WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 4 संगठनात्मक क्रियाओं के प्रारम्भिक चरण : विशेषताएँ तथा विश्लेषण

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WBBSE Class 10 History Chapter 4 Question Answer – संगठनात्मक क्रियाओं के प्रारम्भिक चरण : विशेषताएँ तथा विश्लेषण

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
एन्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
एन्टी सर्कुलर सोसायटी की स्थापना सचीन्द्र प्रसाद बसु ने की।

प्रश्न 2.
किस ऐतिहासिक घटना की पृष्ठभूमि में ‘भारतमाता’ का चित्र अंकित है ?
उत्तर :
बंग-भंग विरोधी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र अंकित है।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कौन था ?
उत्तर :
लार्ड पार्मस्टन।

प्रश्न 4.
महान विद्रोह का एक मात्र सर्मथन करने वाला अंग्रेज अधिकारी कौन था ?
उत्तर :
कैप्टन गाँर्डन।

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प्रश्न 5.
1857 ई० के विद्रोह को ‘सैनिक विद्रोह’ कहा है ?
उत्तर :
सर जॉन लॉरिन्स एवं ट्रैवेलियन ने।

प्रश्न 6.
‘द ग्रेट रिभोल्ट’ (महान विद्रोह) पुस्तक के लेखक कौन है ?
उत्तर :
अशोक मेहता।

प्रश्न 7.
भारत के किस वर्ग ने 1857 ई० के विद्रोह में साथ नहीं दिया था ?
उत्तर :
प्रबुद्ध मध्यम् वर्ग ने।

प्रश्न 8.
1857 ई० के विद्रोह को सैनिको तक सूचना पहुँचाने का प्रतीक क्या था ?
उत्तर :
रोटी

प्रश्न 9.
1867 ई० में नवगोपाल मिश्र द्वारा गठित ‘हिन्दू मेला’ का आयोज़न किस महीने में होता था ?
उत्तर :
चैत्र महीने में।

प्रश्न 10.
किस पुस्तक को भारतीयों का ‘स्वदेश प्रेम का गीता’ कहा जाता है ?
उत्तर :
आन्नदमठ को।

प्रश्न 11.
किसने कहा कि, “गोरा मात्र एक उपन्यास् नहीं है, यह आधुनिक भारत का महाकाव्य है ?”
उत्तर :
‘कृष्णा कृषलानी’ ने।

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प्रश्न 12.
‘भारतमाता’ की तुलना किससे किया गया है ?
उत्तर :
भारतीय संस्कृति की सभी देवी-देवताओं से, विशेषकर देवी दुर्गा के रूप से।

प्रश्न 13.
‘गोरा’ उपन्यास में ‘गोरा’ का साहित्यिक अर्थ क्या है ?
उत्तर :
‘गोरा’ उपन्यास मे ‘गोरा’ का साहित्यिक अर्थ ‘गौर वर्ण का व्यक्ति’ है।

प्रश्न 14.
किस वर्ष अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘भारतमाता’ का चित्र बनाया ?
उत्तर :
सन् 1905 में।

प्रश्न 15.
‘लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन’ या ‘बंगाल जमींदार सभा’ की स्थापना कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
कलकत्ता में।

प्रश्न 16.
‘इण्डियन लीग’ के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
शिशिर कुमार घोष।

प्रश्न 17.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर कौन थे ?
उत्तर :
एक उच्चकोटि के चित्रकार थे।

प्रश्न 18.
‘पील आयोग’ (Peal Commission) का गठन किस वर्ष हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1858 ई० में।

प्रश्न 19.
1857 ई० के विद्रोह के तुरन्त बाद इसे एक ‘राष्ट्रीय विद्रोह’ की संज्ञा किसने दी ?
उत्तर :
बेंजामिन डिजरायली ने।

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प्रश्न 20.
किसकी वीरता से प्रभावित होकर ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ह्यूरोज ने कहा- ‘भारतीय कान्तिकारियों में यह अकेली मर्द है’?
उत्तर :
रानी लक्ष्मीबाई के।

प्रश्न 21.
झाँसी में 1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ?
उत्तर :
रानी लक्ष्मीबाई ने।

प्रश्न 22.
लखनऊ में 1857 ई० का विद्रोह कब आरंभ हुआ ?
उत्तर :
4 जून, 1857 ई० में।

प्रश्न 23.
महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र किसने पढ़ा था ?
उत्तर :
महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र लार्ड कैनिंग ने पढ़ा था।

प्रश्न 24.
बंगाल में राजनीतिक आन्दोलन को आरम्भ करने का श्रेय किसको है ?
उत्तर :
राजा राममोहन राय को।

प्रश्न 25.
‘बंगभाषा प्रकाशिका सभा’ की स्थापना किस वर्ष हुई ?
उत्तर :
सन् 1836 में।

प्रश्न 26.
‘बंगभाषा प्रकाशिका सभा’ की स्थापना कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
कलकत्ता में।

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प्रश्न 27.
‘लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन’ या ‘बंगाल जमींदार सभा’ की स्थापना किस वर्ष हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1838 में।

प्रश्न 28.
‘हिन्दू मेला’ का गठन किस वर्ष हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1867 में।

प्रश्न 29.
‘गोरा’ उपन्यास की रचना कब हुई ?
उत्तर :
सन् 1909 ई० में।

प्रश्न 30.
‘गोरा’ उपन्यास में ‘गोरा’ का साहित्यिक अर्थ क्या है ?
उत्तर :
‘गोरार’ उपन्यास में ‘गोरा’ का साहित्यिक अर्थ ‘गौर वर्ण का व्यक्ति’ है।

प्रश्न 31.
बरेली में 1857 ई० का विद्रोह किस वर्ष समाप्त हुआ?
उत्तर :
सन् 1858 ई० में।

प्रश्न 32.
फैजाबाद में 1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर :
मौलवी अहमद उल्ला ने।

प्रश्न 33.
फैजाबाद में 1857 ई० का विद्रोह का किस वर्ष दमन हुआ ?
उत्तर :
सन् 1858 में।

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प्रश्न 34.
फतेहपुर में 1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर :
अजीमुल्ला ने।

प्रश्न 35.
झाँसी में 1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर :
रानी लक्ष्मीबाई ने।

प्रश्न 36.
कानपुर में 1857 ई० का विद्रोह कब शुरू हुआ ?
उत्तर :
5 जून, 1857 ई० में।

प्रश्न 37.
लखनऊ में 1857 ई० का विद्रोह कब आरंभ हुआ ?
उत्तर :
4 जून, 1857 ई० में।

प्रश्न 38.
जगदीशपुर में 1857 ई० का विद्रोह कब शुरू हुआ ?
उत्तर :
अगस्त, 1857 ई० में।

प्रश्न 39.
1857 के विद्रोह के संदर्भ में किसने कहा कि – ‘ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए भारतीय जनता की क्रान्ति’ ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स ने।

प्रश्न 40.
वह कौन-सा ब्रिटिश सेनापति था, जिसकी 1857 ई०के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही ?
उत्तर :
कैम्पबल।

प्रश्न 41.
1857 ई०के क्रान्ति के स्थानीय विद्रोही नेताओं में सर्वप्रथम प्रसिद्ध कौन था ?
उत्तर :
सतारा के रंगा बापूजी गुप्त जी।

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प्रश्न 42.
बंगाल का प्रथम राजनीतिक संगठन का क्या नाम था ?
उत्तर :
बंगभाषा प्रकाशिका सभा।

प्रश्न 43.
‘वर्तमान भारत’ कब प्रकाशित हुआ ?
उत्तर :
सन् 1905 में। [नोट : इस समय ‘वर्तमान भारत’ एक पुस्तक के रूप में है।]

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
जमींदार सभा एवं भारत सभा में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर :
जमींदार सभा और भारत सभा में दो अन्तर निम्नलिखित है –
(i) जमींदार सभा की स्थापना 1838 ई० में द्वारकानाथ ठाकुर ने की थी। जबकि भारत सभा की स्थापना 1876 ई० में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने की थी।
(ii) जमींदार सभा का उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना था। जबकि भारत सभा का उद्देश्य समान्य व मध्यम वर्गीय जनता के अधिकारों के लिए अंग्रेजों से लड़ना था।

प्रश्न 2.
उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए ‘भारतमाता’ के चित्र की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
‘भारतमाता’ का चित्र : 19वीं शताब्दी में चित्रित इस चित्र ने भारतवर्ष में राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार किया। सन् 1905 में ‘अवनीन्द्रनाथ टैगोर जी ने ‘भारतमाता’ का एक चित्र बनाया जो विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे’भारताम्बा’ (Bharatamba) और ‘बंगमाता’ (Bangmata) आदि। इस चित्र को देखते ही देशवासियों में देश के प्रति लड़ने मरने का साहस व उत्साह पैदा हो जाता था। इस प्रकार भारतमाता का चित्र देशवासियों में देशप्रेम की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 3.
‘महारानी के घोषणापत्र’ (1858 ई०) का मूल उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
1858 ई० के महारानी विक्टोरिया के ‘घोषणा पत्र’ का मूल उद्देश्य भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कुव्यवस्था को समाप्त करना, और भारत के शासन को प्रत्यक्ष रूप में बिटिश शासन के अधीन लाना तथा नये शासन व्यवस्था के नीतिनियमों से भारतवासियों को परिचित करना और उसके साथ जोड़ना था।

प्रश्न 4.
कार्टून चित्र खींचने के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर :
कार्टून चित्र (हास्य-व्यंग्य चित्र) चित्रकला की एक शाखा है जिसमें व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिवारिक समस्याओं ज्रुटियों, दोषों को भावपूर्ण तरीकें से व्यंग्य-कटाक्ष के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य गम्भीर से गम्भीर व बड़े विषय हो या बड़ा व्यक्ति ही क्यों न हो, उनसे जुड़ी बातों को सरल ढंग से कटाक्ष रूप में प्रस्तुत कर समाज के शेष, व विचार को प्रकट करना, तथा उनमें सुधार लाना है। जैसा कि गगनेन्द्रनाथ ठाकुर ने तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था तथा बंगाली समाज के बाबू लोगों की भाव-भंगिमाओं को दर्शाया करते थे।

प्रश्न 5.
हिन्दू मेला की स्थापना का दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
उद्देश्य : (i) हिन्दू मेला की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को एकत्रित कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना को भरना था।
(ii) भारतीय राष्ट्रीय चेतना को अग्रसर करने तथा राष्ट्रीयता की विकास के लिए इसका गठन किया गया था।

प्रश्न 6.
‘भारत सभा’ की स्थापना के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर :
‘भारत सभा’ की स्थापना के दो उद्देश्य निम्नवत् है –
1. देश के लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना।
2. सभी वर्गो, जातियों तथा धर्मों के लोगों में एकता का भाव स्थापित करना था।

प्रश्न 7.
‘आनन्द मठ’ उपन्यास ने किस प्रकार से राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया ?
उत्तर :
प्रेम तथा देश के आजादी के दिवानों द्वारा गाया जाने वाला ‘बन्दे मातरम’ गीत ने देश के नवयवका मातृभूमि के प्रति अट्टूट का संचार किया और वे देश की आजादी के लिए लड़ने-मरने को तैयार होने लगे।

प्रश्न 8.
आनंद मठ किसकी रचना है ? इसका मूल विषय क्या है ?
उत्तर :
आन्नद मठ की रचना ॠषि बंकिम चन्द्र चटर्जी ने की थी। इसका मूल विषय संयासी विद्रोह के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना का संचार करना है।

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प्रश्न 9.
1857 ई० के महान विद्रोह का नेतृत्व प्रदान करने वाले दो नेताओं का नाम लिखिए।
उत्तर :
1857 ई० के महान विद्रोह का नेतृत्व प्रदान करने वाले दो नेता नाना साहेब एवं वीर कुँवर सिंह थे।

प्रश्न 10.
हिन्दू मेला की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से की थी ?
उत्तर :
हिन्दू मेला की स्थापना 1867 ई० में नव गोपाल मित्र ने की थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीयों का एकता के सूत्र में बाँधना तथा उनमें राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करना था।

प्रश्न 11.
बंगाल का नवजागरण यूरोपीय नवजागरण से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर :
बंगाल का नवजागरण 16 वीं शताब्दी में केवल शिक्षा समाचार पत्र एवं संगीत तक सीमित था जबकि यूरोप में 14 वी सदी में पुनर्जागरण हुआ तथा उद्योग कला, साहित्य, उद्योग, कृषि व्यापार, यातायात एवं सभी क्षेत्रों में हुआ था। इस प्रकार बंगाल से यूरोप का नवजागरण भिन्न था।

प्रश्न 12.
जमींदार सभा की स्थापना कब और क्यों किया गया था ?
उत्तर :
राजनीतिक सुधारों के लिए राजा राममोहन राय ने जिस आन्दोलन का सूत्रपात किया उसे जारी रखने के लिए बंगाल के जमीदारों ने एक संगठन की बात सोची और उसी के आधार पर द्वारकानाथ टैगोर के प्रयासों के फलस्वरूप 1838 ई० में जमींदार सभा का गठन हुआ।

प्रश्न 13.
शिक्षा के विस्तार में मुद्रित पुस्तकों ने किस प्रकार मुख्य भूमिका पालन की ?
उत्तर :
शिक्षा के विकास एवं प्रसार में प्रेसों तथा मुद्रित पुस्तकों की भूमिका : राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रत्येक पहलू के विषय में वाहे वह शिक्षा हो या सास्कृतिक, आर्थिक हो या सामाजिक, अथवा राजनैतिक, प्रेस तथा उससे मुद्रित पुस्तकों की भूमिका उल्लेखनीय रही है। प्रेस के ही माध्यम से विभिन्न राजनैतिक नेताओं ने अपने विचारों को आम जनता तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त की। जनता में जागृति पैदा करने के उद्देश्य से मुद्रणालय और मुद्रित पुस्तकों का सहारा लिया गया।

प्रश्न 14.
1857 ई० के महाविद्रोह के दो विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
विशेषताएँ : (i) 1857 ई० का महाविद्रोह भारतवासियों के भीतर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय प्रेम की भावना को जागृत किया था।
(ii) इस विद्रोह के नेताओं में राष्ट्रीय चरित्र की भावना कूट-कूट कर भरी थी जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में दिखाई दिया।

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प्रश्न 15.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा चित्रित कुछ कार्टून (हास्याप्रद चित्रों) के नाम बताइए।
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा चित्रित कुछ कार्टून हैं — अद्भुत लोक, नव हुलोड़, बिरूप बाजरा, भोडोर बहादुर, अलिक बाबू, द फाल्स बाबू।

प्रश्न 16.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर की दो कार्टुन चित्रों का वर्णन करो।
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर एक महान चित्रकार एवं कार्दुनिस्ट थे। सन् 1917 में ‘बाजरा’ एवं ‘अन्दुत लोक’ तथा सन् 1921 में ‘नव हुलोड़े’ आदि इनके कार्दुन चित्र थे जिसमें औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में जाति प्रथा, पाखण्ड, हिन्दू पूजारी तथा पथ्थिमी शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था।

प्रश्न 17.
महाराणी की उद्योषणा से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र 1 नवम्बर, 1858 ई० को इलाहाबाद के मिण्टो पार्क में लार्ड कैनिंग के द्वारा घोषित किया गया जिसमें अनेकों बात कही गयी।
(a) राज्य हड़प की नीति (Doctrine of Lapse) को समाप्त किया गया।
(b) देशी राजाओं और राजकुमारों को अपनी इच्छानुसार अपना उत्तराधिकारी चुनने की छूट दी गयी।
(c) जाति, धर्म तथा रंग का भेदभाव किये बिना सरकारी सेवा में नियुक्ति किया जाये इत्यादि।

प्रश्न 18.
1857 ई० के महाविद्रोह को जन आंदोलन क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
1857 ई० के महाविद्रोह को जन आंदोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस विद्रोह में अधिकांशतः भारतीयों ने भाग लिया था, जिनमें निम्न वर्ग, मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के साथ-साथ कई क्षेत्रो के जमीन्दार और ठेकेदार भी शामिल थे। इस विद्रोह ने लोगों में अपनी मातृभूमि के प्रति भक्ति की भावना भर दिया था। इन्हीं विशेषताओ के कारण इस जन विद्रोह कहा जाता है।

प्रश्न 19.
बंग भाषा प्रकाशिका सभा की स्थापना कब और क्यों किया गया ?
उत्तर :
बंग भाषा प्रकाशिका सभा की स्थापना राजा राममोहन राय के अनुयायियों (Followers) ने किया जिनमे गौरीशंकर तर्कबागीस एवं द्वारकानाथ ठाकुर (टैगोर) आदि प्रमुख थे। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार के नीतियों की समीक्षा कर उनकी गलतियों को सुधारना था। अत: लोगों में राश्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का प्रचार-प्रसार व जागृति लाने के लिए इस सभा की स्थापना की गई।

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प्रश्न 20.
भारत सभा का गठन कब और किसके द्वारा किया गया था ?
उत्तर :
भारत सभा की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस ने सन् 1876 में अल्बर्ट हॉल (Elbert Hall), कलकत्ता में किये। ‘भारत सभा’ के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी माने जाते थे, जबकि आनन्द मोहन बोस इसके सचिव माने जाते थे। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस संस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शास्ती तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे।

