तर :
गगनेन्द्र नाथ टैगोर।

प्रश्न 6.
एण्टी सर्कुलर सोसाइटी के संस्थापक कौन थे?
उत्तर :
सचीन्द्र नाथ बसु ने।

प्रश्न 7.
बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना किसने किया था ?
उत्तर :
जानाथन डंकन ने।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 8.
विश्व भारती की स्थापना में किस जमींदार का योगदान था ?
उत्तर :
रायपुर के जमीदार सीतिकान्त सिन्हा का।

प्रश्न 9.
1906 ई० में स्थापित बंगाल तकनीकी संस्थान का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
बंगाल में तकनीकी शिक्षा का प्रसार करना।

प्रश्न 10.
भारत में किसने व्यवसायिक मुद्रण की शुरूआत की थी ?
उत्तर :
उपेन्द्रनाथ राय चौधरी।

प्रश्न 11.
‘छेड़े आसा ग्राम’ पुस्तक के लेखक कौन है ?
उत्तर :
दक्षिणा रंजन मुखर्जी।

प्रश्न 12.
गगनेन्द्र नाथ टैगोर किस प्रकार की चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध थे ?
उत्तर :
हास्य व्यग्य चित्रकारी के लिए।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 13.
संजीवनी साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादक कौन थे ?
उत्तर :
‘कृष्ण कुमार मित्र।

प्रश्न 14.
दक्षिण एशिया का पहला छापाखाना (मुद्रणालय) 1913 ई० में किसने स्थापित किया था?
उत्तर :
उपेन्द्रनाथ राय चौधरी ने।

प्रश्न 15.
1917 ई० में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर :
जगदीश चन्द्र बसु ने।

प्रश्न 16.
इण्डियन एसोसिएसन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइन्स के एक शानदार शिक्षक का नाम बताइए।
उत्तर :
महेन्द्रलाल सरकार।

प्रश्न 17.
श्रीरामपुर त्रयी मठ की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर :
डॉ॰ विलियम कैरी ने।

प्रश्न 18.
सिल्वालेवी कौन थे ?
उत्तर :
सिल्वा लेवी फ्रान्स के एक महान शिक्षाशास्त्री थे, जिन्होनें शान्ति-निकेतन की काफी प्रशंसा की थी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 19.
बंगाल में प्रथम ‘अंघ विद्यालय’ कब खोला गया ?
उत्तर :
बंगाल में प्रथम ‘अंध विद्यालय’ सन् 1925 में खोला गया।

प्रश्न 20.
‘ए नेशन इन मेकिंग’ (A Nation in Making) के रचनाकार कौन थे ?
उत्तर :
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी।

प्रश्न 21.
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) कब पारित किया गया था ?
उत्तर :
सन् 1878 में।

प्रश्न 22.
चन्द्रशेखर बेंकटरमन को अन्य किस नाम से भी जाना जाता था ?
उत्तर :
रमन प्रभाव (Raman Effect) के नाम से।

प्रश्न 23.
‘बंगाल गजट’ नामक समाचार-पत्र का पहला प्रकाशन कब हुआ ?
उत्तर :
1780 ई० में।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 24.
‘बंगाल तकनीकी संस्थान’ (Bengal Technical Institute) की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1906 में।

प्रश्न 25.
उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर :
सुकुमार रॉय।

प्रश्न 26.
‘बंगाल गजट’ नामक समाचार-पत्र का पहला प्रकाशन किसने किया ?
उत्तर :
जेम्स अगस्ट्स हिक्की ने।

प्रश्न 27.
‘संवाद कौमुदी’ का सम्पादन कब हुआ ?
उत्तर :
सन् 1821 ई० में।

प्रश्न 28.
‘सोमप्रकाश’ साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन कब हुआ ?
उत्तर :
सन् 1858 ई० में।

प्रश्न 29.
‘इंडियन मिरर’ पत्रिका का सम्पादन कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1861 ई० में।

प्रश्न 30.
‘बंगवासी’ पत्र के सम्पादक कौन थे ?
उत्तर :
जोगेन्द्रनाथ बोस।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 31.
पुर्तगालियों ने सर्वप्रथम मुद्रणालय (प्रेस) की स्थापना कहाँ किया ?
उत्तर :
गोवा में।

प्रश्न 32.
एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना किसने किया ?
उत्तर :
सर विलियम जोन्स ने।

प्रश्न 33.
उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर :
सन् 1915 में।

प्रश्न 34.
जगदीश चन्द्र बसु का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1858 में।

प्रश्न 35.
जगदीश चन्द्र बसु की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर :
सन् 1937 में।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 36.
‘कलकत्ता विज्ञान कॉलेज’ (Calcutta Science College) की स्थापना किसने किया ?
उत्तर :
आशुतोष मुखर्जी ने।

प्रश्न 37.
देश का पहला ‘होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज’ की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1880 में।

प्रश्न 38.
‘हिन्दू पैट्रियट’ समाचार-पत्र किसके द्वारा सम्पादित हुआ था ?
उत्तर :
हरीशचन्द्र मुखर्जी द्वारा।

प्रश्न 39.
‘हिन्दू पैट्रियट’ समाचार-पत्र कब प्रकाशित हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1853 ई० में।

प्रश्न 40.
‘सुलभ समाचार’ बंगला का महत्वपूर्ण दैनिक पत्र किसके द्वारा सम्पादित किया गया था ?
उत्तर :
केशवचन्द्र सेन के द्वारा।

प्रश्न 41.
‘अल हिलाल’ नामक पत्रिका किसके द्वारा सम्पादित किया गया था ?
उत्तर :
मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 42.
सेंट जेवियर्स कॉलेज की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सेंट जेवियर्स कॉलेज की स्थापना सन् 1860 में हुई थी।

प्रश्न 43.
जगदीश चन्द्र बसु के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर :
भगवान चन्द्र बसु।

प्रश्न 44.
चन्द्रशेखर बेंकट रमन का देहान्त कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
बैंगलोर, कर्नाटक, भारत में।

प्रश्न 45.
‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ के रचनाकार कौन थे ?
उत्तर :
मौलाना अबुल कलाम आजाद।

प्रश्न 46.
‘युगान्तर’ की स्थापना की थी।
उत्तर :
अरविंद घोष की।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 47.
किस शताब्दी के उत्तरार्ध में कलकत्ता दक्षिण एशिया का प्रमुख छापाखाना केन्द्र के रूप में उभरा था ?
उत्तर :
18 वीं शताब्दी में।

प्रश्न 48.
1770 से 1800 ई० के बीच शॉ टेरेस के तत्वावधान में कितने छापेखाने चलते थे ?
उत्तर :
चालीस।

प्रश्न 49.
उपेन्द्र किशोर राय चौधरी द्वारा लिखित रचनाएँ कौन सी हैं ? नाम लिखें।
उत्तर :
बालक, छेलेदेर रामायण, छेंदेर महाभारत, दुनदुनर बोई इत्यादि।

प्रश्न 50.
नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1906 ई० में।

प्रश्न 51.
भारत में आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रवर्तक कौन थे ?
उत्तर :
आचार्य जगदीशचन्द्र बसु।

प्रश्न 52.
मैकाले शिक्षा पद्धति का प्रमुख उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
मैकाले द्वारा अंग्रेजी शिक्षा प्रारम्भ करने का प्रमुख उद्देश्य भारत में अंग्रेजी सरकार के प्रति एक ऐसा वर्ग तैयार करना, जो रूप-रंग से भारतीय हो, पर सभ्यता और बुद्धि से अंग्रेज हो।

प्रश्न 53.
इसाई धर्म के प्रति ग्रांट डफ का क्या विचार था ?
उत्तर :
ग्रांट डफ का विचार था कि भारत में इसाई धर्म का अधिक प्रचार-प्रसार हो।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 54.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर :
इसके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर तथा माता का नाम शारदा देवी था।

प्रश्न 55.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा की कौन-सी भाषा होनी चाहिए ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा की भाषा मातृभाषा के माध्यम से होनी चाहिए।

प्रश्न 56.
विश्व भारती कहाँ स्थापित है ?
उत्तर :
विश्व भारती बंगाल के शान्ति निकतन में स्थापित है।

प्रश्न 57.
विश्वभारती के प्रमुख उद्देश्यों में से किसी एक उद्देश्य को बताएँ।
उत्तर :
भारतीय संस्कृति एवं आदशों का उद्देश्यों के आधार पर शिक्षा प्राप्त करें।

प्रश्न 58.
विश्वभारती में शिक्षा किस प्रकार प्रदान की जाती है ?
उत्तर :
विश्व भारती में शिक्षा प्राच्य तथा पाश्चात्य संस्कृति में समान्त्रय स्थापित करके शिक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 59.
विश्व भारती की किसी एक विशेषता को बताएँ।
उत्तर :
विश्व भारती की एक प्रमुख विशेषता इसका सैद्धान्तिक रूप से एक मौलिक तथा आवासीय शिक्षण संस्थान है। यह संस्थान भारत का प्रतिनिधित्व करती है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
चार्ल्स विल्किन्स कौन थे ?
उत्तर :
चार्ल्स विल्किन्स एक अंग्रेज विद्वान थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इन्होंने ने ही पंचानन कर्मकार के साथ मिलकर पहला छापाखाना का टाइपफेस का निर्माण किया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 2.
बांग्ला लाइनोटाइप छपाई का क्या महत्व था ?
उत्तर :
बांग्ला लाइनोटाइप के विकास से बांग्ला भाषा में समाचार, पत्र-पत्रिकायें पुस्तके तेजी से छपने लगे। फलस्वरूप छापाखाना, प्रकाशन, पुस्तक व्यवसाय का तेजी से विकास हुआ।

प्रश्न 3.
बंगाल में छापाखाना के विकास में पंचानन कर्मकार की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
भारत में पंचानन कर्मकार एवं चार्ल्स विल्किस को बंगला तथा नागरी मुद्रण (अक्षर टाइप) का जनक माना जाता है। पंचानन कर्मकार छपाई के अक्षर बनाने वाले कलाकार थे। जिन्होंने 700 देवनागरी की एक सुन्दर माला तैयार की थी। इन्हीं के कारण श्री रामपुर मिशन छापाखाना का विकास हुआ। जहाँ से देवनागरी संम्बन्धी सभी माँगे देश भर में पूरी होती थी। इस प्रकार उन्होंने कम लागत में मुद्रण कला के विकास मे महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने बंगला हरफ के अलावा अरबी, फारसी, गुरूमुखी, मराठी तेलगु, वर्मी चीनी आदि 14 भाषाओं के वर्णमालाओं का हरफ (अक्षर) बनाया था। इसलिए छपाई की दुनिया में उनकी विशिष्ट पहचान एवं योगदान है।

प्रश्न 4.
बंगाली छापाखाना के इतिहास में बटाला प्रकाशन का क्या महत्व है ?
उत्तर :
कोलकाता के चितपुर सड़क मार्ग (रोड) पर स्थित ‘बटाला प्रकाशन’ का यही महत्व है कि यह बंगला भाषा तथा अन्य भाषा का सबसे पुराना प्रकाशन शिल्प केन्द्र था। यहाँ से देशी मजदूरों द्वारा हाथ की छपाई, चित्र, कहानियाँ, छोटीछोटी पुस्तकें, अनुवादित साहित्य तथा बाबू समाज के लोगों के सम्बन्ध से जुड़ी बातें प्रकाशित होती थी।

प्रश्न 5.
उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध ‘सभा समिति युग’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजनैतिक एकता तथा जनमत तैयार करने के उद्देश्य से अनेकों बंग भाषा प्रकाशिका सभा, जमींदार सभा, भारतीय सभा आदि सभा-समितियों का गठन हुआ। इसलिए डॉ॰०निल सेन ने उन्नीसवी सदी को सभा-समितियों का युग कहा है।

प्रश्न 6.
विश्व-भारती की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से की थी ?
उत्तर :
विश्व-भारती की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। इसका उद्देश्य खुले वातांवरण में परम्परागत एवं आधुनिक दोनों प्रकार की साथ-साथ शिक्षा देने के लिए किया गया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 7.
कलकत्ता सांइस (विज्ञान) कालेज की स्थापना किसने और कब की थी ?
उत्तर :
कलकत्ता विज्ञान कालेज की स्थापना आशुतोष मुखर्जी ने सन् 1904 में की थी।

प्रश्न 8.
‘श्री रामपुर त्रयी’ किसको कहा जाता है ?
उत्तर :
श्री रामपुर मिशनरी प्रेस के संस्थापक विलियम कैरी, जोशुआ मार्शमैन एवं विलियम वार्ड को संयुक्त रूप से ‘श्री रामपुर त्रयो’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट क्या था ?
उत्तर :
1878 ई० में वायसराय लाईड लिटन ने देशी समाचार पत्रों के प्रकाशन पर रोक लगा दिया था। इसे ही वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट कहा जाता है।

प्रश्न 10.
प्रिंटिंग प्रेस का जनक किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
उपेन्द्र किशोर रायचौधुरी को प्रिंटिंग प्रेस का जनक कहा जाता है। इनके द्वारा ‘U. N. Roy and Sons’ मुद्रणालय की स्थापना की गई थी, जो दक्षिण एशिया का पहला मुद्रणालय या प्रेस था, जहाँ से काले एवं सफेद (Block and White) तथा रंगीन (Colourtul) फोटोग्राफ्स मुद्रित होते थे।

प्रश्न 11.
पंचानन कर्मकार कौन थे ? उन्होने कुल कितने भाषाओं के हरफ बनाये थे ?
उत्तर :
मुद्रण कला में बंगला अक्षर (हरफ) के जनक का नाम पंचानन कर्मकार था। इनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के त्रिवेणी में हुआ था। कलकत्ता में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई तब इन्होंने उसके प्रेस में कार्य किया था। बंगला हरफ के अलावे इन्होंने अरबी, फारसी, गुरूमुखी, मराठी, तेलगु, वर्मी, चीनी आदि 14 भाषाओं के वर्णमालाओं का हरफ बनाया था।

प्रश्न 12.
यू० एन० राय प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना किसके द्वारा एवं कब की गई ?
उत्तर :
यू० एन० राय प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना उपेन्द्र किशोर राय चौधरी द्वारा 1885 ई० में की गई जो उस समय की एक बेहतरीन एवं दक्षिणी एशिया का प्रथम प्रिंटिग प्रेस था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 13.
कलकत्ता विज्ञान कॉलेज की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
कलकत्ता विज्ञान कॉलेज (Calcutta Science College) : कलकत्ता विज्ञान कॉलेज जो बंगाल में विज्ञान के क्षेत्र में हुई विकास का प्रतीक माना जाता है, की स्थापना सन् 1914 में आशुतोष मुखर्ज़ी ने किया था। उनके इस कार्य में श्री तारकनाथ पालित और श्री रासविबहारी बोस ने सहयोग दिया।

प्रश्न 14.
इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइन्स की स्थापना क्यों की गई ?
उत्तर :
भौतिक, रसायन, जीव विज्ञान, ऊर्जा बहुलक तथा पदार्थों के सीमावर्ती क्षेत्रों में मौलिक शोध कार्य के लिए सन् 1876 में इसे स्थापित की गई।

प्रश्न 15.
आशुतोष मुखर्जी क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
श्री आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध वकील, कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप-कुलपति और प्रसिद्ध विद्वान थे। शिक्षा के क्षेत्र में आशुतोष मुखर्जी का बहुत बड़ा योगदान है।

16.
‘द बंगाल गजट’ के शीघ्र बाद किन पत्रों का प्रकाशन हुआ ?
उत्तर :
कलकत्ता गजट (1784 ई०), बंगाल जनरल (1785 ई०), कलकत्ता क्रॉनिकल (1786 ई०) एवं द एशियाटिक मिरर आदि पत्रों का प्रकाशन हुआ।

प्रश्न 17.
किस काल को बंगाल का नव जागरण काल कहा जाता है ?
उत्तर :
19 वीं शदी के प्रारम्भिक काल को जो राजा राममोहन राय (1774-1833 ई०) से प्रारम्भ होकर रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861 – 1941 ई०) तक के समय को बंगाल का नवजागरण काल कहा जाता है।

प्रश्न 18.
बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना क्यों किया गया ?
उत्तर :
विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के प्रसार के लिए इस कॉलेज की स्थापना की गई।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 19.
उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी कौन थे ?
उत्तर :
उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी बंगाल के प्रमुख साहित्यकार, चित्रकार एवं तकनीशियन थे। इन्होंने आधुनिक अक्षर कला का निर्माण किया था।

प्रश्न 20.
हिन्दू कॉलेज की स्थापना किस उद्देश्य से हुई थी ?
उत्तर :
हिन्दू कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य यूरोप तथा इग्लैंण्ड से आने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को हिन्दी भाषा की शिक्षा देने के उद्देश्य से की गई थी।

प्रश्न 21.
प्रिंटिंग प्रेस का आदि युग किस काल को कहा जाता है ?
उत्तर :
18 वीं सदी के अंतिम समय को ही प्रिंटिंग प्रेस का आदि युग कहा जा सकता है क्योंकि उसी दौरान बंगाल में मुद्रण उद्योग की स्थापना की शुरुआत हुई थी।

