Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 History Book Solutions Chapter 2 सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 10 History Chapter 2 Question Answer – सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
‘ग्रामवार्ता प्रकाशिका’ के सम्पादक कौन थे ?
उत्तर :
हरिनाथ मजुमदार।
प्रश्न 2.
साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना किस वर्ष में हुई थी ?
उत्तर :
1878 ई० में।
प्रश्न 3.
वर्ण परिचय किसने लिखा है ?
उत्तर :
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने।
प्रश्न 4.
बंगाल तकनीकी संस्थान की स्थापना किस वर्ष में हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1906 ई० में।
प्रश्न 5.
लीला नाग (राय) किस संस्था से जुड़ी थी ?
उत्तर :
लीला नाग ‘दिपाली संघ’ संस्था से जुड़ी थी जिसकी स्थापना उन्होंने ही 1923 ई० में ढाका में की थी।
प्रश्न 6.
किस पत्रिका को ग्रामीण समाचार पत्रों का जन्मदाता कहा जाता है ?
उत्तर :
ग्रामवार्ता प्रकाशिका को।
प्रश्न 7.
भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
चार्ल्स ग्राण्ट को।
प्रश्न 8.
एक प्राच्यवादी शिक्षा समर्थक का नाम लिखिए।
उत्तर :
एच०एच०विल्सन।
प्रश्न 9.
‘भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा’ (महान घोषणा) किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
चार्ल्स वुड के घोषणा (डिस्पैच) को।
प्रश्न 10.
देरेजियों के अनुयायी क्या कहलाते थे ?
उत्तर :
युवा बंगाल।
प्रश्न 11.
एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना किसने और कब किया ?
उत्तर :
सर विलियम जोन्स ने, 1784 ई० में।
प्रश्न 12.
ललन फकीर कौन थे ?
उत्तर :
ललन फकीर बंगाली बाउल संत, फकीर, गीतकार, समाज सुधारक तथा चिंतक थे।
प्रश्न 13.
देरोजियो कौन थे ?
उत्तर :
देंरोजियो हिन्दू कॉलेज के प्राध्यापक एवं यंग या तरुण बंगाल के संस्थापक थे।
प्रश्न 14.
‘दादन’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
नील की खेती के लिए दिया जाने वाला अग्रिम धन राशि को दादन कहा जाता था।
प्रश्न 15.
पश्चिम बंगाल का कौन-सा क्षेत्र जंगल महल के नाम से जाना जाता है ?
उत्तर :
पश्चिम मिदनापुर।
प्रश्न 16.
‘शब्द कल्पद्रुम’ किसने प्रकाशित किया ?
उत्तर :
राजा राधाकांत देब ने।
प्रश्न 17.
आदि ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
देवेन्द्रनाथ टैगोर ने।
प्रश्न 18.
कलकत्ता विश्व विद्यालय के प्रथम उप-कुलपति कौन थे ?
उत्तर :
सर जेम्स विलियम कोलविन (Sir James William Colvine) कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रथम उप-कुलपति थे।
प्रश्न 19.
बोस संस्थान की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1917 ई० में ।
प्रश्न 20.
हाजी मुहम्मद मोहसीन कौन थे ?
उत्तर :
हाजी मुहम्मद मोहसीन बंगाल के फराजी आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
प्रश्न 21.
हिन्दू पैट्रियट पत्रिका का सम्पादन कार्य कब और किसके नेतृत्व में आरम्भ हुआ था ?
उत्तर :
1853 ई० में मधुसूदन राय, श्री नाथ घोष, गिरिशचन्द्र घोष के नेतृत्व में।
प्रश्न 22.
विजय कृष्ण गोस्वामी कौन थे ?
उत्तर :
विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के धर्म एवं समाज सुधारकों में से एक थे।
प्रश्न 23.
“सती” प्रथा को किसने और कब अवैध घोषित किया ?
उत्तर :
राजा राममोहन राय के प्रयास से ब्रिटिश सरकार ने, 1829 ई० में अवैध घोषित किया ?
प्रश्न 24.
समाचार चंद्रिका का प्रकाशन किसने किया ?
उत्तर :
समाचार चंद्रिका का प्रकाशन भवानी चरण बंद्योपाध्याय ने किया।
प्रश्न 25.
विधवा पुर्नविवाह कानून को किसने और कब पास करवाया।
उत्तर :
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा, 13 जुलाई 1856 ई० में।
प्रश्न 26.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने और कब किया ?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द ने, 1897 ई० में।
प्रश्न 27.
कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी।
उत्तर :
24 जनवरी 1857 ई० में।
प्रश्न 28.
नव विधान ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
नव विधान ब्रह्म समाज की स्थापना केशवचन्द्र सेन ने की।
प्रश्न 29.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1887 ई० में।
प्रश्न 30.
बेथुन स्कूल की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1849 ई० में।
प्रश्न 31.
राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1934 ई० में।
प्रश्न 32.
वुड्स डिस्पैच कब और किसने प्रकाशित किया ?
उत्तर :
सन् 1854 में चार्ल्स वुड ने।
प्रश्न 33.
हण्टर आयोग का गठन किसने किया ?
उत्तर :
विलियम हण्टर ने।
प्रश्न 34.
भारत की प्रथम महिला डाक्टर (चिकित्सक) कौन थी ?
उत्तर :
आनन्दी गोपाल जोशी।
प्रश्न 35.
वामाबोधिनी पत्रिका का सम्पादन कब आरम्भ हुआ ?
उत्तर :
अगस्त 1863 ई० में हुआ।
प्रश्न 36.
वामाबोधिनी मासिक पत्रिका का प्रकाशन किसने किया ?
उत्तर :
उमेशचन्द्र दत्त जी ने।
प्रश्न 37.
पाश्चात्यवादी कौन कहे जाते थे ?
उत्तर :
पहला दल जो भारतीय शिक्षा पद्धति का गठन करता है उसे पाश्चात्यवादी कहा जाता है।
प्रश्न 38.
बनारस विशविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1916 ई०।
प्रश्न 39.
1813 ई० के चार्टर एक्ट में क्या व्यवस्था की गई ?
उत्तर :
1813 ई० के चार्टर एक्ट में इसाई धर्म के प्रचारकों को भारत में इसाई धर्म प्रचार करने की अनुमति दी गई ।
प्रश्न 40.
मधुसूदन गुप्त जी कौन थे?
उत्तर :
मधु सूदन गुप्त जी एक भारतीय डाक्टर थे जिन्होंने सर्वपथम पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान में प्रशिक्षण प्राप्त किया।
प्रश्न 41.
पूना कॉलेज की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1851 में।
प्रश्न 42.
ब्रह्म मैरेज एक्ट कब पास हुआ ?
उत्तर :
1872 ई० में।
प्रश्न 43.
नील दर्पण के रचयिता कौन थे ?
उत्तर :
दीनबंधु मित्र।
प्रश्न 44.
ग्रामवार्ता पत्रिका कब और किसने प्रकाशित किया ?
उत्तर :
1863 ई० में हरिनाथ मजुमदार ने।
प्रश्न 45.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर :
1820 ई० में, मिदनापुर जिला के वीरसिंह ग्राम में हुआ।
प्रश्न 46.
राजा राममोहन राय का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर :
1772 ई० में बंगाल के हुगली जिला के राधानगर ग्राम में हुआ।
प्रश्न 47.
डेविड हेयर का जन्म कब हुआ।
उत्तर :
1775 ई० में।
प्रश्न 48.
मधुसूदन गुप्ता जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर :
15 नवम्बर 1800 ई० को बंगाल के हुगली जिला में।
प्रश्न 49.
रामकृष्ण परमहंस का देहांत कब हुआ ?
उत्तर :
16 अगस्त, 1886 ई० में।
प्रश्न 50.
रामकृष्ण परमहंस का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर :
18 फरवरी 1836 ई० में बंगाल के हुगली जिले में हुआ।
प्रश्न 51.
राजा राममोहन राय की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर :
1833 ई० में।
प्रश्न 52.
मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1916 ई० में।
प्रश्न 53.
पटना विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1917 ई० में।
प्रश्न 54.
लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1925 ई० में।
प्रश्न 55.
पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1882 ई० में।
प्रश्न 56.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1887 ई० में।
प्रश्न 57.
‘एग्रीकलचरल हार्टीकलचर सोसाइटी ऑफ इण्डिया’ की स्थापना कब हुई।
उत्तर :
1817 ई० में।
प्रश्न 58.
सेंट जॉन्स कॉलेज की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1852 ई० में।
प्रश्न 59.
रूड़की इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1847 ई० में।
प्रश्न 60.
कलकत्ता मेडिकल ऐण्ड फिजिकल सोडायटी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1828 ई० में।
प्रश्न 61.
भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1934 ई० में।
प्रश्न 62.
मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1875 ई० में।
प्रश्न 63.
दो प्राच्यवादी समर्थकों के नाम बताइए।
उत्तर :
एच०टी० प्रिंसेप और एच०एच०विल्सन आदि।
प्रश्न 64.
दो आंग्लवादी समर्थकों के नाम बताइए।
उत्तर :
लार्ड मैकाले और मुनरो आदि।
प्रश्न 65.
ऊस्मानिया विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1918 ई॰ में।
प्रश्न 66.
अलीगढ़ विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
सन् 1925 ई० में।
प्रश्न 67.
अजमेर तथा पंजाब में मेडिकल कॉलेज की स्थापना कब हुइ ?
उत्तर :
सन् 1847 ई० में तथा सन् 1861 ई० में।
प्रश्न 68.
पूसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने और कहाँ की ?
उत्तर :
लार्ड कर्जन ने दिल्ली में।
प्रश्न 69.
देरोजियो के द्वारा सम्पादित पत्रिकाओं के नाम बताइए।
उत्तर :
हैस्पेरस, कलकत्ता साहित्यिक गजट, ईस्ट इण्डिया व इण्डिया गजट आदि।
प्रश्न 70.
विधवा पुनर्विवाह सभा की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
विष्णु शाख़ी पंडित ने 1850 ई० में की।
प्रश्न 71.
वैद्यक की डिग्री किसने प्राप्त की ?
उत्तर :
पं० मधुसूदन गुप्ता ने।
प्रश्न 72.
हिन्दू पैट्रियाट की रचना किसने की ?
उत्तर :
हिन्दू पैट्रियाट की रचना हरिश्चन्द्र मुखर्जी ने की।
प्रश्न 73.
‘ग्रामवार्ता प्रकाशिका’ सर्वप्रथम कब प्रकाशित की गई ?
उत्तर :
ग्रामवार्ता प्रकाशिका सर्वप्रथम 1863 ई० में प्रकाशित की गई।
प्रश्न 74.
‘हुतोम पेंचार नक्शा’ का प्रथम एवं द्वितीय भाग कब प्रकाशित हुआ ?
उत्तर :
हुतोम वेचार नक्शा का प्रथम एवं द्वितीय भाग 1863 और 1864 ई० में प्रकाशित हुई।
प्रश्न 75.
बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना जोनाथन डंकन द्वारा 1792 ई० में की गई।
प्रश्न 76.
लार्ड विलियम बेंटिक कौन था ?
उत्तर :
लार्ड विलियम बेटिंक भारत का पहला गर्वनर जनरल था।
प्रश्न 77.
कलकत्ता में हिन्दू बालिका स्कूल किसने स्थापित किया ?
उत्तर :
कलकत्ता में हिन्दू बालिका स्कूल की स्थापना ड्रिकवाटर बेथुन ने किया।
प्रश्न 78.
बंगाल में नवजागरण का विस्तार किसने किया ?
उत्तर :
राजा राममोहन राय ने विस्तार किया।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
मधुसूदन गुप्त कौन थे ?
उत्तर :
मधुसूदन गुप्त प्रथम भारतीय थे, जिन्होने सामाजिक कुसंस्कारो को तोड़कर 10 जनवरी 1836 को कलकत्ता मेंडिकल कॉलजे में शव का चीर-फाड़ (अन्त्य परीक्षण) किया था । इन्होने संस्कृत में ज्ञान प्राप्त करने के बाद 1926 ई० में कॉलेज के बैधक श्रेणी में भर्त्ती हो गये और पश्चिमी चिकित्साशास्त्र का अध्ययन शुरू किया था ।
प्रश्न 2.
‘मैकाले मिनिट’ क्या है ?
उत्तर :
1813 ई० के ब्रिटिश संसद के आज्ञा-पत्र के बाद भारत में ‘जन शिक्षा समिति’ के अधिकारियों के बीच प्राच्य एवं पाश्चात्य शिक्षा के विकास को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद को दूर करने के लिए 1934 ई० में मैकाले समिति गठित हुई। 1935 ई० में मैकाले ने अपने ‘विवरण पत्र’ में प्राच्य शिक्षा को महत्वहीन बताते हुए ज्ञान-विज्ञान आधारित अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने तथा यह शिक्षा समाज के उच्च वर्ग से निम्न वर्ग की ओर हो का सुझाव दिया। उसका यही सुझाव ‘मैकाले मिनट’ (मैकाले विवरण) कहलाता है।
प्रश्न 3.
सामाज़िक सुधार में यंग बंगाल की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
कलकत्ता हिन्दू कॉलेज के अध्यापक तथा उनके अनुयायियों को ‘यंग बंगाल’ के रूप में जाना जाता है। इन्होंने हिन्दू धर्म में प्रचालित धार्मिक सामाजिक कुसंस्कारों का विरोध किया तथा स्ती शिक्षा, अधिकार, स्वतन्रता का प्रचार-प्रसार किया। इस प्रकार यंग बगाल ने समाज को तर्कसंगत और प्रगतिशील रास्ते पर लाने में अपना योगदान दिया।
प्रश्न 4.
मधुसूदन गुप्त क्यों याद किये जाते हैं ?
उत्तर :
पे० मधुसूदन गुप्त का जन्म 1800 ई० में हुगली जिला के वैद्यवाटी नामक स्थान में हुआ था। वही प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सबसे पहले पाश्चात्य मेडिसिन के अनुसार किसी मानव शव का विच्छेदन (चीर-फाड़) किया था। इसलिए वे चिकित्सा के क्षेत्र में स्मरणीय है।
प्रश्न 5.
बंगाल में नारी शिक्षा के विस्तार में राजा राघाकान्त देव की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
महाराजा नवकृष्ण देव के दत्तक पुत्र राजा राधाकान्त देव कट्टरवादी हिन्दू होते हुए भी उन्होंने अपने निजी खर्चे से नारी शिक्षा के लिए प्राथमिक स्कूल खुलवाये तथा नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका अदा की।
प्रश्न 6.
भारत का ब्रह्म समाज विभाजित क्यों हुआ ?
उत्तर :
सभी धर्मो की शिक्षा, अर्त्तजातीय विवाह आदि विषय, को लेकर केशव चन्द्र सेन तथा देवेन्द्र नाथ टैगोर में मतभेद हो गया। इसके बाद टैगोर ने सेन को आचार्य पद से हटा दिया। परिणामस्वरूप 1866 ई० में भारत का बह्म समाज दो भागों में विभाजित हो गया।
प्रश्न 7.
वुड्स डिस्पैच (1854) की किन्हीं दो संस्तुतियों का उल्लेख करें।
उत्तर :
वुड्स डिस्पैच (घोषणा) की दो संस्तुतियाँ निम्नलिखित है-
(i) सरकारी स्कूलों एवं कालेजों में दी जाने वाली शिक्षा धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए।
(ii) सरकार जन साधारण की शिक्षा का उत्तरदायित्व स्वयम् वहन करें।
प्रश्न 8.
डेविड हेयर क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
भारत में पश्चिमी अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने, हिन्दू स्कूल एवं स्कूल बुक सोसायटी जैसी संस्थाओं की स्थापना के कारण डेविड हेयर भारत में प्रसिद्ध है।
प्रश्न 9.
‘यंग बंगाल सोसाइटी’ के रूप में कौन जाने जाते थे ?
उत्तर :
देरोजियो के नेतृत्व मे ‘यंग बंगाल’ (Young Bengal) नामक संस्था का गठन हुआ और इनके अनुयायी ‘युवा बंगाल’ कहलाए। इनके द्वारा चलाया गया आन्दोलन ‘यंग बंगाल आन्दोलन’ (Young Bengal Movement) कहलाया। ‘नव बंगाल’ के सदस्यों द्वारा न सिर्फ जाति-पाँत, मूर्ति-पूजा, सती-प्रथा, स्त्रियों की उपेक्षा तथा छुआछूत की निन्दा की जाती थी, बल्कि हिन्दू धर्म का भी विरोध किया जाता था।
प्रश्न 10.
ब्रह्म समाज के किन्हीं दो समाज सुधार क्रियाकलापों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(i) बह्म समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त एकेश्वरवाद का सिद्धान्त था। बह्म समाजी एक ब्रह्म अथवा ईश्वर को मानते थे और केवल उसकी उपासना में ही विश्वास रखते थे।
(ii) ब्लह्म समाज के अनुयायी मूर्ति-पूजा एवं अन्य बाह्य आडंबरों के विरोधी थे। वे प्रार्थना में विश्वास करते थे, उनकी प्रार्थना प्रेम तथा सत्य पर आधारित थी।
प्रश्न 11.
वुड का घोषणा पत्र क्या है ? अथवा, वुड का घोषणा पत्र से क्या समझते हो ?
उत्तर :
बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई 1854 ई० को भारतीय शिक्षा के सम्बन्ध में एक विस्तृत योजना लॉर्ड डलहौजी को प्रस्तुत किया। उसे ही “वुड का घोषणा” पत्र कहते हैं। इस घोषणा पत्र को भारत का शिक्षा का मौग्नकार्टा भी कहा जाता है।
प्रश्न 12.
बामबोधिनी पत्रिका का प्रथम संपादक कौन थे, तथा इस पत्रिका का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
उमेश चन्द्र दत्त बामबोधिनी के प्रथम सम्पादक थे। इस पत्रिका का उद्देश्य घरेलू महिलाओ को शिक्षित और जागरूक बनाना था।
प्रश्न 13.
“भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता” किसे कहा जाता है और क्यों ?
उत्तर :
वार्ल्स ग्राण्ट को भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता माना जाता है। इन्होने ही सबसे पहले अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने का सर्मथन किया था।
प्रश्न 14.
