WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 1 इतिहास की अवधारणा

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WBBSE Class 10 History Chapter 1 Question Answer – इतिहास की अवधारणा

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
‘सोमप्रकाश’ के सम्पादक कौन थे ?
उत्तर :
‘सोमप्रकाश’ के सम्पादक द्वारकानाथ विद्याभूषण थे।

प्रश्न 2.
सरकारी दस्तावेज कहाँ संरक्षित किये जाते है ?
उत्तर :
सरकारी दस्तावेज राष्ट्रीय संग्रहालयों में संरक्षित किये जाते है।

प्रश्न 3.
सरला देवी चौधुरानी की आत्मकथा का नाम क्या है ?
उत्तर :
जीवनेर झड़ा पाता।

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प्रश्न 4.
बंगदर्शन पत्रिका की स्थापना किसने किया था ?
उत्तर :
बंगदर्शन पत्रिका की स्थापना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1872 ई० में किया था।

प्रश्न 5.
जन-गण-मन राष्ट्रगान सबसे पहले कब और किस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था ?
उत्तर :
1912 ई० में तत्वबोधिनी पत्रिका में।

प्रश्न 6.
आधुनिक इतिहास लेखन का पिता किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
लियोपोल्ड रांके।

प्रश्न 7.
पर्यावरण इतिहास लेखन की परम्परा सर्वप्रथम किस देश में शुरू हुआ ?
उत्तर :
1960 ई० के दशक में अमेरिका में।

प्रश्न 8.
किसने कहा, ‘ ‘इतिहास एक घर है जिसमें सभी विषय समाहित हैं।”
उत्तर :
प्रो० ट्रैलियान ने।

प्रश्न 9.
पहिए एवं कृषि का आविष्कार कब हुआ था?
उत्तर :
पहिए एवं कृषि का आविष्कार नव पाषाण युग में हुआ था ।

प्रश्न 10.
मेधा पाटेकर कौन है ?
उत्तर :
मेधा पाटेकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख नेत्री हैं।

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प्रश्न 11.
मोहन बागान क्लब ने किस वर्ष आई. एफ. ए. शील्ड सर्वप्रथम जीता था ?
उत्तर :
मोहन बागान क्लब ने 1911 ई० में आई, एफ. ए. शील्ड सर्वप्रथम जीता था ।

प्रश्न 12.
‘Decline and fall of the Roman empire’ किसके द्वारा लिखा गया था?
उत्तर :
गिब्मन के द्वारा।

प्रश्न 13.
‘हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट इन इण्डिया’ नामक पुस्तक किसने लिखा ?
उत्तर :
ताराचन्द ने।

प्रश्न 14.
लार्ड लिटन द्वारा भारतीय समाचार पत्र अधिनियम कब पारित हुआ था ?
उत्तर :
लाई लिटन द्वारा भारतीय समाचार पत्र अधिनियम 1878 ई० में पारित हुआ था।

प्रश्न 15.
‘सत्तर बच्छर’ नामक पुस्तक का प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1927 ई० में।

प्रश्न 16.
‘जीवन स्मृति’ ग्रन्थ का प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1912 ई० में।

प्रश्न 17.
जीवन स्मृति किसने लिखा ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जीवन स्मृति लिखा।

प्रश्न 18.
प्रथम ओलम्पिक खेल कब तथा कहाँ आयोजित किया गया था ?
उत्तर :
प्रथम ओलम्पिक खेल 776 ई० पू॰ यूनान में आयोजित किया गया था।

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प्रश्न 19.
भारत में पहली बार रेल कहाँ से कहाँ तक चली थी ?
उत्तर :
भारत में पहली बार रेल बम्बई से ठाणे तक चली थी।

प्रश्न 20.
भारत में पहली रेल यात्रा किस वर्ष शुरू हुई थी ?
उत्तर :
भारत में पहली रेल यात्रा 1853 ई० में शुरू हुई थी।

प्रश्न 21.
भारत में सर्वप्रथम रेलवे का निर्माण कब हुआ था ?
उत्तर :
1853 ई० में भारत में सर्वप्रथम रेलवे का निर्माण हुआ था।