प्रश्न 22.
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में कहना था कि ‘सरोंच्च शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण दृष्टि से हमारे जीवन में सामंजस्य स्थापित करती है।”

प्रश्न 23.
छापेखाने ने जन-जीवन को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर :
छापेखाने से विचारों के व्यापक प्रचार-प्रसार के द्वार खुले। स्थापित सत्ता के विचारों से असहमत होने वाले लोग भी अब अपने विचारों को छाप कर फैला सकते थे। छपे हुए संदेश के जरिये वे लोगों को अलग ढंग से सोचने के लिए बाध्य कर सकते थे। इस बात का जन-जीवन के कई क्षेत्रों में गंभीर प्रभाव पड़ा। उनमें आधुनिकता के प्रति जागरुकता आयी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 24.
रमण प्रभाव क्या था ?
उत्तर :
1912 ई० में सी.वी. रमन यूरोप गये तथा वहाँ प्रकाश विकिरण पर खोज किया और यह प्रमाणित किया कि ग्रकाश तथा पदार्थ के अणुओं के आपसी टकराव से प्रकाश नये रंग में परिवर्तित हो सकता है। यह आविष्कार ‘रमण प्रभाव’ के नाम से विख्यात है।

प्रश्न 25.
तारकनाथ पालित एवं रासबिहारी घोष कौन थे ?
उत्तर :
तारकनाथ पालित एवं रासबिहारी घोष बंगाल के प्रसिद्ध वकील एवं समाज सुधारक थे। इन महापुरुषों ने कलकत्ता साइंस कॉलेज की स्थापना के लिए आर्थिक सहायता दी थी।

प्रश्न 26.
तारक नाथ पालित का नाम क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल ने स्वदेशी औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बेंगाल टेक्नीकल इन्स्टीट्यूट (BIT) की स्थापना किया। इसकी स्थापना के लिए श्री तारकनाथ पालित ने 10 लाख रुपए तथा अपर सर्कुलर रोड स्थित अपने आवास को भी दान कर दिया। बंगाल की तकनीकी शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए श्री तारक नाथ पालित स्मरणीय है।

प्रश्न 27.
कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर :
(i) उच्च शिक्षा का प्रसार एवं भारतीयों को अंग्रेजी शिक्षा में शिक्षित करने के उद्देश्य से कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। (ii) इसकी स्थापना लंदन विश्वविद्यालय के स्तर पर हुई थी जिसमें 41 सदस्यों की एक समिति बनाकर नीति निर्धारण का उद्देश्य रखा गया।

प्रश्न 28.
राष्ट्रीय शिक्षा परिषद से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा परिषद या नेशनल काउन्सिल आंफ एडुकेशन की स्थापना 1906 ई० में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य स्कूलों में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना था। पराधीन भारत में नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन एक ऐसी संस्था थी जो राष्ट्रीय नियंत्रण के आधार पर छात्रों में ऐसी वैज्ञानिक एवं तकनकी शिक्षा का प्रसार करना चाहती थी, जो अंग्रेजी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था को चुनौती दे सके।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 29.
एन. बी. हेलहेड क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
एन. बी. हेलहेड ने हिन्दू धर्म शास्त्रों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर A Code of Gentoo Laws के नाम से प्रकाशित किया था।

प्रश्न 30.
प्रिंटिंग प्रेस के विकास का काल किस समय को कहा जाता है ?
उत्तर :
19 वीं सदी के पूवार्द्ध समय को प्रिंटिंग प्रेस के विकास का काल माना जाता है जब विलियम कैरी तथा कुछ और अंग्रेजों ने हुगली के श्रीरामपुर में ‘श्रीरामपुर मिशन प्रेस’ की स्थापना किया था।

प्रश्न 31.
प्रिंटिंग प्रेस के विकास का आधुनिक युग किस काल को कहा जाता है ?
उत्तर :
19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा 20 वीं सदी के पूवार्द्ध से प्रिटिंग प्रेस के विकास को आधुनिक युग माना जाता है जब एक के बाद एक प्रिंटिंग प्रेसों की स्थापना होने लगी।

प्रश्न 32.
औपनिवेशिक शिक्षा नीति क्या था ?
उत्तर :
भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने में ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त ईसाई धर्म के प्रचारको और प्रबुद्ध भारतीयों की प्रमुख भूमिका रही। किन्तु भारतीयों को शिक्षित करने के पीछे उनका उद्देश्य एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो अंग्रजों के सहायक की भूमिका अदा कर सकें। गवर्नर जनरल की कौसिल के सदस्य मैकाले ने अपने महत्वपूर्ण आलेखपत्र द्वारा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 33.
औपनिवेशिक शिक्षा नीति के प्रति रवीन्द्रनाथ का मत क्या था ?
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता, उसके स्वरूप एवं लक्ष्य आदि पर बोलते हुए रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा, “भारत में विदेशियों द्वारा शिक्षा का नियंत्रण और निर्देशन सबसे अधिक अस्वाभाविक घटना है। स्वय अपने प्रयासों और साधनों के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। देश की आवश्यकताओं को पूरा करना ही भारत में राष्ट्रीय शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य हो।”

प्रश्न 34.
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शांतिनिकेतन के प्रति क्या धारणा थी ?
उत्तर :
‘शांति निकेतन’ की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 में किये थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘शांति निकेतन’ आश्रम से बड़ा ही लगाव था। वे वहाँ अक्सर जाया करते थे। उनको वहाँ का वातावरण बड़ा ही मनमोहक लगता था। इसी कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने वहाँ अर्थात् ‘शांति निकेतन’ में सन् 1901 में पाँच छात्रों को लेकर एक आश्रम या विद्यालय खोले थे। उनका मानना था कि शांतिनिकेतन ‘शांति का घर’ है जहाँ लोग मन की एकाग्रता पाते हैं।

प्रश्न 35.
शिक्षा में मनुष्य एवं परिवेश के शामिल होने के प्रति रवीन्द्रनाथ टैगोर का मत क्या था ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने खुद ‘प्रकृति’ को महान शिक्षक का दर्जा दिया है, जो हमेशा जीवित रहता है अर्थात् महान शिक्षक होने के साथ-साथ, एक जीवित शिक्षक भी। ‘प्रकृति’ के साथ रहकर अबोध बच्चे या बालक या बालिका जीवन के हर एक रहस्य को सीख पाते हैं। टैगोर जी का मानना है कि समाज में पठन-पाठन का केन्द्र या विद्यालय खुले प्राकृतिक वातावरण में हो ताकि बच्चे खुले प्राकृतिक वातावरण में पढ़कर विकसित हो पायेंग।

प्रश्न 36.
‘गोरा’ उपन्यास की रचना कब और किसके द्वारा की गई ?
उत्तर :
गोरा उपन्यास की रचना रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1909 ई० में की गई थी।

प्रश्न 37.
‘भारतमाता’ का चित्र का क्या महत्व शा ?
उत्तर :
भारतमाता अवनीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा बनाई गई एक अनमोल चित्र था जो दुर्गा मा की प्रतिकृति जैसी थी। इस कलाकृति ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को बहुत ही प्रखर किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह कलाकृति लोगों के लिए एक आदर्श बन गई थी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 38.
जगदीश चन्द्र बसु ने बोस इन्सटीच्युट की स्थापना क्यों किया ?
उत्तर :
जगदीश चन्द्र बसु के प्रयास से बंगाल में सन् 1917 में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ की स्थापना किया गया। बाद में चलकर ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ का नाम ‘बोस संस्था’ (Bose Institute) रखा गया जहाँ विज्ञान से संबंधित हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। इस संस्थान के द्वारा ‘कलेरा’ के विष प्रभाव पर किये गये कार्य काफी महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 39.
तकनीकी शिक्षा की संवर्द्धन के लिए सोसाईटी की स्थापना किसने किया और उसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
सन् 1938 में कांग्रेस सरकार ने ‘मेघनाद साहा’ की अध्यक्षता में तकनीकी शिक्षा से संबंधित एक समिति का गठन किया। इस समिति ने भारत के विभिन्न प्रान्तों में तकनीकी शिक्षा के विकास पर जोर दिया। इस समिति के अन्य सदस्य थे – जगदीश चन्द्र बोस, बीरबल साहनी, शान्तिस्वरूप भटनागर एवं नजीर अहमद।

प्रश्न 40.
कलकत्ता मदरसा की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
कलकत्ता मदरसा की स्थापना गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने सन् 1781 में किया।

प्रश्न 41.
‘स्कूल बुक सोसाइटी’ (School Book Society) की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
‘स्कूल बुक सोसाइटी’ (School Book Society) की स्थापना सन् 1817 में डेविड हेयर ने किया।

प्रश्न 42.
विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्रमुख दो उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
(i) भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों के आधार पर शिक्षा प्रदान करना।
(ii) प्राच्य-पाश्चात्य संस्कृतियों में समन्वय स्थापित करना।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 43.
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ब्रहाचर्य आश्रम’ नामक विद्यालय की स्थापना किया, इस कार्य में उनका साथ किन-किन लोगों ने दिया ?
उत्तर :
महान शिक्षाविद् बह्मबांधव उपाध्याय, सतीश चन्द्र राय, मोहित चन्द्र सेन, अजीत कुमार चक्रवर्ती तथा विलियम पियरसन आदि।

प्रश्न 44.
‘विद्या-भवन’ में क्या-क्या सिखाया जाता है ?
उत्तर :
‘विद्या-भवन’ में प्राच्य की विभिन्न भाषाओं, साहित्य एवं संस्कृति पर शोध कार्य सिखाया जाता है।

प्रश्न 45.
रवीन्द्र भवन की स्थापना क्यों की गई ?
उत्तर :
इसकी स्थापना सन् 1942 में रवीन्द्रनाथ टैगोर के साहित्यों का अध्ययन करने के लिए किया गया। इसके बगल में ही विचित्र भवन है जिसमें टैगोर जी द्वारा लिखी किताबें, उनकी चित्रकारी, पत्र, उनकी पुस्तकालय तथा उनसे जुड़ी विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ रखी गईं हैं।

प्रश्न 46.
‘कला भवन’ की स्थापना क्यों की गई थी ?
उत्तर :
‘कला भवन’ की स्थापना, विभिन्न प्रकार की चित्रकारी शिक्षा प्रदान करने के लिए किया गया था। यह शिक्षा नन्दलाल बोस के नेतृत्व में दिया जाता था। यहाँ लकड़ी पर नक्काशी, स्थापत्य कला की योजना तथा पत्थर की मूर्तियों एवं सूईयों से विभिन्न प्रकार की कलाकारी करना सिखाया जाता है।

प्रश्न 47.
‘हिन्दी भवन’ में क्या-क्या सिखाया जाता है ?
उत्तर :
‘हिन्दी भवन’ में हिन्दी भाषा एवं साहित्य के अध्ययन एवं उन पर शोध करना सिखाया जाता है।

प्रश्न 48.
‘चीन भवन’ क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
इसलिए कि वहाँ पर हिन्दी-चीन पारम्परिक संबंध पर अध्ययन एवं शोध कार्य करना सिखाया जाता है। इसकी स्थापना 1937 ई० में प्राध्यापक ‘तान युन सान’ (Tan Yun San) ने किया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 49.
‘पाठ भवन’ तथा ‘शिक्षा भवन’ की स्थापना क्यों किया गया ?
उत्तर :
क्योंकि ‘पाठ भवन’ में माध्यमिक स्तर की शिक्षा एवं ‘शिक्षा भवन’ में उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती थी।

प्रश्न 50.
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में विचार ‘ससर्वोच्च शिक्षा वही है जो समूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है।”

प्रश्न 51.
किस काल को बंगाल का नवजागरण काल कहा जाता है, और क्यों ?
उत्तर :
1861 ई० से 1941 ई० के बीच के समय को ‘बंगाल का पुर्नजागरण काल’ कहा जाता है, व्योंकि इस काल में साहित्य, कला, समाचार पत्र, पत्रिकाओं, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी शिक्षा आदि का पर्याप्त विकास हुआ, जिसके कारण लोगों में सामाजिक और राजनीतिक विकास हुआ इसीलिए इस काल को बंगाल का नवजागरण काल कहा जाता है।

प्रश्न 52.
बंगाल में प्रेस (छापाखाना) की स्थापना सर्वप्रथम किसने और कब की ?
उत्तर :
बंगाल में सबसे पहले प्रेस की स्थापना Statesman ने 1770 ई० में की थी।

प्रश्न 53.
श्रीरामपुर मिशन प्रेस की स्थापना कब और किसने किया था ? आगे चलकर इसका किस प्रेस के साथ विलय हो गया ?
उत्तर :
श्रीरामपुर मिशन प्रेस की स्थापना सन् 1800 में सर विलियम केरी एवं विलियम वार्ड ने की थी। आगे चलकर 1835 ई० में बापटिस्ट मिशन प्रेस के साथ इसका विलय हो गया, यह प्रेस देशी भाषा में पुस्तकों का प्रकाशन करता था।

प्रश्न 54.
भारत में सबसे पहले प्रेस की स्थापना किसने और कब की थी ?
उत्तर :
भारत में सबसे पहले प्रेस की स्थापना पुर्त्तगालियों ने 1550 ई० में की थी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 55.
बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना कब और किस उद्देश्य से की गई थी ?
उत्तर :
1921 ई० में कोलकाता में Bengal Engeneering College की स्थापना की गई थी। बाद में इसका स्थानान्तरण 1947 ई० में हावड़ा के शिवपूर में की गई थी। बंगाल में तकनीकी शिक्षा की बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी।

प्रश्न 56.
बंगाल का पहला समाचार पत्र कौन-सा था ? उसका प्रकाशन कब और किसने किया ?
उत्तर :
बंगाल का पहला समाचार-पत्र बंगाल गजट था, जिसका प्रकाशन 1780 ई० में जे० के० हिक्की ने किया था।

प्रश्न 57.
उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी द्वारा छापी गई दो पुस्तकों का नाम बताइए।
उत्तर :
उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी द्वारा छापी गई दो पुस्तक हैं – छेलेदेर रामायण, छेलेदेर महाभारत तथा दून्दूनेर बोई प्रकाशित किया था।

प्रश्न 58.
U.N. Roy and Sons प्रेस की स्थापना कब और किसने की थी ?
उत्तर :
1913 ई० में U.N.Roy द्वारा U.N.Roy and Sons प्रेस की स्थापना की गई थी, जो एशिया का सबसे बड़ा प्रेस था।

प्रश्न 59.
‘आधुनिक अक्षर निर्माण कला (Block Making)’ का निर्माण किसने किया तथा इसके साथ ही उन्होंने क्या शुरू किये ?
उत्तर :
‘आधुनिक अक्षर निर्माण कला (Block Making)’ का निर्माण उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी ने किया तथा इसके साथ ही उन्होंने ‘रंगीन निर्माण कला’ (Colour Block Making) की भी शुरूआत किये।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 60.
‘प्रकाशन घर’ के नाम से किसे जाना जाता था ? गणितीय विश्लेषण तथा वैज्ञानिक तरीकों से छाया-प्रति (Negative making) का निर्माण किसने किया ?
उत्तर :
‘प्रकाशन घर’ के नाम से ‘यू० एन० रॉय एण्ड सन्स (U.N. Roy and Sons) नामक प्रेस को जाना जाता था। गणितीय विश्लेषण तथा वैज्ञानिक तरीकों से छाया-प्रति (Negative making) का निर्माण उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी के पुत्र सुकुमार रॉय ने किया।

प्रश्न 61.
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) किसने और क्यों पारित किया था ?
उत्तर :
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) लार्ड लिटन ने पारित किया था ताकि भारतीय समाचारपत्रों पर प्रतिबंध लगाया जा सके।

प्रश्न 62.
भारतीय समाचारपत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) को कब और किसने समाप्त किया?
उत्तर :
भारतीय समाचारपत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) को सन् 1882 में लॉड रिपन ने समाप्त किया।

प्रश्न 63.
किन-किन लोगों ने बंगालियों द्वारा संचालित तथा संपादित पत्रों की संख्या में प्रगति लाया ?
उत्तर :
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, कृष्ण कुमार मित्र, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर तथा अरबिंद घोष आदि ने बंगालियों द्वारा संचालित तथा सपादित पत्रों की संख्या में प्रगति लाये।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 64.
चन्द्रशेखर वेंकटरमन को कब नोबेल पुरस्कार मिला और क्यों ?
उत्तर :
चन्द्रशेखर वेंकटरमन को सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला क्योंकि उन्होंने सन् 1928 में ‘प्रकाश के प्रकीर्णन’ के प्रभाव पर अपना बहुर्चित आविष्कार किया था। [नोट : भौतिक विज्ञान के कारण नोबेल पुरस्कार मिला]]

प्रश्न 65.
कब और किसने रमन प्रभाव को अंतर्राष्ट्रीय ऐतिहासिक रासायनिक युगांतकारी घटना की स्वीकृति प्रदान की ?
उत्तर :
सन् 1998 में ‘अमेरिकन केमिकल सोसाइटी’ (American Chemical Society) ने रमन प्रभाव को अंतर्राष्ट्रोय ऐतिहासिक रासायनिक युगांतकारी घटना की स्वीकृति प्रदान की।