कलकत्ता मेडिकल कालेज की स्थापना के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर :
(i) इस कॉलेज के साथ एक वृहद अस्पताल की भी स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य मरीजों का इलाज रियायती दर पर करना था।
(ii) कलकत्ता मेडिकल कॉलेज भारत में पहली ऐसी संस्था थी जो पूरी तरह पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञानपर आधारित थी। इसका उद्देश्य देश के चिकित्सा छात्रों को पश्चिमी चिकित्सा शिक्षा का ज्ञान देना था।
प्रश्न 15.
वामाबोधिनी पत्रिका के प्रकाशन का मूल उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
वामाबोधिनी पत्रिका के प्रकाशन का मूख्य उद्देश्य घरेलू कार्यों में व्यस्त नारियों को शिक्षित, जागरूक एवं उनके मानसिक विकास के लिए उनके सामने ऐसे साहित्य एवं विषय-वस्तु को प्रस्तुत करना था, कि वो गृह कार्य के साथ-साथ बच्चों के पालन करने में कुशलता प्राप्त करने के साथ अपने शिक्षा और अधिकारों के प्राप्ति के लिए जागरूक बन सके।
प्रश्न 16.
ग्रामवार्ता प्रकाशिका का प्रकाशन कब और किसके द्वारा शुरू हुआ ? और इस पत्रिका की मूल विषय-वस्तु क्या थी ? उद्देश्य लिखें।
उत्तर :
ग्रामवार्ता प्रकाशिका एक मासिक पत्रिका थी । जिसका प्रकाशन एवं संपादन 1863 ई० में हरिनाथ मजूमदार द्वारा शुरू किया गया था।
इस पत्रिका का मूल विषय बंगाली समाज में व्याप्त सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों को उजागर कर उससे पीड़ित असहाय लोगों की दीन-दशा में सुधार लाना था।
प्रश्न 17.
बेथून महोदय कौन थे ?
उत्तर :
बेथून महोदय एक अंग्रेज अधिकारी थे जिनकी सहायता से ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने भारत में महिला शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए अनेकों स्कूल-कॉलेज खुलवाए थे।
प्रश्न 18.
कब किसके और किस उद्देश्य से कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई थी ?
उत्तर :
1835 ई० में लार्ड विलियम बेंटिक और मधुसूदन गुप्ता के प्रयास से कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीय छात्रों को पश्चिमी औरधि विज्ञान एवं चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा देना था।
प्रश्न 19.
आत्मीय सभा की स्थापना कब और किसने की थी ? इसकी स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
1815 ई० में राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना,की। आगे चलकर ये सभा बह्म समाज के नाम से प्रसिद्ध (परिवर्तित) हो गयी। इसका उद्देश्य एके भरवाद में विश्वास की भावना को प्रचारित करना, मूर्ति पूजा, विधवा प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा आदि समाजिक एवं धार्मिक बुराइयों का विरोध कर हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार लाना था।
प्रश्न 20.
एक समाज सुधारक के रूप केशवचन्द्र सेन के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
केशवचन्द्र सेन का बंगाल के समाज सुधारकों में एक बड़ा नाम था। राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद बहा समाज दो भागों में बंट गया तो उन्होंने 1866 ई० में भारत ब्रह्म समाज की स्थापना कर उसके शिक्षा एवं उद्देश्य को राष्ट्रीय स्तर तक पँहुचाया तथा पक्धिमी शिक्षा स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया किन्तु कम उप्र (14 वर्ष) में ही अपनी पूत्री का विवाह कूचबिहार के राजा से करके स्वंय बाल विवाह का उल्लंघन कर बैठे। इस कारण उनके समर्थक उनसे नाराज हो गये, इसके बाद भारत ब्रह्म सामज का धीरे-धीरे पतन हो गया।
प्रश्न 21.
नव विधान की स्थापना किसने किस उद्देश्य से किया था ?
उत्तर :
नव विधान की स्थापना केशवचन्द्र सेन ने की थी। इसकी स्थापना सभी धर्मों की एकता को लेकर उनमें विश्वास बनाये रखने के लिए की गयी थी।
प्रश्न 22.
हाजी मोहम्मद मोहसीन कौन थे ?
उत्तर :
हाजी मोहम्मद मोहसीन बंगाल में फराजी आन्दोलन के प्रवर्तक और नेता थे। जिन्होंने इस्लाम धर्म में सुधार लाने के लिए फराजी आन्दोलन की शुरूआत की थी। आगे चलकर यह आन्दोलन किसान आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। ये अपने अनुयायीयों के बीच दूधूमियाँ के नाम से प्रसिद्ध थे।
प्रश्न 23.
नव वेदान्ता क्या है ?
उत्तर :
19 वी सदी में हिन्दू धर्म की विशेषताओं को नये सिरे से परिभाषित करने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने वेदों की जो आधुनिक व्याख्या करके पश्चिमी विचारों से समन्वय स्थापित करने का जो प्रयास किया, उसे नव वेदान्ता कहा जाता है।
प्रश्न 24.
दक्षिण भारत का विद्यासागर किसे और क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
बिरसा लिंगम पंतलु को दक्षिण भारत का विद्यासागर कहा जाता है। जिस प्रकार उत्तर भारत में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए ‘स्त्री शिक्षा का प्रचार’ विधवा विवाह का समर्थन, सती प्रथा और बाल विवाह का विरोध कर स्त्रियों की दशा में सुधार लाने का अथक प्रयास किया, ठीक उसी तरह पंतलु मे भी दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक राज्यों में सुधार कार्य किया। इसीलिए उन्हें दक्षिण भारत का विद्यासागर कहा जाता है।
प्रश्न 25.
किसके प्रयास से और कब सती प्रथा निषेध और विधवा पुर्न विवाह कानून पास हुआ ?
उत्तर :
राजा राममोहन राय के अथक प्रयास से गर्वनर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक के समय 4 दिसम्बर 1829 ई० को सती प्रथा निषेध कानून पास करवाया।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने 13 जुलाई 1856 ई० में लार्ड डलहौजी के समय विधवा पूर्न विवाह कानून पास करवा कर इसको कानूनी मान्यता दिलवायी।
प्रश्न 26.
एसियाटिक सोसाइटी की स्थापना कब और किसने किस उद्देश्य से की थी ?
उत्तर :
एसियाटिक सोसाइटी की स्थापना सन् 1784 में सर विलियम जोन्स ने कलकत्ता में की थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य पक्विमी ज्ञान-विज्ञान के शिक्षा को बढ़ावा देना था। आज इसे भारतीय संग्रहालय के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 27.
बाउल सम्राट किसे कहा जाता है ? और क्यों ?
उत्तर :
ललन फकीर को बंगला लोक गीत (बाउल गीत) का सम्राट कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने लोक गीत के माध्यम से लोगों के बीच प्रेम और भाईचारें की भावना को बढ़ावा दिया था। उनके गीत प्राय: प्रवासी पत्रिका में प्रकाशित होते रहते थे जिससे उनके गीत लोगों तक आसानी से पँहुचते रहे और उनके मन भाते रहे । इसलिए उन्हे बाउल सम्राट कहा जाता है।
प्रश्न 28.
ड्रेन ऑफ वेल्थ (धन का बर्हिगमन) पुस्तक के लेखक कौन हैं ? इसकी मुख्य विषय-वस्तु क्या है ?
उत्तर :
दादा भाई नौराजी Drosin of wealth के लेखक हैं। इसकी पूस्तक की मुख्य विषय वस्तु अंग्रेजों द्वारा भारतीय धन को तरह-तरह से लूटकर यूरोप और इंग्लेण्ड में लेने जाने के कारण भारत की आर्थिक दुर्दशा का चित्रण है।
प्रश्न 29.
फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना कब, किसके द्वारा और किस उद्देश्य से की गयी थी ?
उत्तर :
फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना 1800 ई० में लार्ड वेलेजली द्वारा की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारियों को भारतीय भाषा की शिक्षा देने के लिए की गयी थी।
प्रश्न 30.
प्राच्यवादी किनें कहा जाता था ?
उत्तर :
लोक शिक्षा की सामान्य समिति में 10 सदस्य शामिल थे जिसमें एक दल परम्परागत तथा दूसरा अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन करता था । इसमें परम्परागत समर्थक प्राच्यवादी कहलाये।
प्रश्न 31.
हण्टर आयोग का गठन क्यों हुआ ?
उत्तर :
1882 ई० में विलियम हण्टर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। इस आयोग का उद्देश्य केवल प्राथमिक शिक्षा के विकास की कार्य की समीक्षा प्रस्तुत कर सुझाव देना था, परन्तु इसने माध्यमिक शिक्षा के लिएभी कई सुझाव दिया था।
प्रश्न 32.
विजय कृष्ण गोस्वामी कौन थे ?
उत्तर :
विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के एक धर्म एवं समाज सुधारक थे। इन्हें चैतन्य महामभु का अवतार भी कहा जाता था। ये वैष्णववाद के प्रवर्तक माने जाते थे। इनका जन्म 2 अगस्त, 1851 ई० को नदिया जिले के शांतिपुर नामक स्थान में हुआ था।
प्रश्न 33.
‘नील दर्पण’ (Nil Darpan) किसका नाटक है और इसकी विषय-वस्तु क्या है ?
उत्तर :
‘नील दर्पण’ (Nil Darpan) ‘दीनबंधु मित्र’ का नाटक है तथा इसकी मुख्य विषय वस्तु इसमें किसानों पर नीलहे गोरों द्वारा किये गये अत्याचार तथा शोषण सम्बन्धि बातें है।
प्रश्न 34.
कंगाल हरीनाथ का नाम क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर :
कंगाल हरीनाथ को एक समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है। इनका वास्तविक नाम हरीनाथ मजुमदार था। इनके संपादन में ही ‘प्रामवार्ता प्रकाशिका’ पत्रिका का सर्वपथम प्रकाशन हुआ। माना जाता हैं कि इस पत्रिका के प्रकाशन के लिए इन्हें दूसरों से आर्थिक सहायता माँगनी पड़ी थी, तभी से ये कंगालफकीरचंद के नाम से मशहूर हुए।
प्रश्न 35.
देरोजियो क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
देरोजियो हिन्दू कॉलेज के प्राध्यापक एवं यंग बंगाल के संस्थापक थे। उन्होंने धर्म के क्षेत्र में फैले आडम्बर, अंध विश्वास तथा पुरोहितवाद का विरोध किया तथा हिन्दू समाज की कुरीतियों को समाप्त कर, नारी शिक्षा एवं नारी अधिकारों की माँग की। इन्हीं प्रगतिशील विचारों एवं सुधार कायों के लिए वे भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है।
प्रश्न 36.
‘मनेर मानुष’ नामक पुस्तक की रचना किसने और किसके बारे में की ?
उत्तर :
सुनील गंगोपाध्याय ने ‘मनेर मानुष’ नामक पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक में बंगाल के बाउल सम्राट लालन फकीर के जीवन के बारे में लिखी गई है ।
प्रश्न 37.
हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय को क्यों याद किया जाता है ?
उत्तर :
हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय इसलिए याद किये जाते हैं कि सिपाही विद्रोह के समय हिन्दू पैट्रियट पत्रिका जिसका प्रकाशन मधुसूदन राय के स्वामित्व तथा गिरीश घोष के सम्पादन में हुआ था, के माध्यम से इन्होंने नील की खेती करने वाले कृषकों के ऊपर हो रहे अत्याचार को देश के सामने उजागर करने में अहम भूमिका का पालन किया था। इसलिए उन्हे भारतीय इतिहास में याद किया जाता है।
प्रश्न 38.
हिन्दू पैट्रियट पत्रिका का सम्पादन कार्य कब और किसके नेतृत्व में आरम्भ हुआ था ?
उत्तर :
1853 ई० में मधुसूदन गुप्त, श्री नाथ घोष, गिरिशचन्द्र घोष के नेतृत्व में।
प्रश्न 39.
लॉर्ड मैकाले भारत में किस प्रकार की शिक्षा देना चाहता था ?
उत्तर :
वे चाहते थे कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा शिक्षित वर्ग तैयार हो, जो -रक्त और रंग से तो भारतीय हो किन्तु विचार और स्वभाव से अंग्रेज हो, जो समय आने पर अंग्रेजों का शुभचितंक और रक्षक सिद्ध हो सके।
प्रश्न 40.
विधवा पुर्नविवाह कानून को किसने और कब पास करवाया।
उत्तर :
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा, 13 जुलाई 1856 ई० में।
प्रश्न 41.
सर्वधर्म समन्वय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों का एक उद्देश्य माना है तथा सभी धर्म ईश्वर तक पहुँचाने में विभिन्न धर्म मार्गो का काम करते हैं। इसे ही सर्व धर्म समन्वय कहा जाता है।
प्रश्न 42.
नवजागरण काल किसे कहते हैं ?
उत्तर :
बंगाल में सामयिक पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बंगाल के इस सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन के समय को ही नवजागरण काल कहा जाता है।
प्रश्न 43.
लार्ड विलियम बेंटिक कौन थे ?
उत्तर :
लार्ड विलियम बेंटिक भारत के गवर्नर-जनरल थे। वे भारत में आँग्ल-शिक्षा के समर्थक थे। लार्ड विलियम बेंटिक ने शिक्षा के माध्यम के प्रश्न को सुलझाने के लिए लार्ड मैकाले की सहायता की। अंग्रेजी शिक्षा का सूत्रपात करने का श्रेय लार्ड विलियम बेंटिक को प्राप्त है।
प्रश्न 44.
19 वीं सदी के बंगाल में नारी की सामाजिक स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
बंगाल में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय थी। नारी को शिक्षा का अधिकार नहीं था। बाल विवाह, बहु विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों से समाज भरा पड़ा था। शिक्षा का अभाव होने के कारण महिलाओं की दशा द्यनीय हो गई थी।
प्रश्न 45.
राधाकांत देव कौन थे ?
उत्तर :
राधाकान्त देब 19 वीं सदी के समाज सुधारकों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया था तथा नारी शिक्षा के संप्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
प्रश्न 46.
आदि ब्रहम समाज के विभाजन के क्या कारण थे ?
उत्तर :
आदि ब्रह्म समाज के संस्थापक तथा उनके सहधर्मी प्रचारक विवाह की एक न्यूनतम आयु का प्रचार किया करते थे परन्तु 1878 ई० में स्वय केशवचन्द्र द्वारा अपनी पुत्री का 13 वर्ष की आयु में विवाह कर देने के कारण आदि ब्रह्म समाज के ही सहयोगी आनन्दमोहन बोस, द्वारिकानाथ गांगुली द्वारा तीब्र पतिवाद हुआ और वे लोग बह्म समाज से अलग होकर एक नये साधारण बह्म समाज की स्थापना कर लिये।
प्रश्न 47.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार क्यों करना चाहती थी ?
उत्तर :
वे चाहते थे कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा शिक्षित वर्ग तैयार हो, जो -रक्त और रंग से तो भारतीय हो किन्तु विचार और स्वभाव से अंग्रेज हो, जो समय आने पर अंग्रेजों का शुभचितंक और रक्षक सिद्ध हो सके। इसी उद्देश्य से ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार एवं प्रचार करना चाहती थी ।
प्रश्न 48.
औपनिवेशिक शासन के दौरान आदिवासी विद्रोह के दो कारण बताइए।
उत्तर :
(i) लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा लागू किया गया स्थाई भूमि बन्दोबस्त व्यवस्था के कारण संथालो की भूमि उनके हाथ से निकल गयी।
(ii) महाजनों द्वारा दिये गये कर्ज पर 50% से 500% सूद (ब्याज) वसूल किये जाने से संथाल किसानों की दरिद्रता बहुत बढ़ गयी थी। कर्ज न चुकाने के चलते उनके खेत, जानवर, घर सब छीन लिये जाते थे। इस तरह उन्हें गुलामी जैसा जीवनजीना पड़ रहा था।
प्रश्न 49.
नील दर्पण का अंग्रेजी अनुवाद किसने और किसके प्रयास से किया ?
उत्तर :
माइकेल मधुसूदन दत्त ने काली प्रसन्न सिंहा तथा गिरीश चन्द्र घोष के प्रोत्साहन पर इस पुस्तक का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया।
प्रश्न 50.
लार्ड मैकाले भारत में किस प्रकार की शिक्षा देना चाहते थे ?
उत्तर :
जो रक्त और रंग से भारतीय हो किन्तु बुद्धि, चरित्र, विचारधारा एवं रहन सहन से अंग्रेज हो, ऐसी शिक्षा देना घाहता था लार्ड मैकाले।
प्रश्न 51.
सामाजिक सुधार में ब्रह्म समाज की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
ब्रह्म समाज के अनुयायी मूर्ति-पूजा एवं अन्य आडम्बरों के विरोधी थे तथा वे प्रार्थना में विश्वास करते थें, वे उँचनीच नहीं मानते थे। वे सबको भाई मानते थे तथा समाज के लोगों की सेवा में विश्वास करते थें। इस तरह समाज सुधार में अपना योगदान दिया।
प्रश्न 52.
भारत में अंग्रेजों द्वारा आधुनिक शिक्षा लागू करने के प्रमुख दो उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर :
(i) भारतीयों को ईसाई बनाना
(ii) विचार और स्वभाव से भारतीयों को अंग्रेज बनाना।
प्रश्न 53.
क्यों ब्रिटिश सरकार ने 1878 ई० में धारावाहिक सोम प्रकाश के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया ?
उत्तर :
लार्ड लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम के पारित हो जाने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा इस पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया, व्योंकि इस पत्रिका के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विभिन्न जनस्वार्थ विरोधी नीतियों का विरोध किया जाता था तथा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनमत तैयार किया जाता था। इसी कारण सोम प्रकाश के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।
प्रश्न 54.
“हन्टर कमीशन” के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
1882 ई० में विलियम हण्टर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। इस आयोग का उद्देश्य केवल प्रार्थमिक शिक्षा के विकास की कार्य समीक्षा प्रस्तुत कर सुझाव देना था, परन्तु इसने माध्यमिक शिक्षा के लिएकी कई सुझाव दिया था।
प्रश्न 55.
ब्रह्म समाज की स्थापना किस उद्देश्य से की गई थी ?