प्रश्न 22.
नवजागरण का प्रारम्भ सर्वप्रथम किस देश में हुआ था ?
उत्तर :
इटली में।

प्रश्न 23.
फ्रांस की सभ्यता का सर्वेक्षण किसने किया था ?
उत्तर :
रेम्बौड ने किया था।

प्रश्न 24.
किसने कहा, “इतिहास महापुरुषों की जीवन गाथा है।”
उत्तर :
कार्लाइल ने।

प्रश्न 25.
इतिहास क्या है ?
उत्तर :
मानव जीवन से जुड़ी अतीत की महत्वपूर्ण घटनाओं का लेखा-जोखा ही इतिहास कहलाता है ।

प्रश्न 26.
नगरी इतिहास के अन्तर्गत किन-किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर :
नगरी इतिहास के अन्तर्गत नगरों के निर्माण, विकास, जनसंख्या समस्या आदि का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 27.
सोमप्रकाश का प्रकाशन किसने एवं कब किया ?
उत्तर :
सोमप्रकाश का प्रकाशन ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने सन् 1858 ई० में किया।

प्रश्न 28.
ब्रिटेन में रेल की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर :
1820 ई० में।

प्रश्न 29.
‘जेनरल सोसाइटी’ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
जेनरल सोसाइटी की स्थापना 1968 ई० में हुई।

प्रश्न 30.
अंग्रेजी का History किस भाषा के शब्द से लिया गया है ?
उत्तर :
अंग्रेजी का History लैटिन भाषा के ‘हिस्टोरिया’ शब्द से निकला गया है।

प्रश्न 31.
बोरिस हेसेन ने किन सिद्धान्तों का पता लगाया ?
उत्तर :
वैज्ञानिक पद्धतियों एवं खोजों के संबंध में।

प्रश्न 32.
प्राचीनकाल के कुछ खेलों का नाम बताइए।
उत्तर :
तीरंदाजी, तैराकी, कुश्ती, भारोत्तोलन तथा ऊँची कूद इत्यादि।

प्रश्न 33.
ओलम्पिक खेलों में कौन-कौन सी प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं ?
उत्तर :
दौड़, तीरंदाजी, निशानेबाजी, जिमनास्टिक, फुटबॉल, कुश्ती, कबड्ड़ इत्यादि।

प्रश्न 34.
वायुयान का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर :
ऑरविल राइट एवं बिलवर राइट ने । (राइट बन्धुओं ने)

प्रश्न 35.
भारतीय फिल्म उद्योग को किस नाम से जाता है ?
उत्तर :
बॉलीवुड (Bollywood) के नाम से।

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प्रश्न 36.
आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन के प्रमुख स्रोत क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
सरकारी प्रकाशन, मुद्रित नक्शे, निजी पत्र, फोटोग्राफ्स तथा पंजीकृत पत्र इत्यादि।

प्रश्न 37.
‘जीवन-स्मृति’ ग्रन्थ की विषय-वस्तु क्या है ?
उत्तर :
‘जीवन – स्मृति’ ग्रन्थ की विषय वस्तु रवीन्द्रनाथ टेगोर के बचपन के किया-कलापों का वर्णन है।

प्रश्न 38.
‘लेटर्स फ्रॉम ए फादर दू हिज डॉटर’ में कितने पत्रों का संग्रह है ?
उत्तर :
30 पत्रो का संग्रह है।

प्रश्न 39.
इतिहासकार ‘मूर’ ने कपास की कृषि के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर :
इतिहासकार ‘मूर’ का मानना है कि कपास की कृषि 9 वीं शताब्दी में स्पेन में शुरू हुई।

प्रश्न 40.
उड़ीसा का सूर्य मन्दिर किसके समय में बनाया गया था ?
उत्तर :
नरसिंह देव प्रथम के समय में बनाया गया था।

प्रश्न 41.
‘हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट इन इण्डिया’ नामक पुस्तक किसने लिखा ?
उत्तर :
ताराचन्द ने।