प्रश्न 66.
कब और कहाँ चन्द्रशेखर वेकटरमन भौतिक के विविध विषयों पर शोध कार्य करते थे ?
उत्तर :
सन् 1907 से लेकर 1933 ई० तक ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेश ऑफ साईन्स’ में चन्द्रशेखर वंक्टरमन भौतिक के विविध विषयों पर शोध कार्य किया करते थे।

प्रश्न 67.
18 वीं शताब्दी के अंत में बंगाल से कौन-कौन पत्र प्रकाशित हुए ?
उत्तर :
कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर तथा ओरिएंटल स्टार आदि।

प्रश्न 68.
हिन्दू कॉलेज के सदस्यों का नाम बताइए, जिन्होंने इसकी स्थापना किया ?
उत्तर :
डेविड हेयर, राजा राममोहन राय और न्यायाधीश एडवर्ड हाइड ईस्ट इत्यादि।

प्रश्न 69.
भारत में आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंघान के संस्थापक कौन थे ? उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी ?
उत्तर :
आचार्य जगदीश चन्द्र बोस तथा उनकी उपलब्धि बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 70.
राष्ट्रीय योजना आयोग से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक कौन थे ?
उत्तर :
वेज्ञानिक मेघनाद साहा तथा ज्ञानचन्द्र घोष।

प्रश्न 71.
बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
प्रमुख उद्देश्य बंगाल में विज्ञान की प्रगति को बढ़ावा देना था।

प्रश्न 72.
बोस संस्थान में किन-किन विषयों पर अनुसंधान होता था ?
उत्तर :
भौतिकी, रसायन प्लांट वायोलोजी, माइक्रो, बायोलॉजी, बायो कैमिस्ट्री, बायो फिजिक्स, एनिमल फिजियोलॉजी एवं पर्यावरण विज्ञान आदि।

प्रश्न 73.
अलीगढ़ साइण्टिफिक सोसाईटी की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
सर सैयद अहमद खान ने 1864 ई० में।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 74.
नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन के प्रमुख सदस्य कौन-कौन थे ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरविन्द घोष, राजा सुबोध चन्द्र मल्लिक, ब्रजेन्द्र किशोर राय चौधरी आदि।

प्रश्न 75.
बनारस संस्कृत कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
हिन्दू कानून, धर्म और साहित्य का विकास करना।

प्रश्न 76.
हिन्दू कॉलेज की स्थापना किस उद्देश्य से हुई थी ?
उत्तर :
हिन्दू कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं तथा यूरोष और एशिया के साहित्य एवं विज्ञान की शिक्षा देना था।

प्रश्न 77.
जन शिक्षा समिति का गठन किसने और कब किया ?
उत्तर :
विल्सन ने 1823 ई० में गठन किया।

प्रश्न 78.
कलकत्ता विज्ञान कॉलेज से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिकों के नाम बताइए ।
उत्तर :
प्रमुख वैज्ञानिक पी० सी० रॉय, सी० वी० रमन तथा के० एस० कृष्णन आदि थे।

प्रश्न 79.
ग्रांट डफ कौन थे ?
उत्तर :
ग्रांट डफ एक उच्ब स्तरीय ब्रिटिश आधिकारी था। उसने भारत में ईसाई धर्म के प्रचार का समर्थन किया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 80.
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किन-किन क्षेत्रों में योगदान किए ?
उत्तर :
इन्होन धर्म तथा सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए साथ ही न्यायसंगत राजनीतिक व्यवस्था के लिए बहुत काम किये।

प्रश्न 81.
रवीन्द्रनाथ रामायण तथा महाभारत को पाठ्यक्रम में क्यों शामिल करना चाहते थे ?
उत्तर :
इसलिए शामिल करना चाहते थे कि बच्चे इनके माध्यम से अपनी भाषा एवं संस्कृति सीखेंगे तथा चरित्र का गठन करेंगे।

प्रश्न 82.
चन्द्रशेखर वेंकटरमन क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
चन्द्रशेखर वेंकटरमन आई० ए० सी० एस० (I.A.C.S.) ने 1907 से 1933 ई० तक भौतिकी के विविध विषयों पर शांधकार्य करते रहे तथा 1928 ई० में उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन के प्रभाव पर अपना बहुचर्चित आविष्कार किया जिसने उन्हे ख्याति के साथ अनेक पुरस्कार भी दिलवाए, जिनमें 1930 ई० में प्राप्त नोबेल पुरस्कार भी शामिल है। इन सभी कार्यों के वजह से ही वे प्रसिद्ध है।

प्रश्न 83.
राश्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल के मुख्य दो उद्देश्य को लिखें।
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र के विकास के लिये विज्ञान और तकनीकी शिक्षा प्रदान करना था।

प्रश्न 84.
किस उद्देश्य से बंगाल टेक्नीकल इन्स्टीट्यूट की स्थापना की गई ?
उत्तर :
बंगाल टेक्नीकल इन्सटीटयूट राष्ट्रीय शिक्षा परिषद द्वारा स्वदेशी उद्योग लगाने के लिये स्थापना की गई।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 85.
शांति निकेतन में विद्यालय की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
शांतिनिकेतन में विद्यालय की स्थापना रवीन्द्रनाथ के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1863 ई० में की।

प्रश्न 86.
प्रफुल्ल चन्द्र राय क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
प्रफुल्ल चन्द्र राय ने बंगाल केमिकल एवं फर्मसेयुटिकल वर्क्स नामक संस्था की स्थापना की इसलिये वे प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 87.
रवीन्द्रनाथ ने खुले आकाश में प्रकृति के बीच शिक्षा संस्थान की स्थापना क्यों की ?
उत्तर :
वे मानते थे कि बढ़ते हुए बच्चे के सुसुप्त गुणों के उचित विकास के लिये प्रकृति के साथ तादाम्य आवश्यक है।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
छपी पुस्तकों एवं शिक्षा के विस्तार में सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
छपी पुस्तकों और शिक्षा के विस्तार में सम्बन्ध :- भारत में छपी पुस्तक और शिक्षा प्रसार दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए है। सर्वपथम 1557 ई० में पुर्तगालियों ने गोवा में छापाखाना की स्थापना की। इसके बाद धीरे-धीरे देश के विभिन्न भागो में अनेको छापाखाना स्थापित हुए। जिनमें बंगाल के उपेन्द्र किशोर राय चौधरी, श्रीरामपुर त्रयी का विशेष योगदान रहा। छापाखाना स्थापित होने से पुस्तकों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, व्यंग चित्रों का छपाई करना सरल हो गया। छापा खानों से छपने वाली पुस्तको से लोग ब्रिटिश सरकार की आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक नीतियों के साथ-साथ पश्चिमी ज्ञान, विज्ञान तकनीकी से सम्बन्धित विषय आदि छपने लगे तथा लोगों तक सस्ती कीमत पर आसानी से पहुँचने लगी।

जिससे देश की जनता घर बैठे तथा पुस्तकालयों के द्वारा इन बातों की जानकारी प्राप्त करने लगी। फलस्वरूप उनमें जागरुकता आयी। अंग्रेजों के अच्छे-बूरे कर्मो से लोग परिचित हुए। उनमें अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होकर लड़ने जैसी राष्टोय भावना का संचार हुआ। शुरु में छपी पुस्तकों का प्रभाव समाज के धनी सम्पन्न शिक्षित तथा प्रभावशाली वर्ग तक सोमित रहा। बाद में धीरे – धीरे उसका प्रचार-प्रसार होते हुए समाज के मध्यम तथा अन्य पिछड़े वर्ग तक पहुँचा।

इस प्रकार छपी पुस्तक और शिक्षा प्रसार दोनों एक-दूसरे के पूरक बन गए तथा देश के सभी वर्गों तक शिक्षा को पहुँचाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 2.
बंगाल में विज्ञान चर्चा के विकास में डा० महेन्द्रलाल सरकार का क्या योगदान था ?
या
विज्ञान के विकास में ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइस’ का महत्व स्पष्ट करें।
या
‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
या
‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ (IACS) पर संक्षिप्त प्रकाश डालें।
उत्तर :
बंगाल में 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ में विज्ञान के क्षेत्र में अनेको विकास हुए, जैसे – ‘कलकत्ता विज्ञान कॉलेज’ और ‘बसु विज्ञान मंदिर’ की स्थापना आदि। इन सभी विकासों में ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर, द्र कल्टीवेशन ऑफ साइस(ACS)’ महत्वपूर्ण स्थान रखता था, जो भौतिक, रासायनिक, जैविक ऊर्जा तथा पदार्थ विज्ञान् की शिक्षा प्रदान किया जाता था।

इस संस्था के पहले विज्ञान के क्षेत्र में 19 वीं शताब्दी के अंत तक विभिन्न संस्था को स्थापित किया गया, जिनमें कलकत्ता विश्वववद्यालय (1857 ई०) और होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज (1880 ई०) तथा कलकत्ता साईस कॉलेज (1914 ई०) आदि हैं।

इस शोध संस्था को 29 जुलाई, 1876 ई० को डॉ॰ महेन्द्रलाल सरकार ने स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि यह शोध संस्था भारत का सबसे प्राचीनतम शोध संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य भौतिकी, रासायन, जीव विज्ञान, ऊर्जा, बहुलक तथा पदार्थों के विषय में छात्र-छात्राओं को जानकारी देना तथा शिक्षित करना था ताकि छात्र-छात्राएँ विज्ञान के क्षेत्र में अग्रसर रूप से प्रौढ़ हो पायें। यह संस्था छात्र-छात्राओं को मानक (Doctorate) की उपाधि भी प्रदान करती है।

इसी शोध संस्था में ‘चन्द्रशेखर वेंकटरमन’ सन् 1907 से लेकर 1933 ई० तक भौतिक विज्ञान पर शोध कार्य करते रहे। इन्होंने ही सर्वप्रथम सन् 1928 ई० में ‘किरणों के परावर्तन का प्रभाव’ (Celebrated effect on scattering of light) अर्थात ‘भौतिक विज्ञान’ की खोज किया, जो बाद में चलकर ‘रमन इफेक्ट’ के नाम से जाना गया। इसी पर ‘सी० वी० रमन’ को सन् 1930 ई० में ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया गया था जो विज्ञान के जगत में एक अहम स्थान रखती है। इतना ही नहीं ‘अंरिकन केमिकल सोसाइटी’ (American Chemical Society) ने सन् 1998 में ‘रमन प्रभाव’ (Raman Effect) को अरर्राष्ट्रोय ऐतिहासिक रासायनिक युगांतकारी घटना की स्वीकृति प्रदान की है।

‘IACS’ के प्रति डॉ॰ महेन्द्रलाल सरकार की योजना बहुत ही महत्वपूर्ण थी। उनका उद्देश्य मौलिक अन्वेषण करने के साध-साध विज्ञान को लोकप्रिय भी बनाना था। इसीलिए उसकी स्थापना उन्होंने किया था। धीरे-धीरे यह शोध संस्था विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, प्रकाश के प्रकीर्णन, चुम्बकत्व आदि विषयों में शोध का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया। इस प्रकार बगाल में विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देने में डॉ० महेन्द्र लाल सरकार का महत्वपूर्ण योगदान था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 3.
बंगाल में तकनीकी शिक्षा के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
19 वी सदी की आरम्भ तक बंगाल में देशी और परम्परागत तरीकें से ही शिक्षा पद्धति का विकास हुआ, इसके विकास में 1784 ई० में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित Asiatic Society का बड़ा योगदान रहा। विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना की गयी थी। इसी संस्था के स्थापना के बाद 1828 ई० में कलकत्ता मेडिकल एवं फििजकल सोसाइटी, 1835 ई० में Calcutta Medical College, 1847 ई० में हावड़ा के निकट शिवपुर में बंगाल का पहला Shibpur Engineering College, 1876 ई० में महेन्द्र लाल सरकार द्वारा Indian Association for the Cultivation of Science को स्थापना की गई, इसी संस्था के अध्ययनकर्त्ताओं एवं शोधकत्ताओं विविन्न क्षेत्रों में नई-नई खांज की जिसमें C.V. Raman द्वारा किरणों के परावर्तन के प्रभाव की खोज (1928) ई० था। Raman Effects को खोज और इस पर 1930 ई० में नोबेल पुरस्कार मिला था।

इसके बाद 1904 ई० में आशुतोष मुखर्जी द्वारा Calcutta Science College की स्थापना की गई इस कॉलेज के कुछ प्रमुख छात्र सत्येन्द्रनाथ बोस, आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी॰ वी० रमण, जगदीशचन्द्र बसु ने विज्ञान के क्षेत्र में नयी ऊँचाईया को छुआ और इस संस्थान को नई दिशा प्रदान की, 1906 ई० में प्रफुल्लचन्द्र राँय द्वारा देश की पहली मेडिसिन एवं रसायन बनाने वाले कपनी Bengal Chemical and Phramcetical Works की स्थापना की, 1917 ई० में कलकत्ता के महान वैज्ञानिक जगदोश चन्द्र बसु ने बसु विज्ञान मन्दिर की स्थापना की आगे चलकर इसका नाम Bose institute पड़ा। इस संस्थान ने भी विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई खोजों की खोज कर महान उपलब्धि प्राप्त की, तथा देश और डुनिया मे भारत को गौरव दिलायी।

बगाल में तकनीकी शिक्षा के विकास में औद्योगिक अनुसंधान परिषद का महत्वपूर्ण योगदान रहा, इसके प्रयास से अलोगद्ध में Scientific Society, Bengal Technical Institute की स्थापना हुई, जिसकी स्थापना 1906 ई० में नारक्रनाथ पालित ने किया था।
इस प्रकार बंगाल में स्वदेशी आन्दोलन के ज्वार ने बंगाल में विज्ञान, तकनीकी एवं उच्च शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 4.
बंगाली छापाखाना के विकास में गंगा किशोर भद्टाचार्य का क्या योगदान था?
उत्तर :
बर्द्रवान जिले के वहड़ा ग्रामवासी गंगकिशोर भट्टाचार्य का बंगला मुद्रणालय (छापाखाना) उद्योग के विकास में विशिष्ट योगदान है। वे बंगाली पहला मुद्रण व्यवसायी, पुस्तक व्यवसायी प्रकाशक एवं ग्रन्थाकार थे। वे काम-काज की खोज में श्रीरामपुर मिशनरी के सम्पर्क में आये और अपनी सेवा शुरू की।

श्रीरामपुर मिशनरी छापाखाना में वे मुद्रण संपादन और प्रकाशन का कार्य करते थे। इसके बाद वे 19 वीं शताब्दी के दूसरे उसक में वे श्रोरामपुर मिशनरी छापाखाना कार्य छोड़कर कलकत्ता चले आये और यहाँ पर अपना छापाखाना स्थापित किया। इस प्रकार से वे यहाँ पर मुद्रण (छापाखाना) और पुस्तक विक्रय का कारोबार शुरू किया। इसके बाद वे कलकत्ता से छापाखाना के कारोबार को लेकर अपने गाँव बहड़ा चले गये।

गंगकिशार भट्टाचार्य ने अपने गाँव में ‘बग्ला गजट यन्तालय’ नाम से छापाखाना खोला। यही से उन्होंने साप्ताहिक प्रत्रिका ‘बग्ला गजट’ का प्रकाशन शुरू किया। इसी छापाखाना से वे भारत चन्द्र द्वारा सम्पार्दित सचित्र प्रथम बांग्ला भाषा पुस्तक ‘आन्नदामंगल’ को प्रकाशित किया। इसी प्रकार से उन्होंने ‘ए ग्रामर इन इंग्लिस एण्ड बंगाली’, ‘गणित नामता’, व्याकरण लिखने का आदर्श, ‘हितोपदेश’, ‘दायभाग’ एवं चिकित्सापर्व नामक अन्य पुस्तकों का प्रकाशन किया।
इस प्रकार छापाखाना के क्षेत्र में प्रथम बंग्ला व्यवसायी के रूप में इनका अमूल्य योगदान रहा।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 5.
श्रीरामपुर मिशन प्रेस किस प्रकार एक अग्रणी मुद्रण प्रेस के रूप में परिणत हुआ ?
उत्तर :
1800 ई० से 1837 ई० के 38 वर्षों तक बंगला मुद्रण और प्रकाशन के क्षेत्र में श्रीरामपुर मिशन प्रेस का महत्वपूर्ण योगदान रहा तथा यह निम्नलिखित कार्यों के द्वारा देश का अग्रणीय छापाखाना बन सका –
(i) 1800 ई० में विलियम केरी ने श्रीरामपुर मिशन प्रेस तथा श्रीरामपुर वायोपिस्ट मिशन प्रेस की स्थापना की। इन दोनों छापाखानों में दो वर्ष पहले से लकड़ी के छपाई यन्त्र से विभिन्न देशी भाषा और बंगला भाषा में पुस्तक एवं पत्रिकायें छपती रही। 1812 ई० से इन छापाखानों में लोहे के यन्त्रों द्वारा छपाई होने लगी।
(ii) विलियम केरी ने जशुआ मार्शमैन, विलियम वार्ड और चार्ल्स ग्राण्ट को साथ लेकर पुस्तक छापने के कार्यक्रम का बीड़ा उठाया। पुस्तक छपाई के क्षेत्र में श्रीरामपुर त्रयी की विशिष्ट भूमिका रही।
(iii) श्रीरामपुर मिशन छापाखाना से पहली पुस्तक वाइविल का अनुवाद छपा था। इस प्रेस से पहले-पहल धार्मिक पुस्तकों का अनुवाद ही छपते रहे। इसके बाद छात्रों की पाठ्यपुस्तके, पत्र-पत्रिकाए जैसे दिगदर्शन, समाचार दर्शन, बंगाल गजट, संवाद कौमुदी तथा अनुवादित पुस्तके सिहांसन बत्तीसी, हितोपदेश, राजाबली, प्रबोध चन्द्रिका, लिपिमाला आदि अन्य महत्वपूर्ण पुस्तके प्रकाशित होने लगी।
(iv) इसी प्रेस से फोर्टविलियम कॉलेज के साथ-साथ अन्य स्कूल एवं कालेजों की पाठ्य-पुस्तके छपने लगी। इस प्रकार मिशन प्रेस सहयोगी के हिसाब से व्यापारिक रूप से पुस्तके छापने लगा।
(v) श्रीरामपुर मिशन प्रेस एक काठ की छपाई मशीन से छापाखाना का व्यवसाय शुरू किया जो 1832 तक आते-आते 18 लौहे के छापाखाना स्थापित कर लिए। जिसमें 40 भाषाओं में 2 लाख से अधिक पुस्तके छपने व प्रकाशित होने लगी। इस प्रकार से श्रीरामपुर मिशन प्रेस देश में सबसे बड़ा छापाखाना बन सका।