प्रश्न 21.
कब और किसके द्वारा हिन्दू मेला नामक संगठन की स्थापना की गई ? इसे चैत मेला क्यों कहा जाता था ?
उत्तर :
हिन्दू मेला : हिन्दू मेला की स्थापना महान राष्ट्रेमी राज नारायण बोस के प्रमुख शिष्य नव गोपाल मित्र द्वारा सन्र 867 में किया गया। यह मेला प्रत्येक वर्ष के चैत्र महीने में होता था इसीलिए इस मेला को ‘चैत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता था।

प्रश्न 22.
दुर्गादास बनर्जी ने 1857 के विद्रोह का कैसा वर्णन किया है ?
उत्तर :
दुर्गादास बनर्जी जो क्रान्ति के समय वारणसी में सैन्य अधिकारी थे, ने लिखा है कि, “विद्रोही सिपाहियों में अनुशासन का अभाव था। वे दुकानदार, धनिको यहाँ तक कि साधारण जनता को भी लूटते थे। हिन्दूओं को गाय का मांस और मुसलमानों को सुअर का मांस दिखाकर उनसे छिपाये गये धन का पता लगाते थे । वोरी, लूट, बलात्कार आम जीवन की घटना थी। हिन्दू-मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक तनाव अपने चरम पर था।”

प्रश्न 23.
किशोरीचन्द्र मित्र ने 1857 के विद्रोह का कैसा वर्णन किया है ?
उत्तर :
प्रसिद्ध बंगाली विद्वान किशोरीचन्द्र मित्र ने 1857 के विद्रोह के सम्बन्ध में लिखा है कि, ‘ यह मूल रूप में एक सैनिक विद्रोह था जिसमें आम जनता ने भाग नहीं लिया और सैनिकों की भागीदारी भी कम ही थी। विद्रोह में भाग लेने वालों की संख्या, अंग्रेजी सरकार के प्रति सहानुभूति रखने वालों की तुलना में नगण्य थी।”

प्रश्न 24.
1857 ई० की क्रान्ति का तत्कालीन कारण क्या था ?
उत्तर :
1857 ई० की क्रान्ति का तत्कालीन कारण गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूस को भारतीय सैनिकों द्वारा चलाने से इन्कार करना तथा अंग्रेज अधिकारी ह्यूडसन द्वारा बार-बार दबाव दिये जाने पर बैरकपूर छावनी के एक सिपाही मंगल पाण्डे द्वारा गोली मार देने से उग्रतम घटना थी।

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प्रश्न 25.
1857 ई० की क्रान्ति में मध्यमवर्ग भाग क्यों नहीं लिया था ?
उत्तर :
1857 ई० के महान विद्रोह में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त उनके रंग में रंगे शिक्षित मध्यमवर्ग ने विशेषकर बंगाली मध्यम वर्ग ने भाग नहीं लिया था, क्योंकि उन्हें अंग्रेजों की नौकरी तथा अन्य सुख सुविधा छीन लिये जाने का भय था, तथा वे अंग्रेजों को आधुनिक भारत का निर्माणकर्ता और न्यायकर्ता मानते थे। इसी स्वार्थ और दकियानूसी (संकीर्ण) सोच के कारण मध्यम वर्ग ने विद्रोह में भाग नहीं लिया था।

प्रश्न 26.
19 वीं शताब्दी के उन महान रचनाओं में से किन्हीं चार का नाम लिखिए जो देशवासियों में राष्ट्रीय भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
उत्तर :
नील-दर्पण, आनन्द मठ, जीवनेर झाड़ापाता, वर्तमान भारत, गोरा आदि साहित्य रचनाओं ने देशवासियों में राष्ट्रभावन्म को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 27.
अवनीन्द्र नाथ टैगोर कौन थे ? वे भारतीय इतिहास में क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
अवनीन्द्र नाथ टैगोर एक प्रसिद्ध लेखक, कलाकार और चित्रकार थें। वे भारत-माता, बुद्ध और सुजाता जैसी राष्ट्रीयता के प्रतीक वाले चित्र को बनाये जाने के कारण भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 28.
विद्युत साहिनी सभा की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से की थी ?
उत्तर :
विद्युत साहिनी सभा की स्थापना बंगला भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार काली प्रसन्न सिन्हा ने 14 वर्ष की उम्र में कलकत्ता में की थी।
इसकी स्थापना का उद्देश्य बंगाल में शिक्षा, साहित्य, नाटक, व्यंग्य आदि विधाओं के विकास के लिये किया गया था।

प्रश्न 29.
गगनेन्द्र नाथा टैगोर कौन थे ? वे क्यों भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
गगनेन्द्र नाथ टैगोर बंगला साहित्य के एक प्रसिद्ध हास्य व्यंग्य चित्रकार (Cartoonist) थे। वे बंगाल के मध्यम बाबू वर्ग के हास्य व्यंग्य चित्र द्वारा उनका उपहास उड़ाये जाने के कारण भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 30.
1857 ई० के विद्रोह की उन दो महिलाओं के नाम लिखिए जिन्होंने क्रान्तिकारियों से गद्दारी करके अंग्रेजों का साथ दिया ?
उत्तर :
राविया बेगम, बेजा बाई, जीनतमहल ने क्रान्तिकारियों से गद्दारी करके अंग्रजों का साथ दिया था।

प्रश्न 31.
किस उपन्यास को स्वदेश प्रेम का गीता कहा जाता है ? क्यो ?
उत्तर :
ॠषि बकिमचन्द्र द्वारा रचित उपन्यास ‘आनन्दमठ’ को ‘स्वदेश प्रेम का गीता’ कहा जाता है, क्योंकि इस पुस्तक ने देशवासियों को देश-प्रेम एवं राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया। जिसके कारण देशवासियों में राष्ट्रीयता का ज्वार उत्पन्न हुआ। इसीलिए आनन्दमठ को स्वदेश प्रेम का गीता कहा जाता है।

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प्रश्न 32.
लार्ड डलहौसी की राज्य हड़प नीति द्वारा हड़पे गये चार देशी राज्यों का नाम बताइए।
उत्तर :
सताड़ा, जैतपुर, संभलपूर, झाँसी थें। इनमें सताड़ा पहला देशी राज्य था, जिसे अंग्रेजो ने हड़प कर अपने राज्य में मिला लिया था।

प्रश्न 33.
1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ? और उसकी मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
1857 ई० के विद्रोह का राष्ट्रीय नेतृत्व बहादुर शाह जफर (II) ने किया था।
अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर (II) को गिरफ्तार कर वर्मा के माण्डले जेल भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। इस प्रकार एक बादशाह का दुखद अन्त हुआ।

प्रश्न 34.
भारत का अन्तिम गवर्नर जनरल और प्रथम वायसराय कौन था ?
उत्तर :
भारत का अन्तिम गवर्नर जनरल और प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग था।

प्रश्न 35.
तात्या टोपे कौन था ? उसका वास्तविक नाम क्या था ?
उत्तर :
गुल्लि युद्ध प्रणाली में दक्ष तात्या टोपे नानासाहब का सेनापति था। इसका वास्तविक नाम राम चन्द्र पाण्डूरंग था।

प्रश्न 36.
1857 ई० की कान्ति में मर्द का रूप ग्रहण कर क्रान्ति मे भाग लेने वाली महिला का नाम लिखो।
उत्तर :
झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई और अजीजन बाई।

प्रश्न 37.
भारत में सिपाही विद्रोह सबसे पहले कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
भारत में सिपाही विद्रोह 10 मई 1857 ई० को मेरठ में हुआ था। जिसमें 85 घुड़सवार सैनिकों ने विद्रोह किया था।

प्रश्न 38.
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित दो उपन्यासों का नाम लिखिए।
उत्तर :
गोरा, घोरे बाइरे, चार अध्याय इत्यादि।

प्रश्न 39.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास के प्रमुख दो प्रमुख पात्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
‘आनन्दमठ’ उपन्यास के प्रमुख दो पात्रों का नाम ‘महेन्द्र’ और ‘कल्याणी’ है।

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प्रश्न 40.
कब और किसने ‘वर्तमान भारत’ को ‘रामकृष्ण मठ’ और ‘रामकृष्ण मिशन’ के मुख्य पत्र के रूप में प्रकाशित किया था ?
उत्तर :
सन् 1899 में ‘उद्बोधन’ प्रकाशन ने ‘वर्तमान भारत’ को ‘रामकृष्ण मठ’ और ‘रामकृष्ष्ण मिशन’ के मुख्य पत्र के रूप में प्रकाशित किया था। [नोट : इस समय ‘वर्तमान भारत’ एक निबन्ध के रूप में है।]

प्रश्न 41.
‘गोरा’ उपन्यास को कब और किस पत्रिका के माध्यम से क्रमबद्ध रूप दिया गया ?
उत्तर :
‘गोरा’ उपन्यास को 1907 ई० से 1909 ई० के बीच ‘प्रवासी’ (Prabasi) पत्रिका के माध्यम से क्रमबद्ध रूप दिया गया।

प्रश्न 42.
व्यंग्य-चित्र से क्या समझते हो ?
उत्तर :
कला मे रूप में व्यग्य-चित्र एक दृश्य कल्पना है जिसका उद्देश्य वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक जीवन को दर्शाना है । मुख्यतः इस कला के दो उद्देश्य होते हैं – प्रथम पूर्ण मनोरंजन और द्वितीय आलोचना करना। साधारणतः मनोरंजन और व्यग्य-चित्रों के दो मुख्य अंग हैं।

प्रश्न 43.
गगनेन्द्रनाथ के प्रमुख व्यंग्य चित्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के व्यंग्य-चित्रों में एमोन कर्म आर कोरबो ना, विरुप बंजारा, आलिक बाबू, My love of my country as Big as I am, आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 44.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के व्यंग्यात्मक चित्रों से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के व्यंग्यात्मक चित्रों से औपनिवेशिक राजनीति, आमलोगों की जीवन शैली और समाज के उच्च वर्गों के रीति-रिवाजों की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 45.
‘इल्बर्ट बिल विवाद’ कब और किसने पेश किया ?
उत्तर :
सन् 1883 में मिस्टर पी० सी० इल्बर्ट ने पेश किया।

प्रश्न 46.
‘भारत सभा’ द्वारा किये गये दो महत्वपूर्ण कार्य क्या थे ?
उत्तर :
दो महत्वपूर्ण कार्य : (1) सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन और (2) इल्बर्ट बिल का विरोध आन्दोलन आदि

प्रश्न 47.
‘इण्डियन एसोसिएशन’ की स्थापना कहाँ और किसने किया ?
उत्तर :
कलकत्ता में आनन्द मोहन बोस और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने किया।

प्रश्न 48.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास की विषय-वस्तु क्या थी ?
उत्तर :
‘आनन्दमठ’ उपन्यास में 1770 ई० में आरम्भ हुए बंगाल के भीषण आकाल एवं सन्यासी विद्रोह का वर्णन है।

प्रश्न 49.
भारत सभा की स्थापना के दो उद्देश्यों का उल्लेख करो।
उत्तर :
दो उद्देश्य : (1) सम्पूर्ण देश में लोकमत का निर्माण और (2) हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता और मैत्री की स्थापना आदि।

प्रश्न 50.
भारतमाता का चित्र किसने और कब बनाया ?
उत्तर :
अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1905 ई० में भारतमाता का चित्र बनाया गया। इस चित्र को बंग-भंग के विरोधी आन्दोलनकारियों द्वारा काफी पसन्द किया गया।

प्रश्न 51.
1857 ई० के विद्रोह को सैनिक विद्रोह बतलाने वाले दो इतिहासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
(i) ट्रेविलियन (ii) मुइनुद्दीन।

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प्रश्न 52.
1857 ई० के विद्रोह के समय मुगल बादशाह कौन थे एवं अंग्रेजों ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया था ?
उत्तर :
1857 ई० के विद्रोह के समय भारत का मुगल बादशाह बहादुरशाह जफ्फर (द्वितीय) था।अंग्रेजो ने उनकी पेशन बन्द कर दी। सिक्को पर से उनका नाम हटवा दिया था । इस प्रकार अंग्रेजों ने उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया था।

प्रश्न 53.
1857 ई० के विद्रोह को स्वतंत्रता आंदोलन बतलाने वाले दो इतिहासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
(i) जे० सी० विल्सन (ii) केथी।

प्रश्न 54.
‘बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी’ की स्थापना किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
जॉर्ज थॉमसन ने कलकत्ता में किया।

प्रश्न 55.
‘ब्रिटिश इण्डियन एसोसिएशन’ की स्थापना किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
राजा राधाकान्त देव ने कलकत्ता में किये।

प्रश्न 56.
‘ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन’ की स्थापना किसने और किस वर्ष किया ?
उत्तर :
दादाभाई नौरोजी ने सन् 1866 में किया।

प्रश्न 57.
‘पूना सार्वजनिक सभा’ की स्थापना किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
महादेव गोविन्द रानाडे ने पूना में किया।

प्रश्न 58.
‘इण्डियन लीग’ का गठन कब और कहाँ हुआ?
उत्तर :
सन् 1875 में कलकत्ता में।

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प्रश्न 59.
‘कलकत्ता स्टुडेण्ट्स एसोसिएशन’ का गठन कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1875 में आनन्द मोहन बोस ने किया।

प्रश्न 60.
‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
ए० ओ० ह्यूम ने बम्बई में किया।

प्रश्न 61.
‘बम्बई प्रेसीडेंसी ऐसोसिएशन’ की स्थापना किसने और कहाँ किये ?
उत्तर :
फिरोजशाह मेहता और बदरुद्दीन तैय्यब जी ने बम्बई में किये।

प्रश्न 62.
‘इण्डियन सोसाइटी’ का गठन कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1872 में आनन्द मोहन बोस ने किया।

प्रश्न 63.
‘बॉम्बे ऐसोसिएशन’ का गठन किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
जगत्नाथ शंकर ने बम्बई में किया।

प्रश्न 64.
‘मद्रास महाजन सभा’ की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1884 में वी० राघवाचारी एवं एस० अय्यर ने किया।

प्रश्न 65.
‘भारतीय राष्ट्रीय कॉन्क्रेंस’ का गठन कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1883 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने किया।

प्रश्न 66.
‘नेशनल इण्डिया एसोसिएशन’ का गठन किसने और कहाँ किया ?
उत्तर :
मेरी कारपेंटर ने लंदन में किया।

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प्रश्न 67.
दिल्ली में 1857 ई० के विद्रोह को किसने और कब दबाया ?
उत्तर :
निकलसन एवं हडसन ने 21 सितम्बर, 1857 ई० में दबाया।

प्रश्न 68.
कानपुर में 1857 ई० के विद्रोह को कब और किसने समाप्त किया ?
उत्तर :
6 दिसम्बर, 1857 ई० में कैम्पबल ने समाप्त किया।

प्रश्न 69.
लखनऊ में 1857 ई० के विद्रोह को कब और किसने दमन किया ?
उत्तर :
21 मार्च, 1858 ई० में कैम्पबल ने दमन किया।

प्रश्न 70.
झाँसी में 1857 ई० के विद्रोह को किस ब्रिटिश नायक ने कब समाप्त किया ?
उत्तर :
बिटिश नायक ह्यूरोज ने 3 अप्रैल, 1858 ई० में समाप्त किया।

प्रश्न 71.
इलाहाबाद में 1857 ई० के विद्रोह को किस ब्रिटिश नायक ने कब समाप्त किया ?
उत्तर :
ब्रिटिश नायक कर्नल नील ने सन् 1858 में समाप्त किया।

प्रश्न 72.
जगदीशपुर में 1857 ई० के विद्रोह को किस ब्रिटिश नायक ने कब समाप्त किया ?
उत्तर :
बिटिश नायक विलियम टेलर एवं विंसेट आयर ने सन् 1858 में समाप्त किया।

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प्रश्न 73.
फतेहपुर में 1857 ई० के विद्रोह को किस ब्रिटिश नायक ने कब दमन किया ?
उत्तर :
बिटिश नायक जनरल रेनर्ड ने सन् 1858 में दमन किया।

प्रश्न 74.
‘नेशनल जिमनासियम’ (National Gymnasium) का गठन कब और किसने किया ?
उत्तर :
‘नेशनल जिमनासियम’ (National Gymnasium) का गठन सन् 1868 में नव गोपाल मित्र ने किया।
[नोट : यह एक जिमनास्टिक स्कूल था।]

प्रश्न 75.
‘नेशनल जिमनासियम’ के प्रमुख सदस्य या छात्र कौन-कौन थे ?
उत्तर :
‘नेशनल जिमनासियम’ के प्रमुख सदस्य या छात्र विपिनचन्द्र पाल, सुन्दरी मोहन दास, राजचन्द्र चौधरी एवं स्वामी विवंकानन्द थे।

प्रश्न 76.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास का प्रकाशन कब और किस भाषा में हुआ था ?
उत्तर :
‘आनन्दमठ’ उपन्यास का प्रकाशन सन् 1882 में बंगला भाषा में हुआ था।