उत्तर :
बहल्न समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज की कुरीतियों, सती प्रथा, बहुपल्ली प्रथा तथा जातिवाद का विरोध करना था।
प्रश्न 56.
‘इलर्बट बिल विवाद’ कब और किसने पेश किया ?
उत्तर :
सन् 1883 ई० में मिस्टर पी० सी० इल्बर्ट ने पेश किया था।
प्रश्न 57.
‘हुतोम पेंचार नक्शा’ किसकी रचना है इसकी विषय वस्तु क्या है ?
उत्तर :
हुतोम पेंचार नक्शा के रचनाकार काली प्रसन्ना सिंहा है। इस व्यंगात्मक पुस्तक के द्वारा लेखक ने उस समय के समाज में व्याप्त आडम्बरयुक धार्मिक त्योहार, ब्राह्मणवाद साहेब एवं बाबू जैसी परम्पराओं पर व्यग्य किया गया है।
प्रश्न 58.
‘आनन्द मठ’ उपन्यास का मूल विषय क्या था ?
उत्तर :
‘आनन्द मठ’ उपन्यास का मूल विषय संयासी विद्रोह के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना का संचार करना है।
प्रश्न 59.
भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा वुड्स डिस्पैच को कहा जाता है क्योंकि इसने भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की थी। इसी घोषणा के बाद भारत में आधुनिक शिक्षा का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ।
प्रश्न 60.
गदाधर चट्टोपाध्याय या गदई महाराज कौन थे ?
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस जी गदई महाराज के नाम से जाने जाते थे। इनका जन्म 18 फरवरी, 1836 ई० में बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् इन्होंने दक्षिपेश्वर के काली मंदिर में पुरोहित का कार्य करना आरम्भ किया और अपने जीवन को माँ काली के चरणों में ही उत्सर्ग कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि इन्हें माँ काली के साक्षात् दर्शन हुए थे।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
‘हूतोम पेंचार नवशा”‘ ग्रन्थ उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाली समाज का किस प्रकार का चित्र प्रस्तुत करता है ?
अथवा
काली प्रसन्न सिन्हा द्वारा रचित ‘हूतोम पेंचार नक्शा” में कलकत्ता के सामाजिक दशा का संक्षेप में चित्रण कीजिए।
उत्तर :
काली प्रसन्न सिन्हा बंगला साहित्य के एक प्रगतिशील लेखक थे। उन्होंने कलकत्ते की बोल-चाल की बंगला भाषा में ‘हुतोम पेंचार नवशा”‘ नामक व्यंग्यात्मक रचना प्रस्तुत की जिसमें उस समय के कलकतिया समाज का अच्छा चित्र प्रस्तुत किया गया है। जो निम्नवत् है –
(i) पुस्तक के प्रथम भाग में कलकत्ता के चरक पर्व, दूर्गापूजा, रथयात्रा, रामलीला आदि का सजीव चित्रण है।
(ii) उन्होंन कलकत्ता में एका-एक धनी हो गये नये बबबू समाज की छवि का चित्रण करते हुए लिखा है कि अंग्रेजी पढ़ा-लिखा लोग लाट साहब तथा लखनवी नवाब बन गये है।
(iii) काली पसन्न सिन्हा ने इस पुस्तक में कलकत्ता समाज के तीन वर्गों की झाँकी प्रस्तुत की है पहला वे लोग जो अंग्रेजी पढ़कर अंग्रेजी संस्कृति का अन्धानुकरण कर उसमें रच-बस गये थे और अपने ही समाज को उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगे थे।
(iv) कलकत्ता में दूसरा वर्ग अंग्रेजी पढ़ा-लिखा वर्ग अंग्रेजों का अनुकरण नहीं कर रहे थे।
(v) तीसरा वर्ग अंग्रेजी पढ़े-लिखे उन लोगों का था जो छल कपट जालसाजी एवं धोखे-बाजी से धन कमाने में लगे थे। जिनका चरित्र निन्दनीय था।
इस प्रकार उन्होंने ‘हुतोम पेंचार नक्शा’ पुस्तक में बदलते कलकतिया एवं बंगाली समाज के जन-जीवन की सजीव छवि प्रस्तुत की है।
प्रश्न 2.
इस देश के चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की क्या भूमिका धी ?
अथवा
19 वीं सदी में भारत में आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के प्रसार में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में परम्परागत चिकित्सा के विपरीत आधुनिक और पाश्चात्य विकासोनमुखी चिकित्सा के पठन-पाठन को जारी रखने के लिए 1935 ई० में लार्ड विलियम बेटिंक तथा मोतीलाल के प्रयास से स्थापित हुआ। इसके योगदान को निम्नरूपों में देखा जा सकता है –
(i) कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एशिया का दूसरा बड़ा यूरोपिय ढंग का कॉलेज था। यहाँ आधुनिक ढंग से यूरोपीय चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी। एम० जे० ब्रामिल शल्य चिकित्सा के सुपरिटेन्डेन्ट थे। इनके द्वारा छात्रों को चिर-फाड़ की शिक्षा दी जाती थी।
(ii) डॉ॰ मधुसूदन गुप्ता और इनके सहयोगियों द्वारा आधुनिक शल्य चिकित्सा दी जाती थी। इन्होंने उच्च व कुलीन परिवारों के बच्चों को शवों के न छूने की धारणा को बदला। इसका परिणाम हुआ की बड़ी संख्या में कुलीन परिवार तथा अन्य छात्र मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने लगे।
(iii) कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में सभी वर्ग एवं वर्ण के छात्रों का आसानी से दाखिला हो जाता था। कादम्बनी गाँगुली देश की पहली.आधुनिक ढंग की चिकित्सक थी। उसी तरह बहुत छात्र शिक्षा प्राप्त कर देश के विभिन्न भागों में आधुनिक चिकित्सा को बढ़ाया तथा भारत में चिकित्सा विद्यालय के विकास में नये युग की शुरूआत की थी। जिसपर आज का हमारा चिकित्सा विज्ञान व शिक्षा की नीव खड़ी है।
प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक सुधारों के आदर्शों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक सुधारों के आदर्शों की व्याख्या : रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने अपने अल्पकाल के जीवन में ही धर्म के मर्म को समझा और उसके सत्य रूप की व्याख्या की ।नका कहना था कि बह्माण्ड की रचना किसी ईश्षर या बाहरी शक्ति ने नहीं की है, बल्कि यह मनुष्य स्वयंम के बौद्धिक शक्ति का कार्य है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म मे रहकर मानवीय कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए। दूसरे धर्म की निन्दा-नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा किसी भी धर्म के अनुयायी को अपने धर्म त्यागने की जरुरत नहीं है।
प्रत्येक धर्म को अपनी स्वतन्त्रता और विशिष्टता को बनाये रखते हुए दूसरे धर्म के भावों को ग्रहण करते हुए उत्नत होना होगा। यही सच्चा धर्म है। उन्होंने भारत भ्रमण के समय सभी धर्मो, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन के मूल को समझा और सभी धर्मों में उन्होंने एक ही शाश्वत तत्व मानव सेवा को देखा और उसको संग्रह कर उसी के अनुरूप धार्मिक आचरण की शिक्षा दी। उन्होंने धर्म में बाह्य आडम्बर की घोर निन्दा की है।
वे कहते थे – हमारे धर्म रसोई घर में है, पतीले में है, हमारे स्वभाव में है, मुझे मत छुओं मैं पवित्र हूँ। मैं उस धर्म में विश्धास नहीं कर सकता जो विधवा के आँसू नहीं पोछ सकते, किसी अनाथ को रोटी नहीं दे सकते। अपने गुरू के ‘सर्व धर्म समभाव’ के गुण को अपनाते हुए, सभी धर्म एवं सम्पदायों के बीच सद्भाव एवं समन्वय स्थापित करने, मानव सेवा को सर्वोपरी मानते हुए आदि अन्य धार्मिक विचारों को प्रचार-प्रसार के लिए ही कलकता के निकट बेलूर मठ की स्थापना की जो उनके तथा रामकृष्ण मिशन के सुधार कारों का केन्द्र बना।
उन्होंने संदेश दिया कीमानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। उन्होंने पुरोहितवाद, ब्राह्मणवाद, धार्मिक कर्मकाण्ड तथा अन्य धार्मिक विसंगतियों के खिलाफ संघर्ष किया और मानव की उन्नति के लिए ईमानदार कोशिशे की हैं। उनके यही धार्मिक सुधारों के आर्दश हमें धार्मिक सुधार व परिर्वतन के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं।
प्रश्न 4.
पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन राय की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
पाश्चात्य शिक्षा के विकास में राजा राममोहन राय की भूमिका : भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में भारत के आधुनिक पुरुष राजा राममोहन राय की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानो, हिबू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे। ये पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी, बुद्धिवादी सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे । वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे ।
इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होने भूगोल, ज्योतिष शास्त, ज्यामिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं। उन्होंने सन् 1817 ई० में पाश्चात्य शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डंविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की जो अब प्रेसीडेंसी कॉलेज के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा की नीव रखी, इसलिए इन्हें भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है। राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी शिक्षा को बहुत आगे बढ़ाया तथा इसे बंगाल का एक प्रमुख अंग बनाया।
प्रश्न 5.
बामबोधिनी पत्रिका ने किस प्रकार बंगाल में नारी शिक्षा को बढ़वा दिया ?
उत्तर :
बामबोधिनी पत्रिका का बंगाल में नारी शिक्षा के विकास में योगदान : बामबोधिनी पत्रिका बंगाल में कलकत्ता से बंगला भाषा में प्रकाशित होने वाली एक’ मासिक पत्रिका थी, जिसका प्रकाशन 1863 ई० में उमेशचन्द्र दत्त ने शुरु किया था।
‘इस पत्रिका के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य बंगाल के घरों में कैद महिलाओं को शिक्षित करना और उनके अधिकारों को दिलाने का प्रयास करना था।”
बामबोधिनी पत्रिका का प्रकाशन महिला शिक्षा के विकास के लिए ही हुआ था। इस पत्रिका ने नारी शिक्षा और अधिकार से वंचित नारियों के अधिकारो को समाचारो में प्रकाशित किया। उन्हे शिक्षा देने के लिए कलकत्ता और ढाका में अनेकों महिला स्कूल-कालेज खोले गये। बेथून कालेज सहित 35 महिला विद्यालय की स्थापना में बामबोधिनी पत्रिका का विशेष योगदान रहा। इस पत्रिका ने समाज में महिलाओं की बदलती हुई भूमिका को महसूस किया, उनके उत्थान के लिए सरल भाषाओं में उनके अधिकारों की माँग को समाज के सामने उठाया जिससे बंगाल के धनी, प्रतिष्ठित लोगों ने उनकी दयनीय स्थिति को महसूस किया और उनके अधिकार दिलाने के लिए प्रयास शुरु किये।
जिनमें उमेशचन्द्र दत्त, वसन्त कुमार दत्त, सुकुमार दत्त, राधाकान्त देव, तारा कुमार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। फलस्वरूप महिलाओं की स्थिति में बद्लाव आया जिसका गवाह खुद बामबोधिनी पत्रिका बनी। अत: कहा जा सकता है, कि सामाजिक बुराईयों से पीड़ित मूक महिलाओं की आवाज बनकर बामबोधिनी पत्रिका ने महिलाओं की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक दशा में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस पत्रिका के प्रयास से ही स्त्रियां शिक्षा के प्रति जागरूक हुई और उनको अधिकार मिली।
प्रश्न 6.
मैकाले विवरण पत्र/मिनट पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
मैकाले शिक्षा नीति : भारत की शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप निर्धारित करने को लेकर पाश्वात्य (अंग्रेजी) एवं प्राच्य (हिन्दी) वादियों के बीच विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण उसे दूर करने के लिए तत्कालिन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेटिंक ने 1834 ई० में अपने कार्यकारिणी के एक सदस्य लार्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया, और उसे इस समस्या को दूर करने के लिए सुधार व विवरण पत्र प्रस्तुत करने को कहा, लार्ड मैकाले ने 2 फरवरी 1835 ई० को अपना रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारत में पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान पर आधारित शिक्षा देने की सिफारिश की।
उसे ही मैकाले का विवरण कहा जाता है। जिसे थोड़े -से हेर-फेर के बाद लार्ड विलियम बेटिंक ने स्वीकार कर पूरे देश में लागू कर लिया। उसी समय से देश के सभी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा कर दिया गया। तब से लेकर आज तक यह जारी है। इस प्रकार मैकाले और अंग्रेजी सरकार दोनों की आवश्यकताएँ पूरी हो गई। वे चाहते थे कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा शिक्षित वर्ग तैयार हो, जो -रक्त और रंग से तो भारतीय हो किन्तु विचार और स्वभाव से अंग्रेज हो, जो समय आने पर अंग्रेजों का शुभचितंक और रक्षक सिद्ध हो सके।
उनकी यह सोच 1857 ई० के विद्रोह के समय सत्य सिद्ध हुई, अंग्रेजी पढ़े- लिखें लोगों ने महान विद्रोह के समय भारतीयों का साथ न देकर अंग्रेजों का साथ दिया था। इस विवरण पत्र में मैकाले ने अंग्रेजों को दुनिया का सबसे सभ्य और बुद्धिमान जाति बताया था, तथा भारतीयों के लिए शिक्षा में शुद्धिकरण (education filtration) की नीति लागू की थी। मैकाले का मानना था कि जब उच्च वर्ग शिक्षित हो जायेगा, तो अन्य वर्ग अपने-आप शिक्षित हो जायेगें।
प्रश्न 7.
वुड्स घोषणा पत्र से क्या समझते है ? भारतीय शिक्षा के विकास में इसके योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वुड्स डिस्पैच का घोषणापत्र : बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के सभापति/ अध्यक्ष ‘चार्ल्स वुड’ ने 19 जुलाई 1854 ई० को भारतीय शिक्षा में सुधार के सम्बन्ध में तत्कालीन वायसराय लार्ड डलहौजी को जो विस्तृत याजना प्रस्तुत की ही उसे ‘वुड का घोषणपत्र’ कहा जाता है। इस घोषणापत्र में कुल (100) अनुच्छेद थे। भारत में पहली बार बहुत बड़े पैमाने पर शिक्षा में सुधार लाने की सुझाव और घोषणाए वुड डिस्पैच द्वारा की गयी थी। जिसके फलस्वरूप भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों सुधार हुए तथा स्कूल, कालेज एवं विश्रविद्यालय स्थापित हुए। इस कारण वुड-डिसैच का भारतीय शिक्षा ‘मैग्नाकार्ता’ कहा जाता है।
वुड्स डिस्पैच का भारतीय शिक्षा के विकास में योगदान :- चार्ल्स वुड ने अपने घोषणा पत्र मे भारतीय शिक्षा मे सुधार औ विकास के लिए निम्नलिखित प्रमुख सुझाव दिए थे :-
- सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए।
- सरकार की शिक्षा नीति पश्चिमी शिक्षा के प्रचार-प्रसार की होनी चाहिए।
- स्त्री शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा के विकास के लिए अलग-अलग स्कूल खोले जाने चाहिए।
- शिक्षा के विकास के लिए निजी क्षेत्रों को भी बढ़ावा देने के लिए सरकार को आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
- गाँव में देशी भाषा के प्राथमिक स्कूल तथा जिला केन्द्रों में अंग्रेजी और देशी दोनो भाषाओं के स्कूल और कॉलेज खोले जाने चाहिए।
- लन्दन में oxford university (आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय) की तरह बम्बई, मद्रास और कलकत्ता में विश्चविद्यालय स्थापित किए जाए तथा उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा हो।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रत्येक प्रान्तों में एक-एक डायरेक्टर की अध्यक्षता में शिक्षा विभाग की स्थापना की जाए। जो प्रतिवर्ष नियमित रूप से शिक्षा व्यवस्था की देखभाल करें। और प्रतिवर्ष सरकार को अपनी रिर्पोट प्रस्तुत करें।
- अध्यापको की ट्रेनिंग, नियुक्ति और वेतन की व्यवस्था सरकार स्वय करे।
इस प्रकार इस सिफारिश के बाद लार्ड डलहौजी ने 1855 ई० में एक अलग ‘लोक शिक्षा विभाग’ की स्थापना की और पूरी तरह से चार्ल्स के घोषणापत्र को लागू कर दिया। इसके बाद भारत मे उनकों स्कूल, कॉलेज, महिला कॉलेज, विश्वविद्यालय 1857 ई० [ कलकत्ता, बम्बई, मद्रास] कृषि विश्वविद्यालय [… कृषि विश्वविद्यालय बिहार ] इंजीनियरिंग कॉलेज खोले गए। इस कार्य में ईसाई मिशनरियों ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार चार्ल्स तुड की घोषणापत्र ने भारत में व्यवस्थित रुप से शिक्षा के विकास में अमूल्य योगदान दिया। जिसके दिखाये रास्ते के अनुसार आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था चल रही है।
प्रश्न 8.
नव बंगाल आंदोलन में देरोजियों के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
हेनरी लुई विवियन डेरोजियो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
हेनरी लुई विवियन डेरोजियो बंगाल के एक महान समाज सुधारक थे जिन्होंने अपने माध्यम से बंगाल में कम समय में ही बिटिश विरोधी क्रांति को जन्म दिया था। उन्होंने भारतीय समाज में फैले बुराईयों, कुरूतियों तथा बाह्यआडम्बरों को नष्ट करने का आहवान किये। हेनरी डेरोजियो पुर्तगाली पिता तथा भारतीय माता के सन्तान थे। भारतीयता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उनका जन्म सन् 1809 ई० में हुआ था। 1823 ई० में शिक्षा समाप्त कर वे भागलपुर के कोठी में क्लर्क बन गये। 1827 ई० में वे कलकत्ता लौट आये तथा पत्रकारिता और साहित्य रचना में रूचि लेने लेगे। उन्होंने ‘इण्डिया गजट’, ‘कलकत्ता लिटरेरी गजट’ तथा ‘बंगाल एनुअल’ जैसे कई पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन में भाग लिये । सन् 1828 ई० में देरोंजियों ने ‘फकीर ओंफ जंधीरा’ (Fakir of Janghira) नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना किये।
डेरोजियो के नेतृत्व में ‘यंग बंगाल’ (Young Bengal) नामक संस्था का गठन हुआ और इनके अनुयायी ‘युवा बंगाल’ कहलाए। इनके द्वारा चलाया गया आन्दोलन ‘यंग बंगाल आन्दोलन’ (Young Bengal Movement) कहलाया। ‘नव बंगाल’ के सदस्यों में कुछ इतने उप्र विचारों वाले थे जो जाति-पाँत, मूर्ति-पूजा, सती-प्रथा, स्त्रियों की उपेक्षा तथा छुआछूत की निन्दा ही नहीं करते थे, बल्कि हिन्दू धर्म का भी विरोध करते थे। सन् 1831 ई० में देरोजियो के आकस्मिक मृत्यु के बाद इनके शिष्य कृष्ण मोहन बनर्जी, राम गोषाल घोष, महेश चन्द्र घोष एवं दक्षिणारंजन मुखर्जी आद ने युवा बंगाल (Young Bengal) को आगे बढ़ाए।
प्रश्न 9.