प्रश्न 6.
बंगाल में कारीगरी शिक्षा के विकास में बंगाल टेक्निकल (तकनीकी) इंस्टीट्यूट की क्या भूमिका थी?
उत्तर :
बंगाल में कारीगरी शिक्षा के विकास में बंगाल तकनीकी संस्थान की भूमिका :- बंगाल में तकनीकी शिक्षा का ज क तारकनाथ पालित को माना जाता है। सर्वप्रथम 25 जुलाई, 1906 ई० को कलकत्ता में उन्होंने तकनीकी स्कूल की स्थांगा की। बाद में इसे राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के अधीन कर दिया गया।

इसकी स्थापना का उद्देश्य बंगाल के युवा वर्ग में तकनीकी और कारीगरी शिक्षा के विकास को बढ़ावा देना था। इस कॉलेज में वर्कशाप के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों के निवास करने की सुख-सुविधा की व्यवस्था की गयी थी। धीरे – धीरे इसमें शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या बहुत अधिक हो गयी तथा इसका नाम बंगाल सहित पूरे देश में चर्चित हो गया। तब इसका नाम बदल कर यादवपुर तकनीकी कॉलेज रख दिया गया।

जिसे 1955 ई० में स्वायतशासी संस्था की मान्यता प्रदान कर दी गयी। इसके बाद यहाँ बड़ी संख्या में बंगाल के तथा भारत के अन्य भागों से छात्र आकर सफलतापूर्वक तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने लगे और यहाँ से शिक्षा प्राप्त छात्र राज्य और देश के विभिन्न भागों में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने लगे। इस प्रकार बंगाल तकनीकी संस्थान ने बंगाल में कारीगरी शिक्षा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 7.
बंगाल में प्रिंटिंग प्रेस के विकास में उपेन्द्र किशोर राय चौधरी की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बंगला साहित्य एवं प्रेस में अदभुत परिवर्तन आया जिसके कारण बंगला साहित्य (Bengali Literature) और मुद्रण (Press) दौर बढ़े। ऐसा लगा मानो उनमें जान आ गयी। इसके पहले 19 वीं शताब्दी के मध्य तक इन दोनों क्षेत्रों में कोई पहल नहीं था, जिसके कारण बंगला साहित्य एवं मुद्रण (Press) पिछड़ता चला गया था। लेकिन 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक ऐसे व्यक्ति का अभ्युदय हुआ जिनके प्रयास से बंगला साहित्य एवं मुद्रण (Press) का पर्याप्त विकास हुआ। उस महान व्यक्ति का नाम ‘उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी’ था।

उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी का जन्म सन् 1863 में बांग्लादेश के मैमन सिंह जिला के मोउसा या मसूया गाँव में हुआ था जो उस समय बंगाल के अन्तर्गत था, अब यह बंगाल से अलग हो गया है अर्थात् यह गाँव अब बंगलादेश का हिस्सा बन चुका है। उनके पिता का नाम कालीनाथ राय था। उनके पिता द्वारा दिया गया नाम कामदारंजन राय था। पाँच वर्ष की उम्र में एक अणुत्रक जमींदार ने उन्हें गोद ले लिया था और उनका नया नाम ‘उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी’ रखा था। वे द्वारिकानाथ गाँगुली के दामाद, लोकम्रिय हास्य लेखक सुकुमार राय के पिता तथा अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सत्यजीत राय के दादा थे। उनकी मृत्यु सन्श 915 में हो गयी।

उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी एक प्रसिद्ध बंगाली साहित्यकार थे। इसके साथ ही वे एक प्रसिद्ध चित्रकार, सितारवादक, गीतकार, तकनीशियन तथा उत्साही व्यवसायी भी थे। उन्होंने भारत में पहली बार बच्चोंके लिए ‘संदेश’ नामक पत्रिका का शुभारंभ किया, जो एक बंगाली मिठाई के नाम पर रखी गयी थी। इन्होंने दक्षिण एशियां में प्रेस के क्षेत्र में ‘आधुनिक अक्षर निर्माण कला’ (Block making) का निर्माण किया तथा इसके साथ ही ‘रंगीन ब्लाक मेंकिग’ (Colour block making) का भी शुरूआत किये। इतना ही नहीं, उन्होंने कलकत्ता में भी यह परम्परा शुरू की।

उन्होंन स्वयं एक प्रकाशन संस्था का निर्माण किया तथा अपने प्रकाशन घर का नाम ‘यू० एन० राय एण्ड सन्स’ (U. N. Roy and Sons) रखा जहाँ से अनेकों रचनाएँ प्रकाशित हुई जिनमें ‘छेलेदेर या छोटोदेर रामायण’, ‘छोटोदेर महाभारत’, ‘गोपी गाइन बाघा बाइन’ तथा ‘टुनटुनीर बोई’ इत्यादि प्रमुख रचनाएँ हैं। इतना ही नहीं, इन्होंने वैज्ञानिक तरीकों से ‘छाया-प्रति’ (Negative making) का भौ निर्माण किया था। इस कार्य की प्रशंसा न केवल भारत में हुआ था बल्कि बिटन की प्रत्रिका ‘पनरोज एनुवल वॉल्यूम – XI’ (Penrose Annual Volume – XI) में भी काफी कुछ छपा था।

इनके द्वारा स्थापित मुद्रणालय दक्षिण एशिया का पहला मुद्रणालय या प्रेस था, जहाँ से काले एवं संफेद (Block and White) तथा रंगीन (Colourful) फोटोग्राफ्स मुद्रित होते थे।

प्रश्न 8.
विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना तथा उसके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गये योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना : विश्वभारती की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बीरभूम जिले के बोलपृर संशंश से 2 की॰ मी॰ दूर शांतिनिकेतन नामक स्थान पर स्थापित किया था। प्रारम्भ में यह एक विद्यालय था, जिसे रोंन्द्रनाथ ने पाँच छात्रों को लेकर शुरू किया था। शुरू में यह विद्यालय अध्यात्मिक ध्यान और मनोयोग का केन्द्र था। 1908 ई० में इसमें अन्य विषयों की शिक्षा दी जाने लगी। 23 दिसम्बर 1931 ई० को भारत सरकार ने इसे महाविद्यालय को मान्यता दी। जब यह महाविद्यालय पूरे देश में शिक्षा और ज्ञान का केन्द्र बन गया, तब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1951 ई० में इसे पूर्ण विश्वविद्यालय की मान्यता प्रदान की गई और रवीन्द्रनाथ ठाकूर इसके पहले कुलपति थे। आज यह पूरे देश में विश्व-भारती केन्द्रीय विश्वविद्यालय के नाम से विख्यात हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान : रवीन्द्रनाथ ने बोलपूर के निकट शांतिनिकेतन में 1901 ई० में जिन पाँच छात्रों को लेकर शातिनिकेतन विद्यालय के रूप में शुरुआत की वो 1951 ई० तक आते-आते शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय का रूप ग्रहण कर लिया, जहाँ देश और विदेश के विद्यार्थी अपने धर्म, संस्कृति, भाषा, कला, संगीत, विज्ञान, स्थापत्य कला विभिन्न सामाजिक विज्ञान आदि विषयों का अध्ययन करते हैं। शांतिनिकेतन में विद्यार्थियों को शिक्षा बन्द कमरे में नहीं, बल्कि प्रकृति के गोद में वृक्षों के छाया तले, योग्य गुरूओं द्वारा दी जाती हैं। यहाँ का शांत, आदर्श, खुला वातावरण भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था ‘गुरूकूल’ के शिक्षा व्यवस्था की याद दिलाती है। आज यह विश्वविद्यालय देश और विदेश में शिक्षा, सास्कृतिक और बौद्धिक ज्ञान के आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

प्रश्न 9.
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य को संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य : रवीन्द्रनाथ जी एक महान प्रकृति प्रेमी, संगीत प्रेमी, विद्यानुरागी, शिक्षा-शास्त्री थे, वे बच्चों को चारदिवारी के बन्द कमरे में शिक्षा ने देकर खुले, स्वस्थ और शांत वातावरण में शिक्षा देने के पक्षधर थे, उनकी दृष्टि में शिक्षा के निम्न उद्देश्य थे –

  1. सत्य के विभिन्न रूपों की प्राप्ति के लिए विभिन्न दृष्टिकोण से मानव मस्तिष्क का अध्ययन किया जाना।
  2. प्राचौन और नवीन विधि से पढ़ने-पढ़ने के तौर-तरिकों में सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए।
  3. पूर्वी तौर-तरिकें और पध्विमी तौर-तरिकें को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए, तथा एक-दूसरे के संभावित अच्छे विचारों का आदान-प्रदान किया जाना चाहिए।
  4. बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के अतिरिक्त अध्यात्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक विषयों का भी ज्ञान देना चाहिए।
  5. इन्हीं उंदेश्यां को ध्यान में रखते हुये छात्रों के सर्वोमुखी उन्नति के लिए उन्होंने सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में शांतिनिकेतन में विश्वभारती स्थापना की थी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 10.
बंगाल की राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 1905 ई० में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप बंगाल व देश में उभरे स्वदेशी आन्दोलन के ज्वार ने भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (बंगाल) को जन्म दिया, इस समय बंगाल के तथा देश के कई बुद्धजीवीयों ने मिलकर 1906 ई० में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद कि स्थापना की, जिसका उद्देश्य देश का निर्माण और विकास करना था, इस परिषद कं अधक प्रयास से देश के विभिन्न भागों में देशी-भाषा और मातृ-भाषा में अनेकों विद्यालय, स्कूल, तकनीकी कॉलेज, इंजीनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेज स्थापित किये गये। इस परिषद की स्थापना में महेन्द्रलाल सरकार, तारकनाथ पालित, अरविन्द घाष, रासबिहारी बोस, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, आशुतोष चौधरी का विशेष योगदान रहा, इसके प्रयास से हि देश में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा का विकास हुआ और भारत आधुनिक शिक्षा के रास्ते पर चल पड़ा।

प्रश्न 11.
विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना तथा उसके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गये योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्वभारती की स्थापना में टैगोर की शिक्षा संबंधी धारणा का वर्णन करो।
उत्तर :
विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना :- विश्वभारती की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1863 ई० में बीरभूम जिले के बोलपुर स्टेशन से 2 कि०मी० दूर शांति निकेतन नामक स्थान पर स्थापित किया था। प्रारम्भ में यह एक विद्यालय था, जिसे रवीन्द्रनाथ ने पाँच छात्रों को लेकर शुरु किया था। शुरु मे ही यह विद्यालय अध्यात्मिक ध्यान और मनायोग का केन्द्र था। 1908 ई० में इसमें अन्य विषयों की शिक्षा दी जाने लगी। 23 दिसम्बर 1931 ई० को भारत सरकार ने इसे महाविद्यालय की मान्यता दी, तब यह महाविद्यालय के रूप पूरे देश में शिक्षा और ज्ञान का केन्द्र बन गया, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1951 ई० में इसे पूर्ण विशविद्यालय की मान्यता प्रदान की गई और रवीन्द्रनाथ ठाकूर इसके पहले कुलपति बने। आज यह पूरे भारत में विश-भारती केन्द्रीय विश्शविद्यालय के नाम से विख्यात है।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान :- रवीन्द्रनाथ ने बोलपुर के निकट शांतिनिकेतन में 1901 ई० में पाँच छात्रों को लेकर शातिनिकेतन में विद्यालय के रूप में शुरुआत की, और 1951 ई० तक आते-आते शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय का रूप ग्रहण कर लिया। जहाँ देश और विदेश के विद्यार्थी अपने धर्म, सस्कृति, विज्ञान, स्थापना कला विभिन्न समाजिक विज्ञान आदि विषयों का अध्ययन करते हैं, यहाँ का शांत, आदर्श, खुला वातावरण भारत के प्राचीन शिक्षा व्यवस्था ‘गुरुकुल’ के शिक्षा व्यवस्था की याद दिलाती है। आज यह विश्चविद्यालय देश और विदेश में शिक्षा संस्कृति और बौद्धिक ज्ञान के आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

प्रश्न 12.
बंगाल की राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा नीति :- 1905 ई० में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप बंगाल व देश में उभरे स्वदेशी आन्दोलन के ज्वार ने भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (बंगाल) को जन्म दिया, इस समय बंगाल के तथा देश के कई बुद्ध-जीवियों ने मिलकर 1906 ई० में ‘राष्ट्रीय’ शिक्षा परिषद की स्थापना की जिसका उद्देश्य देश का निर्माण और विकास करना था। इस परिषद के अथक प्रयास से देश के विभिन्न भागों में देशी-भाषा और मातृभाषा में अनेकों स्कूल, तकनीकी कालेज, इंजीनीयरिंग एवं मेडिकल कालेज स्थापित किये गये। इस परिषद की स्थापना में महेन्द्रलाल, तारकनाथ पालित, अरविन्द घोष, रासविहारी बोस, सुरेन्द्रनाथ बेनर्जी, आशुतोष चौधरी का विशेष योगदान रहा। इनके प्रयास से ही देश में विज्ञान तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा का विकास हुआ और भारत आधुनिक शिक्षा के रास्ते पर चल पड़ा।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 13.
आधुनिक चिकित्सा के विकास में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की भूमिका/योगदान का सक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में आधुनिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए लार्ड विलियम बेंटिक के प्रयास व आदेश से 28 जनवरी 1835 ई० को कलकत्ता में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। इसकी स्थापना से भारत में उच्च च्चिकित्सा के शिक्षा क्षेत्र में एक नये युग की शुरुआत हुई। इस कॉलेज में देश के नवयुवको को आधुनिक चिकित्सा की सुविधा प्रदान की गयी। इस मेडिकल काँलेज में दवाओं की शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी को मानव-शरीर की चिर-फाड़ की शिक्षा दी जाने लगी।

प० मधुसूदन गुप्ता भारत और एशिया के पहले शल्य डाक्टर बने, उनके इस सफल कार्य के लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें 50 तोपों कों सलामी दी। इस कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी देश के विभिन्न भागों में जाकर आधुनिक चिकित्सा का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार कलकत्ता मेडिकल कॉलेज ने देश के विभित्र-प्रान्तों में पश्चिमी आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 14.
औपनिवेशिक शिक्षा से तुम क्या समझते हो ? शिक्षा-शास्त्रियों ने इस शिक्षा नीति की समालोचना क्यों किया है ?
उत्तर :
औपनिवेशिक शिक्षा : भारत में शिक्षा को लेकर अनेक उतार-चढ़ाव हुआ जिसमें भारत देश का भविष्य निहित था। उतार-चढ़ाव कहने का मतलब अंग्रेजो के समय में भारतीय शिक्षा में अनेकों बदलाव किया गया। यह सभी बदलाव देखा जाय तो अंग्रेज अपने पक्ष में ही करते थे। अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को भारतीय शिक्षा के माध्यम से भारतवासियों के ऊपर थोपना चाहते थे। अर्थात् अंग्रेजी प्रशासन भारतवासियों के शोषण करने हेतु हर हथकण्डे अपनाया करते थे। परन्तु इस प्रशासन में ही कुछ ऐसे गवर्नर-जनरल भी थे, जो न केवल अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देते थे बल्कि संस्कृति शिक्षा को भी बढ़ावा देते थे।