प्रश्न 77.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास के पृष्ठभूमि की शुरूआत कब और किसके संदर्भ में हुआ था ?
उत्तर :
‘आनन्दमठ’ उपन्यास के पृष्ठभूमि की शुरूआत सन् 1771 में बंगाल के अकाल के संदर्भ में हुआ था।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
‘बंगभाषा प्रकाशिका सभा’ को प्रथम राजनैतिक संस्थान कहा जाता है, क्यों ?
उत्तर :
बंगभाषा प्रकाशिका सभा : ‘बंगभाषा प्रकाशिका सभा’ भारत का प्रथम राजनैतिक संगठन थी। इस संगठन की स्थापना सन् 1836 में हुआ था। इसकी स्थापना राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों (Followers) ने किया जिनमें गौरीशंकर तर्कबागीस एवं द्वारकानाथ ठाकुर (टैगोर) आदि प्रमुख थे। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार की नीतियों की समीक्षा कर उनकी गलतियों को सुधारना था। यद्यपि इसे बंगाल में कोई संवैधानिक महत्व नहीं मिला फिर भी इस संस्था ने बंगालियों को संगठित कर उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रान्ति करने के लिए प्रेरित करती थी। इस संस्था ने लोगों में राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का प्रचार-प्रसार किया। इसीलिए इस संस्था की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस कारण इसे भारत का प्रथम राजनैतिक संस्थान कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
हिन्दू मेला की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
हिन्दू मेला (Hindu Mela) : भारतीय राष्ट्रीय चेतना को अग्रसर करने तथा राष्ट्रीयता की विकास के लिए इस संस्था का गठन किया गया था। यह एक संस्था नहीं था बल्कि एक मेला था, जो चैत्र महीने में होता था। इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को एकत्रित कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना को भरना था। ‘हिन्दू मेला’ की स्थापना महान राष्ट्रेमी ‘राज नारायण बोस’ के प्रमुख शिष्य ‘नव गोपाल मित्र’ ने सन् 1867 में किया। यह मेला प्रत्येक वर्ष के चैत्र महीने में होता था, इसीलिए इस मेला को ‘चैत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता था। चूँकि यह मेला राष्ट्रीय स्तर पर होता था, इसीलिए इस मेला को ‘राष्ट्रीय मेला’ के नाम से भी जाना जाता था।

प्रश्न 3.
1857 ई० के महाविद्रोह को क्या सामन्त श्रेणी विद्रोह कहा जा सकता है ?
उत्तर :
1857 ई० के महान विद्रोह की प्रकृति के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न इतिहासकारों ने अपने अलग-अलग मत प्रकट किये हैं, उनमें से कुछ इतिहासकारों ने इस महान विद्रोह को सामन्ती श्रेणी का विद्रोह कहा है –
(i) डॉ॰ सुरेन्द्रनाथ सेन ने अपनी पुस्तक 1857 (Eighteen fifty seven) डॉ॰० शशि भूषण चौधरी ने अपनी पुस्तक ‘सिविल रिबेलियन इन द इण्डियन मिनटस 1857-59 ई० में तथा जवाहरलाल नेहरू ने इसे सामन्तशाही विद्रोह कहा है।
(ii) इन इतिहासकारों का मत है कि अंग्रेजों ने ही सामन्तों नवाबों तथा जमीन्दारों से सत्ता छिनी थी। इस कारण यह वर्ग उनसे क्रुद्ध था।
(iii) अंग्रेजों की पश्चिमी संस्कृति के प्रसार तथा अत्याचार से यह वर्ग नाखुश था।
(iv) इस विद्रोह का नेतृत्व बहादुर शाह द्वितीय ने किया तथा इसका साथ नाना साहब, लक्ष्मीबाई हजरत महल, कुंवर सिंह एवं अन्य सामन्तों एवं जमीदारों ने दिया ताकि अंग्रेजों को हराकर पुरातन सामन्ती व्यवस्था स्थापित किया जा सके। इसलिए उमेश चन्द्र मजूमदार ने कहा है – यह विद्रोह मृतप्राय सामन्तो का मृत्युकालीन आर्तनाद था।

इस प्रकार मार्क्सवादी लेखक महान विद्रोह को सामन्तशाही विद्रोह मानते हैं वे कहते हैं कि यह विद्रोह सैनिकों ने शुरू किया था जबकि अन्त में दिल्ली के सिहांसन पर मुस्लिम बादशाह को पुन: बैठा दिया। वास्तव यह विद्रोह न सामन्ती था, न ही सैनिक था विशुद्ध रूप से इसका स्वरूप राष्ट्रीय था। इसमें जनता ने ब्रिटिश शासन का अन्त कर अपना शासन स्थापित करने के उद्देश्य से एकजुट होकर प्रयास किया था। अतः महान विद्रोह की प्रकृति एकदम स्वतन्त्रता संग्राम तथा राष्ट्रीय विद्रोह जैसा था।

प्रश्न 4.
उपनिवेशिक सरकार ने किस उद्देश्य से जंगल कानून लागू किया ?
उत्तर :
भारत में सर्वप्रथम अंग्रेज सरकार द्वारा 1865 ई० तथा 1875 ई० में क्रमश: दो वन कानून पास किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे –

  1. बिटिश राजकीय नौसेना के प्रसार तथा भारतीय रेल पथ के विस्तार के लिए लकड़ियों के स्लिाप बिछाने की आवश्यकता थी। इसलिए सरकार की लोलुप नजर भारतीय वन सम्पदा पर थी।
  2. भारत के विस्तृत वन भूमि का सफाया कर उसे कृषि भूमि में बदलना तथा आदिवासियों की झुम कृषि को रोक कर उसे स्थायी कृषि में परिवर्तित कर भूरा द्वारा अधिक लाभ अर्जित करना था।
  3. वन क्षेत्र एवं वनसम्पदा का अधिग्रहण कर उसका व्यापारिक लाभ अर्जित करना था।
  4. ब्रिटिश सरकार भारत के वन क्षेत्रों को तीन श्रेणियों सुरक्षित वन संरक्षित वन एवं ग्रामीण वन या असुरक्षित वन में विभाजित कर उपनिवेशिक स्वार्थ एवं लाभ कमाने हेतु वन अधिनियम लागू किया था।

इस प्रकार उपनिवेशिक अंग्रेज सरकार का वन कानून बनाने व लागू करने का मुख्य उद्देश्य उपनिवेशिक स्वार्थ की पूर्ति तथा वन क्षेत्र पर अपना वर्चस्व स्थापित करना था। इसको लेकर आदिवासियों की कई जातियों एवं उपजातियों ने विद्रोह किया था।

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प्रश्न 5.
1857 ई. के महाविद्रोह के प्रति शिक्षित बंगाली समाज की धारणा क्या थी ?
उत्तर :
महान विद्रोह के प्रति शिक्षित बंगाली समाज की धारणा : अंग्रेजों को माई-बाप मानने वाला शिक्षित बंगाली समाज की 1857 ई० के महान विद्रोह के प्रति यही धारणा थी कि यदि विद्रोहियों का साथ दिया तो अंग्रेजों की चाटुकारित से मिलने वाली सुख -सुविधा के साधन, अर्थात जमीनदारी, बाबुगिरि नौकरी छिन ली जायेगी। जिससे जीवनजीना कठिन हो जायेगा। कुछ भद्र बंगाली बाबुओं को भय था कि अंग्रेज चले जायेगे तो भारत में पश्चिमी सभ्यता संस्कृति, तथा आधुनिकीकरण के विकास की क्रिया रूक जायेगी।

भारत पुन: अन्धकार के गर्त में डूब जायेगा और चारो तरफ अराजकता की स्थिति फैल जायेगी। इसी भय की वजह से शिक्षित मध्यमवर्गीय बंगाली समाज ने क्रान्तिकारियों का साथ न देकर विद्रोह को कुचलने में अंग्रेज महाम्रभुओं का साथ दिया था। इस प्रकार विद्रोह के प्रति उनकी धारणा राष्ट्रहित के विरुद्ध निजी स्वार्थ से परिपूर्ण उदासीनता की, थी।

प्रश्न 6.
रानी की घोषणा पत्र – 1858 ई० का ऐतिहासिक महत्व क्या था ?
उत्तर :
सन् 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसी विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीय प्रशासनिक मामलों में कई प्रकार के परिवर्तन किये गये और इन परिवर्तनों के आधार पर ही महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र भी था। गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट, 1858 ई० द्वारा किये गये परिवर्तनों की विधिवत घोषणा 1 नवम्बर, 1858 ई० को इलाहाबाद के मिण्टो पार्क में लार्ड कैनिंग के द्वारा किया गया। इस घोषणा पत्र में विभिन्न बाते कही गयी जिनमें –

भारतीय शासन की बागडोर ईस्ट इण्डिया कंपनी से निकलकर इंग्लैण्ड की सरकार के हाथों में चली गयी, जिसके तहत घोषणापत्र में वायसराय उपाधि का प्रयोग प्रथम बार हुआ। गवर्नर जनरल का पद भारत सरकार के विधायी कार्य का प्रतीक था तथा समाट का प्रतिनिधित्व करने के कारण उसे वायसराय कहा गया, अर्थात् भारत के गवर्नर जनरल अब वायसराय बन गए।

विक्टोरिया की घोषणापत्र में कुछ महत्वपूर्ण नीतियों को स्पष्ट किया गया था। इसका प्रथम भाग राजाओं से संबंधित था। इसमे उनके क्षोभ को शान्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजी राज्य की अपहरण नीति या राज्य हड़प नीति के त्याग को बात कही गई।

भारतीय जनता के लिए धार्मिक सहनशीलता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। घोषणा में भारतवासियों पर ईसाई धर्म थोपने की इच्छा एवं अधिकारी का स्वत्व भी त्याग दिया गया।

घोषणापत्र में कहा गया कि शिक्षा, योग्यता एवं ईमानदारी के आधार पर बिना जाति या वंश का ध्यान रखे लोक सेवाओं में जनता की भर्ती की जाय।

भारतीय परम्परागत अधिकारों, रीतिरिवाजों तथा प्रथाओं के सम्मान का उल्लेख किया गया। भारतीय नागरिकों को उसी कर्त्तव्य एवं सम्मान का आभासन दिया गया जो सम्राट के अन्य नागरिकों को प्राप्त थे।

भारत में आन्तरिक शान्ति स्थापित होने के बाद उद्योगों की स्थापना में वृद्धि, लोक-कल्याणकारी योजना, सार्वज़निक कार्य तथा प्रशासन व्यवस्था का संचालन समस्त भारतीय जनता के हित में किये जाने की बात कही गई।

भारतीय सैनिको की संख्या और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात विद्रोह के पूर्व5: 1 था जिसे घटाकर 2: 1 कर दिया गया। विद्रोह के समय भारतीय सैनिकों की संख्या 2 लाख 38 हजार थी जो घटकर 1 लाख 40 हजार हो गई।

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प्रश्न 7.
1857 ई० की क्रान्ति का तत्कालीन कारण का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तत्कालीन कारण : 1857 ई० के विद्रोह का तत्कालीन एवं सैनिक कारण गाय, सुअर की चर्बी से बने कारतूस के प्रयोग वाली घटना थी। अंग्रेजों ने सेना के लिए एक नयी राइफल एण्डफिल्ड देने का निश्चय किया। जिसमें प्रयोग होने वाली गोली के मुँह पर गाय, सुअर की चर्बी लगी होती थी। जिसका प्रयोग करने से पहले दाँत से नोचकर बन्दूक में भरनी पड़ती थी।

बैरकपुर छावनी के सैनिको ने इस कारतूस का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया, किन्तु रेजीमेण्ट मेजरहुडसन ने बार-बार गोली चलाने के लिए दबाव डालने लगा तब उसे रेजीमेन्ट के एक सैनिक मंगल पाण्डे ने उस अधिकारी को गोली मार दी, यह घटना पूरे देश में आग की तरह फैल गयी, और 1857 ई० की क्रान्ति की ज्वाला धधकती गयी। इस प्रकार 1857 ई० की क्रान्ति में कारतूस वाली घटना 1857 ई० की क्रान्ति का तत्कालीन कारण बन गया।

इस क्रान्ति में कैप्टन गार्डन एक मात्र अंग्रेज अधिकारी था। जो भारतीयों की ओर से लड़ा था। सम्मूर्ण भारत में 31 मई 1857 ई० को यह क्रान्ति सुनिश्चित थी। परन्तु बंगाल के मंगल पाण्डे के कारतूस वाली घटना के कारण यह क्रान्ति 29 मार्च को ही शुरु हो गयी थी। लेकिन वास्तविक रूप से इसकी शुरूआत 10 मई को मेरठ छावनी के सैनिको ने दिल्ली कुच करने के साथ शुरू किया था।

सैनिक कारण : 1857 ई० के क्रान्ति के विद्रोह का सैनिक कारण अंग्रेज सैनिको की अपेक्षा भारतीय सैनिको को कम वेतन देना था। साथ ही भारतीय सैनिको से भेद-भाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों का समुद्र पार करना अनिवार्य कर दिया गया, सैनिको की चिठ्ठी पर शुल्क लगाया गया था। इन्हीं सब कारणों से भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के प्रति अंसतोष बढ़ता गया, यही असंतोष 1857 ई० की क्रान्ति का सैनिक विद्रोह का आधार बना।

प्रश्न 8.
1857 ई० की क्रान्ति के असफलता के कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
1857 ई० की क्रान्ति के असफलता के कारण : इस जनक्रान्ति की असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे :-
(i) संगठन एवं योजना का अभाव :- 1857 ई० की क्रान्ति में संगठन और कुशल कार्य योजना का अभाव था, जिसके चलते सुनियोजित क्रान्ति की क्रियाकलाप सही समय पर लागू न हो सकी।
(ii) राष्ट्रीय नेतुत्व का अभाव :- 1857 ई॰ की क्रान्ति का पूरे राष्ट्रीय स्तर पर मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देने वाला कोई सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता नहीं था, अतः राष्ट्रीय नेतृत्व के अभाव में क्रान्ति की कार्य योजना ठीक ढंग से लागू न हो सकी।
(iii) क्रान्ति का समय से पूर्व शुरु हो जाना :- 1857 ई० की क्रान्ति को पूरे देश में 31 मई 1857 ई० को एक ही समय पर एक ही साथ शुरु-करने की योजना तैयार की गई थी, किन्तु दुर्भाग्यवश बैरकपुर छावनी की कारतूस वाली घटना के कारण क्रान्ति समय से पहले 10 मार्च को ही शुरु हो गई। अतः समय से पूर्व क्रान्ति शुरु हो जाने के कारण इसकी योजनाए ठीक समय पर लागू न की जा सकी।
(iv) देशी राजाओं का असहयोग :- क्रान्ति के समय बहुत से देशी राजाओं तथा आरामतलब जिन्दगी जी रहे मध्यमवर्गीय जनता ने क्रान्तिकारियों का साथ न देकर अंग्रेजों का साथ दिया था, ऐसे में राजाओं तथा जनसहयोग के अभाव में क्रान्ति सफल न हो सकी।
(v) अंग्रजों का कुशल नेतृत्व :- क्रान्ति को कुचलने के लिए अंग्रेजी प्रशासन एवं सैनिक अधिकारियों ने बड़ी कुशलता एवं सूझ-बूझ से सेना का नेतृत्व किया। जिसका सामना भारतीय क्रान्तिकारी नहीं कर सके
(vi) अंग्रेजों का कुर दमन चक्र :- अंग्रेजों ने क्रान्ति को दबाने के लिए कठोर एवं कुर दमन चक्र का सहारा लिया, अंग्रेज सैनिकों ने गाँव के गाँव फूक डाले, हजारों लोगों को तोपो के मुह पर बाँधकर एक साथ उड़ा दिया, बहुत से क्रान्तिकारियों को जनता के सामने फाँसी पर लटका दिया गया, अंग्रेजों के इस अमानवीय दमन कार्य से देश की जनता और भयभीत हो उठी, और समय पर क्रान्तिकारियों का साथ न दे सकी, जिसके कारण यह क्रान्ति असफल सिद्ध हो गयी।

प्रश्न 9.
सन् 1857 ई० के विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहते हैं, वर्णन करें।
उत्तर :
सन् 1857 के विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहा जाता है, क्योंकि विभिन्न इतिहासकारों का मानना है कि यह विद्रोह सैनिकों के द्वारा ही शुरू किया गया था। इसीलिए इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहा जाता है। हालाँकि इस विद्रोह के अनेकों रूप माने गये है परन्तु इसका यह रूप सबसे प्रभावी माना जाता है। 1857 ई० के विद्रोह का प्रारम्भ मेरठ से माना जाता है, जिसकी शुरूआत 10 मई, 1857 ई० में हुआ। इस विद्रोह में अनेकों नेताओं ने अपनी भूमिका निभाया।