नारी शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन राय एवं विद्यासागर के योगदानों की समीक्षा करो।
उत्तर :
राजा राममोहन राय : राजा राम मोहन रॉय को भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है। राजा राममोहन रॉय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानी, हिबू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे। ये पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी, बुद्धिवादी, सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे। वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल या ज्योतिष शास्त्र, ज्यामिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं। उन्होंने सन् 1817 में पाश्चात्य शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की।
इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा की नींव रखा। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी देन थी स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों से मुक्ति का संग्राम क्योंकि उन्हें सम्पत्ति का अधिकार नहीं था, शिक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं था। पति के शव के साथ स्त्रियों को सती कर दिया जाता था था। अत:, 1819 ई० में उन्होंने महिलाओं की मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया। उनकी चेष्टा थी महिलाओं को सम्पत्ति में अधिकार मिलें, शिक्षा का अधिकार मिले और इस दिशा में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण अवदान प्रस्तुत किया।
विद्यासागर : विद्यासागर के जीवन का संकल्प था शिक्षा-सुधार, शिक्षा का प्रचार तथा स्त्रियों के लिए हर प्रकार की सामाजिक स्वतंत्रता। स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए उन्होंने अत्यधिक कार्य किये। उन्होंने अनुभव किया था कि शिक्षा के बिना स्त्रियों की दशा में सुधार नहीं हो सकता। हिन्दू बलिका विद्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने बेथून साहब की सहायता से बथथन कॉलेज की स्थापना की। बंगालियों के सामाजिक इतिहास में इसका काफी महत्व है।
शिक्षा निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने बंगाल में अनेक बालिका विद्यालयों की स्थापना की। उन्होंने देशी शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को अधिकाधिक देशी विद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया। शिक्षा जगत में धार्मिक संर्कीणता को दूर करने के लिए संस्कृत कॉलेज में गैर-वाह्यण छात्रों को पढ़ने का अवसर दिया। बच्चों को आसानी से बंगला सीखने के लिए उन्होंने वर्ण परिचय, लघु सिद्धान्त कौमुदो, बोधोदय, कथा माला आदि पुस्तकों की रचना की। शिक्षा प्रसार तथा नारी उत्थान में विद्यासागर का यांगदान अविस्मरणीय है।
प्रश्न 10.
‘नील दर्पण’ नामक नाटक में व्यक्त नील की खेती करने वाले किसानों की व्यथा को अपने शब्दों में लिखें।
अथवा
नील दर्पण के रचनाकार कौन थे ? इस पुस्तक की मुख्य विषय वस्तु क्या है ? यह पुस्तक किस प्रकार नील के खेती करने वाले किसानों को नील्हे गोरी, नीला व्यापारी के शोषण एवं अत्याचार से मुक्ति दिलाने का कार्य किया ?
उत्तर :
नोल दर्पण नाटक के रचनाकार दीन बन्धु मित्र थे, जिसका 1861 ई० में माइकेल मधुसूदन दत्त ने बंगला भाषा से अंग्रेजी में अनुवादन किया।
विषय वस्तु : नोल दर्पण नाटक की मूल विषय वस्तु नील की खेती करने वाले किसानों की दुर्दशा का चित्रण है।
नील दर्पण नाटक का योगदान : नील दर्पण नामक नाटक पुस्तक दीन-बन्धु मित्र द्वारा 1860 ई० में बंग्ला भाषा में लिखी गई एक उत्तम नाटक हैं। जिसमें ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत नील की खेती करने वाले बंगाल के किसानों पर अंग्रेज नील व्यापारी, जमींदारों, सेठ-महाजनों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक के कारण ही अंग्रेज नील व्यापारियों के शंषण का अमानवीय चेहरा देश-दुनिया के सामने उजागर हुआ। जिसके कारण बंगाल के शिक्षित वर्गों, हिन्दु-मुस्लिम वर्गों ने नील विद्रोह का समर्थन किया।
इस समर्थन का प्रभाव हुआ कि देश के प्रमुख समाचार पत्रों ने नील विद्राह के समर्थन में अभियान चलाया, इस कार्य में हरिषचन्द्र मुखर्जी द्वारा सम्पादित हिन्दू पौट्रियाट समाचार पत्र सबसे आगे रहा। इतना ही नहीं ईसाई मिशनिरियों ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस प्रकार नील-दर्पण और समाचार पत्रों ने नील किसानों का समर्थन किया। इस प्रकार नील-दर्पण और समाचार पत्रों ने नील किसानों के समर्थन में व्यापक जनसमर्थन तैयार किया।
इस दबाव के चलते अंग्रेजी सरकार का व्यवहार इस्र आन्दोलन के प्रति काफी नरम और संतुलित रहा, इसी दबाव के चलते सरकार ने किसानों के शोषण के जाँच के लिए सेर्टनकर आयोग का गठन किया आयोग ने जाँच में किसानों के आरोप को सही पाया। फलस्वरूप तत्कालीन वायसराय लार्ड केनिंग ने किसानों को शीघ्र राहत देने के लिए ‘दादन प्रथा’ को समाप्त किया। जिससे किसानों को राहत मिली, इस प्रकार नील-दर्पण नाटक ने नील किसानों को नील-व्यापारियों से अत्याचार को छुटकारा दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 11.
19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बंगाली समाज की दशा कैसी थी ? उसे संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
19वीं शताब्दी के बंगाली समाज की दशा : 19 वीं सदी में बंगाली समाज अनेकों प्रकार के सामाजिक, रीति-रीवाजों, धार्मिक कुसंस्कारों में जकड़ा हुआ था। इस कारण बंगाली समाज की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। धर्म, जाति, सम्पदाय आदि के आधार पर समाज बँटा हुआ था। समाज में छुआ-छूत, ऊँच-नीच, सती प्रथा, बाल विवाह, कन्या भूण हत्या, बली प्रथा जैसी अनकों धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाएँ प्रचलित थी, समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी। उन्हें घर के बाहर निकलकर शिक्षा ग्रहण करने की मनाही थी, केवल उच्च वर्ग की स्त्रियाँ घर पर पढ़ पाती थी।
समाज के सभी वर्ग के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। शिक्षा पर जमीदारों एवं सामंतों का प्रभाव था। बंगाल के इसी सामाजिक पिछ्छड़पन का लाभ उठाकर ईसाई मिश्नरियों ने बंगाल में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से गणित-ज्ञान-विज्ञान शिक्षा के साथ-साथ ईसाई धर्म का भी प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया। इस कारण बंगाली समाज में विघटन और बिखराव हुआ। कुछ लोग पश्चिमी शिक्षा और ईसाई धर्म को अहण कर अंग्रेजी शासन का समर्थन करना शुरू कर दिये। इस तरह बंगाली समाज अंग्रेजी शासनकाल में विघटन, शोषण एवं अत्याचार का सामना करते हुये मुक्ति पाने के प्रयास में लगा रहा। ऐसी थी 19 वीं शताब्दी की बंगाल की सामाजिक दशा।
प्रश्न 12.
हिन्दू पैट्रियटट अपने समय की एक राष्ट्रवादी पत्रिका थी – स्पष्ट कीजिए।
अथवा
19 वीं शताब्दी के द्वितीयार्द्ध में बंगाल की विभिन्न समस्याओं को उजागर करने में हिन्दू पैट्रियॉट की क्या भूमिका थी ?
अथवा
कैसे कह सकते हैं कि हिन्दू-पैट्रियॉट राष्ट्रीय विचारों वाली पत्रिका थी ?
उत्तर :
हिन्दू पैट्रियॉट समाचार पत्र : हिन्दू पैट्रियॉट कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली एक अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन मधुसूदन राय ने 1853 ई० में शुरू किया था ! तथा हरीषचन्द्र मुखर्जी 1856 ई० में इसके प्रथम सम्पादक थे।
गिरिषचन्द्र घोष (1893-95 ई०) में हिन्दू पैट्रियॉट अपने समय की एक प्रमुख राष्ट्रवादी समाचार पत्र था। इस समाचार पत्र ने उस समय के प्रांत और देश में घटने वाली छोटी-बड़ी सभी घटनाओं जैसे क्रांतिकारी आन्दोलनों, किसान आन्दोलनों, सिपाही विद्रोह जैसी घटनाएँ प्रमुखता के साथ छपती थी। इस प्रकार देश में अंग्रेजों के शासन की अच्छी-बुरी खबरों को देश के जन-जन तक पहुँचाने और उनमें जागरूकता लाने में हिन्दू पैट्रियॉट समाचार पत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
सबसे पहले इसी समाचार पत्र ने 1857 ई० की कान्ति के वीर लड़ाकों कुँवर सिंह, लम्बी बाई, तात्या तोपे की प्रशंसा की ता वहीं बूढ़े मुगल सम्माट बहादुरशाह के नेतृत्व की आलोचना की इसी पत्रिका ने नील की खेती करने वाले भारतीय किसानों पर नीलक व्यापारियों के शोषण के हक के अधिकार की बात को सामने लाया। इसी समाचारपत्र ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, इमीप्रेशन बिल, इल्बर्ट बिल का खुलकर या जमकर विरोध किया।
इस प्रकार इस पत्र ने उस समय की सभी ज्वलंत खबरों एवं समस्याओं को देशवासियों के सामने उजागर कर उनके अन्दर जागरूकता, संघर्ष करने की भावना और देश-प्रेम की भावना को जन्म दिया। अतः यह पूर्ण रूप से सही लगता है कि हिन्दू पैट्रियॉट पत्र भारत के राष्ट्रीय विचारों को व्यक्त करने वाला समाचार पन्न था। जिसने देश की आजादी के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में बड़े हिम्मत के साथ काम किया अर्थात् योगदान दिया।
प्रश्न 13.
19 वीं सदी में बंगाल के सामाजिक सुधार आन्दोलन में तरूण या युवा बंगाल आन्दोलन के योगदान का वर्णन कीजिए ?
उत्तर :
युवा बंगाल आन्दोलन : 19 वी शताब्दी के बंगाली समाज में युवा बंगाल आन्दोलन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यंग बंगाल आन्दोलन के प्रवर्तक (जन्मदाता) हेनरी विवियन देरोजियो थे, वह हिन्दू कॉलेज के अंग्रेजी और इतिहास के शिक्षक थे और वे एक प्रगतिशील-विचारक थे। उन्होंने कॉलेज के युवाओं को स्वतंत्रता, समानता, सत्यता, प्रेम, सत्य की पूजा के लिए म्रेरित किया तथा बंगाली समाज में व्याप्त जाति-पाति, उँच-नीच, छुआ-छूत, सती प्रथा, बली प्रथा, बाल विवाह का विरोध किया तथा स्त्री शिक्षा का समर्थन किया।
उन्होंने अपने इन प्रगतिशील विचारों के लिए अनेक संगठनों, सभाओं, क्लबों की स्थापना की जिसमें एकेड़ी एसोसियेसन (Academic Association), बंग हित सभा, डिबेटिंग क्लब, युवा बंगाल नामक संगठन प्रमुख थे। डेरेजियो ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिये ईस्ट इण्डिया और इण्डिया गजट जैसे समाचार पत्रों की संपादन किया। उनके प्रगतिशील क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित होकर बंगाल का युवा वर्ग उनका अनुयायी (शिष्य) बन गया, उनके शिष्यों को ही युवा बंगाल कहा जाता है। जैसे-जैसे बंगाल का पढ़ा-लिखा युवा वर्ग देरेजियो के विचारों से जुटता गया वैसे-वैसे युवा बंगाल आन्दोलन जोर पकड़ता गया।
इस प्रकार बंगाली समाज में राजा राममोहन राय के बाद देरोजियों और उनका बंगाल आन्दोलन ऐसा कार्य था जिसने बंगाली समाज में व्याप्त धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक बुराइयों को दूर कर बंगाली समाज को प्रगति के पथ पर लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
1831 ई० में डेरेजियो की अचानक मृत्यु होने के बाद उनके शिष्य कृष्णमोहन बनर्जी, राम गोपाल घोष, महेशचन्द्र घोष एवं दक्षिणानंदन मुखर्जी ने उनके सुधार कार्यों, नारी शिक्षा, नारी अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक, जमीन्दारों के अत्याचारों पर रोक, मजदूरों की दशा में सुधार, सरकारी नौकरियों में भारतीयों की भागीदारी आदि विषयों को जोरदार ढंग से आगे बढ़ाने का प्रयास किया, किन्तु आपसी मतभेद के कारण उनके समर्थकों में मतभेद उत्पन्न हो गया फलस्वरूप आन्दोलन में बिखराव आ गया फिर भी यह आन्दोलन बंगाल की समाजिक परिस्थितियों के अलावा भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भारत के नवयुवको को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 14.
W.W. Hunter आयोग और सैडलर विश्वविद्यालय आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
W.W. Hunter आयोग : वुड डिस्यैच द्वारा भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा के लिए 1882 ई० में W.W. Hunter की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया। जिसका कार्य प्राथमिक शिक्षा के विकास के कार्यों की समीक्षा का सुझाव देना था। किन्तु आयोग ने प्राथमिक के साथ-साथ माध्यमिक तथा अन्य शिक्षा के क्षेत्रों में भी सुझाव दिया। आयोग ने सरकार को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विशेष सुधार और विस्तार पर ध्यान देने की बात कही।
प्राइमरी स्कूलों को ग्रामपंचायतों और नगरपालिकाओं के नियत्रण में रखने की बात कही। कॉलेजों से माध्यमिक स्कूलों को अलग करने और उन्हें विशेष आर्थिक सहायता देने पर जोर दिया। माध्यमिक शिक्षा को दो भागों में विभाजित कर शिक्षा देने के व्यवस्था कि सिफारिश की। कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों में छात्रों के स्वरोजगार के लिए उन्हें व्यावसायिक शिक्षा देने पर जोर दिया। स्त्री शिक्षा के लिए अलग से स्कूल खोलने की सिफारिस की गयी।
इस प्रकार Hunter आयोग के सुझाव के बाद देश में माध्यमिक शिक्षा का तेजी से विकास हुआ। लगभग स्कूलों की संख्या दोगुनी हो गयी। तकनीकी कॉलेज भी 72 से 191 हो गये। किन्तु प्राथमिक शिक्षा के प्रति सरकार उदासीन बनी रही। इस कारण उसका समुचित विकास नहीं हो सका।
सैडलर विश्वविद्यालय आयोग : भारत में विश्चविद्यालय स्तर के शिक्षा में सुधार के लिए 1917 ई० में सरकार ने डॉ० एम० इ० सैडलर की अध्यक्षता में कलकत्ता विधविद्यालय की जाँचकर सुझाव देने के लिए आयोग गठित किया गया था। इस आयोग ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था का गहरा अध्ययन कर सुझाव दिया कि स्कूल की शिक्षा बारह वर्ष तक होनी चाहिए इसके बाद बी.ए/बी.काम./बी.एस.सी (B.A/B.com/B.Sc.) की 3 वर्ष का अनिवार्य पाठ्यक्रम होना चाहिए।
कलकत्ता विश्चविद्यालय के भार को कम करने के लिए ढाका में एक नयी विश्चविद्यालय की स्थापना करनी चाहिए, महिलाओं के शिक्षा के विकास के लिए अलग से महिला शिक्षा बोर्ड बनाना चाहिए, विश्धविद्यालय के नियम सरल होनी चाहिए। विश्चविद्यालयों में पूर्ण स्वाययत्त, आवासीय व्यवस्था का विकसित किया जाना चाहिए। विज्ञान एक तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस सुझाव के बाद भारत में कुल सात नये विश्धविद्यालय (मैसूर, पटना, बनारस, ढाका, उस्मानिया, लखनऊ एवं अलीगढ़) की स्थापना हुई थी।
प्रश्न 15.
19 वीं सदी में बंगाल के सामाजिक जीवन में हिन्दू पैट्रियट एवं ग्रामवार्ता प्रकाशिका के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर :
हिन्दू पैट्रियट : हरिशचन्द्र मुखर्जी के सम्पादन में हिन्दू पैट्रियट साम्राज्यवादी अन्याय के खिलाफ विद्रोह का मुख्यपत्र बन गया। 19 वीं शताब्दी के उत्तर्राद्ध में इसने नील की खेती करने वाले किसानों के ऊपर नीलहे साहबों के द्वारा किए गए अत्याचारों को सबके सामने उजागर किया। 1875 ई० में जब ‘जगदनदा मुखर्जी’ नामक एक अमीर बंगाली ने प्रिस ऑफ वेल्स को अपने निवास पर आमंत्रित किया तब हिन्दू पैट्रियोंट ने छापा कि इससे राष्ट्रवादी हितों का अपमान हुआ है।
कृष्ण दास पाल के सम्पादन में हिन्दू पैट्रियट ने प्रवासी विधेयक, स्वदेशी पत्र कानून और इल्बर्ट बिल इत्यादि विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। कृष्णदास पाल ने प्रवासी विधेयक का विरोध किया तथा इस विधेयक के माध्यम से चाय के बगानों में कार्य करने वाले श्रमिकों के ऊपर होने वाले अत्याचार को अनुचित बताया तथा इस पत्र ने प्रवासी विधेयक को भारत का गुलाम कानून कहा।
ग्रामवार्ता प्रकाशिका : 19 वी शताब्दी में प्रकाशित यह समाचार पत्र काफी महत्वपूर्ण था। इसका प्रथम प्रकाशन अप्रैल 1863 ई० में हुआ। इसके संपादक हरिनाथ मजुमदार थे। जून-जुलाई 1864 ई० तक यह द्विसाप्ताहिक एवं अपैलमई 1871 में साप्ताहिक पत्र हो गया था। आरंभ में यह समाचार-पत्र कलकत्ता के गिरिश विधाराना प्रेस में छपता था। 1864 ई० में यह सामाचार पत्र कुमारखाली के माथुरनाथ प्रेस से छपने लगा। 1873 ई० में कुमारखाली प्रेस माधुरनाथ मोइत्रा के द्वारा हरिनाथ जी को दान दे दिया गया।
इस पत्र में मुख्य रूप से साहित्य, दर्शन एवं विज्ञान के लेख छपते थे। प्रसिद्ध बंगाली विद्वान इस पत्र में अपने लेख लिखते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शन, विज्ञान एवं साहित्य के लेख एवं उनकी कविताएँ इस पत्र में छपी थी। प्रसिद्ध मुस्लिम लेखक मीर मोशार्रफ हुसैन तथा प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार जलधर सेन ने अपने साहित्यिक जीवन का आरम्भ इसी पत्र में काम करके किया था।
हरिनाथ जी ने 18 वर्षों तक इस पत्र का संपादन किया तथा सामाजिक कुरीतियों एवं राजनीतिक खामियों को उजागर किया। इस पत्र के द्वारा जबरन नील की खेती कराने वाले अंग्रेजों पर उन्होंने जोरदार प्रहार किया था।
प्रश्न 16.