अंग्रेजों या अंग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत में प्राच्य शिक्षा के अलावा पाश्चात्य शिक्षा को अधिक महत्त्व देते थे। वे प्राच्य एवं पाश्चात्य भाषाओं में समन्वय सथापित न करके उनमें मतभेद पैदा किया करते थे ताकि प्राच्य भाषा का अन्त हो जाये। लेकिन कुछ गवर्नर जनरल पाश्चात्य शिक्षा के साथ-साथ प्राच्य शिक्षा को भी लेकर चलना चाहते थे। एसे गवर्नर-जनरलों ने बहुत सारे विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना किये।

समालोचना : भारतीय शिक्षा शास्त्रियों ने औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था की समालोचना प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था के आधार पर किये। इसके निम्न कारण हैं –
i. लार्ड मैकाले की शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी यह थी इसके द्वारा छात्रों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से दूर रखने का प्रयास किया गया था। इस शिक्षा व्यवस्था को धर्म से भी दूर रखा गया था। रवीन्द्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थी के मस्तिष्क में धार्मिकता का विकास हो तथा नैतिकता और चरित्र का विकास भारतीय आदर्शों के अनुकूल हो।

ii. मैकाले की शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा को अनदेखा किया गया था जबकि अधिकतर शिक्षाविद् यह मानते थे कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। महान चिन्तक रवीन्द्रनाथ ने अपने विद्यालय में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को ही माना।

iii. मैकाले की शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य मात्र रोटी और भौतिकता तक सीमित था। भारत में शिक्षा व्यवस्था के संचालक साधु-संत तथा ऋषि-मुनि थे जो नैतिक गुणों और आध्यात्मिकता पर जोर देते हैं।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 15.
बंगाल में ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’ (National Education Council) के अवदान का अभिमूल्यन करो।
उत्तर :
राष्ट्रीय शिक्षा परिषद : तकनीकी शिक्षा के विकास में ‘नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन’ था ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’ का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य छात्र-छात्राओ को तकनीकी शिक्षा प्रदान कराना था। इतना ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चों को तकीनीकी शिक्षा किस प्रकार प्राप्त हो इसका भी ध्यान रखा जाता था। इस कार्य में अनेकों तकनीकी शिक्षा के प्रेरणा स्रोत थे जिनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरबिन्द घोष, राजा सुबोध चन्द्र मल्लिक, ब्रजेन्द्र किशोर रॉय चौधरी इत्यादि उल्लेखनीय है।

ऐसे तो माना जाता है कि राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल (The National Council of Education’ Bengal) का जन्म बंग-भंग के दौरान किया गया स्वदेशी आन्दोलन (1905 ई०) द्वारा हुआ था अर्थात् राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् बंगाल की स्थापना सन् 1906 में प्रमुख शिक्षाविदों के सम्मिलित प्रयासों से हुआ था। इस परिषद् के तहत राज्य के समस्त विज्ञान एवं तकनीकी स्कूल एवं कॉलेज खोले गये। इसी परिषद् ने ‘बंगाल तकनीकी कॉलेज (B.I.T.) की स्थापना किया। बाद में चलकर राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल सन् 1955 में ‘यादवपुर विश्वविद्यालय’ में मिला दिया गया। इस परिषद की स्थापना में प्रमुख भूमिका ‘रासबिहारी घोष’, ‘आशुतोष चौधरी’, ‘हिरेन्द्रनाथ दत्त’ तथा ‘सुरेन्द्रनाथ बनरी’ ने पालन किया था।

इस तरह बंगाल में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के विकास में ‘कलकत्ता विज्ञान कॉलेज’ तथा ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल’ की अहम या महत्वपूर्ण भूमिका रही।

प्रश्न 16.
मानव, प्रकृति एवं शिक्षा के समन्वय में रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, चिन्तक तथा समाज सुधारकों में गिने जाते थे। इसी आधार पर रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि के साथ-साथ एक महान शिक्षक भी थे। टैगोर जी ने एक शिक्षक के रूप में छात्रों एवं छात्राओं के लिए हर सम्भव कार्य किये जिनकी जरूरत उनको थी। एक शिक्षक के रूप में टैगोर जी का प्रारम्भिक कार्य छात्र-छात्राओं को सही आचरण, व्यवहार और अच्छी ज्ञान प्राप्त कराना था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर खुद एक शिक्षक थे। इसीलिए उन्होंने ‘पकृति’ को महान शिक्षक की दर्जा दिया है, जो हमेशा जीवित रहता है अर्थात् महान शिक्षक होने के साथ-साथ, एक जीवित शिक्षक भी। ‘प्रकृति’ के साथ रहकर अबोध बच्चे जीवन के हर एक रहस्य को सीख पाते हैं। ‘प्रकृति’ एक अबोध मनुष्य को बोधगम्य बनाती है। टैगोर जी का मानना है कि समाज में पठन-पाठन का केन्द्र या विद्यालय खुले प्राकृतिक वातावरण में हों ताकि बच्चे खुले प्राकृतिक वातावरण में पढ़कर विकसित हो पायेंगे। इतना ही नहीं, बच्चे प्रकृति की गोद में रहकर ममता रूपी प्यार पाकर बहुत कुछ सीख पाते हैं। इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है –

” सांसारिक बन्धनों में पड़ने से पहले बालकों को अपने निर्माण काल में प्रकृति का प्रशिक्षण प्राप्त करने दिया जाना चाहिए।” रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार प्रकृति या वातावरण में एक विद्यालय के सभी सामान हैं । जैसे – किताबें, पाठ्यक्रम, डेस्क, श्यामपट, शिक्षक या शिक्षिका तथा विद्यालय का माहौल आदि। अर्थात् प्रकृति या वातावरण खुद एक शिक्षक है, उनकी विभिन्न दृश्य किताबें एवं पाठ्यक्रमें हैं, जहाँ बच्चे प्रकृति या वातावरण में विद्यालय के भाँति पढ़ते एवं सीखते हैं। इसीलिए टैगोर जी के अनुसार प्रकृति या वातावरण एक महान जीवित शिक्षक है।
उपर्युक्त उल्लेखों से हम पाते हैं कि प्रकृति या वातावरण सही रूप में एक महान् जीवित शिक्षक है, जिसका वर्णन टैगोर जी ने किया है।

प्रश्न 17.
विज्ञान के विकास में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ की भूमिका क्या थी ?
या
विज्ञान के विकास में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ का क्या महत्व है ?
या
‘बसु विज्ञान मन्दिर’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
विज्ञान के विकास के लिए अनेकों संस्थाएँ बनाई गई, जो विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत आविष्कार माना जाता है। इन्हीं आविष्कारों के माध्यम से आज विज्ञान इस कदर चल पड़ा है कि मानो लंगड़ा घोड़ा दौड़ पड़ा हो। 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में विज्ञान में अनेकों परिवर्तन आये, जो विज्ञान के विकास को आगे बढ़ाया। इतना ही नहीं, 20 वी शताब्दी में इतना विकास हुआ कि इस दौर को आधुनिक विज्ञान का दौर माना गया। इस दौर को लाने वाले एकमात्र ‘जगदीश चन्द्र बोस’ थे, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से विज्ञान के क्षेत्रों में अद्भुत विकास लाये। इसीलिए तो इन्हें आधुनिक विज्ञान का दाता माना जाता है। इन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अनेकों आविष्कार किये जिसके बलबुते पर विज्ञान में विकास आ पाया और विज्ञान का स्वरूप आधुनिक हो पाया।

जगदीश चन्द्र बसु के प्रयास से बंगाल में सन् 1917 में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ की स्थापना किया गया। इस संस्था में भौतिकी (Physics), रसायन (Chemistry), वसस्पति-जीव विज्ञान (Plant Biology), अणुजीव विज्ञान (Microbiology), जीवन रसायन (Bio-chemistry), जीव शरीर विज्ञान (Animal Physiology), जीव सूचना विज्ञान (Bio-informatics) एवं पर्यावरण विज्ञान (Environment Science) इत्यादि विषयों पर शोध होता है। बाद में चलकर ‘बसु विज्ञान मन्दि’

का नाम ‘बोस संस्था’ (Bose Institute) रखा गया जहाँ विज्ञान संबंधित हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। इस संस्थान के द्वारा ‘कलरा’ के विष प्रभाव पर किये गये कार्य काफी महत्वपूर्ण है। इस कार्य में ‘प्रोफेसर एस० एन० दे०’ का अमृल्य योगदान है। इतना ही नहीं, आचार्य जगदीश चन्द्र बसु भारत में ‘आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान’ के संस्थापक माने जाते हैं।

‘बोस संस्थान’ वर्तमान में एक संग्रहालय भी है, जिसका प्रारम्भ खुद आचार्य जगदीश चन्द्र बसु ने अपने समय से ही कर दिया था। वे अपने उपकरणों का प्रदर्शन भी किया करते थे। इस तकनीकी संग्रहालय का मुख्य उद्देश्य आचार्य जगदीश चन्द्र बसु द्वारा उपयोग में लाये गए वस्तुओं उपकरणों एवं स्मृति चिन्हों की प्रदर्शनी है।

उपर्युक्त विवरणों से हमलोग जान पाते हैं कि आचार्य जगदीश चन्द्र बसु द्वारा स्थापित ‘बोस संस्थान’ विज्ञान के विकास के क्षेत्र में एक अद्भुत प्रयास है। जो आधुनिक विज्ञान का प्रतीक माना जाता है, जिसने विज्ञान के क्षेत्र में हलचल मचा दिया।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 18.
19 वीं शताब्दी में बंगाल में प्रेसों का आविर्भाव किस प्रकार हुआ ?
या
बंगाल में पाठ्यपुस्तकों की छपाई के विकास की परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
19 वीं शताब्दी में बंगाल में प्रेसों के आविर्भाव का स्वरूप मिलाजुला पाया जाता हैं। अर्थात् 19 वीं शताब्दी में प्रेसों के माध्यम से अनेकों पत्र, पत्रिका एवं समाचार पत्र छापे गये जो न केवल बंगला भाषा में थे बल्कि हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी थे। ये सभी पत्र, पत्रिका एवं समाचार-पत्र 19 वी शताब्दी के बंगाल में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। 19 वीं शताब्दी में बंगाल में प्रेसों के माध्यम से विभिन्न विषयों, राजनीति से लेकर मनोरंजन के उपलब्ध जानकारी जान पात थे।

19 वीं शताब्दी में अनेक पत्र, पत्रिका और समाचार पत्रों का प्रकाश हुआ था, जिनमें सन् 1780 ई० में ‘जे० के० हिक्की’ का ‘बंगाल गजट’ नामक समाचार पत्र था। यह एक सप्ताहिक पत्र था। परन्तु इसकी प्रतियाँ उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण इसकी जानकारी अपर्याप्त है। सन् 1780 ई० में ही भारत का दूसरा समाचार पत्र प्रकाशित हुआ जिसका नाम ‘इण्डिया गजट’ था। सन् 1818 ई० में ‘मार्शमैन’ के नेतृत्व में बंगाल में ‘दिग्दर्शन’ नामक मासिक पत्रिका बंगला भाषा में निकला।

1818 ई० में बंगाली भाषा में ‘संवाद कौमु’ का प्रकाशन ‘राजा राममोहन राय’ ने किया था। इतना ही नहीं, सन् 1822 ई० में राजा राममोहन राय ने ‘मिरातउल अखबार’ का भी प्रकाशन किया। इन दोनों अखबारों के माध्यम से राजा राममोहन राय सामाजिक एवं धार्मिक सुधार समाज में लाना चाहते थे। राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी भाषा में ‘ब्राह्मिनिकल मैगजीन’ निकाले। इसके बाद द्वारिका नाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राजा राममोहन राय के प्रयास सन् 1830 ई० में बंगला भाषा में ‘बंगदत्त’ पत्र निकाला गया।

ऐसा माना जाता है कि 19 वीं शताब्दी के मध्य से ही भारत और बंगाल क्षेत्र के अन्तर्गत आधुनिक मुद्रण या प्रेस का आविर्भाव हो चुका था। लेकिन उसका पहल 20 वीं शताब्दी के शुरू आत में उपेन्द्रकिशोर रॉय बौधरी ने किया, जो भारत एवं बंगाल में आधुनिक प्रेस के दाता या जनक माने जाते हैं।

कहा जाता है कि डुबती हुई नैय्या को खेवैय्या पार लगाता है, ठीक उसी प्रकार बंगाल में प्रेसों के विकास की शुरुआत 19 वीं शताब्दी में हुई और इसके सूत्रकार आधुनिक पुरुष राजा राममोहन राय माने जाते थे। जिन्होंने अपने पत्रों के माध्यम से समाज एवं धार्मिक सुधार का बेड़ा उठाये।

प्रश्न 19.
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रतिपादित शिक्षा का उद्देश्य निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, समाज सुधारक एवं राजनैतिक चिन्तक माने जाते थे, इतना ही नहीं, वे एक महान शिक्षावादी भी थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होने अपने जीवन में अनेको महत्वपूर्ण कार्य किये। जैसे शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना। रवीन्द्रनाथ टैगोर शिक्षा के प्रति अत्यन्त ही सजग रहते थे। वे शिक्षा को सर्वोपरि देखना चाहते थे, तभी तो उनका मानना था कि शिक्षा मनुष्य के शरीर के कण-कण में निवास करती है। अर्थात् शिक्षा वह हो जो मनुष्य को सर्वोच्च स्थान दिलाने में मदद करे। इतना ही नहीं,समनुष्य को शिक्षा के माध्यम से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे मनुष्य का शारीरिक, सामाजिक, मानसिक तथा अन्य विकास होता है जो मनुष्य को प्रगति के रास्ते पर ले जाता है। तभी तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के संबंध में अपना विचार निम्नरूप में व्यक्त करते हैं :-
“सर्वोच्च शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण दृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है।”

टैगोर जी ने माना है कि शिक्षा मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, चारित्रिक, विश्व-बंधुत्व और राष्ट्रीयता का विकास करता है। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को शिक्षा के प्रति समर्पित होना चाहिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने मनुष्य को बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार से हमें शिक्षा आर्जित करना है, जिससे हमें या हमारे भीतर सभी प्रकार का बौद्धक विकास हो पाये, शिक्षा या ज्ञान की प्राप्ति हो सकें। शिक्षा के संबंध में उनका निम्नलिखित सिद्धान्त रहा है कि मनुष्य को शिक्षा प्रहण करके प्रकृति का अनुसरण क्रिया के माध्यम से जीवन क्रियाओं द्वारा, खेल द्वारा, बार-बार अध्ययन द्वारा, मनन द्वारा तथा ध्यान केन्द्रित करके करना चाहिए।

इन सभी सिद्धान्तों के माध्यम से हमें पूर्णरूप से ज्ञान की प्राप्ति होता है जिससे हमारे विभिन्न क्षेत्रों में भी विकास होता है। अर्थात् इन सभी कार्यो के माध्यम से एक अबोध बालक या बालिका को बोध हो पाता है। टैगोर का मानना है कि एक अबोध बालक या बालिका जन्म से ही कुछ न कुछ सीख पाते है। उन्हें इन सभी मार्गों से होकर गुजरना पड़ता है, तभी वे एक बोध या शिक्षित बालक या बालिका हो पाते हैं।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 20.
‘मानवों’ के संबंध में रवीन्द्रनाथ टैगोर का क्या विचार था ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, सुधारक, सामाजिक, शिक्षाविद के साथ-साथ एक महान चिन्तक भी थे। उनका जन्म कलकत्ता महानगर के जोड़ासाँकू अंचल में हुआ था। भले ही उनका जन्म कोलकत्ता जैसे महानगर में हुआ था, लेकिन वे एक भमणकारी या घुमक्कड़ किस्म से व्यक्ति थे।

कभी यूरोप तो कभी अमेरीका जैसे महान देशों में घुमने के लिए गये थे। लेकिन उनका मूल उद्देश्य विभिन्न मानवों के आंतरिक चरित्र या व्यवहार को टटोलना था। विभिन्न मनुष्यों से मिलकर मनुष्य जाति के व्यवहार को जानना था कि लोग कितने किस्म के होते है, उनके विचार क्या-क्या होते हैं। इतना ही नहीं, दूसरे लोगों के प्रति उनका चरित्र या व्यवहार कैसा होता है।

टैगोर जी का ‘मानवो’ के संबंध में कुछ ऐसा ही विचार था कि विभित्न मानव के विचार या व्यवहार भिन्न-भिन्न होते हैं लेकिन शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिसके माध्यम से मानव का चरित्र तथा व्यवहार दूसरों के प्रति समान हो जाता है अर्थात् दूषित चरित्र और व्यवहार के मानव शिक्षा से जुड़कर शिक्षित हो जाते हैं तथा दूसरों के प्रति अच्छा आचरण व्यक्त करते हैं। टैगोर के अनुसार देखा जाय तो प्रकृति, मानव और शिक्षा तीनों ही देश के लिए उज्ज्वल भविष्य हैं।

टैगोर जी का मानना है कि शिक्षित मानव के अन्दर अच्छी आचरण, चरित्र और व्यवहार का आविर्भाव उसकी रुचि (Interest) से प्राप्त होता है। अर्थात् यदि मनुष्य में रुचि होगी तभी वह शिक्षित हो पायेगा और उसके अन्दर मानसिक, शरीरिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विकास हो पायेगा जो एक सामाजिक मनुष्य के लिए आवश्यक तत्व है।