जैसे – बहादुर शाह जफर, नाना साहेब, तात्या टोपे, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, लियाकत अली, कुँअर सिंह, खान बहादुर खाँ, मौलवी अहमद उल्ला, अजीमुल्ला तथा मंगल पाण्डे आदि। इन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। ये लोग देश के अनमोल खजाने थे, जो देश के लिए नष्ट हो गये।

सर जॉन लारेन्स और सीले जैसे अंग्रेजी विद्वानों ने इस विद्रोह को ‘सैनिक विद्रोह’ कहा है. क्योंकि अंग्रेजी संनाओं में अधिकतर भारतीय सैनिक ही थे। अंग्रेजी हुकूमत सेनाओं के बीच भेद-भाव करते थे। यही भावना धीरे-धीरे आग की तरह फैलती गयी जिसके कारण बैरकपुर छावनी में नई तकनीकी से बना हुआ कारतूस आया तो सैनिकों में यह अफवाह फैल गयी कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिलाया गया है। अत:, जो भारतीय सैनिक थे, वे इस कारतूस को मुंह में लेने सं साफ मना कर दिये क्योंकि उनके धर्म पर इसका प्रभाव पड़ता। उन भारतीय सैनिकों में एक मंगल पाण्डे था, जिसने पहली बार इस कारतूस को मुँह से काटने से साफ मना कर दिया। अंग्रेज उनको पकड़कर 8 मई, 1857 ई० को फाँसी पर लटका दिये।

यह खबर फैलते ही न केवल बैरकपुर छावनी में बल्कि समस्त उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में यह विद्रोह शुरू हो गया। पी० ई० रॉबर्द्स भी इसे विशुद्ध सैनिक विद्रोह मानते थे। वी० ए० स्मिथ ने लिखा है कि, “”यह एक शुद्ध रूप से सैनिक विद्रोह था, जो संयुक्त रूप से भारतीय सैनिकों की अनुशासनहीनता एवं अंग्रेज सैनिक अधिकारियों की मूर्खता का परिणाम था।” सुरेन्द्रनाथ सेन ने अपनी पुस्तक ‘एटीन फिफ्टी सेवन’ 1857 ई० में लिखा है, “आन्दोलन एक सैनिक विद्रोह को भौति आरम्भ हुआ, किन्तु केवल सेना तक सीमित नहीं रहा। सेना ने भी पूरी तरह विद्रोह में भाग नहीं लिया।” डॉं० आर० सी० मजुमदार ने इसे ‘सैनिक विप्लब’ बताया।

इस प्रकार हम देख पाते हैं कि ‘चर्बी वाला कारतूस की घटना ही वास्तविक रूप सैनिक विद्रोह को जन्म दिया है। इसीलिए इस विद्रोह को ‘सैनिक विद्रोह’ भी कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
1857 ई० के विद्रोह को ‘भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ कहा जाता है, तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर :
सन् 1857 ई० का विद्रोह 10 मई, 1857 ई० को मेरठ से प्रारम्भ हुआ। ऐसे तो यह विद्रोह 29 मार्च 1857 ई० को ही बैरकपुर छावनी से ही आरंभ हो गयी थी, लेकिन इस विद्रोह का सही रूप 10 मई, 1857 ई० को मेरठ से देखा गया। इस विद्रोह में अनेक नेता शामिल थे। जिनमें कुँअर सिंह, लियाकत अली, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पाण्डेय, नाना साहेब, तात्या टोपे, बेगम हजरत महल और बहादुर शाह जफर (II) आदि महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

1857 ई० के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम भी कहा जाता है। इसके कई कारण हैं। जैसे, इस विद्रोह में अधिकांशत: भारतीयों ने ही भाग लिया था, जिनमें निम्न वर्ग, मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के साथ-साथ कई क्षत्रों के जमीन्दार और ठेकेदार भी शामिल थे। सभी लोगों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध किये ताकि हमारा देश स्वाधीन हो सके। इतना ही नहीं इस विद्रोह की आग इतनी तीव्व गति से फैल गयी मानो आग में किसी ने घी डाल दिया हो।

अर्थात् भारतवासियों में भारत को स्वाधीन कराने की भावना तीव्र हो गयी। यह विद्रोह लोगों में अपनी मातृभूमि के प्रति भक्ति की भावना भर दिया था, जिसके कारण समस्त भारतवासी अपने देश के प्रति अपने प्राण तक न्यौछावर करने के लिए तत्पर हो उठे। इसीलिए 1857 ई० के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम भी माना जाता है, जिसने भारत के अधिकांश भाग को प्रभावित किया। विभिन्न विद्वानों ने भी 1857 ई० के विद्रोह को ‘भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ माना है, जिनमें सर्वपथम नाम ‘विनायक दामादर सावरकर’ का था।

इसके अतिरिक्त अन्य और भी विद्वान थे जिनके अनुसार यह विद्रोह भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था। जिनमें पट्टाभि सीतारमैया, अशोक मेहता तथा बैन्जामिन डिजरेली आदि थे। जिन विद्वानों ने इसे स्वतंत्रता संग्राम माना है, उन्होंने अपने मत के समर्थन में तर्क दिया है कि- “इस संग्राम में हिन्दू और मुसलमानों ने कंधे से कधा मिलाकर समान रूप से भाग लिया और इन्हें जनसाधारण की सहानुभूति प्राप्त थी। अत: इसे केवल सैनिक विद्रोह या सामन्तवादी प्रतिक्रिया अथवा मुस्लिम षड्यंत्र नहीं कहा जा सकता।’

उपर्युक्त विवरणों से देखा जाता हैं कि 1857 ई० का विद्रोह न केवल सैनिक विद्रोह था बल्कि यह विद्रोह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी था जिसमें पहली बार भारत के समस्त जाति, धर्म तथा कट्टर थी आदि लोगों ने भाग लिया।

प्रश्न 11.
1857 ई० के विद्रोह में शामिल प्रमुख नेताओं की भूमिका का वर्णन कीजिए ।
उत्तर :
सन् 1857 ई० का विद्रोह एक प्रकार से देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम था जिसमें अपने देश को अंग्रेजी सरकार के गुलामी से बचाने के लिए प्रत्येक धर्म एवं जाति के लोगों ने विभिन्न नेताओं के नेतृत्व में विद्रोह किया। इन विभिन्न नेताओं में दिल्ली के अन्तिम मुगल समाट बहादुरशाह जफर द्वितीय महत्वपूर्ण थे। उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी क्योंकि विद्रोह का सारा बागडोर इनको ही सौंपा गया था। अन्तिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने 12 मई, 1857 से दिल्ली में इस विद्रोह की शुरुआत किया था तथा अंग्रेजों का विरोध किया।

इसके बाद विद्रोह का सूत्रपात कानपुर में नाना साहब एवं तात्या टोपे ने संभाला। उन्होंने अपनी वीरता का परिचय देने हुए, सितम्बर, 1857 ई० तक कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करते रहे।
झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के साथ वीरतापूर्वक विद्रोह करती रही तथा महिला होने के बावजूद वह अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दी।

बिहार के जगदीशपुर में कुँवर सिंह ने इस विद्रोह का सूत्रपात किया। अगस्त, 1857 ई० में उन्होंने बिहार में इस विद्रोह की शुरुआत किया तथा अंग्रेजों के रातों की नींद तक उड़ा दिया।

इसके अतिरिक्त, लखनऊ से बेगम हजरत महल, इलाहाबाद से लियाकत अली, बरेली से खान बहादुर खां, फैजाबाद से मौलवी अहमद उल्ला और फतेहपुर से अजीमुल्ला आदि ने भी इस विद्रोह का सूत्रपात किये तथा अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। उपर्युक्त विवरणों से देखा जाता है कि सन् 1857 ई० का विद्रोह अलग-अलग क्षेत्रों मे भिन्न-भिन्न नेताओं के नेतृत्व में हुआ और सभी नेताओं ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया।

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प्रश्न 12.
1857 ई० की क्रान्ति के परिणामों को उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1857 ई० की क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए :
i. इस विद्रोह के बाद भारत की प्रशासनिक व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हुए, इस्ट इण्डिया के कम्पनी के शासन को समाप्त कर इंग्लैण्ड के महारानी अर्थात् इंग्लैण्ड (ब्रिटिश) ताज के हवाले हो गया।
ii. इस विद्रोह के बाद सैन्य व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हुए। सेना में ब्राह्मण, क्षेत्रीय एवं मुसलमानों की भर्ती पर रोक लगा दी गई और जाति के आधार पर सैनिकों की भर्ती होने लगी। इस प्रकार भारतीय सेना की संख्या कम करके उसे जाति-वादी सेना बना दिया गया।
iii. इस विद्रोह के बाद महारानी का घोषणा-पत्र लागू हुआ, जिसमें भारतीय राजाओं को आश्वासन दिया गया कि उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। इस घोषणा-पत्र के द्वारा भारतीयों के योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी देने की घोषणा की गई।
iv. यह क्रान्ति भले ही असफल रही, किन्तु अंग्रेजी शासन के नींव को हिलाने में सफल रहीं, इस भय एवं कमजोरी के कारण अंग्रेज ऐशिया के अन्य देशों, जैसे – चीन, जापान आदि पर अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर सके।

इस प्रकार यह क्रान्ति भले ही असफल रही किन्तु अंग्रेजों को सीख दे गयी, जिसके कारण अंग्रेज भारत के शासन व्यवस्था में सुधार करने के लिए बाध्य हुए और भारतीय भी अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ने-मरने को तैयार हो गए।

प्रश्न 13.
सन् 1857 का विद्रोह को क्या सैनिक विद्रोह कहा जा सकता है ?
उत्तर :
सन् 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह नहीं था। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि इस विद्रोह में केवल भारतीय सैनिक भाग नहीं लिये थे बल्कि इस विद्रोह में भारत के उत्तरी अंचल के समस्त निम्नवर्गों ने भाग लिये थे। इसीलिए यह विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह ही नहीं था बल्कि भारतीय निम्नवर्गों का विद्रोह था।

इस विद्रोह में जिन नेताओं ने प्रमुख भूमिका पालन किया उनमें लक्ष्मीबाई, नाना साहब एवं तात्या टोपे थे। जिन्होने निम्न जाति एवं महिलाओं को अपना आधार बनाये थे।

डॉ॰ ताराचन्द के अनुसार भी यह विद्रोह सैनिक विद्रोह न होकर निम्नवर्गो द्वारा अपनी खोई हुई सत्ता को पुन: प्राप्त करने का प्रयास था जो अंग्रेजी प्रशासन से मुक्ति पाना चाहता था। क्योंकि अंग्रेज इन निम्नवर्गों को कुचलने का प्रयास किये थे तथा उन्हें अपना गुलाम भी बनाना चाहते थे।
अतः हम कह सकते हैं कि 1857 का विद्रोह-सैनिक विद्रोह न होकर निम्नवर्गो द्वारा चलाया गया विद्रोह था।

प्रश्न 14.
1857 ई० के विद्रोह के राष्ट्रीय चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
1857 ई० के विद्रोह के राष्ट्रीय चरित्र का सुन्दर एवं मार्मिक वर्णन किया गया है क्योंक पूर्णरूप से यह विद्रोह देशभक्ति, देशप्रेम एवं राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत है। इस विद्रोह की शुरूआत मेरठ के एक पैदल टुकडी 20 N.I. ने किया था, जो पूर्णरूप से देशप्रेम एवं देशभक्ति पर आधारित था। इतना ही नहीं, सैनिको की देशभक्ति एवं राष्ट्रीय प्रेम का उदाहरण बेरकपुर छावनी के भारतीय सिपाही मंगल पाण्डेय द्वारा देखा गया, जो अंग्रेजों से वीरता पूर्वक लड़ते हुए मारे गये (फाँसी द्वारा)।

इसी प्रकार के कई और वीरतापूर्ण दृश्य भी देखने को मिलते हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जो एक महिला थी, अपन देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारी गयी। इनमें कुट-कुट कर देशभक्ति एवं राष्ट्रीय प्रेम की भावना व्याप्त थी।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सन् 1857 का विद्रोह भारतवासियों के भीतर देशग्रेम एवं राष्ट्रीय प्रेम की भावना को जागृत करता हैं तथा इस विद्रोह के नेताओं में कुट-कुट कर राष्ट्रीय चरित्र की भावना भरी थी, जो भारतीय स्वंतत्रता संग्राम के रूप में दिखायी पड़ी।

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प्रश्न 15.
विक्टोरिया की घोषणा पत्र के प्रमुख बातों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
रानी की घोषणा पत्र- 1858 ई० का ऐतिहासिक महत्व क्या था ?
उत्तर :
महारानी विक्टोरिया का घोषण्णापत्र : 1857 ई० की क्रान्ति के बाद भारत के शासन व्यवस्था में भारी परिवर्तन हुआ, तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड कैनिंग ने नवम्बर सन् 1858 ई० को इलाहाबाद में अंग्रेजी दरबार का आयोजन किया, और उसी आयोजन मे इग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र को पढ़कर सुनाया, जिसे विक्टोरिया की घोषणापत्र कहा जाता है। इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित थी-

  1. अब से भारत का शासन इंग्लैण्ड के ताज (राजा) के अधीन होगा और उसका प्रतिनिधित्व करने वाला भारत का प्रधान शासक वायसराय कहलायेगा।
  2. भारतीय राजाओं के साथ की गई संधियों को ईमानदारी के साथ लागू किया जायेगा और उन्हें अपने उत्तराधिकारी के लिए बच्चो को गोद लेने का अधिकार दिया जायेगा।
  3. अय कोई भी भारतीय देशी राज्यों को अंग्रेजी राज्य में नहीं मिलाया जायेगा।
  4. क्रान्ति के सभी अपराधियों को क्षमा-दान दे दिया जायेगा।
  5. ब्रिटिश सरकार भारतीयों के सामाजिक और धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार की दखलअंदाजी नहीं करेगी।
  6. सभी भारतीयों को योग्यता के आधार पर बिना-किसी भेद-भाव के सरकारी नौकरी पाने का अधिकार होगा।

इसी घोषणा के बाद भारत की शासन व्यवस्था में व्यापक सुधार एवं परिवर्तन हुआ। 1861 ई० में इसी घोषणा पत्र के आधार पर भारतीय जन सेवा कानून बनाया गया।

प्रश्न 16.
अवनीन्द्रनाथ द्वारा चित्रित की गई भारत माता का चित्र किस प्रकार से भारतीयों के अन्दर राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम की भावना को विकास करने में सहायक सिद्ध हुआ।
उत्तर :
भारत माता का चित्र : भारत माता का चित्र 1905 ई० में अवनीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा बनाया गया था। इस चित्र ने एक प्रतीक के रुप में देशवासियों के मन में उत्साह, साहस, राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भुमिका निभाई।

1905 ई० में अवनीन्द्र नाथ टैगोर ने बंग-भंग के विरोध में उत्पन्न हुए स्वदेशी एवं बहिष्कार आन्दोलन के समय देशवासियों में वीरता, उत्साह, साहस, देशप्रेम की भावना को जागृत करने के लिए और अंग्रेजों की गुलामी से देश को आज़ादी दिलाने के लिए एक प्रतीक के रूप में भारत माता (वंग माता) का चित्र एक सुन्दर सन्यासी युवती के रूप में बनाया था, जिसके दंवी लक्ष्मी के समान चार भुजाए थी, जिसके एक हाथ में तलवार, दूसरे हाथ में त्रिशूल, तीसरे हाथ में निरंगा और चौथे हाथ में माला लिये हुए और उनके बगल में शेर का चित्र दर्शाया गया था।

इस प्रकार माँ भारती का यह चित्र एक दंवी के रूप में अपने संतानो को सभी प्रकार का सुख देने का वरदान देते हुए, दिखाई देती है यह चित्र देखते ही दंशवासी अपने सभी भेद-भाव को भूलकर एक-जूट होकर आन्दोलन के लिए मचल कर सक्रिय हो उठते थे। यही चित्र आगंग चलकर देश के स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए शक्ति, साहस, संघर्ष और विजय का प्रतीक बन गई, भारत माता की जयकार लगाते हुए देशवासी स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी आहूति देने के लिए तत्पर होने लगे।

सर्वप्रथम बनारस में भारत माता की मन्दिर स्थापित किया गया, जिसका उद्घाटन साबरमती के संत महात्मा गाँधी ने किया था, इस ग्रकार भारत-माता का चित्र देशवासियों के साहस, शक्ति, संघर्ष, स्वतंत्रता के शक्ति का स्रोत बन कर उन्हें देश-प्रेम के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता रहा।

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प्रश्न 17.
गोरा उपन्यास किस प्रकार से देशवासियों में राष्ट्रीय भावना के विकास में सहायक सिद्ध हुआ?
उन्तर :
गोरा उपन्यास और राष्ट्रीयता की भावना का विकास :- विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1909 ई० में लिखित उपन्यास गोरा बंगाल सहित पूरे देश के युषाओं में देश के लिए कुछ कर गुजरने, /मर – मिटने जैसी राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने और बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गांरा उपन्यास में एक गोरे रंग का व्यक्ति जो विदेशी/अंग्रेजों के प्रतीक के रूप मे चित्रित किया गया है। वह गोरा व्यक्ति बिदेशी अंग्रेज होने के बावजूद भी हिन्दू रीति-रिवाज को मानते हुए, देवी-देवता की पूजा पाठ करता है। भारत की आजादी के लिए दुआ माँगता है। इसके माध्यम से टैगोर ने देशवासियों को यह संदेश देने का प्रयास किया था, कि मनुष्य को अपने पूर्व जीवन की क्रियाओं को छोड़कर हिन्दू सभ्यता के वर्तमान सभ्यता और सस्कृति को अपनाना चाहिए।