भारत में पाश्चात्य शिक्षा के संप्रसारण का वर्णन करो।
उत्तर :
अंग्रेजी शिक्षा : मैकॉले की शिक्षा पद्धति विप्रवेशन सिद्धान्त या अधोमुखी निस्यन्दन सिद्धांत पर आधारित था। इस सिद्धान्त में माना जाता है कि यदि उच्च वर्ग के कुछ लोगों को शिक्षित कर दिया जाए तो वे मध्यम वर्ग के और अधिक लोगों को शिक्षित करेंगे एवं फिर ये शिक्षित लोग निम्न वर्ग के काफी लोगों को शिक्षित करेंगे। परन्तु भारत में यह प्रयास पूर्णत: सफल नहीं हो सका। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विकास का दूसरा चरण लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में शुरू हुआ।
इसके पूर्व 1835 ई० में लोक शिक्षा समिति 20 विद्यालयों को चला रही थी। 1837 ई० में इनकी संख्या बढ़कर 48 हो गई। लाई्ड ऑकलैण्ड ने बंगाल को 9 भागों में विभक्त किया और प्रायः प्रत्येक जिले में विद्यालय स्थापित किए। 1840 ई० तक इस प्रकार के 40 विद्यालय थे। 1835 ई० में कलकता मेडिकल कॉलेज की नीव लार्ड विलियम बेंटिक के समय में पड़ी। 1854 ई० में लार्ड डलहौजी ने 33 प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की। 1851 ई० में पूना संस्कृत कॉलेज और अंग्रेजी स्कूल को मिलाकर पूना कॉलेज बनाया गया। 1854 ई० में बम्बई में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। 1852 ई० में सेंट जान्स कॉलेज की स्थापना की गई।
इस योजना के तहत भारत में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से उच्च शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया साथ ही साथ देशी भाषा के विकास को महत्व दिया गया। लन्दन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकता, बम्बई एवं मद्रास में तीनविश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इस घोषणा में तकनीकी एवं व्यावसायिक विश्वविद्यालय की स्थापना पर भी बल दिया गया।
प्रश्न 17.
भारत में पाश्चात्य शिक्षा के दोष एवं कमियाँ क्या थी ?
उत्तर :
1813 ई० के चार्टर में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि भारत में शिक्षा पर कम्पनी 1 लाख रुपये वार्षिक खर्च करे, लेकिन 20 वर्ष तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। 1833 ई० में चार्टर में एक बार फिर संसद ने कम्पनी को यह निर्देश दिया कि वह एक लाख रुपये वार्षिक की रकम भारत में शिक्षा पर खर्च करे। अब कम्पनी इस निर्देश की अवहेलना करने की स्थिति में नहीं थी। इसी चार्टर के मद्देनजर एक समिति का निर्माण किया गया, जो लोक शिक्षा की सामान्य समिति के नाम से जानी जाती है। इस समिति में 10 सदस्य शामिल थे, जिसमें सपरिषद् गवर्नर जनरल भी शामिल था।
इस समिति के गठन के साथ ही भारत में विचारधारा के आधार पर इस समिति के 10 सदस्यों में दो दल बन गए थे। एक दल ‘भारतीय शिक्षा पद्धति’ और भारतीय भाषाओं की वकालत कर रहा था, जबकि दूसरा दल ब्रिटिश भाषा की वकालत कर रहा था। पहला दल प्राच्यवादी के नाम से जाना जाता है। इस विचारधारा के समर्थक एच० टी० प्रिसेप एवं एच० एच० विल्सन थे। इन्होंने हिन्दूओं एवं मुस्लिमों के पुराने साहित्य के पुनरुत्थान को अधिक महत्व दिया। दूसरा दल आग्लवादी के नाम से जाने जाते थे। इस पाश्चात्य या आग्ल शिक्षा के समर्थकों का नेतृत्व मुनरो एवं एल्फिस्टन ने किया, जिसका समर्थन मैकाले ने भी किया।
मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा की वकालत करते हुए 1835 ई० में एक पत्र जारी किया जो मैकाले स्मरण पत्र के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी शिक्षा के समर्थन में शिक्षित भारतीयों का एक वर्ग भी सामन आया जिसका नेतृत्व राजा राममोहन राय कर रहे थे। अन्तत: वायसराय लॉर्ड विलियम बेंटिक ने एक प्रस्ताव के द्वारा मैकाले के दृष्टिकोण को अपना लिया। इस प्रकार प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा के बीच उत्पत्न गतिरोध समाप्त हो गया तथा अंग्रेजी भाषा भारतीयों के लिए शिक्षा व्यवस्था का आधार बना।
प्रश्न 18.
19 वीं सदी में साहित्य एवं समाचार-पत्रों ने समाज को किस प्रकार प्रभावित किया ?
उत्तर :
साहित्य : भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वप्रमुख स्थान ‘आनन्दमठ’ कृति की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता के विकास को जन्म दिया अर्थात राष्ट्र के प्रति हमेशा अग्रसर रहा। इसकी रचना बंकिम चन्द्र चटर्जी या चट्टोपाध्याय ने 1882 ई० में किया। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था। 18 वी शताब्दी के संन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है। भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वन्देमातरम’ (Vande Matram) इसी उपन्यास से लिया गया है, जो स्वतन्त्रता आन्दोलन का शहीद मंत्र बन गया था।
भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में ‘वर्तमान भारत’ की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 19 वीं सदी में भारतीय लोगों को जागृत करने तथा उनमें देश-प्रेम और देश-भक्ति को जगाने में ‘वर्तमान भारत’ ने अहम भूमिका निभाई। इस अनमोल कृति की रचना ‘स्वामी विवेकानन्द जी’ ने सन् 1905 ई० में किया। इस पुस्तक का उद्देश्य भारत में राष्ट्रीयता का संचार यानि विकास करना तथा देशवासियों के भीतर देशप्रेम और देश-भक्ति की भावना को जागृत करना था।
समाचार-पत्र : आधुनिक भारत के इतिहास को विश्लेषित करने में तत्कालीन झ्रमाचार-पत्र एवं पत्रिकायें काफी मददगार साबित होते हैं। 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में भारत में बहुत बड़े पैमाने पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ जिनसे हमें इतिहास के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है। इस काल के कुछ प्रमुख समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इण्डिया, स्टेट्समैन, मद्रास मेल, पायोनियर, सिविल एण्ड मिलेटरी गजट (सभी अंग्रेजी) ; अमृत बाजार पत्रिका, बंगवासी, सोमप्रकाश, बंगदर्शन (सभी बंगला) ; केसरी मराठी ; कवि वचन सुधा, प्रदीप, हरिजन, उदन्त मार्तदण्ड (हिन्दी) ; अल हिलाल, अल बिलाल, हमदर्द (उर्दू) एवं गदर (पंजाबी) इत्यादि थे। ये सभी समाज एवं राष्ट्र की उन्नति में अपना अमूल योगदान दिया ।
प्रश्न 19.
19 वीं सदी के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में रामकृष्ण परमहंस की भूमिकाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस की भूमिका : भारतीय संस्कृति तथा आध्यात्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए भी श्री रामकृष्ण परमहंस सभी धर्मों की सत्यता पर विश्वास करते थे। सभी प्रकार की धार्मिक साधनाओं में वे उसी ईश्वर को पाते थे जिसकी तरफ सभी कदम बढ़ाते रहे हैं। यद्यपि सबके मार्ग अलग-अलग हैं। एक मुसलमान सूफी से उन्होंने मुस्लिमसाधना की दीक्षा ली और ईसाई पादरी से पढ़वा कर बाइबल सुनते रहे । वे सिक्ख गुरूओ को आदर की दृष्टि से देखते रहे और समाधि की अवस्था में माँ काली तथा कृष्ण के अतिरिक्त ईसामसीह और बुद्ध के भी दर्शन करते रहे।
रामकृष्ण काली के अनन्य उपासक थे। वे गुरू भक्त थे। वे हिन्दू धर्म के रक्षक थे। यद्यपि उन्हें अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिली, तथापि वे नवीन पश्चिमी विचारों से अवगत थे। वे ईसाई और इस्लाम धर्म से भी प्रभावित थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों में एक ही ईश्वर का वास है। अत: आदमी को चाहिए कि वह जिस धर्म में पैदा हुआ है उसी को माने। रामकृष्ण विश्वजनीन धर्म के समर्थक थे। वे सुलह-ए-कुल के पक्षधर थे।
यही कारण है कि उनके शिष्य विभिन्न धर्मों के अनुयायी थे। उनके शिष्य उन्हें ईश्वर तुल्य समझते थे। रामकृष्ण को न तो संस्कृत और न ही अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था, वे बंगला के भी पंडित नहीं थे किन्तु वे सभी से अच्छी तरह बात-चीत कर लेते थे। उनकी यह उक्ति पाहम, नाहम: तू ही, तू ही अत्यंत ही प्रसिद्ध है जो उनके धार्मिक उपदेश का सार है। इसका सरल अर्थ है, वे (परमहंस) कुछ नहीं हैं। वे कोई औपचारिक गुरू न थे, वे कहते थे, मैं किसी का भी गुरू नहीं हूँ। मैं हर आदमी का शागिर्द हूँ।” 15 मार्च 1866 ई० को रामकृष्ण परमहंस जी का देहांत हो गया।
उनके लिए मानव-सेवा ही ईश्वर सेवा था। रामकृष्ण परमहंस के महान व्यक्तित्व तथा सरल और आदर्शपूर्ण जीवन का लोगों के ऊपर व्यापक प्रभाव पड़ा। उनके उपदेशों से लोगों में धार्मिक कट्टरता तथा सामाजिक रूढ़ियों के प्रति अरूचि उत्पन्न हुई तथा साम्र्रदायिक भावना का हास हुआ। इनके इन्हीं सर्व धर्म समभाव के सिद्धान्तों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए उनके शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने अथक प्रयत्न किया तथा बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
प्रश्न 20.
विधवा पुनर्विवाह पर संक्षिप्त निबंध लिखे।
उत्तर :
18 वीं शताब्दी के भारतीय समाज में विशेष रूप से उच्च जातीय हिन्दूओं में विधवा विवाह की अनुमति नहीं थी। 1829 ई० में सती-प्रथा निषेध कानून पास हो जाने तथा विधवा-विवाह का प्रचलन न होने के कारण हिन्दू समाज में विधवाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई थी, अन्ततः ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे उदार एवं विद्वान भारतीय के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप गर्वनर जनरल लार्ड डलडौसी की कौसिल के सदस्य जे० पी० ग्रांट ने एक बिल प्रस्तुत किया जो 13 जुलाई, 1856 ई० को विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के नाम से पास कर दिया गया।
दक्षिण भारत में वीरसालिंगन पंतलू और पश्चिमी भारत में महादेव गोविन्द नाराडे, प्रोफेसर डी० के० कर्बे, आर० जी० भंडारकर और बी० एम० मालाबारी जैसे समाज सुधारकों ने विधवा पुनर्विवाह के कार्य को आगे बढ़ाया। प्रोफेसर कर्वे ने विधुर होने पर 1893 ई० में स्वय एक बाहाण विधवा से विवाह कर समाज के सामने आर्दश प्रस्तुत कर विधवा विवाह को बढ़ावा देने का सराहनीय कार्य किया।
प्रश्न 21.
विजय कृष्ण गोस्वामी पर एक टिष्पणी लिखें।
उत्तर :
विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के एक प्रमुख धर्म सुधारक एवं समाज सुधारक थे। इन्हें चैतन्य महाप्रभु का अवतार कहा जाता था। ये वैष्णवाद सिद्धान्त के प्रवर्त्तक माने जाते थे। इनका जन्म 2 अगस्त, 1841 ई० को नदिया जिले के शांतिपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम आनन्द किशोर गोस्वामी था, जो एक महान भक्त थे। देवेन्द्रनाथ टैगोर से प्रभावित होकर इन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ की सदस्यता स्वीकार किया था। उन्होंने भारत भ्रमण कर ब्रहा समाज के सिद्धान्तों का प्रचार भी किया था। परम सत्य की खोज में उन्होंने ‘ब्यह्मानन्द परमहंस’ को अपना गुरू बनाया और परम सत्य की प्राप्ति के लिए लोगों में प्रचार प्रसार करने लगे।
विजय कृष्ण गोस्वामी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शान्तिपुर के गोविन्द स्वामी से ली बाद में 1859 ई० में वे कोलकाता आए और संस्कृत कॉलेज में भर्ती हो गये। इन्होंने औषधियों का भी गहरा अध्ययन किया। वे 1863 ई० में पूर्वी बंगाल में आये तथा केश्वचन्द्र सेन के साथ कुछ समय के लिए ढाका में काम किया।
उन्होंने शान्तिपुर एवं मैमनसिंह में ब्रहम मन्दिरों की स्थापना की। नारी शिक्षा के विकास में उनकी विशेष रूचि थी। उन्होंने जगन्नाथ पुरी धाम में अपने शरीर को त्याग दिया। उनकी समाधि आज भी ‘जातीय बाबर आश्रम’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनकी मृत्यु सन् 1899 ई०’ में हुआ था। इन्होंने ‘श्रीश्री सदगुरूसंग’ (Sri-Sri Sadguru Sangh) नामक पुस्तक भी लिखे थे।
प्रश्न 22.
सती प्रथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। –
उत्तर :
सती प्रथा हिन्दू समाज में बहुत प्राचीन काल से चली आ रही थी। इस प्रथा के अनुसार हिन्दू स्त्री अपने पति की मृत्यु के बाद उसके शव के साथ चिता में जलकर भस्म हो जाती थी। कालान्तर में यह एक धार्मिक-कर्तव्य सा बना गया। यह प्रथा उच्च वर्ग के लोगों में ही पाई जाती थी। निम्न-वर्ग के लोग इसके शिकार नहीं बने थे। जो स्त्रियाँ सती नहीं होना चाहती थी, उनके साथ कभी-कभी ज्यादती भी की जाती थी और समाज में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता था। यह प्रथा अत्यंत ही भयावह और हृदय विदारक बन गई।
इसे दूर करने के लिए प्रयास किये जा रहे थे। बंगाल में सती प्रथा ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। राजा राममोहन राय ने इस प्रथा के विरुद्ध बड़ा जोरदार आंदोलन चलाया। समाज सुधार के क्षेत्र में राजा राम मोहन राय ने हिन्दू-समाज को मूढ़ता और कुरीतियों से मुक्त कराने का संघर्ष आरंभ किया। उनकी सबसे बड़ी देन स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों से मुक्त संग्राम था। स्त्रियों के प्रति होनेवाले दुर्व्यवहार की कोई सीमा न थी।
उन्हें संपत्ति पर अधिकार नहीं था। वे या तो आजीवन विधवा जीवन बिताये या पति की चिता में जल मरे। शिक्षा पाने का उन्हें कोई अधिकार न था। घर की दीवारों में कैद, आश्रित और अधम समझी जाने वाली नारी जाति पशुओं की भांति पूरी तरह पुरुष समाज के नियंत्रण में थी 1 पति को अनेक पत्नियाँ रखने का अधिकार था, अतः बहु विवाह की पीड़ा भी स्त्रियों को झेलनी पड़ती थी। राजा राममोहन राय ने 1819 ई० से स्त्रियों की मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया। उन्होंने सती-प्रथा के विरुद्ध जनमत को जगाना आरंभ किया।
कलकत्ता के श्मशान घाटों पर जा-जा कर वे लोगों को सती दाह से रोकने का प्रयत्न करने लगे। उनकी प्रेरणा और प्रार्थना पर गवर्नर जनरल बेंटिक ने सती-प्रथा विरोधी कानून घोषित किया और जब पुरातनपंथियों ने उसका विरोध किया तब राजा राम मोहन राय ने भी अनेक शिक्षित हिंन्दुओ को कानून के पक्ष में प्रस्तुत किया। 1829 ई० में सती प्रथा के विरुद्ध नियम पास कर दिया गया। 1833 ई० में सती प्रथा गेर-कानूनी घोषित कर दिया गया और यह बताया गया कि सती प्रथा को प्रोत्साहित करने वालों को दोषी मान कर उन्हें प्राण दण्ड की सजा दिया जा सकता है।
प्रश्न 23.