उपर्युक्त विवरणों से हम पाते हैं कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मनुष्य के प्रति अपना भिन्न विचार व्यक्त किये हैं जिसका संबंध न केवल मनुष्य से है बल्कि शिक्षा एवं प्रकृति से भी है। अर्थात् देखा जाय तो मनुष्य एक ऐसा तत्व है जिसका संबंध प्रकृति एवं शिक्षा से है।

प्रश्न 21.
शांति निकेतन के बारे में रवीन्द्रनाथ टैगोर के क्या विचार थे ?
या
शांति निकेतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
या
शांति निकेतन की स्थापना में रवीन्द्रनाथ टैगोर का योगदान या भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘शांति निकेतन’ का अर्थ होता है, ‘शांति’ अर्थात् ‘शांत’, ‘सुनसान ‘ तथा ‘जहाँ हलचल अधिक न हो’ और ‘निकेतन’ का अर्थ ‘आवास’, ‘घर’ और ‘जहाँ कोई निवास करता हो’, अर्थात् ‘शांति का घर’। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘शांति निकेतन’ ‘शांति का घर’ है। जहाँ सांसारिक समस्यायों से परेशान लोग शांत या एकांत या मन की एकाग्रता पाते हैं। जहाँ संसार का सर्वोच्चतम् सुख प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में देखा जाय तो, ‘शांति निकेतन’ ‘परम सुख़’ न होकर ‘मोक्ष प्राप्ति की जगह’ है, जहाँ लोग सांसारिक समस्याओं से परेशान होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं।

‘शांति निकेतन’ की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 में किये थे। शांति निकेतन भारत के पश्चिम बंगाल प्रदेश में वीरभूम जिले के अन्तर्गत बोलपुर नामक छोटे से शहर में है। जो कोलकाता से लगभग 180 कि०मी० उत्तर की ओर स्थित है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘शांतिनिकेतन’ आश्रम से बड़ा ही लगाव था। वे वहाँ अक्सर जाया करते थे। उनको वहाँ का वातावस्ण बड़ा ही मनमोहक लगता था। इसी कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने वहाँ अर्थात् ‘शांतिनिकेतन’ में सन 1901 में पाँच छात्रों को लेकर एक आश्रम या विद्यालय खोले थे। उस आश्रम या विद्यालय का नाम ‘ब्रह्मचर्य आश्रम’ रखा गया था। उनके इस कार्य में उस समय के शिक्षाविद, ब्रह्मबांधव उपाध्याय, सतीश चन्द्र राय, मोहित चन्द्र सेन, अजीत कुमार चक्रवर्ती, चार्ल्स फ्रायर तथा विलियम पियरसन् आदि लोगों ने साथ दिया था।

उपर्युक्त विवरणों के आधार पर देखा जाता है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के पिला ने जो महान कार्य किया था उसे और अधिक विकसित करने का कार्य रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने बड़ी विनम्रता के साथ किया।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 22.
शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना का क्या उद्देश्य था, संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘शांति निकेतन’ की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 ई० में किया था। शांति निकेतन भारत के पश्चिम बंगाल प्रदेश में वीरभूम जिले के अन्तर्गत बोलपुर नामक छोटे से शहर में हैं जो कोलकाता से लगभग 180 कि॰मी० उत्तर की ओर स्थित है।
रीन्द्रनाध टैगोर को शांति निकेतन आश्रम से बड़ा ही लगाव था। वे वहाँ अक्सर जाया करते थे। सन् 1921 ई० में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस विश्वविद्यालय को लोगों को समर्पित कर दिया। सन् 1922 को इस संस्था के नियम कानून बनाए गए, जो इसके उद्देश्यों को सबके समक्ष लाते हैं। इसके उद्देश्य निम्न है –

  1. भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों के आधार पर शिक्षा प्रदान करना।
  2. विश्व-बधुत्व को भावना विकसित करके विश्व शाति के लिए आधार बनाना।
  3. प्राच्य-पाश्चात्य संस्कृतियों में समन्व्वय स्थापित करना।
  4. इस संस्था को सास्कृतिक संश्लेषण के साधन के रूप में बनाना।

इस प्रकार हमलोग देखते हैं कि विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना विभिन्न उद्देश्यो को सामने रख कर की गयी थी। इतना ही नहीं, स विश्वाविद्यालय की अपनी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। इस विश्वविद्यालय में शिक्षक और छात्रों के बीच संबंध अच्छे है।

प्रश्न 23.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, साहित्यकार, समाज सुधारक एवं राजनीतिज्ञ थे। वे अपने विचारों के बड़े ही क्के थे और उनके जीवन में शिक्षा का सर्वोपरि स्थान था। उनका शिक्षा के साथ बहुत ही गहरा रिश्ता था। वे प्रकृति की पाद में रहकर शिक्षा प्राप्त किये थे। इसीलिए वे प्रकृति को शिक्षा की जननी मानते थे।

एसे महान व्यक्ति का जन्म 7 मई, सन् 1861 में ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेन्सी के कलकत्ता में स्थित जोड़ासाँकू हाकुरवाड़ी में हुआ था। इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर एवं माता का नाम शारदा देवी था। इनके बचपन का नाम रवि’ था। रवीन्द्रनाथ टैगोर के भाई, ‘द्विजेन्द्रनाथ’, ‘सत्येन्द्रनाथ’, तथा ‘ज्योतिरीन्द्रनाथ’ थे तथा बहन ‘स्वर्णकुमारी’ थी जो एक कवसित्री थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर की पत्नी ‘मृणालिनी’ थी, जिनकी सन् 1902 में मृत्यु हो गयी। टैगोर के पाँच बच्चे थे, उनमें से दो बच्चों की मृत्यु बाल्यावस्था में ही हो गई।

रवोन्द्रनाथ टैगोर ने अपने पिता द्वारा स्थापित बोलपुर के शांति निकेतन’ में एक आश्रम या विद्यालय सन् 1901 में खोले। जहाँ वे पाँच छात्रों को लेकर पठन-पाठन का कार्य किया करते थे। उन पाँच छात्रों में उनका एक पुत्र भी शामिल था। उस आश्रम या विध्यालय का नाम ‘बह्मचर्य आश्रम’ (Brahamcharya Ashram) था। उनके इस कार्य में अनेकों शिक्षाविद शामिल थे। जैसे – विलियम पियरसन, अजीत कुमार चक्रवर्ती तथा अन्य आदि।

टैगार जी ने जा विद्यालय खोला था, उसी विद्यालय को सन् 1921 में ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ के रूप में परिवर्तित कर सन् 1922 में इस संस्था का नियम कानून बनाया गया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की अनेक कृतियाँ हैं, जैसे – उनकी कविता – ‘मानसी’, ‘सोनार तरी’, ‘गीतांजली’, ‘गीतिमाल्य’, ‘बलाका’ तथा ‘भानुसिंह टैगोर की पदावली’। उनका नाटक – ‘बाल्मिकि प्रतिभा’, ‘विसर्जन’, ‘राजा’, ‘डाकघर’, ‘अचलायतन ‘मुक्तधारा’ तथा ‘रक्तकरवी’ आदि।
इसके अलावा उनके और भी कार्य हैं जिनमें ‘गोरा’, ‘जन-गण-मन’, ‘रवीन्द्र संगीत’ तथा ‘आमार सोनार बांगला’ आदि का उल्लेख किया जा सकता है:
सन् 1913 में साहित्य में उनको ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला, जो 25 अप्रैल 2004 ई० को विश्वभारती विश्वविद्यालय से ही चोरी हो गया था।
रीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु 7 अगस्त, 1941 ई० को (लगभग 80 वर्ष की उम्म में) कलकत्ता में हुई।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 24.
भारत में तकनीकी शिक्षा के विकास के बारे में संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में तकनीकी शिक्षा के विकास में काफी प्रयास किया गया है। परन्तु इसका सफरा 8 वीं सदी से लेकर 20 वी सदी तक को है। इस दौराना भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास जोर-शोर से हुआ 118 वीं सदी से लेकर आजतक भारत में तकनीकी शिक्षा के रूप में विभिन्न संस्थाएँ बनायी गयी, जिसके माध्यम से भारत में तकनीकी शिक्षा का प्रसार-प्रचार और विकास हुआ।

सन् 1938 में कांग्रेस सरकार ने ‘मेघनाथ साहा’ की अध्यक्षता में तकनीकी शिक्षा संबंधित एक समिति का गठन किया। इस समिति ने भारत के विभिन्न प्रान्तों में तकनीकी शिक्षा के विकास पर जोर दिया। इस समिति के अन्य सदस्य थे जगदीश चन्द्र बोस, बीरबल साहनी, शान्तिस्वरूप भटनागर एवं नजीर अहमद। सन् 1942 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी० एस० आई० आर) की स्थापना की गई।

सन् 1944 में ए० बी० हिल की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने भारत में वैजानिक एवं तकनीकी शोधों से संबंधित अनेक सिफारिशें की। वैसे इसके पहले बम्बई, मद्रास, कन्नूर तथा कूसौली आदि में तकनीकी को विकसित करने के लिए कई प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में अन्य संस्थाने खोलो गई। जिसमें 1864 ई० में सर सैख्यद खान द्वारा अलीगढ़ साइण्टिफिक सोंसाइटी एवं 1876 ई० में एम० एन० सरकार का ‘एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंसेज’ हैं।
इस प्रकार हम लोग देख पाते हैं कि भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास निरन्तर होते चला आ रहा हैं।

प्रश्न 25.
राष्ट्रीयता के विकास में प्रेसों तथा मुद्रित पुस्तकों की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राश्रीयता के विकास में प्रेसों तथा मुद्रित पुस्तकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसके माध्यम मे ही पूरे राष्ट्र में जानकारी व्याप्त हो पाया है। प्रेस ने जनता को आवश्यक राजनैतिक शिक्षा दी। प्रेस के माध्यम से ही विभिन्न राजनैतिक नेताओं ने अपने विचारों को आम जनता तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त की। सरकार की वास्तविक नीति को उसकी दोहरी चालों को तथा उसके द्वारा भारतीयों के शोषण को सबके समक्ष रखने वाला तथा सरकार की कटु आलोचना को जनता तक पहुँचाने वाला माध्यम प्रेस ही था।

भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के पहले समाचार पत्र ही देश में लोकमत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। पत्रकारिता के साथ अनेक प्रतिष्ठित देशभक्तों तथा जाने-माने नेताओं का नाम जुड़ा हुआ था। देशभत्तों ने अपने लाभ या व्यावसायिक दृष्टि से पत्रकारिता को नहीं अपनाया था। उनको समाचार-पत्रों से कोई लाभ नहीं होता था, बल्कि उनको इसके प्रकाशन में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता था। परन्तु इन सभी समस्याओं के बावजूद भी राष्ट्रीयता के संदर्भ में प्रेसों तथा मुद्रित पुस्तकों की भूमिका अहम मानी जाती है।

प्रश्न 26.
पंचानन कर्मकार और 19 वी सदी के पाठ्यपुस्तकों की छणाई के विकास का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर :
मुद्रण कला में बगला अक्षर (हरफ) के जनक का नाम पंचानन कर्मकार था। इनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के त्रिवेणी में हुआ था। कलकत्ता में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई तब इन्होंने उस के प्रेस में कार्य किया था। बंगला हरफ के अलावे इन्होंने अरबी, फारसी, गुरूमुखी, मराठी, तेलगु, वर्मी, चीनी आदि 14 भाषाओं के वर्णमालाओं का हरफ बनाया था।

19 वी सदी के प्रारम्भ में ही पाठशाला और स्कूल अधिक मात्रा में खुलने लगे। फलस्वरूप पाठ्युपस्तकों की मांग काफी बढ़ गई। श्रीरामपुर मिशनरीज, कलकत्ता बुक सोसाइटी तथा कलकत्ता स्कूल सोसाइटी ने पाठ्यपुस्तक प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया। मदन मोहन तारकालंकार और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर द्वारा रचित विभिन्न वर्ण मालाओं की पुस्तके काफी विख्यात हुई।

छपाई तकनीकी के विकास के कारण पाठचपुस्तकों की उपलब्धता बढ़ गई और यह छात्रों तथा पाठको को सुगमता से प्राप्त होने लगी, जिससे अध्ययन के लिए एक उत्तम माहौल बनने लगा तथा बंगाल ने साहित्य और शिक्षा की अग्रगति में उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त किया।
इस प्रकार हमलोग पंचानन कर्मकार और 19 वीं सदी के पाठ्यपुस्तको की छपाई के विकास के बारे में जान पाते हैं।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 27.
भारतीय मनीषियों ने औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था की आलोचना क्यों की ?
उत्तर :
भारतीय मनीषियों ने औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था की आलोचना प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था के आधार पर किये। इसके निम्न कारण हैं –
i. लार्ड मैकाले की शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी यह थी इसके द्वारा छात्रों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से दूर रखने का, प्रयास किया गया था। इस शिक्षा व्यवस्था को धर्म से भी दूर रखा गया था। रवीन्द्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थी के मस्तिष्क में धार्मिकता का विकास हो तथा नैतिकता और चरित्र का विकास भारतीय आदर्शों के अनुकूल हो।

ii. मैकाले की शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा को अनदेखा किया गया था जबकि अधिकतर शिक्षाविद यह मानते हैं कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। महान् चिन्तक रवीन्द्रनाथ ने अपने विद्यालय में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को ही माना।

iii. मैकाले की शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य मात्र रोटी और भौतिकता तक सीमित था। भारत में शिक्षा व्यवस्था के संचालक साधु-संत तथा ऋषि-मुनि थे जो नैतिक गुणों और आध्यात्मिकता पर जोर देते हैं।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
19 वीं सदी में बंगाल में विज्ञान एवं प्राद्यौगिकी के विकास का वर्णन करो।
अथवा
बंगाल में विज्ञान एवं प्राद्यौगिकी के विकास में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एवं नेशनल कांडसिल आफ एडुकेशन की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
बंगाल भारत का एक ऐसा प्रदेश या क्षेत्र है, जहाँ हमेशा विज्ञान एवं तकीकी का विकास होता रहा है। भारत के अन्य क्षेत्रों में भी इसका विकास हुआ है परन्तु देखा जाय तो बंगाल में इन दोनों क्षेत्रों में आज से नहीं बल्कि ब्रिटिश जमाने से ही विकास होता चला आ रहा है। विज्ञान एवं तकनीकी का जहाँ प्रादुर्भाव होता है, वह क्षेत्र अत्यधिक लाभान्वित होता है। विज्ञान एवं तकनीकी किसी प्रदेश को उभारता है तो किसी प्रदेश को नष्ट भी करता है। जैसे – द्वितीय विश्व युद्ध की बात कही जाय तो, जहाँ अमेरिका ने जापान पर बम फेंका तो वहाँ तबाही का दृश्य छा गया। अर्थात् जहाँ अमेरिका ने विज्ञान एवं तकनीकी के माध्यम से अपने आपको मजबूत किया वहीं जापान इन दोनों लाभों से चूक गया। ठीक इसी भाँति बंगाल में 19 वीं शताब्दी से लेकर 20 वी शताब्दी तक विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्रों में विभिन्न विकास हुए।

इसी विकास के क्रम में बंगाल में ‘कलकत्ता विज्ञान कॉलेज’ एवं ‘नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसका उल्लेख निम्नरूप है –
कलकत्ता विज्ञान कॉलेज (Calcutta Science College) : कलकत्ता विज्ञान कॉलेज जो बंगाल में विज्ञान के क्षेत्र में हुई विकास का प्रतीक माना जाता है, की स्थापना सन् 1914 में आशुतोष मुखर्जी ने किया था। उनके इस कार्य में श्री तारकनाथ पालित और श्री रासबिहारी बोस ने सहयोग दिया। तीनों महान् पुरुषों के प्रयास से इस महान संस्था की स्थापना हो पायी। यह कॉलेज वर्तमान में ‘University College of Science and Technology’ के नाम से परिचित है। यह ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ के चार प्रमुख कैम्पसों में से एक है। उस समय के महान वैज्ञानिक पी.सी.रॉय, सी.वी.रमन, के एस. कृष्णन इत्यादि इस कॉलेज से जुड़े हुए थे।

इस कॉलेज में भौतिकी, रसायन, जैविक विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के अनुसंधान या शोध किये जाते थे। विशेष कर Bio-chemistry, Bio-technology तथा Bio-medical जैसे विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर यहाँ चर्चा की जाती थी। इस कॉलेज में छात्र-छात्राएँ बड़े ही रुचि के साथ शिक्षा अर्जित किया करते थे। इस कॉलेज के प्रमुख़ शिक्षकों में सर चन्द्रशेखर वेंकट रमन, शिशिर कुमार मित्र, आचार्य प्रफुल्लचन्द्र रॉय, सत्येन्द्रनाथ बोस, ज्ञान चन्द्र घोष तथा ज्ञानेन्द्र मुखर्जी इत्यादि थे। ये सभी शिक्षके इस कॉलेज में रहकर शोधकार्य करते थे। आचार्य प्रफुल्लचन्द्र रॉय ने ‘बंगाल केमिकल एवं फर्मासेयुटिकल वर्क्स (Bengal Chemical and Pharmaceutical Works) नामक संस्था की स्थापना किया।

नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन : तकनीकी शिक्षा के विकास में ‘नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन’ का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य छात्र-छात्राओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान कराना था। इतना ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चों को तकीनीकी शिक्षा किस प्रकार प्राप्त हो इसका भी ध्यान रखा जाता था। इस कार्य में अनेकों तकनीकी शिक्षा के प्रेरणा सोत थे जिनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरबिन्द घोष, राजा सुबोध चन्द्र मल्लिक, बजेन्द्र किशोर रॉय चौधरी इत्यादि सम्मिलित थे।

राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल (The National Council of Education, Bengal) का जन्म बंग-भंग के दौरान किये गये स्वदेशी आन्दोलन (1905 ई०) के दौरान हुआ था। इसकी स्थापना सन् 1906 ई० में प्रमुख शिक्षाविदों के सम्मिलित प्रयासों से हुआ था। इस परिषद् के तहत राज्य के समस्त विज्ञान एवं तकनीकी स्कूल एवं कॉलेज खोले गये। इसी परिषद् ने ‘बंगाल तकनीकी कॉलेज’ की स्थापना किया। बाद में चलकर राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल को सन् 1955 ई० में ‘यादवपुर विश्वविद्यालय’ में मिला दिया गया। इस परिषद की स्थापना में प्रमुख भूमिका ‘रासबिहारी घोष’, ‘आशुतोष चौधरी’, ‘हिरेन्द्रनाथ दत्त’ तथा ‘सुरेद्र्रनाथ बनर्जी’ ने निभाई थी।
इस तरह बंगाल में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के विकास में ‘कलकत्ता विज्ञान कॉलेज’ तथा ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 2.
20 वीं शताब्दी में बंगाल के नवजागरण में प्रेस की भूमिका वर्णन कीजिए।
या
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तथा 20 वीं शताब्दी में बंगाल में प्रेस की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
19 वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध तथा 20 वीं शताब्दी में बंगाल में प्रेस की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है जिसकी वजह से छापाखाना का स्तर बढ़ा एवं तरह-तरह के समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ एवं पुस्तके अत्यधिक मात्रा में छपने लगे। इतना ही नहीं, इन सभी समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिका एवं पुस्तको की छपाई का मुख्य उद्देश्य, लोगों को हर प्रकार का या हर क्षेत्रों का ज्ञान देना था। इसी उद्देश्य से छापाखाना से विभिन्न पत्र-पत्रिका, सामाचार पत्र एवं पुस्तकें छपा करता था।

ऐसे तो माना जाता है कि 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कलकत्ता में स्याही (Ink) द्वारा छुपाई का कार्य किया जाता था जिसका प्रारम्भ ‘ग्राह्म शॉ’ (Grahm Shaw) ने किया था। उसके बाद बंगाल के कई क्षेत्रों में प्रेसों की स्थापना किया गया जिनमें सन् 1800 ई० में विलियम कैरी, विलियम वार्ड तथा कुछ और अंग्रेजों ने मिलकर हुगली के श्रीरामपुर में ‘श्रीरामपुर ‘मिशन प्रेस’ की स्थापना किया था। यहाँ लगभग 45 भाषाओं में हजारों पुस्तकों का प्रकाशन किया जाता था। धीरे-धीरे छपाई के कार्यों में विकास आया।

19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक प्रेसों में अत्यधिक विकास आया, जिसकी वज़ह से बहुत सारी पत्र-पत्रिकायें एवं पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। उन सभी पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कुछ प्रमुख थे – मार्शमैन का ‘दिगदर्शन’, राजा राममोहन राय का ‘संवाद कौमुदी’ तथा ‘मिरातउल अखबार’ एव ‘ब्राह्मिनिकल मैगजीन’, काशीसेन का ‘समाचार दर्पण’, ब्रिटिश व्यापारियों का ‘जेम्स सिल्क बकिंधम’ एवं ‘बंगदत्त’ आदि पत्र-पत्रिका एवं पुस्तके तथा समाचार पत्रें थे।

इसके बाद 20 वीं शताब्दी में छापाखाना में इतना अधिक विकास हुआ कि मानों बंगाल में नवजागरण आ गया हो। अर्थात् बंगाल विकास के पहिए के सहारे दौर पड़ा हो। कहा जाय तो 20 वीं शताब्दी में बंगाल में नवजागरण आने का प्रमुख कारण ‘ ‘छापाखाना’ में विकास ही था। 20 वीं शताब्दी के पहले ही बंगाल में छापाखाना के अनेकों संस्थाएं खोले गये, जिसकेमाध्यम से बंगाल में अनेकों पत्र, पत्रिका एवं पुस्तकों का प्रकाशन किया गया।

उनमें से कुछ पत्र-पत्रिका एवं पुस्तके महत्वपूर्ण हैं, जैसे- ‘सोम प्रकाश’ जिसका प्रकाशन ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने सन् 1859 ई० में किया। सन् 1853 ई० में हरिश्चन्द्र मुखर्जी जी ने ‘हिन्दू पैट्रियॉट’ का सम्पादन किया। सन् 1861 ई० में देवेन्द्रनाथ टैगोर और मनमोहन घोष ने ‘इण्डियन मिरर’ का प्रकाशन किये। लार्ड लिटन ने ‘ वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट’ लागू किया। केशवचन्द्र द्वारा प्रकाशित बंगला का महत्वपूर्ण दैनिक पत्र ‘सुलभ समाचार’ था। शिशिर कुमार घोष द्वारा सम्पादित ‘अमृत बाजार पत्रिका’ था।

20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों की होड़ मच गयी। इस दौरान बंगवासी, संजीवनी नामक पत्र का भी प्रकाशन हुआ जो बंगाल का प्रमुख पत्र माना जाता था। इनमें बंगवासी नामक पत्र का प्रकाशन जोगेन्द्रनाथ बोस ने किया था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का ‘बंगाली’ पत्र था। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कलकत्ता से सन् 1912 ई० में ‘अल हिलाल’ तथा सन् 1913 ई० में ‘अल बिलाग’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 3.
विश्वभारती विश्वविद्यालय के उद्देश्यों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, साहित्यकार, समाज-सुधारक एवं राजनीतिज्ञ थे जिनका जन्म सन् 1816 ई० में कलकत्ता महानगर के जोड़ासाँकू में हुआ था। इनके पिता का नाम महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर एवं माता का नाम शारदा देवी था। सन् 1863 ई० में इनके पिता देवेन्द्रनाथ टेगोर ने बंगाल के वीरभूम जिले के बोलपुर शहर में ‘शांति निकेतन’ आश्रम की स्थापना किया था। इसी आश्रम में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1901 ई० में एक विद्यालय की स्थापना किये थे जिसका नाम ‘बह्मचर्य आश्रम’ था।

वे पाँच छात्रों को लेकर इस विद्यालय की स्थापना किये थे। इनके इस कार्य में प्रमुख शिक्षाविदों, बहाबांधव उपाध्याय, सतीश चन्द्र राय, मोहित चन्द्र सेन, अजीत कुमार चक्रवर्ती तथा विलियम पिरयसन आदि ने साथ दिया था। बाद में चलकर यह विद्यालय लोकप्रिय बन गयी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस विद्यालय को ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ में रूपान्तरित कर लोगों को समर्पित कर दिया। इसकी स्थापना सन् 1921 ई० में किया गया तथा सन् 1922 ई० में इस संस्था का नियम-कानून बनाया गया।

उद्देश्य : इस संस्था के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार से है –
1. भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केन्द्र :- विश्वभारती विश्वविद्यालय का मूल उद्देश्य है कि छात्र-छात्राओं को शिक्षा या ज्ञान सिर्फ भारतीय संस्कृति, आदर्शों तथा सभ्यता को आधार बना कर दिया जाय न कि पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति को अधार बनाकर। ऐसा करने से छात्र-छात्राओं में अपने देश के प्रति भावनाएँ उत्पन्न होगी न कि द्वेष उत्पत्र होगी।

2. प्राच्य-पाश्चात्य संस्कृतियों में समन्वय :- इस संस्था का एक और मुख्य उद्देश्य था, प्राच्य-पाश्चात्य संस्कृतियों अर्थात् हिन्दी एवं अंग्रेजी संस्कृतियों में समानता स्थापित करना था ताकि इस संस्था में छात्र-छात्राओं न केवल प्राव्य या हिन्दी भाषा में बल्कि पाश्चात्य या अंग्रेजी भाषा में भी शिक्षा अर्जित कर सकें।

3. विश्व में बंधुत्व की भावना की स्थापना :- इस संस्था का तीसरा मुख्य उद्देश्य विश्व बंधुत्व, भाईचारा तथा शांति की भावना को स्थापित करना था, जो छात्र-छात्राओं के मानसिक विकास में सहायता करता है।

4. एशिया में व्याप्त जीवन के प्रति दृष्टिकोण एवं विचारों के आधार पर पश्चिमी देशों से सम्पर्क बढ़ाना।

5. इस संस्था के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए शांति निकेतन में एक ऐसे सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना किया जाय, जहाँ धर्म, साहित्य, विज्ञान एवं हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख इसाई और अन्य सभ्यताओं की कला का अध्ययन और उनमें शोधकार्य, पश्चिमी संस्कृति के साथ, आध्यात्मिक विकास के अनुकूल सादगी के वातावरण में किया जाए।

विशेषताएँ : विश्व भारती विश्वविद्यालय की विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

1. विद्या भवन :- इस संस्था के कई विभाग हैं, जिनमें से एक विद्या भवन भी है। जहाँ प्राच्य के विभिन्न भाषाओं, साहित्य एवं संस्कृति पर शोधकार्य होता है।

2. चीन भवन :- यह विभाग भी इस संस्था का ही भाग है, जहाँ हिन्दी-चीनी शिक्षाओं पर अध्ययन एवं शोधकार्य होता है। इस विभाग का गठन सन् 1937 ई० में प्राध्यापक ‘तान युन सान’ के प्रयासों से हुआ था।

3. हिन्दी भवन :- यह विभाग भी इस संस्था की देन है जिसका गठन सन् 1939 ई० में हुआ था, जहाँ पर हिन्दी भाषा एवं साहित्य के अध्ययन पर शोधकार्य किया जाता है।

4. पाठ-भवन :- इस विभाग में माध्यमिक स्तर पर शिक्षा या ज्ञान दिया जाता था।

5. शिक्षा भवन :- इस विभाग में उच्च-स्तरीय शिक्षा या ज्ञान प्रदान किया जाता था।

6. रवीन्द्र भवन :- इस विभाग की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के साहित्यों का अध्ययन करने के लिए किया गया था । इसकी स्थापना सन् 1942 ई० में हुआ था।

7. कला भवन :- इस विभाग की स्थापना चित्रकारी, लकड़ी पर नक्कशी, स्थापत्य कला की योजना एवं पत्थर की मुर्तियों एवं सूईयों से विभिन्न कलाकारी के लिए किया गया था। यह सभी कला के कार्य ‘नन्द लाल बोस’ के नेतृत्व में किया जाता था। इस विभाग में सन् 1936 ई० में ‘लोक शिक्षा संसद’ की स्थापना किया गया था।

उपर्युक्त उल्लेखों से पाते हैं कि रवीन्द्रनाथ टेगोर जी द्वारा स्थापित ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ के विभिन्न उद्देश्य एवं विशेषताएँ है, जो इस संस्था का भविष्य माना जाता है। इस संस्था की प्रसिद्धि न केवल राष्ट्रिय स्तर पर है, बल्कि अर्त्तराष्ट्रीय स्तर पर भी है।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 4.
भारत में शिक्षा के संबंध में औपनिवेशिक विचारों पर प्रकाश डालिए।
या
औपनिवेशक शिक्षा पद्धति पर टीप्पणी लिखिए।
उत्तर :
भारत में शिक्षा को लेकर अनेक उतार-चढ़ाव हुआ जिसमें भारत देश का भविष्य निहित था। उतार-चढ़ाव कहने का मतलब अंग्रेजों के समय में भारतीय शिक्षा में अनेकों बदलाव किया गया। यह संभी बदलाव देखा जाय तो अंग्रेज अपने पक्ष में ही करते थे। अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को भारतीय शिक्षा के माध्यम से भारतवासियों के ऊपर थोपना चाहते थे।

अर्थात् अंग्रेजी प्रशासन भारतवासियों के शोषण करने हेतु हर हथकण्डे अपनाया करते थे। परन्तु इस प्रशासन में ही कुछ ऐसे गवर्नर-जनरल थे, जो न केवल अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देते थे बल्कि संस्कृति शिक्षा को भी बढ़ावा देते थे।

अंग्रेजों या अंग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत में प्राच्य शिक्षा के अलावा पाश्चात्य शिक्षा को अधिक महत्व देते थे। वे प्राच्य एवं पाश्चात्य भाषाओं में समन्वय स्थापित न करके उनमें मतभेद पैदा किया करते थे ताकि प्राच्य भाषा का अन्त हो जाये। लेकिन कुछ गवर्नर जनरल पाश्चात्य शिक्षा के साथ-साथ प्राच्य शिक्षा को लेकर चलना चाहते थे। एसे गवर्नर-जनरलों ने बहुत सारे विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना किये। जैसे – ‘वारेन हेस्टिंगस’ ने कलकत्ता में सन् 1781 में एक मदरसा की स्थापना किया, सर विलियम जोन्स ने सन् 1784 में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना किये, तथा जोनाथन डंकन द्वारा बनारस में सन् 1791 में एक संस्कृति कोंलेज की स्थापना किया गया।

इस सभी संस्थाओं का मूल उद्देश्य प्रत्येक जाति, धर्म एवं साहित्य में विकास लाना था। भारतीय शिक्षा को अंग्रेजों ने एक नया रूप दिया जिसमें अंग्रेजी शिक्षा के साथ-साथ संस्कृति शिक्षा भी हो। इसी उद्देश्य से सन् 1813 ई० में एक चार्टर एक्ट पास किया गया जिसके तहत प्राच्य शिक्षा या भाषा के स्थान पर पाश्चात्य शिक्षा या भाषा का अधिक महत्व दिया गया।

इतना ही नहीं, प्राच्य तथा पाश्चात्य संस्कृतियों के समन्वय की स्थापना भी किया गया ताकि भारत में शिक्षा के स्तर को बढ़ाया जाय। परन्तु ऐसा हो न सका। जहाँ समन्वय यानी समानता स्थापित करना था वहाँ असमन्वय यानी असमानता व्याप्त हो गया। औपनिवेशिक शिक्षा पद्धति के तहत गवर्नर जनरल ‘सर चार्ल्स वुड’ ने भारतीय शिक्षा में कैसे विकास या उन्नति लाया जाय इस विषय में उन्होंने सन् 1854 में वुड डिस्पैच निकाले।

इसके माध्यम से सर चार्ल्स वुड ने भारत में प्राच्य भाषा और पाश्चात्य भाषा दोनों में किस प्रकार से विकास लाया जाय विभिन्न कदम उठाये थे – विद्यालयों में दोनों भाषाओं में पढ़ाई की व्यवस्था हो, माध्यमिक स्तर पर हिन्दी भाषा का बोलबाला हो तथा उच्च स्तर पर हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भी बोलबाला हो। कॉलेजों में प्रथम भाषा के रूप में पश्चात्य यानी अंग्रेजी भाषा को उपयोग में लाया जाय।

इस प्रकार चार्ल्स वुड ने ‘वुड डिस्पेच’ का गठन किया ताकि प्राच्य यानी हिन्दी भाषा और पाश्चात्य यानी अंग्रेजी भाषा में शिक्षा का आदान-प्रदान हो।

इतना ही नहीं, इसके पहले भी सन् 1817 में भी कुछ इस तरह का कार्य किया गया था। डेविड हेयर, राजा राममाहन राय तथा न्यायाधीश, एडवर्ड हाइड ईस्ट ने मिलकर कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना किये जिसके माध्यम से हिन्दी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में भी शिक्षा प्रदान किया जाता था। सन् 1823 में विल्सन की अध्यक्षता में जन शिक्षा की समिति (Committee of Public Instrucations) की स्थापना किया गया। समिति को शिक्षा स्तर में सुधार लाने के लिये बनाया गया था।

शिक्षा के स्तर को किस तरह से विकसित किया गया जाय इसके सन्दर्भ में लगभग सन् 1882 में सर विलियम हण्टर की अध्यक्षता में हण्टर आयोग (Hunter Commission) का गठन किया गया। इसके माध्यम से भारतीय शिक्षा स्तर में विभिन्न विकास लाया गया जिनमें माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम हिन्दी भाषा हो, उच्च स्तर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा के साथ हिन्दी भाषा को भी रखा जाय। कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम बने। इतना ही नहीं, इनमे व्यायाम की भी व्यवस्था हो ताकि छात्र-छात्राएँ मानसिक तथा शारीरिक रूप से शिक्षा अर्जित कर सके।