हमें अपने समाज के कुरीतियों, मतभेदों को त्याग कर, नये राष्ट्रीय, सामाजिक, आर्थिक, सास्कृतिक धार्मिक विचारों को अपनाना चाहिए, जब सात-समुद्र पार का एक विदेशी अपनी सभ्यता-संस्कृति को त्यागकर, भारतीय ब्ननकर समाज और देश के लिए मरमिटने का प्रयास करता है तो हम अपने मिट्टी से जुड़े हुए, भारतीय क्यों नहीं कर सकते? इसी संदेश ने गुलामी की मानसिकता में जी रहे, लोगों को क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के लिए बाध्य किया। हम पुराने कमजोरियों, बुराईयों को त्यागकर नये प्रगतिशील विचारों को अपनाकर आजादी की लड़ाई के लिए संघर्ष करने लगे, इस प्रकार गोरा उपन्यास ने देशवासियों को राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम का पाठ-पढ़ाया, जिसकी सबक ने हमें अन्ततः आजादी दिलायी।

प्रश्न 18.
‘वर्तमान भारत’ में स्वामी विवेकानन्द ने किस प्रकार तत्कालीन भारत का वर्णन किया है ?
उत्तर :
भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में ‘वर्तमान भारत’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ‘वर्तमान भारत’ में स्वामी विवेकानन्द ने तत्कालीन भारत का वर्णन किया है। विवेकानन्द जी ने ‘वर्तमान भारत’ नामक कृति की रचना सन्1905 में किये। आरम्भ में यह एक प्रकार का निबन्ध था, जिसको सन् 1899 में उद्वोधन प्रकाशन ने ‘रामकृष्ण मठ’ एव ‘रामकृष्ण मिशन’ के मुखपत्र के रूप मे प्रकाशित किया। बाद में स्वामी विवेकानन्द जी ने इस निबंध को पुस्तक का रूप दिया।

इस पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द जी ने तत्कालीन भारत के निम्न जाति एवं गरीबों की दयनीय एवं मार्मिक जींवन का वर्णन किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने जातिवाद पर अपने कठोर विचार व्यक्त किये हैं कि इस देश की जातिवाद रूपी डिम्बक ने इसे खोखला बना दिया है। इसीलिए तत्कालीन भारत के लोगों से वे जातिवाद को समाप्त कर भाईचारें को अपनाने का अपील किये हैं।

अतः देखा जाय तो स्वामी विवेकानन्द जी ने अपनी रचना ‘वर्तमान भारत’ में तत्कालीन भारत का इस रूप में वर्णन किया। जिसमें निम्न जातियों की विभिन्न समस्या एवं जातिवाद को दर्शाया गया है।

प्रश्न 19.
‘समितियों का युग’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
भारत में 18 वीं शताब्दी के अन्त से लेकर 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक कई राजनैतिक समितियों या सभा अथवा संगठन का गठन किया गया जो भारतीय राष्ट्रवाद (Indian Nationalism) के जन्मदाता माने जाते थे। इन समितियों ने ही भारत में राष्ट्रवाद को जन्म दिया अर्थात् बढ़ावा दिया जिसके माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बोजारोपण किया गया। इन समितियों ने ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमे ‘बगभाषा प्रकाशिका सभा’ तथा ‘बगाल जमीदार सभा’ या ‘लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन’ आदि महत्वपूर्ण थे। इसीलिए डॉ॰ अनिल सेन ने 19 वीं सदी को समितियों का युग कहा है।

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प्रश्न 20.
बंगाल जमींदार सभा किस प्रकार का संस्थान था, इसने किस प्रकार राष्प्रीयता को बढ़ावा दिया ?
उत्तर :
‘बंगाल जमींदार सभा’ या ‘लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन’ : ‘बंगाल जमींदार सभा’ या ‘लैण्ड होल्डर्स एसासिएशन’ भारत में समितियों के युग की दूसरी संस्था थी जिसका गठन सन् 1838 ई० में द्वारकानाथ टैगोर ने कलकत्ता में किया। इतना ही नहीं, इस संस्था के गठन में बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के जमींदार वर्ग की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था के प्रमुख भारतीय सचिव प्रसन्न कुमार ठाकुर और द्वारकानाथ ठाकुर आदि थे। अंग्रेजी सचिव या नेता में जॉन क्रॉफर्ड, जे० ए० प्रिसेप, विलियम थियोवेल्ड, थियोडर डिकेस तथा विलियम काब्बी आदि थे। ‘बंगाल जमींदार सभा’ का प्रमुख उद्देश्य जमोंदारों के हितों की रक्षा करना था। इतना ही नहीं, यह संस्था जमींदार वर्ग को बंगाल में बढ़ावा भी देती थी। यह संस्था आधुनिक भारत की ‘प्रथम संवैधानिक राजनीतिक संस्था’ थी।

उपर्युक्त बिवरणों से पाते हैं कि ‘बंग भाषा प्रकाशिका सभा’ एवं ‘बंगाल जमींदार सभा’ दोनों ही भारतीय राष्ट्रवाद को विस्तृत करने में तत्पर संस्थाएँ थी जिसका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना था।

प्रश्न 21.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर द्वारा अंकित कार्टुन चित्र में किस प्रकार औपनिवेशिक समाज प्रतिविंबितहुआ है ?
अथवा
गगनेन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) की चित्रकारी में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण चित्रण है, कथन को स्पष्ट कीजिए।
अशवा
महान चित्रकार एवं कार्टुनिस्ट गगनेन्द्रनाथ टैगोर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर जी एक महान चित्रकार एवं कार्टुनिस्ट थे। इनका जन्म 18 सितम्बर, 1867 ई० को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसडेन्सी के कलकत्ता में हुआ था। ये रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे तथा अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम गगनन्द्रनाथ टैगोर तथा दादा का नाम गिरीन्द्रनाथ टैगोर था। ये एक महान चित्रकार थे। इनकी चित्र दूसरों से हटकर हाती थी तथा प्रत्येक चित्रों में औपनिवेशिक समाज का व्यग्य छिपा होता था। उन्होंने उस समय के जाने-माने चित्रकार हरिनारायण बंदोपाध्याय से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

गगनेन्द्रनाथ टैंगोर ने चित्रकला एवं कार्टुन से संबंधित अनेको कार्य किये। जैसे- सन् 1917 में ‘बाजरा’ एवं ‘अद्धुत लोक’ तथा सन 1921 में ‘नव हुलोड़े’ आदि थे जो औपनिवेशिक समाज के व्यंग्यपूर्ण चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में विभिन्न प्रकार के व्यंग्य छिपे होते थे। जैसे – जाति प्रथा, पाखण्ड, हिन्दू पुजारी तथा पश्चिमी शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था। इतना हो नहीं, उस समय के प्रसिद्ध नाटककार ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर के नाटक ‘एमन कर्म आर करबो ना’ में गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हास्यास्पद चित्रों का समावेश मिलता है। उनके नाटक के प्रमुख पात्र ‘अलिफ बाबू’ तथा ‘द फाल्स बाबू’ इत्यादि गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हाथों की उपज हैं।

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प्रश्न 22.
भारत सभा की स्थापना के उद्देश्य एवं इसके कार्य क्या थे ?
उत्तर :
भारत सभा (Indian Association) : भारत में गुप्त समितियों के रूप में ‘भारत सभा’ की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस द्वारा सन् 1876 में कलकत्ता के इल्बर्ट हॉल (Elbert Hall) में की गई। ‘भारत सभा’ के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और आनन्द मोहन बोस इसके सचिव माने जाते हैं। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस संस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शाखी तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे।

‘भारत सभा’ के निम्नलिखित उद्देश्य थे, जिनमें

  1. सम्पूर्ण देश में लोकमत का निर्माण करना,
  2. हिन्दूओं और मुसलमानों के बीच एकता एवं मैत्री को स्थापित करना,
  3. सामूहिक आन्दोलनों में किसानों का सहयोग प्राप्त करना, तथा
  4. विभिन्न जातियों में एकता के सूत्र को संचार करना एवं उनके सहयोग को प्राप्त करना इत्यादि।

इस संस्था ने अनेकों आलोलन चलाये जिनमें से कुछ निम्न प्रकार के थे –

1. सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन : ‘भारत सभा’ के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सिविल सर्विस परीक्षा को भारत में आयोजित किये जाने के उद्देश्य से सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन चलाए। जब लार्ड सेल्वरी ने भागतीयों को ‘इण्डयन सिविल सर्विस’ की परीक्षा से वंचित करने के उद्देश्य से परीक्षा में बैठने की उम्र 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दिया, तो सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने उम्र 19 से बढ़ाकर 21 करने के लिए आन्दोलन चलाया।

2. वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विरोधी आन्दोलन : भारत सभा के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं उनके साथियों ने मिलकर वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विरोधी आन्दोलन चलाया। जब लार्ड लिटन ने सन् 1878 में यह एक्ट लागू कर भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, तब इसके विरोध मे ‘भारत सभा’ ने आन्दोलन चलाया।

प्रश्न 23.
गोरा एवं आनन्दमठ उपन्यासों ने राष्ट्रीयता को जगाने में किस प्रकार सहायक हुआ ?
उत्तर :
‘गोरा’ (Gora) उपन्यास : ‘गोरा’ उपन्यास एक आकर्षक प्रेम-कथा है जिसमें ‘गोरा’ एक प्रमुख नायक के तौर पर है और इसी के नाम पर उपन्यास को नाम ‘गोरा’ शीर्षक के रूप में रखा गया है। ‘गोरा'(Gora) का साहित्यिक अर्थ है ‘गौर वर्ण या जाति’ का व्यक्ति । इस उपन्यास को रचना महान विश्च कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने सन्1 909 में किया था। यह उपन्यास उनके द्वारा रचित बारह (12) उपन्यासों में से एक है। यह एक काफी जटिल उपन्यास माना गया है।

रवोद्र्रनाथ टैगोर जी मूलतः एक कवि थे। उनकी बहुचर्चित काव्यमयी रचना ‘गीतांजलि’ पर उन्हें 1913 ई० में विश्च का सर्वाच्च नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। उन्होंने अपनी इस रचना में सामाजिक एवं राजनैतिक रूप, सामाजिक जीवन एवं बुराइयाँ, बगाली संस्कृति, राष्ट्रीयता की भावना एवं मित्रता आदि को दर्शाया हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने अपने उपन्यास ‘गोरा’ में भारतवासियों के प्रति राष्ट्रवाद की भावना को दर्शाया है, जो स्वतंत्रता के मार्ग को दिखाती है। उस समय बंगाल लार्ड कर्जन के बंग-भंग क्रिया की काली छाया से होकर गुजर रहा था। ऐसे समय मेंगोर जी की इस उपन्यास ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया, जा उनके लिए अनमोल था।

‘आनन्दमठ’ (Anandmath) : भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वप्रमुख स्थान ‘आनन्दमठ’ कृति की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता के विकास को जन्म दिया अर्थात राष्ट्र के प्रति हमेशा अग्रसर रहा। इसकी रचना बंकिम चन्द्र बटर्जी ने 1882 ई० में किया। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था। यह एक उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभृनि की शुरु आत 1771 ई० के बंगाल के अकाल के समय से होती है। यह अकाल वास्तव में सन् 1770 में आया था, परन्तु इसका संचयन सन् 1771 में किया गया।

इस उपन्यास के मुख्य पात्रों में ‘महेन्द्र’ और ‘कल्याणी’ हैं। इतना ही नही, 18 वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है तथा भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वन्देमातरम’ (Vande Matramj भी सर्वप्रथम इस उपन्यास में ही प्रकाशित किया गया था।

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प्रश्न 24.
भारतीय साहित्यिक कृतियों के रूप में ‘आनन्दमठ’ तथा ‘वर्तमान भारत’ के द्वारा राष्ट्रीयता या राप्ट्रवाद का विकास या संचार किस प्रकार हुआ?
या, ‘आनन्दमठ’ और ‘वर्तमान भारत’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
18 वों शतबब्दी के अंत में भारतीय साहित्यिक कृतियों में कई परिवर्तन आये। अनेक कृतियों की रचना किया गया जिसका एक ही मकसद था, देश के प्रति देश-प्रेम को जागृत करना, राष्ट्रवाद को जन्म देना तथा उनमें विकास. लाना, ंश्रा्वस्यों में देश के प्रति देशभक्ति की भावना को जन्म देना तथा अपने देश को अंग्रेजों के बंधनों से मुक्त कराना।

हाँलाकि ये सभी कार्य 18 वी शताब्दी के मध्य तक अनेकों पत्र-पत्रिकाओं ने किया परन्तु देश के प्रति ऐसी भावना को जागृत नहीं कर पाये, जितना ये साहित्यिक कृतियाँ कर पाये। इन पत्र-पत्रिकाओं में – अमृत बाजार पत्रिका, इण्डिया मिरर, सोमप्रकाश, संवाद कौमुदी तथा संजीवनी आदि प्रमुख थे।

‘आनन्दमठ’ (Anandmath) : भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वपमुख स्थान ‘आनन्दमठ’ कृति की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता के विकास को जन्म दिया अर्थात राष्ट्र के प्रति हमेशा अग्रसर रहा। इसकी रचना बंकिम चन्द्र चटुर्जी या चट्टॉपाध्याय ने 1882 ई० में किये। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था। यह एक उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभूमि की शुरुआत 1771 ई० के बंगाल के अकाल के समय से होती है।

यह अकाल वास्तव में सन् 1770 ई० में आया था, परन्तु इसका संचयन सन् 1771 ई० में किया गया। इस उपन्यास के मुख्य पात्रों में ‘महेन्द्र’ और ‘कल्याणी’ हैं। इतना ही नहीं, 18 वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है तथा भारत का राष्ट्रीय गोत ‘वन्देमातरम’ (Vande Matram) भी सर्वप्रथम इस उपन्यास में ही प्रकाशित किया गया था।

‘वर्तमान भारत’ (Bartaman Bharat) : भारतीय राष्ट्रीयता के विकास मे ‘वर्तमान भारत’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 19 त्वीं सदी में भारतीय लोगों को जागृत करने तथा उनमें देश-प्रेम और देश-भक्ति को जगाने में ‘वर्तमान भारत ‘

ने अहम भूमिका निभाई। इस अनमोल कृति की रचना ‘स्वामी विवेकानन्द जी’ ने सन् 1905 ई० में किया। आरम्भ में यह एक प्रकार का निबंध था, जिसको सन् 1899 ई० में उद्वोधन प्रकाशन ने रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मिशन के मुख्यपत्र के रूप में प्रकाशित किया। बाद में स्वामी विवेकानन्द ने इस निबंध को एक पुस्तक का रूप दिया। इस पुस्तक का उद्देश्य भारत में राष्ट्रीयता का संचार यानि विकास करना तथा देशवासियों के भीतर देशप्रेम और देश-भक्ति की भावना को जागृत करना था। उपर्युक्त विवरणों से पाते हैं कि भारतीय राष्ट्रीयता के संचार यानि विकास के क्षेत्र में ‘आनन्दमठ’ तथा ‘वर्तमान भारत’ की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

प्रश्न 25.
गगनेन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) की चित्रकारी में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण चित्रण है, कथन को स्पष्ट कीजिए।
या
महान चित्रकार एवं कार्टुनिस्ट गगनेन्द्रनाथ टैगोर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
गगनेन्द्रनाथ टैगोर जी एक महान चित्रकार एवं कार्टुनिस्ट थे। इनका जन्म 18 सितम्बर, 1867 ई० को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसिडेन्सी के कलकत्ता में हुआ था। ये रवीद्द्रनाथ टैगोर के भतीजे तथा अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम गुनेन्द्रनाथ टैगोर तथा दादा का नाम गिरीन्द्रनाथ टैगोर था। ये एक महान चित्रकार थे। इनकी चित्र दूसरों से हटकर होती थी तथा प्रत्येक चित्रों में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्य छिपा होता था। उन्होंने उस समय के जाने-माने जलचित्रकार हरिनाराद बबंद्योपाध्याय से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

उन्होंने 1907 ई० में अपने छोटे भाई के साथ मिलकर ‘Indian Society of Oriental Art’ की स्थापना किये। उन्होंने सन् 1906 से लेकर 1910 ई० के बीच जापान के प्रसिद्ध चित्रकार ‘याकोहामा तैकान’ से यूरोपियन रंग एवं जापानी ब्रश तकनीकी का मिश्रण करना भी सीखा। इसीलिए सर्वप्रथम गगनेन्द्रनाथ टैगोर को भारत में चित्रकला के क्षेत्र मे ब्रश के प्रयोग का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने अपनी चित्रकलाओं में भारतीय तकनीकी का एकदम प्रयोग नहीं किया। ठाकुरबाड़ी में 1915 से लेकर 1919 ई० के बीच उन्होंने विचित्रा क्लब प्रतिस्थापित किया, जहाँ कई नामी चित्रकार आते थे।

गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने चित्रकला एवं कार्टुन संबंधित अनेको कार्य किये। जैसे- सन् 1917 ई० मे ‘बाजरा’, 1917 में ही ‘अद्धुत लोक’ तथा सन् 1921 ई० मे ‘नव हुलोड़े’ आदि थे जो औपनिवेशिक समाज का व्यग्यपूर्ण चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में विभिन्न प्रकार के व्यग्य छिपे होते थे। जैसे – जाति प्रथा, पाखण्ड, हिन्दू पुजारी तथा पथ्चिमी शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था। इतना ही नहीं, उस समय के प्रसिद्ध नाटककार ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर के नाटक ‘एमन कर्म आर करबो ना’ में गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हास्यास्पद चित्रों का समावेश मिलता है। उनके नाटक के प्रमुख पात्र ‘अलिफ बाबू’ तथा ‘द फाल्स बाबू’ इत्यादि गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हाथों की उपज हैं।

गगनेन्द्रनाथ टैगोर इसके अतिरिक्त और भी विभिन्न कार्य हैं, जिनमें –

1. ‘सर्वागेर अश्रुपात’- इसमें उन्होंने एक भद्रलाक को पथ्चिमी सभ्यता की नकल करते हुए उसका उपहास किया है।
2. ‘A Noble Man’- इसमें वर्धमान के महाराजा अमीर बंगाली समाज के प्रतीक हैं। मोटे-तगड़े महाराजा एक हास्यात्मक काल्पनिक चरित्र है। इसी तरह और भी कई कार्य हैं, जिनमें उन्होंने व्यंग्यात्मक चित्रों के माध्यम से औपनिवेशिक समाज की आलोचना किये हैं।

उपर्युक्त उल्लेखों से हम पाते हैं कि गगनेन्द्रनाथ टैगोर एक महान चित्रकार एवं कार्टुनिस्ट थे। इनके प्रत्येक चित्र एवं कार्टुन में औपनिवेशिक समाज की व्यंग्यपूर्ण आलोचना पाया जाता है।

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प्रश्न 26.
इल्बर्ट बिल विवाद से क्या समझते हैं ?
या
इल्बर्ट बिल विवाद के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
इल्बर्ट बिल सन् 1883 ई० में पी०सी० इल्बर्ट ने पेश किया था। यह बिल लाईड रिपन के समय में पारित किया गया था। सर पी०सी० इल्वर्ट लार्ड रिपन की परिषद के विधि सदस्य थे। इस विधेयक में भारतीय न्यायाधीशों के प्रति कहा गया था कि भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियन अपराधियों के मुकदमें सुनने का अधिकार दिया जाय। परन्तु ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं यूरोपियन रक्षा संघ ने इस बिल का भारत एवं इंग्लैण्ड में विरोध किया जिससे यह बिल एक विवाद का विषय बन गया। इसीलिए इस बिल को ‘इल्बर्ट बिल विवाद’ (libert Bill Controvecy) कहते हैं।

इस बिल के विरोध में यूरोपियन संघों ने जो आन्दोलन चलाया उसका प्रभाव भारत की राजनीति पर गहरा पड़ा, जो निम्न रूप में उल्लेखित है –
1. यूरोपियनों ने इल्बर्ट बिल के विरोध में एक होकर आन्दोलन चलाया, इसने भारतीयो की आँखें खोलने का काम किया।
2. भारतीयों को समझ में आ गया कि उन्हें सरकार से कुछ भी पाने के लिए एक होकर संघर्ष करना पड़ेगा।

उपर्युक्त विवरणों से पाते हैं कि इल्बर्ट बिल विवाद राष्ट्रीय नहीं बल्कि अन्तराष्ट्रीय समस्या या विवाद था।

प्रश्न 27.
क्या आप मानते हैं कि 1857 ई० का विद्रोह मुस्लिम सत्ता की पुन: स्थापना का प्रयास था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
ऐसा माना जाता है कि सन् 1857 के विद्रोह का प्रमुख कारण भारत में मुसलमानों की सत्ता की पुन: स्थापना की अर्थात् मुस्लिम सत्ता को किस प्रकार से भारत में पूर्ण रूप में स्थापित किया जाय तथा भारत में मुस्लिम धर्म का प्रचार-प्रसार किस प्रकार से हो। इसी आधार पर मुसलमानों ने हिन्दुओं के विरूद्ध षड्यंत्र करना शुरू कर दिया।

जिसका परिणाम 1857 ई० का विद्रोह था, जिसमें मुसलमानों ने हिन्दुओं के शक्ति के बल पर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे। इसकी पुष्टि प्रसिद्ध इतिहासकार ‘सर जेम्स आउटरम’ ने किया। स्मिथ ने भी इसका सर्मथन किये। इस आधार पर हम देख पाते हैं कि यह विद्रोह भारतीय मुसलमानों का बड्बंत्र था। इतना ही नहीं यह मुसलमान मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय या जफर के नेतृत्व में मुस्लिम सत्ता स्थाप्ति करना चाहते थे। इस विद्रोह का नेतृत्व बाद में बेगम हजरत महल ने भी की।

परन्तु, देखा जाय तो सर जेम्स आउटरम की यह कथन अर्थहीन एवं असत्य है, क्योंकि यह कांति पूर्ण रूप से भारतीय स्वतंत्रता के लिये हुआ था, जिसमें विभिन्न नेताओं ने अपना योगदान दिये। जैसे – नाना साहब, तात्या टोपे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, कुवँर सिंह, मंगल पाण्डेल तथा मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर या द्वितीय आदि। इसीलिए यह विद्रोह मुस्लिम सत्ता की पुन: स्थापना का प्रयास न होकर भारतीय स्वतंत्रता की स्थापना का प्रयास था।

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प्रश्न 28.
‘आनन्दमठ’ का प्रसिद्ध गीत ‘वन्देमातरम्’ के महत्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
‘आनन्दमठ’ उपन्यास की रचना बंकिम चन्द्र चटर्जी जी ने सन् 1882 में किया। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था जिसकी पृष्ठभूमि की शुरूआत सन् 1771 के बंगाल के अकाल के समय से होती है।
बंकिम चन्द्र चटर्जी ने अपनी उपन्यास ‘आनन्दमठ’ मे ‘वन्देमातरम’ शीर्षक गीत की रचना किये थे। महत्वपूर्ण दृष्टि से इस गोत ने बंगाल विभाजन के समय न केवल बंगालियों बल्कि समस्त भारतवासियों के भीतर राष्ट्रीय प्रेम तथा देशर्ति की भावना को विस्तृत किया था।
मुख्य रूप से बंगाल प्रदेश की क्रांति के लिए यह गीत भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह गीत पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति की भावना फूँक दिया था। ऐसा लगता था मानो कि समस्त भारतवासी अंग्रेजो को कुचल डालेंगे।

ऐसा माना जाता है कि सन् 2003 में वी०वी०सी० वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार ‘वन्दमातरम्’ गीत चयनित शीर्ष के 10 गीतों में दूसरे स्थान पर था। अर्थात् इस आयोजन में दुनिया भर के 7000 गीतों को रखा गया था तथा 155 देश के लोगों ने इसमें अपना मतदान किया था।
राष्ट्रीय प्रम एवं देशभक्ति के आधार पर देश के स्वतंत्रत होने के बाद इस गीत को राष्ट्रगीत का मान्यता दिया गया ।

प्रश्न 29.
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के बारे में लिखिए।
उत्तर :
भारतवर्ष में भारतीय समाचार पत्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाया जिसके कारण भारतीय समाचार पत्रों ने समस्त भारतवर्ष में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति का आह्नान शुरू कर दिया। देखते ही देखते यह क्रान्ति समस्त भारतवर्ष में आग का रूप ले लिया। भारतीय समाचार पत्रों की भूमिका अंग्रेजों की समस्या बन चुकी थी ।

अंग्रेजी प्रशासन ने भारतीय समाचार पत्र पर लगाम लगाने के लिए लार्ड लिटन को नियुक्त किया । लार्ड लिटन ने ‘भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम’ (Vernacular Press Act) को सन् 1878 में पास किया जिसके तहत भारतीय समाधार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। समस्त भारतीय समाचार पत्रों ने इस अधिनियम (Act) का विरोध किया परन्तु ‘पायनियर अखबार’ इस अधिनियम का समर्थन किया था। बाद में चलकर नियुक्त लार्ड रिपन ने इस अधिनियम को सन् 1882 में समाप्त कर दिया जिसके तहत भारतीय समाचार पत्रों पर लगी प्रतिबंध समाप्त हो गयी और स्वतंत्र रूप से भारतीय समाचार पत्र अपना कार्य करने के लिए सक्षम हो गया।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
1857 ई० के विद्रोह का स्वरूप या प्रकृति एवं विशेषताओं का वर्णन करें। $5+3$ (M. P. 2017)
उत्तर :
सन् 1857 के विद्रोह के स्वरूप (Nature) के सम्बन्ध में इतिहासकारों में बड़ा मतभेद रहा है। इस घटना का इतिहास लेखन किस रूप में किया जाये, यह अभी तक चर्चा का विषय बना हुआ है। पाश्चात्य विद्वानों ने इसे सिपाही विद्रोह, सामन्तवादी प्रतिक्रिया एवं मुस्लिम षड्यंत्र आदि की संजा दी है। दूसरी ओर अधिकांश भारतीय इतिहासकार इसे राष्ट्रीय आन्दोलन स्वीकार करते है जो भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया। मोटे तौर पर विविध विचारधाराओ को दो पक्ष मान सकते हैं।

एक विचारधारा के समर्थकों में लारन्स, जॉन केची, राइसहोम, आउट्रम, मैलीसन, ट्रेविलियन, राबिन्सन, सीले, राबर्ट्स, स्मिथ एवं आर०सी॰ मजुमदार को रखा जा सकता है। इन लेखकों का उद्देश्य निष्पक्ष राय देना नहीं था बल्क यह सिद्ध करना था कि इस विशाल क्षेत्र पर फैले विद्रोह का मूल कारण भारत सरकार की नीतियाँ एवं प्रशासनिक कमजोरी न थी बल्कि सैनिक द्वारा प्रारम्भ किया गया यह विद्रोह था जिसका मूल कारण सैनिकों में व्याप्त असंतोष था जिसमें सामन्तों एवं मुस्लिम वर्ग ने अपने स्वार्थवश सहयोग दिया।

दूसरे पक्ष के समर्थक विद्वानों में विनायक दामोदर सावरकर, सुरेन्द्रनाथ से, शशिभूषण चौधरी, पूरनचद जोशी तथा अशोक मेहता आदि का उल्लेख किया जा सकता है। ये विद्वान 1857 ई० के विद्राह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं।

विभिन्न स्वरूपों के आधार पर 1857 ई० के विद्रोह को निम्नरूप जाना जा सकता है :-

सैनिक विद्रोह : सर जॉन सीले के अनुसार, यह एक पूर्णतया देश भक्तिहीन और स्वार्थ सिद्ध सैनिक विद्रोह था इतना ही नहीं, सर जॉन लॉरिन्स ने भी इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह कहा है और इसका प्रमुख कारण ‘चर्बी वाले कारतूस’ को घटना को बताया है। जिसमें बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डे सहित कई भारतीय सैनिकों ने गाय एवं सुअर की चर्बी से बने कारतूस को मुँह में लेने से साफ इन्कार कर दिये थे, (यह एक विशेष प्रकार की कारतूस थी जो मुँह से काटना पड़ता था।) अतः अंग्रेजी सेना ने उनको पकड़कर फाँसी दे दिया। यह खबर आग की तरह पूरे उत्तर भारत में फैल गयी जो इस विद्रोह के शुरू होने का प्रमुख कारण है। इसीलिए इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह कहा जाता है।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम : 1857 ई० के विद्रोह को विनायक दामोदर सावरकर, अशोक मेहता, सुरेन्द्रनाथ सेन, शशिभूषण चौधरी तथा पूरनचंद जोशी आदि जी ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है । क्योंकि उनका मानना है कि देश का यह प्रथम राष्ट्रीय आन्दोलन था जिसमें समस्त धर्म, जाति, जमीन्दार एवं ठेकेदार ने भाग लिया था। प्रथम बार भारतीयों ने महसूस किया कि अब हमें अपने देश की आजादी के लिए लड़ना चाहिए। इसीलिए इन विद्वानों ने इस विद्राह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है।

मुस्लिम सत्ता को पुनःस्थापित करने का प्रयास : सर जेम्स आउट्रम के विचार से यह राष्ट्रीय आन्दोलन नहीं था बल्कि मुस्लिम सत्ता को पुन रस्थापित करने का एक षड्यंत्र था जिसने हिन्दुओं की कठिनाइयों का लाभ उठाया और चर्बी लगे कारतूसो ने इस घटना को द्विगुणित कर दिया। स्मिथ ने आउट्रम के मत का समर्थन करते हुए लिखा है, यह सामन्तवादी पड्यंत्र था जिसकी नींव को मेरठ की दुर्घटना (चिंनगारी) ने समय से पहले ही उखाड़ फेंका।

सामन्ती विद्रोह : डॉ॰ आर० सी० मजुमदार, सुरेन्द्रनाथ सेन, मार्क्सवादी विधारक आर० पी० दत्त और केम्ब्रिज इतिहासकार इरिक स्टोक्स के अनुसार, यह विद्रोह सामन्तों का विद्रोह था। उनके अनुसार यह उनकी अन्तिम परम्परावादी विद्रोह माना जाता था।

उपर्युक्त विवरणों से हम पाते हैं कि 1857 ई० का विद्रोह के स्वरूप में विभिन्नता पायी जाती है, जो महत्वपूर्ण तो है, साथ ही साथ यह विद्रोह एक नयी पीढ़ी का सृजनात्मक प्रतिक्रिया का परिणाम भी माना जाता है।

भारतीय इतिहासकारों एवं विद्वानों तथा पाश्चात्य इतिहासकारों एवं विद्वानों द्वारा दिये गये विवरणों में अभी भी मतभेद की भावना निहित है। अर्थात् 1857 ई० के विद्रोह का स्वरूप अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि यह विद्रोह सैनिक विद्रोह था या प्रथम स्वतंत्रता सग्राम है। अगर हमलोग 1857 ई० के विद्रोह की विशेषताओं की बात करें तो इस विद्रोह के स्वरूप में ही इसकी विशेषताएँ छिपी हुई हैं।

1857 ई० का विद्रोह विशेष तौर पर एक सिपाही विद्रोह (Sepoy Munity) तथा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है जिसमें अनेको भारतीय नायकों ने अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिये। इतना ही नहीं, यह विद्रोह धीरेधीरे राष्ट्रीय आन्दोलन भी बन गया था। गौर करने की बात यह है कि देश का यह पहला विद्रोह था जिसमें प्रत्येक धर्म एवं जाति के लोगों ने भाग लिया था। इस विद्रोह की ये सभी बड़ी विशेषताएँ मानी गयी हैं। इसके अतिरिक्त इस विद्रोह की अन्य भी विशेषताएँ हैं जैसे- देश का यह पहला विद्रोह था जिसने अंग्रेजों की कमर तक तोड़ दिया।

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प्रश्न 2.
1857 ई० की क्रान्ति के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं तत्कालिन कारणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1857 ई० की क्रान्ति के कारण : बहादुर शाह जफर द्वितीय के नेतृत्व में शुरू हुआ, 1857 ई० की क्रान्ति अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीय द्वारा एकजुट होकर स्वतंत्रता के लिए लड़ा जाने वाले पहला विद्रोह, क्रान्ति थी, ललकार था। अतः इस विद्रोह के महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित है –
i. राजनीतिक कारण : 1857 ई० की क्रान्ति का राजनीतिक कारण लार्ड डलहौजी (अग्रेजों) की राज्य हड़प नीति थी, इस नीति के कारण भारतीय राजाओं में यह भय फैल गया था, कि अंग्रेज धीरे-धीरे उनके राज्यों को छीनकर अंग्रेजी राज्य में मिला देंगे, क्योंकि इससे पहले अंग्रेजों ने कई भारतीय राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया था। सताड़ा, लाई डलहोजी की अपहरण नीति का शिकार बनने वाला पहला राज्य था।