स्वामी विवेकानन्द के नव्य वेदान्त के विचारो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जैसा कि ऊपर कहा गया है, स्वामी विवेकानन्द ने भारत के जन-समुदाय की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को निकट से देखा तथा समझा था। इस जानकारी की पृष्ठभूमि में ही उनकी दार्शनिक चिन्तन का उद्भव हुआ था। उन्होंने देखा था कि समाज की कुछ कुरीतियाँ समाज में फैले अंधविश्वास एवं अवौद्धिक रूढ़िवाद के कारण उत्पन्न हुई है। इसका मूल कारण लोगों में आध्यात्मिक जागरुकता का अभाव था।
वे आध्यात्मिकता के अंशों को समझने-परखने का प्रयास किया तथा ऐसी विचार-धाराओं को मान्यता दी जिनमें अध्यात्मिक मूल्यों को प्राथमिकता दी गयी थी। इसके लिए उन्होंने वेदों एवं उपनिषदों के ज्ञान को सरल भाषा में व्याख्या की, उनकी यही व्याख्या या भाष्य नव वेदान्त कहलाता है । उनके विचारों पर सबसे गहरा प्रभाव प्राचीन भारतीय दर्शन, विशेषत: वेदान्त दर्शन का है। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानन्द अपने ढंग के वेदान्ती हैं। उनके अपने दार्शनिक विचारों का मूल प्राचीन भारतीय शास्त्रों मूलतः उपनिषदों तथा वेदान्त-दर्शन था।
उदाहरणतः उनके विचारों का केन्द्रीय अंश जहाँ वे सत्य को पूर्णतः सर्ववादी रूप से स्वीकारते हैं । वेदान्त पर ही आधारित प्रतीत होता है। वे भी विश्व में परिलक्षित कुछ विधरोधाभासों एवं व्याघातों की व्याख्या करने में पारमार्थिक दृष्टि तथा व्यवहारिक दृष्टि में अन्तर करते हैं। फिर भी यह तो स्वीकारना है कि उनके विचारों पर प्रमुख प्रभाव प्राचीन भारतीय दर्शन का है तथा उसमें भी सर्वप्रमुख प्रभाव वेदान्त-दर्शन का है। उन्होंने कहा की व्यक्ति का अन्तःसुरण ही धर्म है। एक व्यक्ति को देवी प्रेरणा मिली है तो प्रत्येक व्यक्ति को मिलने की सम्भावना है । यही धर्म है और स्वामी जी की नव वेदान्ता का मूल मंत्र है ।
प्रश्न 24.
क्रह्म समाज पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
ब्रह्म समाज :- इस समाज की स्थापना 1828 ई० में राजा राममोहन राय के द्वारा की गयी थी। राज राममोहन राय इस संस्था के द्वारा भारतीय संस्कृति का शुद्धिकरण करना चाहते थे। वे उन सब लोगों को प्रत्येक शनीवार के दिन एकत्रित करते थे जो ईश्वर में विश्वास रखते थे किन्तु मूर्ति पूजा के विरोधी थे। राममोहन राय की सन् 1833 में मृत्यु हो जाने के बाद देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1842 के बाद बहम समाज के प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व ग्रहण किया था। देवेन्द्र नाथ ठाकुर भी राजा राममोहन के समान वेदों और उपनिषदों में विश्वास रखते थे।
ब्रह्म समाज का सिद्धान्त :- ब्रह्य समाज के सिद्धान्त सरल एवं सर्वमान्य थे। इनमें सभी धर्मों के सराहनीय तत्वों को सम्मिलित कर लिया गया था।
(i) ब्रह्म समाज का सर्वाधिक महत्तपूर्ण सिद्धान्त एकेश्वरवाद का सिद्धान्त था। बह्म समाजी एक बह्म अथवा ईश्वर को मानते थे और केवल उनकी उपासना में ही विश्वास रखते थे।
(ii) बह्म समाज के अनुयायी मूर्ति-पूजा एवं अन्य बाह्य आडंबरों के विरोधी थे। वे प्रार्थना में विश्वास करते थे उनकी प्रार्थना प्रेम तथा सत्य पर आधारित थी।
(iii) ब्रह्न समाज के अनुयायी जाति-पाँति तथा ऊँच-नीच के भेदभावों में विश्वास नहीं करते थे, उनकी दृष्टि से सभी मानव भाई-भाई थे।
(iv) बह्म समाजी सत्य के अन्वेषक थे और सभी धर्मों से सत्य ग्रहण करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे
(v) ब्रह्म समाजी सभी धरों की मौलिक एकता में विश्वास करते थे और जीवन में नैतिक गुणों के विकास पर बल देते थे। राजा राम मोहन राय ने 1828 ई० से 1830 ई० तक ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया। इसकी स्थापना से लगभग दो वर्ष पश्चात वे इंग्लैण्ड चले गए और वही 27 सितम्बर 1833 ई० को उनका देहावासन हो गया।
प्रश्न 25.
श्री रामकृष्ण परमहंस के सर्व धर्म समभाव पर अपना विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 ई० में बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर चटर्जी था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् इन्होंने दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में पुरोहित का कार्य करना आरम्भ किया और अपने जीवन को माँ काली के चरणों में ही उत्सर्ग कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि इन्हें माँ काली के साक्षात् दर्शन हुए थे।
रामकृष्ण परमहंस भारतीय संस्कृति तथा अध्यात्म में पूरी आस्था रखते थे। इन्होंने सर्व धर्म समन्वय की बात कही। इनकी विश्वास सभी धर्मों की सत्यता में था। वे सभी धर्मो का आदर करते थें। उनके अनुसार राम, कृष्ण, हरि, ईसा, अल्लाह सब एक ईश्वर के ही विभिन्न नाम हैं। वे धार्मिक वाद-विवादों में किसी प्रकार का विश्वास नहीं करते थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों में एक ही समान बाते लिखी हुई हैं। उनका कहना था कि, “धर्म को लेकर हमें वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।
सभी धर्म एक ही है।” जैसे सारी नदियाँ समुद्र की ओर जाती है, तुम भी उसी तरफ बहो और दूसरों को भी बहने दो। विभिन्न धर्म के लोगों के बीच होने वाले धार्मिक वाद-विवाद के सम्बन्ध में उनका कहना था कि-धार्मिक वाद-विवाद निरर्थक है। शून्य पात्र में जल भरते समय आवाज होती है परन्तु जब घड़ा भर जाता है, तब कोई आवाज सुनाई नहीं देती। जिस मनुष्य ने भगवान को नहीं पाया है वह केवल भगवान की सत्ता और प्रयोजन को लेकर निरर्थक तर्क करता है परन्तु जिसने ईश्वर को पा लिया है वह मौन रहकर दिव्य आनन्द का भोग करता है तथा सर्व धर्म समन्वय में विश्वास रखता है।
प्रश्न 26.
19 वीं शताब्दी के इतिहास में बंगला साहित्य की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
संस्कृत के नवीन अध्ययन तथा अंग्रेजी के प्रसार से बंगाल के लेखकों में 19 वीं सदी में लहर दौड़ गई। कम्पनी के सरकारी कर्मचारी बंगला सीखने वाले अंग्रेजों के लिये पुस्तकें तैयार करवा रहे थे तथा चर्च के पादरी कृतिवासीय का प्रकाशन और बाइबिल का बंगला अनुवाद करने में लगे हुए थे। बंगाली पत्रकारिता की भी नीव 19 वीं शताब्दी में हो पड़ी। स्वामी विवेकानन्द ने भारत के जन-समुदाय की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को निकट से देखा तथा समझा था। इस जानकारी की पृष्ठभूमि में ही उनकी दार्शनिक चिन्तन का उद्धव है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप में देखा था कि समाज की कुछ कुरीतियाँ समाज में फैले अंधविश्वास एवं अवौद्धिक रूढ़िवाद के कारण उत्पन्न है। उन्हें प्रतीत हुआ कि इसका मूल कारण यही था कि लोगों में आध्यात्मिक जागरण अनिवार्य है। जहाँ आध्यात्मिकता के अंशों को समझने-परखने का प्रयास किया तथा ऐसी विचार-धाराओं को मान्यता दी जिनमें आध्यात्मिक मूल्यों को प्राथमिकता दी गयी थी । वे विश्व में परिलक्षित कुछ विधरोधाभासीं एवं व्यायातों की व्याख्या करने में पारमार्थिक दृष्टि तथा व्यवहारिक दृष्टि में अन्तर करते हैं। फिर भी यह तो स्वीकारना है कि उनके विचारों पर प्रमुख प्रभाव प्राचीन भारतीय दर्शन का है तथा उसमें भी सर्वप्रमुख प्रभाव वेदान्त-दर्शन का है।
राजा राम मोहन राय ने अपने धार्मिक और सामाजिक विचारों को धरती पर उतारने के लिए 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज का गठन किया। इस प्रक्रिया का परिणाम 1830 में एक चर्च की स्थापना के रूप में निकला और ब्रह समाज आंदोलन शुरू हुआ, जो लम्बे समय तक बंगाली समाज की चेतना को प्रभावित करता रहा।
1818 से 1829 के बीच राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा जैसी बुराई पर आक्रमण करते हुए तीन रचनायें प्रकाशित की स सती प्रथा के खिलाफ जनमत बनाने और अंग्रेजों को उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डालने का श्रेय उनके प्रयासों को ही दिया जाता है। राजा राम मोहन राय ने आधुनिक शिक्षा और विशेष तौर से ख्वी शिक्षा के प्रसार में अगुआ की भूमिका निभाया, उन्हें बंगला गद्य का निर्माता भी कहा जाता है।
प्रश्न 27.
बामबोधिनी पत्रिका ने किस प्रकार नारी शिक्षा एवं महिलाओं की दशा को सुधारने में योगदान दिया? उसका संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
बामबोधिनी पत्रिका का प्रकाशन महिला शिक्षा के विकास के लिए ही हुआ था। इस पत्रिका ने नारी शिक्षा और अधिकार से वंचित नारियों के अधिकारो को समाचारो में प्रकाशित किया। उन्हें शिक्षा देने के लिए कलकत्ता और ढाका में अनेको महिला स्कूल-कालेज खोले गये। अत: कहा जा सकता है, कि सामाजिक बुराईयों से पीड़ित मूक महिलाओं की आवाज बनकर बामबोधिनी पत्रिका ने महिलाओं की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक दशा में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस पत्रिका के प्रयास से ही स्त्रिया शिक्षा के प्रति जागरूक हुई और उनको अधिकार मिली।
बेथून कालेज सहित 35 महिला विद्यालय की स्थापना में बामबोधिनी पत्रिका का विशेष योगदान रहा। इस पत्रिका ने समाज में महिलाओं की बदलती हुई भूमिका को महसूस किया, उनके उत्थान के लिए सरल भाषाओं में उनके अधिकारों की माँग को समाज के सामने उठाया जिससे बंगाल के धनी, प्रतिष्ठित लोगों ने उनकी दयनीय स्थिति को महसूस किया और उनके अधिकार दिलाने के लिए प्रयास शुरु किये। जिनमें उमेशचन्द्र दत्त, वसन्त कुमार दत्त, सुर्कुमार दत्त, राधाकान्त देव, तारा कुमार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। फलस्वरूप महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया जिसका गवाह खुद बामबोधिनी पत्रिका बनी।
प्रश्न 28.
क्या डेविड हेयर को पूर्णरूप से भारतीय कहा जा सकता है ? यदि हाँ तो क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
डेविड हेयर ने 1848 ई० में ब्रिटीश के शासनकाल में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार तथा प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनके द्वारा कलकत्ता में अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई। उनका मानना था कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नितान्त जरूरत है अतः इसी संदर्भ में उन्होंने राजा राममोहन राय तथा बाबू बूढ़ीनाथ मुखर्जी के साथ मिलकर 1817 ई० में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की तथा 1818 ई० में इन्होंने कलकत्ता स्कूल सोसाइटी की स्थापना की, जिसमें बंगला तथा अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई की जाती थी तथा इसके अलावा थनथनिया, कालितल्ला और अरणुतली इत्यादि जगहों में भी स्कूल खोलें। 1880 ई० में डेविड हेयर शिक्षा का प्रसार के लिये कलकत्ता आये अतः उनके द्वारा किये गये शिक्षा का प्रयास तथा शिक्षण संस्थान की प्रतिष्ठापना से उन्हें भारतीय कहा जा सकता है।
प्रश्न 29.
नारी-शिक्षा के विकास में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एवं ड्रिंकवाटर बेश्यून के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नारी शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के योगदान :- शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान नारी शिक्षा के क्षेत्र में था। 19 वीं शताब्दी के भारतीय समाज में नारी शिक्षा के प्रति विरोध की भावनाएँ विद्यमान थीं। अधिकांश उच्च वर्गीय प्रतिष्ठित परिवार अपनी बालिकाओं की शिक्षा के प्रति उदासीन थे, पठन-पाठन से उसे दूर रखना चाहते थे। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर नारी वर्ग को शिक्षित बनाकर उसे अज्ञानता एवं कुरीतियों के अंधकार से बाहर निकालना चाहते थे। उनकी धारणा थी कि शिक्षित नारी ही परिवार, समाज और देश का सबल आधार बन सकती थी। अतः उन्होंने सरकारी निरीक्षक (इन्सपेक्टर) की हैसियत से 35 बालिका विद्यालयों की स्थापना में योगदान दिया। इनमें से कई स्कूलों का अर्थिक भार भी उन्होंने स्वयं उठाया।
नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने बेथुन स्कूल के विकास में परम योगदान दिया। निःसन्देह यह स्कूल 19 वीं शताब्दी के पाँचवें और छठे दशक में नारी शिक्षा के लिए चलाए गए सशक्त आन्दोलन का प्रथम महत्त्वपूर्ण परिणाम था। शीघ्र ही यह स्कूल बंगाल में नारी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया। नि:सन्देह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर 19 वी शताब्दी में नारी शिक्षा के अम्रदूत थे।
नारी शिक्षा के क्षेत्र में ड्रिंकवाटर बेथ्यून के योगदान : 1849 ई० में गवर्नर जनरल की कौसिल के विधि सदस्य ड्रिंक वाटर बेथुन ने कलकत्ता में हिन्दू बालिका स्कूल के नाम से इसे स्थापित किया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर इस स्कूल के प्रथम सचिव बने। इस स्कूल का प्रमुख उद्देश्य नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देना तथा नारियों को आधुनिक शिक्षा पद्धति के अधार पर शिक्षित करना था।
प्रश्न 30.
राजा राममोहन राय उच्च कोटि के समाज सुधारक थे। इस कथन के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर :
राजा राममोहन राय : राजा राम मोहन रॉय को भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है। राजा राममोहन रॉय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानी, हिबू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे। ये पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी, बुद्धिवासी, सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे। वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल या ज्योतिष शास्त्र, ज्यमिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं।
उन्होंने सन् 1817 ई० में पाश्चात शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत मे पाश्चात्य शिक्षा की नींव रखा। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी देन थी स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों से मुक्ति का संग्राम क्योंकि उन्हें सम्पत्ति का अधिकार नहीं था, शिक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं था। पति के शव के साथ स्त्रियों को दिया जाता था था। अतः, 1819 ई० में उन्होंने महिलाओं की मुक्ति का आंदोलन घेड़ दिया। उनकी चेष्टा थी महिलाओं को सम्पत्ति में अधिकार मिलें, शिक्षा का अधिकार मिलें और इस दिशा में वे आजीवन प्रयास करते रहे।
प्रश्न 31.
बंगाल के नवजागरण में केशवचन्द्र सेन के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बंगाल के नवजागरण में केशवचन्द्र सेन के प्रयास से अखिल भारतीय आंदोलन का रूप ब्रह्म समाज को प्राप्त हुआ था। पश्चिमी शिक्षा का प्रसार, नारी शिक्षा, स्त्रियों के उद्धार आदि कार्यो को पूरा करने के लिये इनके द्वारा इण्डियन रिफार्म एसोसियेस की स्थापना की गई।
उन्नीसवीं सदी में और बीसवीं सदी के शुरूआती वर्षो में बंगाल में हुए समाज सुधार आंदोलनों, देशभक्त-राष्ट्रवादी चेतना के उत्थान और साहित्य-कला-संस्कृति में हुई अनूठी प्रगति के दौर को बंगाल के नवजागरण की संज्ञा दी जाती है। इस दौरान समाज सुधारकों, साहित्यकारों और कलाकरों ने सती-प्रथा, बहु-विवाह, दहेज-प्रथा, जाति-प्रथा और धर्म संबंधी स्थापित परम्पराओं को चुनौती दी। बंगाल के इस घटनाक्रम ने समग्र भारतीय आधुनिकता निर्मिताओं पर अमिट छाप छोड़ी। इसी नवजागरण के दौरान भारतीय राष्ट्रवाद के शुरुआती रूपों की संरचनाएँ सामने आयी।
प्रश्न 32.
राष्ट्रीयता के विकास में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द ने भारत के जन-समुदाय की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को निकट से देखा तथा समझा था। इस जानकारी की पृष्ठभूमि में ही उनकी दार्शनिक चिन्तन का उद्रव है। उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप में देखा था कि समाज की कुछ कुरीतियाँ समाज में फैले अंधविश्वास एवं अवौद्धिक रूढ़वाद के कारण उत्पन्न है। उन्हें प्रतीत हुआ कि इसका मूल कारण यही था कि लोगों में आध्यात्मिक जागरण अनिवार्य है। जहाँ आध्यात्मिकता के अंशों को समझनेपरखने का प्रयास किया तथा ऐसी विचार-धाराओं को मान्यता दी जिनमें आध्यात्मिक मूल्यों को प्राथमिकता दी गयी थी। वे विश्व में परिलक्षित कुछ विधरोधाभासों एवं व्याघातों की व्याख्या करने में पारमार्थिक दृष्टि तथा व्यवहारिक दृष्टि में अन्तर करते हैं। फिर भी यह तो स्वीकारना है कि उनके विचारों पर प्रमुख प्रभाव प्राचीन भारतीय दर्शन का है तथा उसमें भी सर्वप्रमुख प्रभाव वेदान्त-दर्शन का है।
प्रश्न 33.
बंगाल के नवजागरण के पक्ष में क्या-क्या तर्क दिए जा सकते हैं ?
उत्तर :
उन्नीसवीं सदी में और बीसवीं सदी के शुरूआती वर्षों में बंगाल में हुए समाज सुधार आंदोलनों, देशभक्तराष्ट्रवादी चेतना के उत्थान और साहित्य-कला-संस्कृति में हुई अनूठी प्रगति के दौर को बंगाल के नवजागरण की संज्ञा दी जाती है। इस दौरान समाज सुधारकों, साहित्यकारों और कलाकरों ने सती-प्रथा, बहु-विवाह, दहेज-प्रथा, जाति-प्रथा और धर्म संबंधी स्थापित परम्पराओं को चुनौती दी। बंगाल के इस घटनाक्रम ने समग्र भारतीय आधुनिकता निर्मिताओं पर अमिट छाप छोड़ी। इसी नवजागरण के दौरान भारतीय राष्ट्रवाद के शुरुआर्ती रूपों की संरचनाएँ सामने आयी। बंगाल के नवजागरण का विस्तार राजा राममोहन राय(1772-1833) से आरम्भ होकर रवीन्द्रनाथ ठाकुर(1861-1941) तक माना जाता है। करीब एक सदी तक बदलती हुई आधुनिक दुनिया के प्रति बंगाल की सचेत जागरूकता शेष भारत के मुकाबले आगे रही।
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS
प्रश्न 1.