औपनिवेशिक शिक्षा पद्धति में ‘हण्टर आयोग’ के बाद ‘सेण्डलर आयोग’ सन् 1917 में विलियम सेण्डलर की अध्यक्षता में गठित किया गया। इस आयोग का भी उद्देश्य भारतीय शिक्षा व्यवस्था में उन्नति या विकास लाना था तथा छात्र-छात्राओं के लिए हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में विभिन्न क्रियात्मक कार्यो की व्यवस्था किया जाना था। ताकि उनमें क्रियात्मक विकास भी हो पाये जो बहुत ही आवश्यक था।

उपर्युक्त विवरणों से पता चलता है कि भारत में शिक्षा व्यवस्था के संबंध में औपनिवेशकों के भिन्न-भिन्न विचार थे। परन्तु भारतीय शिक्षा व्यवस्था में विकास का एकमात्र कारण प्राच्य या हिन्दी और पाश्चात्य या अंग्रेजी भाषाओं का समागम होना था। आज वर्तमान समय में पाश्चात्य भाषाओं के समागम से भारतीय शिक्षा का विकास तो हुआ है, लेकिन भारतीय संस्कृति नष्ट हो गयी है।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 5.
मुद्रित साहित्य एवं ज्ञान के प्रसार में संबंध को स्पष्ट करें।
उत्तर :
मुद्रित साहित्य एवं ज्ञान के प्रसार का संबंध ब्रिटिश जमाने से अर्थात् 19 वीं शताब्दी के पहले से ही माना जाता था। मुद्रित साहित्य, जो मुद्रणालय से प्रकाशित होती है उसकी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। प्रेसों से जो समाचार-पत्र, पत्रिका एवं पुस्तके छप कर आती हैं वही समाज में, लोगों में तथा छात्र-छात्राओं में ज्ञान को उजागर करती हैं। 19वी शताब्दी में जब बंगाल में मुद्रण या प्रेसों का आविर्भाव हुआ, तब से ज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक विकास हुआ। इतना ही नहीं, विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों में भी छापेखाने का जबर्दस्त प्रभाव था।

ऐसा माना जाता है कि भारत में लगभग 1557 ई० में पहला समाचार पत्र एवं पत्रिका निकाला गया और इसकी शुरुआत गोवा में व्याप्त पुर्तगालियों ने किया था। लेकिन सही रूप से भारत, बंगाल में प्रेसों का आविर्भाव 19 वीं शताब्दी से माना जाता है जिसकी पहल ‘ग्राह्म शॉ’ ने कलकत्ता में किया। उन्होंने स्याही के माध्यम से छपाई का कार्य शुरू किया। इस मशोन के द्वारा छपाई कार्य और बाइडिंग कार्य या कम्पोजिंग कार्य भी किया जा सकता था। अर्थात् 19 वीं शताब्दी से सही रूप से प्रेसों के माध्यम से समाचार पत्र, पत्रिका एवं पुस्तकों को छपाई का कार्य ने तीव्र रूप धारण कर लिया।

इस तरह भारत तथा बंगाल में तरह-तरह के समाचार पत्र, पत्रिका एवं पुस्तके आद सामने आने लगे जिससे लोगों को अत्यधिक जानकारी प्राप्त होने लगा। अर्थात् कह सकते हैं कि मुद्रणालयों ने लोगों को ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीकी से अवगत कगया बगाल में प्रेस के माध्यम से सन् 1780 में पहला समाचार पत्र ‘द बंगाल गजट’ प्रकाशित हुआ जिसका सम्पादक ‘जेम्स आगस्टस हिक्की’ थे। इस पत्र का दूसरा नाम ‘द कलकत्ता जेनरल एडवरटाइजर’ (The Calcutta General Advertiser) था।

इसी साल एक और समाचार पत्र प्रकाशित हुआ जिसका नाम इण्डिया गजट (India Gazatte) था। सन 1784 में ‘कलकत्ता गजट’ (Calcutta Gazatte) प्रकाशित हुआ एवं 1785 ई० में ‘ओरिएण्टल मैगजीन ऑफ कलकत्ता’ (Oriental Magazine of Calcutta) का प्रकाशन हुआ था।

इसी तरह 18 वीं शताब्दी के अंत तक बंगाल में कई और पत्रों का प्रकाशन किया गया जिनमें ‘कलकत्ता कैरियर’ (Calcutta Carrier), ‘एशियाटिक मिरर’ (Asiatic Mirror), ‘ओरिएण्टल स्टार’ (Oriental star) आदि प्रमुख थे। बम्बई में ‘बम्बई ग़जट’ (Bombay Gazatte) नामक समाचार पत्र के प्रकाशन से ज्ञान के विकास अर्थात् प्रचार-प्रसार में काफी मदद मिला। इतना ही नहीं, इनके प्रकाशन सं केवल जानकारियाँ ही नहीं मिलती थी बल्कि ज्ञान को अर्जित करने की प्रेरणा भी मिलती थी। इसकी मदद या सहायता से विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों में आपार उन्नति या विकास हो पाया। अर्थात् म्रेसों के आ जाने से ज्ञान के प्रसार में अत्यधिक मद्द मिला।

19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से लेकर 20 वीं शताब्दी तक भारत एवं मुख्य रूप से बंगाल में मानों प्रेसों के गाध्यम से समाचार पत्र, पत्रिका एवं पुस्तकों की होड़ मच गया जिसका सीधा सीधा असर ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी के क्षत्रों पर पड़ा इनमें ‘दिग्रर्शन’, ‘संवाद कौमुदी’, ‘मिरातुल अखबार’, ‘ब्राह्मिनिकल मैगजीन’, ‘ईश्वरचन्द्र विद्यासागर’ की ‘सामपकाश’, ‘लाई्ड लिटन’ का ‘वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट’, केशवचन्द्र सेन का ‘सुलभ समाचार’, हरिशचन्द्र मुखर्जी का ‘हिन्दू पैंट्रयाट’, शिशिर कुमार घोष का ‘अमृत बाजार पत्रिका’, ‘बंगवासी’, ‘संजीवनी’, ‘बंगाली’ तथा मौलना अबुल कलाभ आजाद का ‘अल हिलाल’ तथा ‘अल बिलाग’ आदि था। इन सभी समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के माध्यम से समाज एव लोंगों में ज्ञान यानी जानकारी मिलता था जिसके माध्यम से इसका प्रचार-प्रसार किया जाता था।

इतना ही नहीं, मुद्रण और ज्ञान या जानकारी का संबंध हर क्षेत्रों में भी है। 18 वों शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी तक भारत और मुख्य रूप से बंगाल में प्रेसों का जाल बिछा रहा क्योंकि उस समय हमारा भारतवर्ष अंग्रेजा का गुलाम था। और भारतवासी अंग्रेजों का गुलामी किया करते थे। परन्तु इसका मतलब यह नहीं की उनके भीतर देशर्भक्ति को भावना मर गयी थी। बशर्ते उनके इस भक्ति-भावना को चिंगारी देने की देर थी और यही काम मुद्रणालयों या प्रेसों ने कर दिया।

भारत तथा विशेष रूप से बंगाल के जितने देशभक्त, क्रान्तिकारी एवं अन्य सम्पादक थे, सभी लोगों ने मिलकर अंग्रेज विरोधी ब्रिभिन्न प्रकार के समाचार पत्र, पत्रिका एवं पुस्तके निकाले। जिनका एक ही लक्ष्य अंग्रेज भारत को छोड़ो था। इस तरह अंग्रेजी विरोधी समाचार पत्र, पत्रिका एवं पुस्तकों के समाज में आने से सभी भारतवासियों को एक नई उर्जा मिन्न गयी, जिनके माध्यम से वे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिये।

प्रेसों ने न केवल लोगों में अपने देश के प्रति देश भक्ति की भावनाको उत्पन्न किया, बल्कि लोगों को विभिन्न प्रकार का ज्ञान भी दिया, जैसे – विभिन्न धर्म की जानकारी, विभिन्न संस्कृतियों में समानता की जानकारी तथा विभिन्न सभ्यता का जान। इतना ही नहीं, लोगों में राजनीति का महत्व भी उजागर किया तथा दुष्ट राजनेताओं के शोषण से बचने के उपाय का ज्ञान भी दिया।

उपर्युक्त विवरणों से पाते हैं कि मुद्रण एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिये ज्ञान का प्रसार किया जा सकता है तथा लांगों को विभिन्न जानकारियाँ भी दिया जा सकता है। मुद्रण के जरिये विभिन्न समाचार पत्रों का प्रकाशन होता है, जिसकं माध्यम से लोगों को विभिन्न क्षेत्रों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। यही प्रक्रिया 18 वीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी तक तीव्र थी और आज भी प्रेस अपने कार्यो में कार्यरत है।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 6.
व्यावसायिक कार्य के रूप में मुद्रणालय के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
व्यावसायिक कार्य के रूप में मुद्रणालय (Press) की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। मुद्रणालय की स्थापना के बाद यह एक व्यावसायिक कार्य के रूप में विकसित-हुआ। कलकत्ता के जेम्स आगस्टस का प्रेस व्यावसायिक कार्य करता था। इसमें इस्ट इण्डिया कं० का मिलिटरी बिल, भत्ते का फार्म, सामरिक वाहिनी के नियम-कानून आदि छपते थे। हिक्की ने भारत तथा दक्षिण एशिया में सर्वप्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र बंगाल गजट, 1780 ई० में अपने भस में छापना शुरू किया।

विलकिन्स ने 1781 ई० में एक प्रेस की स्थापना की। इसका नाम था ‘आनरेबुल कम्पनीज प्रेस’। यह 18 वीं शताब्दी में कलकत्ता का सबसे बड़ा प्रेस हो गया। इस प्रेस में सरकारी काम के साथ-साथ अन्य व्यावसायिक चीजें भी छपती थी। एशियाटिक सोसाइटी की पत्रिका ‘एशियाटिक रिसर्चेज’ विलियम जोन्स द्वारा अनुदित कालीदास की पुस्तक ‘ऋतु संहार’ की छपाई भी इसी प्रेस में हुई थी। 1780-1790 ई० के बीच कलकत्ता के विभिन्न प्रेसों से 19 साप्ताहिक एवं 6 मासिक पत्र प्रकाशित होते थे।

इसके बाद अनेक बंगाली व्यावसायियों ने प्रेसों की स्थापना की। गंगाप्रसाद भट्टाचार्य प्रथम बंगाली प्रकाशक और पुस्तक बिक्रेता थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम सचित्र बंगला की पुस्तक ‘अन्नदामगल’ का प्रकाशन किया। इस पुस्तक के चित्र निर्माता थे – रामचन्द्र राय। सन् 1800 तक कलकत्ता में छपी कुल पुस्तकों की संख्या 650 थी।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर के जीवन काल में ही उनकी पुस्तक वर्ण-परिचय के 152 संस्करण छपे और इस पुस्तक की 35 लाख से अधिक प्रतियाँ छात्रों के हाथ में पहुँची। 1869 – 1880 ई० के बीच 12 वर्षों में बाल्य-शिक्षा की 41 लाख से अधिक पुस्तकें छपी। स्कूल बूक सोसायटी ने अपनी स्थापना के चार वर्षो के भीतर केवल बंगला भाषा में 50 हजार पुस्तके छपवाई। प्रेसों के मालिक विभिन्न प्रकार की पुस्तके छाप कर अपना व्यवसाय बढ़ाने लगे।

स्कूली पुस्तकों के अतिरिक्त हितोपदेशक, बत्रिस सिंहासन, तोता इतिहास, बोधोदय, बंगाल पंचविशंति, नीति कथा आदि पुस्तकों की भी मांग तीव्र गति से बढ़ी। भूगोल, इतिहास, साहित्य, गणित, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, इन्जीनियरिंग, औषधि विज्ञान आदि की पुस्तकों की मांग और बिक्री बढ़ी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 5 वैकल्पिक विचार एवं प्रयास

प्रश्न 7.
रवीन्द्रनाथ शिक्षा के क्षेत्र में प्रकृति, मनुष्य एवं शिक्षा के समन्वय के समर्थक क्यों थे? इस कार्य के लिए उन्होंने क्या किया ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, चिन्तक तथा समाज सुधारकों में गिने जाते थे। इसी आंधार पर रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि के साथ-साथ एक महान शिक्षक भी थे। टैगोर जी ने एक शिक्षक के रूप में छात्रों एवं छात्राओं के लिए हर सम्भव कार्य किये जिनकी जरूरत उनको थी। एक शिक्षक के रूप में टैगोर जी का प्रारम्भिक कार्य छात्र-छात्राओं को सही आचरण, व्यवहार और अच्छी ज्ञान प्राप्त कराना था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर खुद एक शिक्षक थे। इसीलिए उन्होंने ‘प्रकृति’ को महान शिक्षक की दर्जा दिया है, जो हमेशा जीवित रहता है अर्थात् महान शिक्षक होने के साथ-साथ, एक जीवित शिक्षक भी। ‘प्रकृति’ के साथ रहकर अबोध बच्चे जीवन के हर एक रहस्य को सीख पाते हैं। ‘प्रकृति’ एक अबोध मनुष्य को बोधगम्य बनाती है। टैगोर जी का मानना है कि समाज में पठन-पाठन का केन्द्र या विद्यालय खुले प्राकृतिक वातावरण में हों ताकि बच्चे खुले प्राकृतिक वातावरण में पढ़कर विकसित हो पायेंगे। इतना ही नहीं, बच्चे प्रकृति की गोद में रहकर ममता रूपी प्यार पाकर बहुत कुछ सीख पाते हैं। इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है –

“सांसारिक बंन्धनों में पड़ने से पहले बालकों को अपने निर्माण काल में प्रकृति का प्रशिक्षण प्राप्त करने दिया जाना चाहिए।” रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार प्रकृति या वातावरण में एक विद्यालय के सभी सामान हैं। जैसे – किताबें, पाठबक्रम, डेस्क, श्यामपट, शिक्षक या शिक्षिका तथा विद्यालय का माहौल आदि। अर्थात् पकृति या वातावरण खुद एक शिक्षक है, उनकी विभिन्न दृश्य किताबें एवं पाठ्यक्रमें हैं, जहाँ बच्चे प्रकृति या वातावरण में विद्यालय के भाँति पढ़ते एवं सीखते हैं। इसीलिए टैगोर जी के अनुसार प्रकृति या वातावरण एक महान जीवित शिक्षक है।

उपर्युक्त उल्लेखों से हम पाते हैं कि प्रकृति या वातावरण सही रूप में एक महान् जीवित शिक्षक है, जिसका वर्णन टैगोर जी ने किया है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, सुधारक, सामाजिक, शिक्षाविद के साथ-साथ एक महान चिन्तक भी थे। उनका जन्म कलकत्ता महानगर के जोड़ासाँकू अंचल में हुआ था। भले ही उनका जन्म कोलकत्ता जैसे महानगर में हुआ था, लेकिन वे एक भ्रमणकारी या घुमक्कड़ किस्म से व्यक्ति थे। कभी यूरोप तो कभी अमेरीका जैसे महान देशों में घुमने के लिए गये थे।

लेकिन उनका मूल उद्देश्य विभिन्न मानवों के आंतरिक चरित्र या व्यवहार को टटोलना था। विभिन्न मनुष्यों से मिलकर मनुष्य जाति के व्यवहार को जानना था कि लोग कितने किस्म के होते हैं, उनके विचार क्या-क्या होते हैं। इतना ही नहीं, दूसरे लोगों के प्रति उनका चरित्र या व्यवहार कैसा होता है।

टैगोर जी का ‘मानवो’ के संबंध में कुछ ऐसा ही विचार था कि विभिन्न मानव के विचार या व्यवहार भिन्न-भिन्न होते हैं। लेकिन शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिसके माध्यम से मानव का चरित्र तथा व्यवहार दूसरों के प्रति समान हो जाता है। अर्थात् दूषित चरित्र और व्यवहार के मानव शिक्षा से जुड़कर शिक्षित हो जाते हैं तथा दूसरों के प्रति अच्छा आचरण व्यक्त करते हैं। टैगोर के अनुसार देखा जाय तो प्रकृति, मानव और शिक्षा तीनों ही देश के लिए उज्ज्वल भविष्य हैं।

टैगोर जी का मानना है कि शिक्षित मानव के अन्दर अच्छी आचरण, चरित्र और व्यवहार का आविर्भाव उसकी रुचि (Interest) से प्राप्त होता है। अर्थात् यदि मनुष्य में रुचि होगी तभी वह शिक्षित हो पायेगा और उसके अन्दर मानसिक, शरीरिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विकास हो पायेगा जो एक सामाजिक मनुष्य के लिए आवश्यक तत्व है।

उपर्युक्त विवरणों से हम पाते हैं कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मनुष्य के प्रति अपना भिन्न विचार व्यक्त किये हैं जिसका संबंध न केवल मनुष्य से है बल्कि शिक्षा एवं प्रकृति से भी है। अर्थात् देखा जाय तो मनुष्य एक ऐसा तत्व है जिसका संबंध प्रकृति एवं शिक्षा से है।

Leave a Comment