इसके अलावा अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह जफर को अपमानित करके लाल किले से बाहर निकाल दिया, सिक्कों पर से नाम हटा दिया, सम्पत्ति जब्त कर ली, उनके पेंशन को भी बन्द कर दिया, अनेक राजाओं के किलों को तोड़ दिया गया, इस प्रकार देशी राजाओं के राज्यों के खत्म होंने से लाखों लोग बेरोजगार हो गये। इन्हीं सब राजनीतिक कारण से अंग्रेजों के विरुद्ध देश में एक व्यापक जनविरोधी भावना तैयार हुई। जिसका विस्फोट 1857 ई० की क्रान्ति के रूप में प्रकट हुआ।

ii. सामाजिक कारण : अंग्रेजों की सदैव से यही सोच रही है, कि वे सम्पूर्ण विश्व में सबसे ऊँची और बुद्धिमान जाती है, शेष उनसे नीचे है । यह स्थिति भारतीयों के प्रति और खराब थी, वे भारतीयों को काले तथा कुत्ते कहा करते थे। उनकों नीच दृष्टि से देखते थें, उनके द्वारा संचालित पार्क, होटल, रेलवे के प्रथम क्षेणी के डिब्बे पर मोटे-मोटे अक्षरों से लिखा हुआ रहता था, कि – “कुत्ते और भारतीय के लिए प्रवेश वर्जित है’ (No Entry to dog and Indian) इतना ही नहीं अंग्रेज भारतीयों के निजी-सामाजिक जीवन में भी दखल देने लगें थे, वे सती प्रथा बाल-विवाह की प्रथा की अंत करके विधवाविवाह को बढ़ावा दे रहे थे।

हिन्दू रीती-रीवाज परम्परा का खुलेआम निंदा करते थें, अपनी सभ्यता और संस्कृति का बड़ाई कर भारतीय को नीचा दिखाते थें। भारतीय महिलाओं के साथ र्दुव्यवहार करते थे, जिस प्रकार किसी भी अवसर पर भारतीय को अपमान करने से नहीं चूकते थे। अंग्रेजो की भारतीयों के सामाजिक जीवन में इस तरह की दखलअदाजी स्वीकार नहीं थी, अत: भारतीयों का अंग्रेजों के प्रति नफरत बढ़ता गया, जो 1857 ई० की क्रान्ति के रूप में प्रकट हुआ।

iii. आर्थिक कारण : अंग्रेजों ने अपनी उपनिवेशिक शोषण नीति से भारत के सभी उद्योग-धंधे, व्यापार व्यवसाय, कृषि सब नष्ट कर दिये थे, जिससे देश की आर्थिक स्थिति एक-दम खराबं हो गयी थी, उस पर से असमय अकाल, सूखा, बाढ़ की स्थितियों ने भारतीयों को और दरिद्र बना दिया था, उस पर अंग्रेजों की नयी भूव्यवस्था के कारण जमीन्दारों द्वारा किसानों की भूमि छीनने और उनपर अत्याचार की घटनाएँ बढ़ गयी थी।

अधिकांश लोग बेरोजगार हो गये थे, और अग्रेज का गुलाम बन कर जीवीकापार्जन के लिए मजबूर हो गये थे, इस प्रकार भारतीय का आर्थिक शोषण कर अंग्रेज मालामाल हो गये थे। एसो-आराम की जिन्दगी जी रहे थे। दूसरी तरफ भारतीय जी-तोड़ मेहनत के बाद भी दो जून (वक्त) को रोटी के लिए तरस रहे थे। यही आर्थिक विषमता और असंतोष ने 1857 ई० में भारतीयों को अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ने-मरने के लिए विवश कर दिया था।

iv. धार्मिक कारण : 1813 ई० के कम्पनी चार्टर के एक्ट द्वारा ईसाई मिशनरियों को भारत आने की सुविधा प्राप्त हो गयी और वे भारत आकर बिना रोक-टोक के ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे, वे जेल के कैदियों को नियमित रूप से ईसाई धर्म की शिक्षा देने लगे। लड़कियों के लिए नियमित ईसाई धर्म का शिक्षा दिया जाने लगा। ईसाई धर्म स्वीकार करन वाले सैनिकों को पद उन्नति का लालच दिया जाने लगा, 1850 ई० में धार्मिक अयोग्यता कानून पास करके हिन्दू धर्म के नियमों और कानून को बदल दिया गया।

हिन्दू धर्म में पहले नियम था कि धर्म परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को पिता के सम्पत्ति से वंचित कर दिया जायेगा, किन्तु अंग्रेजों ने इस नियम (कानून) को बदल दिया कि जो ईसाई धर्म स्वीकार करंगा उस पिता के सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार उन्होंने सती प्रथा, बाल-विवाह प्रथा, गोद लेने की प्रथा को समाप्त कर दिया एवं विधवा विवाह को अनुमति दे दी।

एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा था, कि – “हमारा भारत पर अधिकार करने का अंतिम उद्देश्य है, कि हम भारत को ईसाई देश बना दे।” हिन्दू धर्म में अंग्रेजों एवं उनके कार्यों को शंका की दृष्टि से देखने लगे, उनके इस सब कायों ने भारतीयों के आक्रोश एवं असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया जिसका अंतिम परिणाम 1857 ई० का विद्रोह हुआ था।

v. तत्कालीन कारण : 1857 ई० के विद्रोह का तत्कालीन कारण गाय और खुअर की चर्बी से बने कारतूस की प्रयोग वाली घटना थी। अंग्रेजों ने सेना के लिए एक नयी राइफल एण्ड्रफिल देने का निश्चय किया जिसमें प्रयोग होने वाली गोली के मुहँ पर गाय या सुअर की चर्बी लगी होती थी। जिसको प्रयोग करने से पहले दाँत से नोचकर बन्दुक में भरनो पड़ती थी।

बैरकपुर छावनी के सैनिकों ने इस कारतूस का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया, किन्तु रेजीमेण्ट के मेजर हुयडसन ने बार-बार गोली चलाने के लिए दबाव डालने लगा तब रेजीमेन्ट के एक सैनिक मंगल पाण्डे ने उस अधिकारी को गोली मार दी. यह घटना पूरे देश में आग की तरह फैल गयी, और 1857 ई० की क्रान्ति की ज्वाला धधकती गयी। इस प्रकार 1857 ई० की क्रान्ति में कारतूस वाली घटना तत्कालीन कारण बनी।

इस क्रान्ति में कैप्टन गार्डन एक मात्र अंग्रेज अधिकारी था, जो भारतीयों की ओर से लड़ा था। सम्पूर्ण भारत में 31 नई 1857 ई० के यह क्रान्ति सुनिश्चित थी, परन्तु बंगाल के मंगल पाण्डे के कारतूस वाली घटना ने यह क्रान्ति 29 मार्च को ही शुरू हो गयी थी।

vi. सैनिक कारण : 1857 ई० के क्रान्ति के विद्रोह का सैनिक कारण अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा भारतीय सैनिको को कम वेतन दिया जाना था। साथ ही भारतीय सैनिकों के साथ भेद-भाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों का समुद्र पार करना अनिवार्य कर दिया गया था। सैनिको को पगड़ी की जगह चमड़े की टोपी अनिवार्य कर दिया गया। सैनकों के चिट्ठी पर शुल्क लगा दिया गया था। इन्हीं सब कारणों से भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के प्रति असंतोष बढ़ता गया, यही असंतोष सैनिक विद्रोह की आधारशिला बनी।

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प्रश्न 3.
19 वीं शताब्दी को समितियों का युग क्यों कहा जाता है ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए इस शताब्दी में स्थापित कुछ प्रमुख समिंतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध (बाद का समय) की युग को सभा-समितियों का युग कहा जाता है, क्योंकि इस काल में 1857 ई० की क्रान्ति के बाद मध्यमवर्गीय भारतीय जनता ने महसूस किया कि बिना संगठित राजनैतिक संगठन के अंग्रजों के विरूद्ध न लड़ा जा सकता है, और न इन्हें भारत के बाहर खदेड़ा जा सकता है। अतः राजनैतिक सभा-संगठन और समितियों की आवश्यकता को महसूस करते हुए अनेको राजनीतिक संगठन जैसे – जमींदार संगठन, बम्बई एसोसियेशन, बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी, हिन्दू मेला, डक्कन एसोसियेशन, मद्रास एसोसियेशन, भारतीय सभा, पूना सार्वजनिक सभा जैसे सैकड़ो संगठन की स्थापना हुई इसलिए डॉ० अनिल सेन ने 19 वी सदी को समितियों का युग कहा है।

19 वीं शताब्दी में स्थापित प्रमुख समितियाँ : डॉ॰ अनिल सेन ने 19 वी शताब्दी को समितियों का युग कहा है । उनमें से कुछ प्रमुख सभा-समितियों और संगठन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
i. बंग भाषा प्रकाशिका सभा : इस सभा की स्थापना 1836 ई० में राजा राममाहन राय और गौरी शंकर वांगोस ने कलकत्ता में की थी। इस सभा को बंगाल का प्रथम राजनैतिक संगठन माना जाता है। इसकी स्थापना का उद्देश्य सरकारी क्रियाकलापी नीतियों की समीक्षा कर उसमें सुधार लाने के लिए ब्रिटिश सरकार के पास प्रार्थना पत्र भेजना था, आगे चल कर ये संस्था देश के विभिन्न भागों में राजनीतिक संगठन स्थापित करने और ब्रिटिश सरकार के शोषण और अत्याचार को जनता के बीच कर उनमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ii. जमींदार सभा : ह्यूडोर डेकेन्स नामक अंग्रेज वकील के सलाह पर 1838 ई० में द्वारिकानाथ टैगोर और राधाकान्त देव ने बंगाल के जमींदारों के अनुरोध पर जमींदारी सभा की स्थापना कलकत्ता में की थी, इसका उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना, भारतीय जनता के लिए सरकार से कुछ राजनीतिक अधिकार व सुविधाएँ प्राज्त करना था। ये देश का पहला राजनीतिक संगठन माना जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम देश में राजनीतिक एवं सांविधानिक सुधारों की माँग शुरू की। यद्यपि यह संगठन जमीदारो एवं धनी वर्गों का संगठन था तथापि इसने किसानों और प्रजा के हित के लिए भी कई कार्य किये।

iii. भारतीय सभा (Indian Association) : भारतीय सभा की स्थापना 1876 ई० में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और आनन्द मोहन बोस ने कलकत्ता के एलबर्ट हॉल में की थी। यह देश में कांग्रेस की स्थापना से पूर्व पूरे देश का महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली संगठन था।
इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है –
(a) देश के लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना।
(b) सभी जाति, धर्म, सम्पदाय के लोगों में एकता स्थापीत करना।
(c) सिविल सर्विस परीक्षा में भारतीयों के साथ किये जाने वाले भेद-भाव का विरोध करना था।

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने पूरे देश में श्रमण कर सिविल-सर्विस परीक्षा के स्थान, तौर-तरीकों, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, इलबर्ट बिल-विवाद जैसे विषयों को लेकर पूरे देश में प्रचार और आन्दोलन किया तथा अपने द्वारा सम्पादित ‘बंगाली’ समाचार पत्र को मुख्य हथियार के रूप में प्रयोग किया। अन्त: 1885 ई० में इस संगठन का कांग्रेस में विलय कर दिया गया।

iv. हिन्दू मेला : बंगाल के महान राष्ट्रेमी राज नारायण बोस के चर्चित शिष्य नव गोपाल मित्र ने 1867 ई० में कलकत्ता में हिन्दू मेला नामक संगठन की स्थापना की। यह मूल रूप से एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन था, इसकी स्थापना का उद्देश्य देश के युवाओं में खेल-कूद, कला, शिक्षा, कुश्ती, सांस्कृतिक प्रतियोगिता आदि के माध्यम से युवाओं में अपनी भाषा सभ्यता और संस्कृति के प्रति रूचि पैदा करना, उसे श्रेष्ठ बनाने का निर्माण करना, और उनमें राष्ट्रीयता और देश-प्रेम की भावना को जागृत करना और राष्ट्र के नव निर्माण में योगदान देना था।

v. थियूसोफिकल सोसाइटी : मूलतः इस सोसायटी की स्थापना 1856 ई० में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में रूसी महिल एच० पी० ब्लावटिस्ट तथा अमेरिका कर्नल अर्कात् ने की थी। थियोसाफिकल शब्द ग्रीक भाषा के ‘धियोमोफिया’ से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘ईश्वर का ज्ञान’। इस संस्था ने भारत के धर्म, शिक्षा और संस्कृति से प्रभावित होकर 1882 ई० में कर्नल अर्कात् ने इसकी एक शाखा मद्रास में स्थापित की जिसका उद्देश्य भारत के लोगों में राष्ट्रीय गौरव और भाईचारे की भावना का विकास करना था। आगे चलकर यह संस्था भारत में सामाजिक एवं राजनीतिक सुधार एवं जागरण का प्रमुख केन्द्र बन गई।

1893 ई० में विवेकानन्द जी ने भारत के प्रतिनिधि के रूप में न्यूयॉर्क के विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया और उनके विचारों से प्रभावित होकर आयरलैण्ड की महिला श्रीमती Annie Besant भारत आयी। वह पहले ही इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्य बन चुकी थी, उनका भारत के वेदों, संस्कृति और विवेकानन्द के विचारों से विशेष लगाव था, वे भारत आने के बाद ईसाई धर्म को छोड़कर हिन्दू धर्म को ग्रहण की और जीवन भर हिन्दू धर्म, समाज और माँ भारती की सेवा करती रही,

उन्होंने 1913 ई० में ‘भारतीय स्वराज लीग’ नामक संगठन की स्थापना की, और उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर 1916 ई० में होमरूल आन्दोलन की शुरूआत की, जिससे देश के लोगों में राजनीतिक भावना जागृत हुई, उनके इसी अमूल्य योगदान को देखते हुये 1917 ई० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया, जो कांग्रेस पार्टी की पहली महिला अध्यक्ष थी, इस प्रकार थियोसोफिकल सोसायटी और भारत में उसके अध्यक्ष एनी बेसन्ट ने मरते दम तक मातृभूमि की रक्षा और देश की स्वतंत्रता के लिये कार्य करती रही।

vi. एसियाटिक सोसाइटी : 1784 ई० में सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना कलकत्ता में की थी। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य भारत में पथ्चिमी ज्ञान-विज्ञान का प्रचार करना था, आगे चलकर यही संस्था देश का पहला संग्रहालय बना जो आज ‘भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय’ के नाम से जाना जाता है। इसमें इतिहास, राजनीति, धर्मविज्ञान, जीव जन्तुओं एवं अन्य ज्ञानोपयोगी वस्तुओं का संग्रह करके रखा गया है, जो विभिन्न क्षेत्रों में शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए अधिक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 4 संगठनात्मक क्रियाओं के प्रारम्भिक चरण : विशेषताएँ तथा विश्लेषण

प्रश्न 4.
भारत की क्रान्तिकारी समितियों के रूप में ‘इण्डियन एसोसिएशन’ का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। अथवा, राजनैतिक समिति के रूप में ‘इणिडयन एसोसिएशन’ की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
भारत की क्रान्तिकारी गुप्त समितियों के रूप में ‘इण्डियन एसोसिएशन’ की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। 18 वों सदी के अन्त तक तथा 19 वीं सदी के प्रारम्भ में भारत में कई गुप्त समितियों का अविर्भाव हुआ था। इनमें से ही एक ‘इण्डियन एसोसिएशन’ थी। यह संस्था भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करती थी। ऐसे तो हमलोग जानते हैं कि भारत में 19 वीं सदी के प्रारम्भ का समय ‘समितियों का समय’ माना जाता है।

डों० अनिल सेन ने इस समय को ‘समितियों का युग’ (Age of Association) से विभूषित किये थे। सभी संस्थाएँ भारत में अंग्रेजी प्रभाव को कम करने के लिए ही बनी थी जिसका एक ही मकसद था, देश से अंग्रेजों को भगाना। इसी संदर्भ में सभी समितियों या संस्थाओं को गठित किया गया था। इन सभी संख्थाओं में ‘भारत सभा’ (Indian Association) ने देश को आजादी दिलाने में अथक प्रयत्न किया। गुप्त समिति के रूप में तथा देश को आजादी दिलाने के संदर्भ में भारत सभा की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

भारत सभा (Indian Association) : भारत में गुप्त समितियों के रूप में ‘भारत सभा’ की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनजीं तथा आनन्द मोहन बोस ने सन् 1876 में अल्बर्ट हॉल (Elbert Hall), कलकत्ता में किये। ‘भारत सभा’ के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी माने जाते थे, जबकि आनन्द मोहन बोस इसके सचिव माने जाते थे। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस संस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शाख्ती तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे।

‘भारत सभा’ के निर्नलिखित उद्देश्य थे, जिनमें –

  1. सम्पूर्ण देश में लोकमत का निर्माण करना
  2. हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता एवं मैत्री को स्थापित करना।
  3. सामूहिक आन्दोलनों में किसानों का सहयोग प्राप्त करना। तथा
  4. विभिन्न जातियों में एकता के सूत्र को संचार करना एवं उनके सहयोग को प्राप्त करना इत्यादि।

इस संस्था के विभिन्न शाखाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी। जैसे- आगरा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ एवं लाहौर इत्यादि।
‘भारत सभा’ के उद्देश्य का क्षेत्र केवल इंतना तक ही सीमित नहीं था, इस संस्था के नेतृत्व में कई आन्दोलन चलाये गये, जो इनका प्रमुख उद्देश्य भी माना जाता था। ये आन्दोलन कुछ इस प्रकार के थे-
1. सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन : ‘भारत सभा’ के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सिविल सर्विस परीक्षा को भारत में आयोजित किये जाने के उद्देश्य से सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन चलाये। जब लार्ड सेल्वरी ने भारतीयों को ‘इण्डियन सिविल सर्विस’ की परीक्षा से वंचित करने के उद्देश्य से परीक्षा में बैठने की उम्म 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दिया, तो सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने उम्र 19 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिए आन्दोलन चलाया।

2. वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विरोधी आन्दोलन : भारत सभा के संस्थापक सुरन्द्रनाथ एवं उनके साथियों नें मिलकर वर्नाक्यूलर प्रेंस एक्ट विरोधी आन्दोलन चलाये। जब लार्ड लिटन ने सन् 1878 ई० में यह एक्ट लागू कर भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, तब इसके विरोध में ‘भारत सभा’ ने यह आन्दोलन चलाया।
इसके अंतिरिक्त ‘भारत सभा’ ने और कई आन्दोलन चलाये, जिनमें आर्म्स एक्ट तथा इल्बर्ट बिल आद्य महत्वपूर्ण माना जाता है।

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प्रश्न 5.
‘भारतमाता’ के चित्र एवं ‘गोरा’ उपन्यास के द्वारा भारतीयों में राष्ट्रीयता का विकास किस प्रकार हुआ?
या
भारतीय साहित्यिक कृतियों तथा चित्रकला के रूप में ‘भारतमाता’ के चित्र एवं ‘गोरा’ उपन्यास का वर्णन करें। 4 + 4 = 8
उत्तर :
भारतीय साहित्यिक कृतियों तथा चित्रकला के रूप में ‘भारतमाता’ के चित्र एवं ‘गोरा’ उपन्यास की भूमिका को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दोनों कृतियों ने भारतीय राष्ट्रीयता को भारतवासियों के मध्य संचार किया है। 19 वी शताब्दो के प्रारम्भ में इन दोनों कृतियों ने भारतवासियों के भीतर राष्ट्रवाद की भावना को भरा है। राष्ट्रवाद की भावना को जन्म देने का कार्य कई और पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों ने किया जिनमे अमृत बाजार पत्रिका, द हिन्दु, स्वंदेश मित्रम इण्डियन मिरर, सोम प्रकाश, संवाद प्रभाकर तथा संजीवनी आदि प्रमुख थे।

इन सभी पत्र-पत्रिकाओं ने भारतवासियां के भीतर राष्ट्रवाद, देश प्रेम एवं देश- भक्ति आदि की भावनायें जागृत करने में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। ठीक इसी भॉन ‘गारा उपन्यास एवं ‘भारतमाता’ का चित्र ने भी भारतीयों के भीतर राष्ट्रवाद, देश-प्रेम एवं देश- भक्ति की भावना का जागृत किये हैं तथा अपने देश को अंग्रेजों के बंधनों से मुक्त कराने का प्रयास किये। 19 वी सदी के प्रारम्भ में ये भावनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गयी और चारों तरफ भारतीय साहित्यिक कृतियों की बोल-बाला होने लगा।

‘भारतमाता’ का चित्र : 19 वीं शताब्दी में चित्रित इस चित्र ने भारतवर्ष में राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार किया। संन् 1905 में अवनीन्द्रनाथ टैगोर जी ने ‘भारतमाता’ का एक चित्र बनाया जी विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे- ‘भारताम्ब्रा’ (Bharatamba) और ‘बंगमाता’ (Bangmata) आदि। ये चित्र भारतवासियों को जागृत करने के लिए बनाया गया था।

जब अंग्रेज हमारे भारतवासियों को अपना गुलाम बना लिये थे तथा उन पर घोर अत्याचार किया जा रहा था, तब अवनीन्द्रनाथ टैगोर जी ने ऐसे मुश्किल समय में भारतीयों को जाग्रत करने तथा अंग्रेजों से अपने देश को मुक्त कराने के लिए ‘भारतमाता’ का चित्र बनाये थे। अवनीन्द्रनाथ टेगोर जी एक महान् चित्रकार तथा लेखक थे। वे गगननेन्द्रनाथ ट्रेगोर जी के छोटे भाई तथा विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के भतीजे थे।

अवनीन्द्रनाथ की ‘भारतमाता’ के चित्र में दर्शाया गया है कि भारतमाता गेरुवा वस्त धारण किये हुए है, हाथां में त्रिशुल लिये हैं तथा साथ में दुष्टों को नाश हेतु शेर भी है। अर्थात् भारतमाता की ऐसे चित्र को देखकर समस्त भारतवासियों के भीतर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति की भावना जागृत हो उठती है, जो राष्ट्रवाद के विकास का प्रतीक माना जाला है। इसी संदभ्भ में सन् 1936 में सर्वपथम वाराणसी में ‘भारतमाता’ का एक मन्दिर भी स्थापित किया गया, जिसका उद्धाटन स्वय महात्मा गाँधी जो ने किया था। इसके बाद से ही समस्त भारतवासी अपने जूलुसों, हड़तालों तथा समारोहों में ‘भारतमाता’ के चित्र का उपयोग बढ़-चढ़कर करने लगे।

‘गोरा’ (Gora) उपन्यास : ‘गोरा’ उपन्यास एक आकर्षक प्रेम-कथा की विषय-वस्तु है। जिसमे ‘गोरा’ एक प्रमुख नायक के तौर पर है और इसी के नाम पर ‘गोरा’ नाम शीर्षक के रूप में रखा गया है। इस उपन्यास का शीर्षक ‘गोरा’ (Gora) का साहित्यिक अर्थ है ‘गौर वर्ण या जाति’ का व्यक्ति। इस उपन्यास की रचना महान विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैंगोर जी ने सन् 1909 ई० में किया। यह उपन्यास उनके द्वारा रचित बारह (12) उपन्यासों में सें एक है। यह काफी जटिल उपन्यास माना गया है।

‘गोरा’ उपन्यास में एक श्यामल वर्ण के व्यक्ति का वर्णन किया गया है, जो बंगाल नामक प्रदेश में रहता है। इस उपन्यास के आरम्भ से लेकर अन्त तक गोरा, जो कि इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, को हिन्दू रीति-रिवाजों को मानते एवं पूजापाट करते दिखाया गया है। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी मूलतः एक कवि थे। उनकी बहुर्चर्चित काव्यमयी रचना ‘गोनार्जालि’ पर उन्हें 1913 ई० में विश्य का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। उन्होंने अपनी इस रचना में सामाजिक एवं राजनैतिक रूप, सामाजिक जीवन एवं बुराइयां, बंगाली संस्कृति, राष्ट्रीयता की भावना एवं मित्रता आदि को दर्शाये है –
रवीन्द्रनाथ जी की ‘गोरा’ उपन्यास की रचना देश के तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा आर्थिक दृश्यों की भूमि पर किया गया है।

अत: इससे प्रतीत होता है कि भारतीय साहित्यिक कृतियों एवं चित्रकला के रूप में ‘भारतमाता’ का चित्र एवं ‘गोरा’ उपन्यास की महत्वपूर्ण भूमिका है जिसने देश के केवल नौजवानों को ही नहीं बल्कि समस्त भारतवासियों के अन्दर देशप्रेम एवं देशभक्ति की भावना को भर दिया है।

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प्रश्न 6.
महारानी विक्टोरिया के घोषणा-पत्र की प्रमुख शर्तें क्या थीं?
उत्तर :
सन् 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसी विद्रोह ने अंग्रेजी सरकार की कमर तोड़ दी थी तथा भारतवासियों में एक जजबा भरी स्वतंत्रता को जन्म दे दिया था। 1857 ई० के विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीय प्रशासनिक मामलों में कई प्रकार के परिवर्तन किये गये और इन परिवर्तनों के आधार पर महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र भी था। गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट, 1858 ई० द्वारा किये गये परिवर्तनों की विधिवत घोषणा 1 नवम्बर, 1858 ई० को इलाहाबाद के मिण्टो पार्क में लार्ड कैनिंग के द्वारा किया गया। इस घोषणा पत्र में विभिन्न बाते कही गयो। जिनमें –
भारतीय शासन की बागडोर ईस्ट इण्डिया से निकलकर इंग्लैण्ड सरकार के हाथों में चली गयी, जिसके तहत घोषणापत्र में वायसराय उपाधि का प्रयोग प्रथम बार हुआ। गवर्नर जनरल का पद भारत सरकार के विधायी कार्य का प्रतीक था तथा सम्राट का प्रतिनिधित्व करने के कारण उसे वायसराय कहा गया, अर्थात् भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय बन गया।

विक्टोरिया की घोषणापत्र में कुछ महत्वपूर्ण नीतियों को स्पष्ट किया गया था। इसका प्रथम भाग राजाओं से संबंधित था। इसमें उनके क्षोभ को शान्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजी राज्य की अपहरण नीति या राज्य हड़प नीति के त्याग की बात कही गई, जिसकी चर्चा ‘सहायक संधि नीति’ एवं ‘जब्ती के सिद्धान्त’ नामक अध्याय में की गई है।

भारतीय जनता के लिए धार्मिक सहनशीलता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। घोषणा में भारतवासियों पर ईसाई धर्म थोपने की इच्छा एवं अधिकारी का स्वत्व भी त्याग दिया गया। इसमें स्पष्ट किया गया है कि भारतीय जनता के धार्मिक जीवन में किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। इस क्षेत्र में अधिकारियों द्वारा किया गया आज्ञा का उल्लंघन रानी की अत्यधिक अप्रसन्नता का कारण होगा।

घोषणापत्र में कहा गया कि शिक्षा, योग्यता एवं ईमानदारी के आधार पर बिना जाति या वंश का ध्यान रखे लोक सेवाओं में जनता की भर्ती की जाय।

भारतीय परम्परागत अधिकारों, रीतिरिवाजों तथा प्रथाओं के सम्मान का उल्लेख किया गया। भारतीय नागरिकों को उसी कर्त्तव्य एवं सम्मान का आश्रासन दिया गया जो सम्राट के अन्य नागरिकों को प्राप्त थे।

भारत में आन्तरिक शान्ति स्थापित होने के बाद उद्योगों की स्थापना में वृद्धि, लोक-कल्याणकारी योजना, सार्वजनिक कार्य तथा प्रशासन व्यवस्था का संचालन समस्त भारतीय जनता के हित में किये जाने की बात कही गई।

विधि निर्माण के समय प्राचीन परम्पराओं एवं व्यवहार को भी ध्यान में रखा जाये। इसी तरह उत्तराधिकार एवं भूसम्पत्ति के मामले में भी पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाय। दूसरे शब्दों में पैतृक भूमि से लगाव को दृष्टिगत रखते हुए भारतवासियों के परम्परागत अधिकारों की रक्षा का आधासन दिया गया। भूमि के अधिकारों को तब तक निभाने की बात कही गई जब तक शासन द्वारा लगाये गये कर (Tax) का भुगतान कृषक वर्ग करता रहे।

भारतीय सैनिकों की संख्या और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात विद्रोह के पूर्व $5: 1$ था जिसे घटाकर $2: 1$ कर दिया गया। विद्रोह के समय भारतीय सैनिकों की संख्या 2 लाख 38 हजार थी जो घटकर 1 लाख 40 हजार हो गई।

भारत की देखभाल के लिए एक नये अधिकारी ‘भारतीय राज्य सचिव’ (Secretary States of India) की नियुक्ति की गई तथा इनकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद’ बनाई गई। इनमें 8 सदस्यों की नियुक्ति सरकार द्वारा एवं 7 की ‘कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स’ द्वारा होनी तय की गई।

इस प्रकार घोषणा में 1857 ई० के विद्रोह के लिए जिम्मेदार, भारतीय नरेशों की अंग्रेजी राज्य की अपहरण नीति, भारतीयों को बलपूर्वक ईसाई बनाने का भय, कृषकों तथा भू-स्वामियों की भूमि अपहरण की शंका के समाधान का प्रयास किया गया । अत: उपर्युक्त व्याख्या से यह देखा जाता है कि 1857 ई० के विद्रोह के परिणामस्वरूप महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र को जारी किया गया था जिसके तहत भारतवासियों के पक्ष एवं विपक्ष में बहुत सारी शर्तें या बाते कही गयी थी जो महत्वपूर्ण मानी जाती थी।

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प्रश्न 7.
भारत के तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर ‘गोरा’ उपन्यास का क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर :
‘गोरा’ उपन्यास महान विश्व कवि ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ द्वारा रचित एक जटिल उपन्यास है जिसकी रचना इन्होने सन् 1909 में किया गया था। इन्होंने ‘गोरा’ उपन्यास का गठन देश के तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक दृश्यों की भूमि पर किये हैं। इसी कारण इस उपन्यास के नायक गोरा में हम दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण तथा ऐनी बेसेंट की भूमिका को पाते हैं।

‘गोरा’ उपन्यास में एक श्यामल वर्ण के व्यक्ति का वर्णन किया गया है, जो बंगाल नामक प्रदेश में रहता है। टैगोर जी ने अपनी रचना में सामाजिक एवं राजनैतिक रूप, सामाजिक जीवन एवं बुराईयाँ आदि का वर्णन किये हैं।

‘गोरा’ उपन्यास ने हिन्दू समाज के विभिन्न बुराईयों तथा महिलाओं के ऊपर हुए अत्याचार को प्रदर्शित किया है। जो तत्कालीन भारत के सामाजिक स्थिति पर प्रभाव डालता है और जिसके माध्यम से ‘गोरा’ नायक हिन्दू धर्म की तमाम संकीर्णताओं को तोड़कर देशभक्त हो जाता है।

इतना ही नहीं, टैगोर जी ने विधवाओं की नारकीय जीवन का वर्णन ‘हरिमोहिनी’ पात्र के द्वारा किये हैं, जिसमें कहा गया है कि बंगाली संस्कृति में प्रेम-विवाह वर्जित है। इन्होंने भारतीय बंगाली समाज में प्रेम-विवाह की भावना को भी जन्म दिये है तथा मध्यम वर्गों को सम्मानित स्थान दिये हैं।

तत्कालीन भारत के राजनीतिक स्थिति पर ‘गोरा’ उपन्यास का जबर्दस्त प्रभाव पड़ा है। टैगोर जी ने अपने उपन्यास में भारतवासियों के प्रति राष्ट्रवाद की भावना को दर्शायें है, जो स्वतंत्रता के मार्ग को दिखलाती हैं। उस समय बंगाल लाई कर्जन के बंग-भंग की छाया से ओत-प्रोत होकर गुजर रहा था। ऐसे समय में टैगोर जी की इस उपन्यास ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया, जो उनके लिए अनमोल था।

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प्रश्न 8.
आनन्दमठ उपन्यास की पृष्ठभूमि एवं प्रमुख पात्रों के क्रिया-कलापों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वप्रमुख स्थान ‘आनन्दमठ’ की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद के विकास को जन्म दिया। इस कृति की रचना बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 1872 ई॰ में किया। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था।

‘अनन्दमठ’ एक उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभूमि की शुरूआत 1771 ई० के बंगाल के अकाल के समय से होती है। यह अकाल वास्तव में सन् 1770 में आया था, परन्तु इसका संचयन सन् 1771 में किया गया।

इस उपन्यास के मुख्य पात्रों में ‘महेन्द्र’ और ‘कल्याणी’ हैं। इतना ही नहीं, 18 वीं शताब्दी के सन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है-तथा भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वन्देमातरम्’ भी सर्वपथम इस उपन्यास में ही प्रकाशित किया गया था।

सन् 1770 के बंगाल के अकाल के समय ‘महेन्द्र’ तथा ‘कल्याणी’ तड़प रहे थे, कष्ट से तिलमिला रहे थे। उन दोनों की दशा बहुत ही खराब थी। कल्याणी जंगल में घूमने वाले शिकारियों से बचने के लिए घने जंगल में अपने नवजात शिशु को लंकर भागी जाती है। एक नदी के किनारे बेहोश होकर गिर जाती है। जब उसे होश आता है तो अपने आप को एक हिन्दू भिक्षु संत सत्यानन्द के पास पाती है। संत सत्यानन्द कल्याणी एवं उसके नवजात शिशु की सहायता करता हैं। जब महेन्द्र अपनी पत्नी कल्याणी एवं बच्चे से मिलता है और संत सत्यानन्द के बारे में जानता है, तो बहुत ही प्रभावित होता है तथा वे एक-दूसरे के प्रति मानवता की कसम लेते हैं।

सन्यासियों की ऐसी प्रवृत्ति को देखकर महेन्द्र दंग रह जाता हैं। वह भी सन्यासी की मदद करना चाहता हैं। जब सन्यासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किये तब महेन्द्र तथा उसका पुत्र उनका साथ दिये, वे भी अंग्रेज के विरोधी हो गये। अतः इस विद्रोह में सन्यासी का नेतृत्व महेन्द्र करता है और वह वीरतापूर्वक अंग्रेजों से लड़ाई करता है। परन्तु सन्यासियों की कमजोर नीति के कारण सन्यासी विद्रोह का दमन हो जाता है।

उपर्युक्त विवेचन से हम पाते हैं कि बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में पूर्ण रूप से संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है जो अंग्रेज विरोधी आन्दोलन था।

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