बंगाल में उन्नीसवीं शताब्दी में समाज सुधार आन्दोलन में विभिन्न ब्रह्म समाजों की क्या भूमिका थी ?
अथवा
बह्म आन्दोलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
ब्रह्म समाज : बहा समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने की। राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सर्वप्रथम भारतीय समाज में व्याप्त मध्ययुगीन बुराइयों के विरोध में समाज सुधार आन्दोलन का सूत्रपात किया था। राजा राममोहन राय प्रजातंत्रवादी व मानवतावादी थे।
उनके नवीन विचार धाराओं के कारण ही उन्नीसवीं शताब्दी के भारत में पुनर्जागरण का जन्म हुआ था। उन्हे आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है। उनका जन्म 22 मई 1772 ई० को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर आ्राम में हुआ था। वे अनेक भाषाओं जैसे – अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटीन, यूनानी, हिब्रु के ज्ञाता थे। उच्च शिक्षा माप्त करने के बाद उन्होंने 1803 ई० से 1814 ई० तक कम्पनी की सेवा में विभिन्न पद प्रहण किया था।
राजा राममोहन राय अपने सामाजिक, धार्मिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण से इस्लाम के एकेश्वरवाद, सुफीवाद, इसाई धर्म की आचार-शास्त्रीय, नीतिपरक शिक्षा और पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी, बुद्धिवादी सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे। सामाजिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय ने हिन्दू समाज की कुरीतियों, सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, वेश्यागमन, जातिवाद आदि के घोर विरोधी थे। विधवा पुर्नविवाह का उन्होंने समर्थन किया था। 20 अगस्त 1828 ई० में उन्होंने बह्म समाज की स्थापना की थी। ब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य था हिन्दू धर्म में सुधार लाना।
इस समाज में प्रत्येक शनिवार को सांय काल सभी सदस्य एकत्रित होते थे। बह्म समाज ने जाति व्यवस्था, बाल-विवाह, सती प्रथा का विरोध किया। राम मोहन राय स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के कट्टर समर्थक थे और इन्होंने स्ती-पुरूष दोनों के लिए आधुनिक शिक्षा पर जोर दिया। इनके प्रयास से ही 1829 ई० में तत्कालीन वायसराय लाई्ड विलियम बेंटिंग ने रेगुलेशन XVII पारित कर सती प्रथा को प्रतिबंधित घोषित कर दिया। 27 सितम्बर 1833 ई० को इंग्लैण्ड के बिस्टल शहर में राम मोहन राय की मृत्यु हो गई।
राजा राम मोहन की मृत्यु के पश्चात बह्म समाज का संचालन महर्षि द्वारिकानाथ टैगोर और पण्डित रामचन्द्र विधा बागीश के हाथों में रहा, तत्पश्चात् देवेद्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज़ की गतिविधियाँ जारी रही थीं। बाद मे केशवचन्द्र सेन ने भी बह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की। केशचन्द्र सेन को देवेन्द्रनाथ टैगोर ने आचार्य की उपाधि दी। लेकिन केशवचन्द्र सेन के उदारवादी विचारों के कारण बहा समाज में मतभेद हो गया। ब्रह्म समाज दो भागों में विभाजित हो गया।
आदि ब्रह्म समाज और भारतवर्षीय ब्रह्म समाज : आदि बह्म समाज के प्रणेता देवेन्द्रनाथ टैगोर तथा भारतवर्षीय ब्लह्म समाज के प्रणेता केशवचन्द्र सेन थे। केशवचन्द्र सेन के प्रयत्नों से ही ब्रह्म समाज को अखिल भारतीय आन्दोलन का स्वरूप प्राप्त हुआ था। केशवचन्द्र सेन ने पश्चिमी शिक्षा के प्रसार, स्त्रियों का उक्कर, स्त्री शिक्षा को महत्व आदि को क्रियान्वित करने हेतु इण्डिन रिफॉर्म एसोशियशन की स्थापना की थी। ब्रह्म समाज में दूसरा विभाजन 1878 ई० में हुआ था।
केशवचन्द्र सेन ने अपनी पुत्री का बह्म विवाह कूचबिहार के राजा से करके स्वतः ही इसका उल्लंघन कर दिया। उनके इस प्रयास से उनके अनुयायी परस्पर असंतुष्ट व क्षुब्ध हो उठे, अन्ततः बह्म समाज का पुनः विघटन हो गया। 1878 ई० में ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य था – जाति प्रथा, मूर्ति पूजा विरोध, नारी मुक्ति का समर्थन, जन-सामान्य के कल्याण, नारी शिक्षा, अकाल राहत कोष साथ ही अनाथालयों आदि की स्थापना के लिए साधारण ब्रह्म समाज सदैव प्रयत्मशील रहा।
प्रश्न 2.
शिक्षा के प्रसार में प्राच्यवादी एवं पाश्चात्यवादी विवाद क्या है ? उच्च शिक्षा के विकास में कलकत्ता विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्राच्यवादी एवं पाश्रात्यवादी विवाद :- ब्रिटिश भारत में शिक्षा, प्रणाली के विकास पर शिक्षा के नीति निर्धारको द्वारा जो मत प्रस्तुत किये गये, उसको लेकर उनके बीच विवाद हो गया। 1813 ई० के चार्टर ऐक्ट के बाद सरकार यह निर्णय नहीं ले पा रही थी कि-भारत में शिक्षा की कौन सी प्रणाली अपनायी जाये। कुछ प्रबुद्ध लोगों का मानना था कि – शिक्षा धन की तरह उच्य वर्गों से छन कर जन सामान्य वर्ग तक पहुँचेगी। इसी विचार को शिक्षा की ‘छनन नीति’ कहा जाता है।
एक वर्ग का मानना था कि-शिक्षा उच्च और निम्न वर्ग दोनों के लिए समान होनी चाहिए। इसी बात को लेकर उनमें मतभेद उत्पन्न हो गया। तो दूसरा वर्ग प्राच्य (भारतीय परम्परागत शिक्षा) का समर्थक बन गया। पश्चिमी शिक्षा समर्थक अग्रेजी भाषा के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते थे। मुनरो, लार्ड मैकाले, ट्रैवेलियन तथा राजा राम मोहन राय इसके समर्थक थे। प्राव्य शिक्षा समर्थक भारत के परम्परागत् सामाजिक और सास्कृतिक शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान की शिक्षा देने के का समर्थन कर रहे थे।
इस दल का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच. टी.म्रिंसेप, एच. एच. विल्सन थे। इन समर्थकों के बीच के विवाद को ही प्राव्य और प्राश्चात्य शिक्षा विवाद कहा जाता है। यह विवाद 1935 ई० में मैकाले मिनट के सुझाव के लागू होने के साथ समाप्त हो गया और यह सुनिश्चित हो गया कि भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा और विषय पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान तथा तर्क आधारित सामाजिक विषय होंगे।
उच्च शिक्षा विकास में कलकत्ता यूनिवर्सिटी की भूमिका :- वुड़ डिस्पैच के आधार पर 1857 ई० में कलकत्ता विश्य विद्यालय की स्थापना हुई। यह भारत का ही नहीं बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया का पश्चिमी शिक्षा प्रणाली पर आधारित पहला विश्चविद्यालय था। इस विश्चविद्यालय में अंग्रेजी, बंगला तथा अन्य भाषाओं के साथ-साथ राजनीति, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त, कानून, विज्ञान, कला आदि विभिन्न विषय की पढ़ाई होती थी।
जहाँ से विभिन्न विषयों का शिक्षा प्राप्त कर बंगाल तथा देश के विभिन्न भागों में विद्यार्थी जाकर शिक्षा प्रदान करते थे। इस तरह कलकत्ता विश्चविद्यालय बंगाल में उच्च शिक्षा को बढ़ावा दे रहा था। बंकिमचन्द्र चटर्जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सी.वी. रमन, यदुनाथ बोस, कादम्बिनी गांगुली तथा चन्द्रमुखी बसु इस विश्चविद्यालय के प्रमुख छात्र थे। इस विश्चविद्यालय में इसके स्थापना वर्ष से ही लाहौर से लेकर रंगून तक के छात्र एवं छात्राएँ पढ़ने के लिए आया करते थे।
यदुनाथ बोस, बकिम चन्द्र बटर्जी कलकत्ता विश्चविद्यालय से स्नातक (बी.ए.) की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम छात्र थे तथा चन्द्रमुखी बसु और कादम्बिनी गाँगुली पहली महिला छात्राएँ थी। इस पकार इस विश्चविद्यालय से अनेक छात्र एवं छात्राएँ उच्च शिक्षा ग्रहण कर पूरे राज्य में एक मिशन के तरह शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम किया। इसके साथ कई अन्य कॉलेज भी जुड़कर उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने में योगदान दिया।
प्रश्न 3.
19 वीं सदी के नवजागरण पर प्रकाश डालिए। बंगाल में नवजागरण की अवधारणा के सम्बन्ध में अपना तर्क या विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
उन्नीसवीं सदी में और बीसवी सदी के शुरूआती वर्षो में बंगाल में हुए समाज सुधार आंदोलनों, देशभक्तराष्ट्रवादी चेतना के उत्थान और साहित्य-कला-संस्कृति में हुई अनूठी प्रगति के दौर को बंगाल के नवजागरण की संज्ञा दी जाती है। इस दौरान समाज सुधारको, साहित्यकारों और कलाकरों ने सती-प्रथा, बहु-विवाह, दहेज-प्रथा, जाति-प्रथा और धर्म संबंधी स्थापित परम्पराओं को चुनौती दी। बगाल के इस घटनाक्रम ने समग्र भारतीय आधुनिकता निर्मिताओं पर अमिट छाप छोड़ी। इसी नवजागरण के दौरान भारतीय राष्ट्रवाद के शुरुआती रूपों की संरचनाएँ सामने आयी। बंगाल के नवजागरण का विस्तार राजा राममोहन राय (1772-1833) से आरम्भ होकर रवोन्द्रनाथ ठाकुर (1861-1941) तक माना जाता है।
इस अवधि का सुव्यवस्थित अध्ययन करने वाले इतिहासकार सुशोभन सरकार लिखते हैं कि अंग्रेजी राज, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और आधुनिक पश्चिमी संस्कृति का सबसे पहला प्रभाव बगाल पर पड़ा जिससे एक ऐसा नवजागरण हुआ जिसे आमतौर पर बंगाल के रिनेसा के नाम से जाना जाता है। करीब एक सदी तक बदलती हुई आधुनिक दुनिया के प्रति बंगाल की सचेत जागरूकता शेष भारत के मुकाबले आगे रही।
इस लिहाज से कहा जा सकता है कि भारत के आधुनिक जागरण में बंगाल द्वारा निभायी गयी भूमिका की तुलना यूरोपीय रिनेसाँ के संदर्भ में इटली की भूमिका से की जा सकती है। इतावली रेनेसाँ की ही तरह बंगाल का नवजागरण कोई जनादोलन नहीं था। इसकी प्रक्रिया और प्रसार कुलीन (उच्च वर्गो) तक ही सीमित था। कुलीनों में भी नवजागरण का प्रभाव अधिकतर हिंदू हिस्से पर ही पड़ा। इस दौरान कुछ मुसलमान हस्तियाँ भी उभरीं (जैसे, सैयद अमीर अली, मुशर्रफ हुसैन, साकेदीन महमूद, काजो नजरूल इस्लाम और रूकैया सखावत हुसैन)।
मोटे तौर पर माना जाता है कि बंगाल के नवजागरण की शुरुआत राजा राममोहन राय से हुई और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के साथ उसका समापन हो गया। सुशोभन सरकार ने इसे पाँच चरणों में बाँट कर देखने का प्रयास किया है । पहली अवधि 1814 ई० से 1833 ई० जिसकी केन्द्रीय हस्ती राजा राममोहन राय थे। 1814 ई० में वे कोलकाता रहने के लिए आये और 1833 ई० में उनका लंदन में देहांत हुआ। दूसरी अवधि उनकी मृत्यु से 1857 ई० के विद्रोह तक जाती है।
तीसरी अव्वधि 1885 ई० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तक फैली हुई है। चौथी अवधि 1905 ई० में बंगाल के विभाजन तक और पाँचवी अवधि स्वदेशी आंदोलन से असहयोग आंदोलन और महात्मा गाँधी के नेतृत्व की शुरुआत तक यानी 1919 ई० तक मानी गयी है। राजा राममोहन राय ने अपने धार्मिक और सामाजिक विचारों को धरती पर उतारने के लिए 20 अगस्त 1828 ई० में बह्म सभा का गठन किया।
इस प्रक्रिया का परिणाम 1830 ई० में एक चर्च की स्थापना के रूप में निकला और बह्म समाज आंदोलन शुरू हुआ, जो लम्बे समय तक बंगाली समाज की चेतना को प्रभावित करता रहा। 1818 ई० से 1829 ई० के बीच राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी बुराई पर आक्रमण करते हुए तीन रचनाये प्रकाशित की। सती प्रथा के खिलाफ जनमत बनाने और अंग्रेजों को उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डालने का श्रेय उनके प्रयासों को ही दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने आधुनिक शिक्षा और विशेष रूप से स्त्री शिक्षा के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाया।
1857 ई० के विद्रोह के बाद बंगाल का पुनर्जागरण साहित्यिक कांति और उसके जरिये राष्ट्रवादी चितन के युग में प्रवेश किया। नील की खेती करवाने वाले अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ किसानों के संघर्ष में बंगाली बुद्धिजीवियों ने भी अपनी आवाजें बुलंद की। दीनबंधु मित्र के नाटक नील दर्पण ने बंगाल के मानस को झकझोर दिया। धार्मिक सुधारो और पुनरूत्थानवाद के लिहाज से भी यह दौर बहुत ही घटनाप्रद था। दूसरी तरफ केशवचंद्र सेन के नेतृत्व में युवा बह्म समाज सुधार आंदोलन की अलख जगाये हुए थे।
प्रश्न 4.
सती प्रथा एवं उसे रोकने लिए राजा राम मोहन राय के प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सती प्रथा : समाज में व्याप्त दोषों में सर्वाधिक घृणित दोष सती प्रथा के रूप में विद्यमान था। सती शब्द का अर्थ है पवित्रता और चरित्रवती स्त्री, किन्तु सामान्यतः इसका अर्थ पतिव्रता स्त्रियों के अपने पतियों के मृत शरीरों के साथ जल जाने की प्रथा से लिया जाने लगा था। हिन्दू समाज में चिरकाल से ही इस प्रथा का प्रचलन था। विचाराधीन काल में देश के अन्य भागों की अपेक्षा बंगाल तथा उत्तर पश्चिम प्रान्त में यह प्रथा अधिक प्रचलित थी।
कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद, पटना, बनारस, बरेली आदि में इसका व्यापक प्रचलन था। मुगल सम्राट अकबर, पेशवाओं और राजा जयसिंह ने भी इस प्रथा को समाप्त करने के निष्फल प्रयत्न किये थे। 19 वीं शताब्दी के दूसरे दशक तक पहुँचते-पहुँचते यहु प्रथा भयंकर रूप में प्रकट होने लगी थी। $1815-1818$ ई० की अवधि में केवल बंगाल में ही 800 स्त्रियाँ सती हो गई थी।
सुपसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा निषेध कानून का नियमन करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप गवर्नर-जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 ई० के सुप्रसिद्ध सती उन्मूलन कानून के द्वारा इस प्रथा को गैर कानूनी घाषित कर दिया। इसे प्रोत्साहन देने वालों अथवा किसी विधवा को सती होने के लिए विवश करने वालों को प्राण दंड देने की व्यवस्था की गई। इस नियम ने सती प्रथा पर तीव्र आघात किया।
डब्लयू हेग के शब्दों में यह कम्पनी की सरकार द्वारा भारत की सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं में हस्तेक्षेप करने का अत्यन्त साहसिक कद्म था। राजा राम मोहन राय ने जब सती प्रथा पर रोक लगाई थी तब उन्हें अनेक कठिनाईझों का सामना करना पड़ा। उन्हें सामाजिक तथा राजनैतिक सभी प्रकार के कष्ट का सामना करना पड़ा। राजा राम मोहन राय ने अपने जीवनको शुरू से कष्टदायक बनाने का निश्चय कर दूसरों को सुखी जीवन दिया है। सती प्रथा रोककर उन्होंने समाज को एक नई प्रेरणा दी।
प्रश्न 5.
कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा का प्रसार : 24 जनवरी 1857 ई० को बंगाल में कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पूरे दक्षिण एशिया में यह पाश्चात्य सभ्यता का पहला विश्वविद्यालय था जिसमें कई तरह के विषयों में विद्यार्थी ज्ञानार्जन प्राप्त कर सकते थे। इस विश्वविद्यालय में सभी धर्मों एवं समुदायों के विद्यार्थी विद्या ग्रहण कर सकते थे। पूरे भारत में इस विश्वविधालय की चर्चा होती थी।
इस विश्वविद्यालय से चार नोबल पुरस्कार विजेताओं का संबंध रहा है। रालैण्ड रास, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सी० वी० रमन एवं अमर्त्य सेन। जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो इसमे लाहौर से लेकर रंगून तक के विद्यार्थी विद्यार्जन के लिए आते थे। इस व्विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति एवं उपकुलपति गर्वनर जनरल लार्ड कैनिंग एवं सुप्रिम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर जेम्स विलियम कोलबिल थे।
1858 ई० में यदुनाथ बोस एवं बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि पाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 30 जनवरी 1858 ई० को कलकत्ता विश्वद्यालय ने संघ की तरह काम करना आरंभ किया। इससे कई अन्य शिक्षण संस्थाएँ इसके साथ जुड़ गई। 1882 ई० में कादम्बिनी गांगुली एवं चन्द्रमुखी बसु स्तातक की उपाधि पाने वाली भारत की प्रथम महिला बनी। कलकत्ता विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है।
विशेषताएँ : 18 वीं शताब्दी के हिन्दू समाज में वर्षो से पल रहा कुसंस्कार काफी तीव्र हो उठा था। वेदों, उपनिषेदों तथा दर्शनों के मार्ग से भटककर कर शिक्षित समाज की पौराणिक कथाओं और कर्मकांडों में विश्वास करने लगा था। जातिपाँति का भेद-भाव समाज को खंड-खंड कर रहा था। स्त्रियों की स्थिति बड़ी दयनीय थी, इन्हें शिक्षा के क्षेत्र से दूर रखा जाता था। परदा-प्रथा, सती-प्रथा, बेमेल विवाह जैसी कुप्रथाओं की वे शिकार हो रही थी। स्त्री शिक्षा एवं विधवा विवाह को निन्दित कार्य माना जाता था। लड़कियों को शिक्षा देने के प्रयास किये जाने लगे।
उनके लिए कई बालिका विद्यालयों की स्थापना की गई। राजा राम मोहन राय, राधा कांत देव, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, डेविडहेयर एवं ड्रिंकवाटर ब्रेंथुन आदि महापुरुषों ने इस दिशा में सराहनीय कार्य किये, कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना की गई जिससे उच्च शिक्षा का प्रसार संभव हो सके, इसकी स्थापना के फलस्वरूप यहाँ पाश्चात्य साहित्य का अध्ययन करने वाले युवकों को पाश्चात्य दर्शन की कई दृष्टियों से प्रभावित किया वे भी भारत में स्वशसन की स्थापना देखने लगे।
टिप्पणियाँ : ब्रिटिश सरकार किसी भी प्रकार के सुधार के पक्ष में नहीं थी। उनकी दृष्टि में भारत एक असभ्य, भष्ट एवं पिछड़ा हुआ देश था। अंग्रेजी शिक्षा का एक प्रयोजन यह भी था कि शिक्षित भारतीय इंग्लैण्ड में बनी वस्तुओं के बाजार का भारत में विस्तार करेंगे। तथाषि बंगाल के कुछ बुद्धिजीवियों ने पाश्वात्य शिक्षा के महत्व को समझा तथा उसके प्रचार-प्रसार में योगदान दिया।
शिक्षा को समाज के प्रत्येक वर्ग में फैलाने की आवश्यकता महसूस की गई एवं महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। 1844 ई० की सरकारी घोषणा के कारण परम्परागत भारतीय शिक्षा प्रणाली समाप्त हो गई। सरकारी नौकरी के लिए अंग्रेजी भाषा अनिवार्य होने के कारण भारतीय जनता में शिक्षा का प्रसार नहीं हो पाया। अंग्रेजी माध्यम के शिक्षण संस्थाओं में फीस देनी पड़ती थी। अतः धनी वर्ग का इस पर एकाधिकार हो गया और शिक्षा का क्षेत्र काफी संकुचित हो गया।
प्रश्न 6.
रामकृष्ण परमहंस के विचारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस का विचार : बंगाल के महान संत रामकृष्ण परमहंस (20 फरवरी 1836 -15 मार्च 1886 ई०) का अनोखा व्यक्तित्व का जन्म गाँव में हुआ था। उन्होंने नाममात्र की भी शिक्षा प्राप्त नहीं की थी किन्तु घोर एकांत में निरंतर आध्यात्मिक साधना करते रहने के कारण वे एक अलौकिक पुरूष बन गये थे।
उनका जीवन धार्मिक साधना का मूर्तिमान स्वरूप था। उनमें हिन्दू धर्म और दर्शन के सभी रूपों अर्थात मूर्ति पूजा, अवतारवाद, भजन, कीर्तन, अद्वैतवाद आदि का अद्भुत समन्वय था। वे धार्मिक कट्टरता एवं संकर्णता को बुरा मानते थे। केवल तर्क के आधार पर धार्मिक सिद्धांतों का विश्लेषण करने से उन्हें चिढ़ थी। भारतीय संस्कृति तथा आध्यात्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए भी वे सभी धर्मों की सत्यता पर विश्वास करते थे।
सब प्रकार की धार्मिक साधनाओं में वे उसी ईश्वर को पाते थे जिसके तरफ सभी कदम बढ़ा रहे हैं। यद्यपि सबके मार्ग अलंग-अलग हैं। एक-मुसलमान सूफी से उन्होंने मुस्लिम-साधना की दीक्षा ली और ईसाई पादरी से पढ़वा कर बाइबल सुनते रहे । वे सिक्ख गुरूओं को आदर की दृष्टि से देखते रहे और समाधि की अवस्था में माँ काली तथा कृष्ण के अतिरिक्त ईसामसीह और बुद्ध के भी दर्शन करते रहे । रामकृष्ण काली के अनन्य उपासक थे। वे गुरू भक्त थे।
वे हिन्दू धर्म के रक्षक थे। यद्यपि उन्हें अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिली, तथापि वे नवीन पश्चिमी विचारों से अवगत थे। वे ईसाई और इस्लाम धर्म से भी प्रभावित थे। उनका कहना था कि सभी धर्मों में सच्चाई है। ईश्वर एक है। अतः आदमी को चाहिए कि वह जिस धर्म में पैदा हुआ हैं उसी को माने। रामकृष्ण विश्वजनीन धर्म के समर्थक थे। वे सुलह-ए-कुल के पक्षधर थे। यही कारण है कि उनके शिष्य विभिन्न धर्मों के अनुयायी थे ।
उनके शिष्य उन्हें ईश्वर तुल्य समझते थे। रामकृष्ण को न तो संस्कृत और न ही अंग्रेजी का ज्ञान था, वे बंगला के भी पंडित न ये किन्तु वे सभी से अच्छी तरह बात-चीत कर लेते थे। उनकी यह उक्ति पाहम, नाहम: तू ही, तू ही अत्यंत ही प्रसिद्ध है। जो उनके धार्मिक उपदेश का सार है। इसका सरल अर्थ है, वे (परमहंस) कुछ नहीं हैं। वे कोई औपचारिक गुरू न थे, वे कहते थे, मैं किसी का भी गुरू नहीं हूँ। मै हर आदमी का शागिर्द हूँ।”‘ 15 मार्च 1866 ई० को रामकृष्ण परमहंस जी का देहांत हो गया।
उनके लिए मानव-सेवा ही ईश्वर सेवा था । रामकृष्ण परमहंस के महान व्यक्तित्व तथा सरल और आदर्श पूर्ण जीवन का लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। उनके उपदेशों से लोगों में धार्मिक कट्टरता तथा सामाजिक रूढ़ियों के प्रति अरूचि उत्पन्न हुई तथा सम्र्रदायिक भावना का ह्रास हुआ। इनके इन्हीं सिद्धान्तों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए उनके शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने अथक प्रयत्न किया।
प्रश्न 7.
स्वामी विवेकानंद एवं उनके उपदेशों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानंद का पूर्व नाम नरेन्द्र दत्त था। संत रामकृष्ण के श्रेष्ठ शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरू के धार्मिक संदेश को विश्वभर में कोने-कोने तक पहुँचाया। उन्होंने न केवल रामकृष्ण की वाणी की व्याख्या की वरन् उसे व्यावहारिक रूप प्रदान कर मानव मात्र का हित साधन किया।
स्वामी विवेकानन्द एक कर्मठ योगी और वेदान्ती थे। उनका असाधारण व्यक्तित्व और उतना ही असाधारण कृतित्व विदेशों में भारतीय संस्कृति का गौरव स्तंभ बन गया तथा एक पराजित गुलाम जाति विश्व की दृष्टि में अभिनन्दनीय बन गई। विवेकानन्द ने अपने संदेश में सामाजिक कर्म और मानव सेवा पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा है ‘ ‘वह ज्ञान निरर्थक है जो संसार को कर्मभूमि मानकर कर्म की प्रेरणा नहीं देता है।
अपने गुरू की भाँति वे सर्व धर्म समभाव का संदेश प्रसारित करते रहे और प्रत्येक धर्म का आदर करते रहे। भारतीय दार्शनिक परंपरा के वे महान् संदेशवाहक थे और वेदान्त के कट्टर समर्थक थे। वे संकीर्णता के घोर विरोधी तथा स्वतंत्रता, समानता और मुक्त चिंतन के प्रचारक थे। उन्होंने तीखे स्वर में कहा था – ‘हमारा ईश्वर खाना पकाने के बर्तन में है और हमारा धर्म है – मुझे छुओ मत मैं पवित्र हूँ। अगर एक शताब्दी तक यह चलता रहा तो हम सब पागलखाने में होंगे ।
अपने गुरू की भाँति वे महान मानवतावादी थे। देश की विपन्नता और गरीबी से दु:खी होकर उन्होंने कहा – “जब तक करोड़ो लोग भूख और असमानता से पीड़ित है तब तक मैं उस हर व्यक्ति को देशद्रोही समझूँगा जो उनके खर्च से शिक्षित बनकर उनके प्रति ध्यान नहीं देता। विवेकानन्द ने कहाँ – ” “मैं उस धर्म में विश्वास नही करता जो किसी विधवा के आँसू नहीं पोछ सकता अथवा किसी अनाथ को रोटी नहीं दे सकता।
अपने गुरू की शिक्षाओं को मूर्त रूप देने के लिए स्वामी जी ने 1896 ई० में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसने न केवल भारत वरन् विश्व भर में मानव सेवा हेतु अस्पताल, अनाथालय, पुस्तकालय, शिक्षालय तथा सेवाश्रमों की स्थाना की और वर्तमान में भी उनका संचालन कर रही है। मिशन के सन्यासी अकाल, बाढ़, महामारी जैसे अवसरों पर जन-सहायतार्थ दल के दल निकल पड़ते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने व्यक्ति की मुक्ति की अपेक्षा समाज की मुक्ति अर्थात भलाई पर जोर दिया।
स्वामी विवेकानन्द जी के उपदेश : सभी धर्म सत्य और सुन्दर है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म में रहना चाहिए। ईश्वर निराकार सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली एवं सर्वव्यापी है। आत्मा पवित्र है। सभी प्राणी संत हैं। यह कहना ठीक नहीं हैं कि कोई व्यक्ति पाप का दोषी है, मूर्ति पूजा करनी चाहिए। हिन्दू-धर्म का हर तर्क महत्वपूर्ण है और इसे अच्छुण रखना चाहिए। सुधारवादी गलती कर रहे हैं। वे आसार के साथ सार को भी दूर कर रहे हैं।
पुराने विचार अंधविश्वास हो सकते हैं, किन्तु उसमें भी सत्यता की झांकी मिल सकती है। हिन्दू सभ्यता संस्कृति सबसे प्राचीन है। यह सभी धर्मो से प्राचीन है। यह सत्य शिव सुन्दरम हैं। हिन्दू धर्म के विरूद्ध यूरोपीय विद्वानों की आलोचनाएँ भान्तिपूर्ण हैं। ईसोई धर्म प्रचारक हिन्दू-धर्म के बारे में गलत प्रचार करते हैं। भारत सदा से ही आध्यात्मिक देश रहा है। इसने प्राचीन काल में विश्व को शिक्षा दी है तथा भविष्य में भी शिक्षा देगा। पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति भौतिकवादी, स्वार्थी एवं कामुक है।
अत: हिन्दू-धर्म के लिए अत्यन्त ही विनाशकारी है। प्रत्यके हिन्दू का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने धर्म की रक्षा करें। पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान को सीखें। वे मांस भक्षण भी करें जिससे मजबूत बन सकें, भारत-भूमि पर वे एक शक्तिशाली सभ्यता का निर्माण करें। विवेकानन्द का विघार था कि प्राचीन भारत ने चीन, यूनान एवं रोम को काफी प्रभावित किया। भारत उनका आदि गुरू रहा है। 4 जुलाई 1902 ई० को मात्र 40 वर्ष की उम्र में स्वामी जी का आकस्मिक देहांत हो गया।
प्रश्न 8.
हाजी मोहम्मद मोहसिन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
हाजी मोहम्मद मोहसिन : हाजी मोहम्मद मोहसिन हाजी शरीयत उल्लाह के पुत्र तथा बंगाल में फराजी आंदोलन के प्रमुख नेता थे। ये दूधू मियाँ के नाम से प्रसिद्ध थे। एक क्रांतिकारी होने के पहले ये एक धर्म सुधारक भी थे। इनके पिता ने 1804 ई० में फराजी नामक धार्मिक सम्र्रदाय की स्थापना की थी। अपने पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए उन्होंने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना अपना प्रमुख लक्ष्य बना लिया। इसके साथ ही साथ इन्होंने फराजी कृषकों को जमींदारों के शोषण से मुक्त कराने का बीड़ा भी उठाया।
अपने पिता हाजी शरीयत उल्लाह की मृत्यु के पश्चात् हाजी मोहम्मद मोहसिन ने फराजी आन्दोलन का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। इन्होंने जमीदारों के अत्याचारों के खिलाफ अपने अनुयायियों को संगठित किया। अल्पकाल में ही ढाका फरीदपुर क्षेत्र के असंख्य मुसलमान इस संगठन में शामिल हो गए और स्थान-स्थान पर जमींदारों तथा अंग्रेजी शासन का विरोध करने लगे। इन्होंने अंग्रेज अदालतों का विरोध किया और जगह-जगह ग्रामीण न्यायालयों की स्थापना की। इन न्यायालयों के माध्यम से जमींदारों के अत्याचार के विरुद्ध रैय्यतों की मदद एवं आपसी झगड़ों को सुलझाया जाता था।
हाजी मुहम्मद मोहसिन के द्वारा चलाया गया आन्दोलन विशुद्ध आन्दोलन था परन्तु बाद में शोषित हिन्दू भी इसमें शामिल हो गये, धीरे-धीरे यह संगठन एक विशाल संगठन बन गया। इन्होंने स्वयं को बंगाल का शासक घोषित कर दिया तथा बहादुरपुर को केन्द्र बनाया। मोहम्मद मोहसिन ने बंगाल को कई भागों में विभक्त कर प्रत्येक क्षेत्र में एक खलीफा नियुक्त किया। खलीफा अपने क्षेत्र में फराजियों को संगठित करने, उनके ऊपर होने वाले अत्याचार का विरोध करने तथा आन्दोलन के लिए धन एकत्र करने का काम करते थे।
धीरे-धीरे यह आन्दोलन फरीदपुर, विक्रमपुर, खुलना और चौबिस परगना जिले में फैल गया। फराजियों के उग्रवादी रूप को देखकर जमींदारों, साहुकारों, नीलहे गोरे एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने फराजियों का दमन करने के लिए सरकार पर दबाव डाला। 1841 ई० में मोहम्मद मोहसिन तथा उनके अनेक अनुयायी गिरफ्तार कर लिए गये, किन्तु सबूतों के अभाव में बरी हो गए। 1857 ई० के विद्रोह के समय इन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया। तीन वर्ष बाद 1860 में जेल में ही इनकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 9.
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विकास का वर्णन कीजिए। नारी शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
अंग्रेजी शिक्षा : मैकॉले की शिक्षा पद्धति विप्रवेशन सिद्धान्त या अधोमुखी निस्यन्दन सिद्धांत पर आधारित थी। इस सिद्धान्त में माना जाता है कि यदि उच्च वर्ग के कुछ लोगों को शिक्षित कर दिया जाए तो वे मध्यम वर्ग के और अधिक लोगों को शिक्षित करेंगे एवं फिर ये शिक्षित लोग निम्न वर्ग के काफी लोगों को शिक्षित करेंगे। परन्तु भारत में यह प्रयास पूर्णत: सफल नहीं हो सका। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विकास का दूसरा चरण लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में शुरू हुआ।
इसके पूर्व 1835 ई० में लोक शिक्षा समिति 20 विद्यालयों को चला रही थी। लार्ड ऑकलैण्ड ने बंगाल को 9 भागों में विभक्त किया और प्रायः प्रत्येक जिले में विद्यालय स्थापित किए। 1840 ई० तक इस प्रकार के 40 विद्यालय थे। 1837 ई० में इनकी संख्या बढ़कर 48 हो गई। 1835 ई० में कलकता मेडिकल कॉलेज की नींव लार्ड विलियम बेंटिक के समय में पड़ी। 1854 ई० में लाई्ड डलहौजी ने 33 प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की। 1851 ई० में पूना संस्कृत कॉलेज और अंग्रेजी स्कूल को मिलाकर पूना कॉलेज बनाया गया। 1854 ई० में बम्बई में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। 1852 ई० में सेंट जान्स कॉलेज की स्थापना की गई।
इस योजना के तहत भारत में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से उच्च शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया साथ ही साथ देशी भाषा के विकास को महत्व दिया गया। लन्दन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास में तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इस घोषणा में तकनीकी एवं व्यावसायिक विश्वविद्यालय की स्थापना पर भी बल दिया गया।
नारी शिक्षा एवं ईश्वरचन्द्र विद्यासागर : विद्यासागर के जीवन का संकल्प था शिक्षा-सुधार, शिक्षा का प्रचार तथा स्त्रियों को हर प्रकार की सामाजिक स्वतंत्रता। स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए उन्होंने अत्यधिक कार्य किये। उन्होंने अनुभव किया कि शिक्षा के बिना स्त्रियों की दशा में सुधार नहीं हो सकता। हिन्दू बलिका विद्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने बेथून साहब की सहायता से बेथून कॉलेज की स्थापना की। बंगालियों के सामाजिक इतिहास में इसका काफी महत्व है।
शिक्षा निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने बंगाल में अनेक बालिका विद्यालयों की स्थापना की। उन्होंने देशी शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को अधिकाधिक देशी विद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया। शिक्षा जगत में धार्मिक संक्कीणता को दूर करने के लिए संस्कृत कॉलेज में गैर ब्राह्मण छात्रों को पढ़ाने का अवसर दिया। बच्चों को आसानी से बंगला सीखने के लिए उन्होंने वर्ण परिचय, लघु सिद्धान्त कौमुदी, बोधोदय, कथा माला आदि पुस्तको की रचना की। इस प्रकार शिक्षा प्रसार तथा नारी उत्थान में विद्यासागर का योगदान अविस्मरणीय रहा है।