प्रश्न 42.
‘गवर्नमेंट आर्काइब्ज इन साउथ एशिया’ नामक पुस्तक किसने लिखा ?
उत्तर :
इल्टिस और वेनराइट ने।

प्रश्न 43.
‘इतिहास की रूपरेखा’ किसने लिखा ?
उत्तर :
एच० जी० वेल्स ने।

प्रश्न 44.
किसने छाया चित्रकारी के लिए स्टुडियो की स्थापना की थी ?
उत्तर :
बुर्ने एण्ड शेफर्ड ने।

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प्रश्न 45.
हिन्दू कॉलेज में विज्ञान की पढ़ाई का प्रारम्भ कब शुरु हुआ ?
उत्तर :
सन् 1824 ई० में।

प्रश्न 46.
अभिनय कला का प्राचीनतम उदाहरण कहाँ उपलब्ध है ?
उत्तर :
अभिनय कला का प्राचीनतम उदाहरण वेदों में एवं भरत मुनी द्वारा रचित नाद्य शारू में मिलता है ।

प्रश्न 47.
किसने कहा, “इतिहास अतीत में मानव के कार्यकलापों का विज्ञान है।”?
उत्तर :
इतिहास के जनक हेरोडोट्स ने।

प्रश्न 48.
1930 के उत्खनन में मेसोपोटामिया के किन दो नगरों के अवशेष मिले हैं।
उत्तर :
उर और मारी।

प्रश्न 49.
यूनान के थ्यूसीडायड्स ने किस पुस्तक की रचना की ?
उत्तर :
पोलोपोलेशियन युद्ध का इतिहास (The History of Polopolesian War)।

प्रश्न 50.
पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित पुस्तक का नाम क्या है ?
उत्तर :
हिस्ट्री आफ द इण्डियन नेशनल कांग्रेस (2 खण्ड)।

प्रश्न 51.
‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ में पिता और पुत्री कौन है ?
उत्तर :
पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा पुत्री इन्दिरा प्रियदशर्नी है।

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प्रश्न 52.
सोम प्रकाश पत्र क्यों प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर :
सोम प्रकाश समाचारपत्र की प्रसिद्धि का मुख्य कारण जमीदारों तथा नील के ठेकेदारों की कड़ी आलोचना तथा सभी व्यक्तियों के मत को आंदोलन के लिये संगठित करना था।

प्रश्न 53.
बंकिमचन्द्र की पुस्तके किस पत्रिका में प्रकाशित होती थीं ?
उत्तर :
बंग-दर्शन नामक पत्रिका में प्रकाशित होती थी।

प्रश्न 54.
क्षेत्रीय इतिहास के बारे में लिखें।
उत्तर :
क्षेत्रीय इतिहास को अभी तक परम्परागत इतिहास लेखन में महत्ता न दिए जाने से इसका विकास अवरूद्ध था।

प्रश्न 55.
बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना कब और किसने की थी ?
उत्तर :
बंगाल में द्वैध शासन 1765 ई० में रार्बट क्लाइव ने लागू की थी।

प्रश्न 56.
नारी इतिहास क्या है ?
उत्तर :
नारी के संघ्ष अधिकार प्राप्ति, उपलब्षि आदि विषयों का अध्ययन करने वाला सामाजिक इतिहास नारी इतिहास कहलाता है।

प्रश्न 57.
भारत के दो सामाजिक इतिहासकारों का नाम लिखिए।
उत्तर :
रंजीत गुहा, रमेश चन्द्र मजूमदार भारत के सामाजिक इतिहासकार है।

प्रश्न 58.
भारत के दो नाटककारों का नाम लिखिए।
उत्तर :
मणी माधव चाक्चार।

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प्रश्न 59.
भारत में पर्यावरण आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं का नाम लिखिए।
उत्तर :
चाँदनी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा एवं मेधा पाटेकर, बाबा आदि पर्यावरण आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
स्थानीय इतिहास के अध्ययन का क्या महत्व है ?
उत्तर :
स्थानीय इतिहास स्थान विशेष के भौगोलिक क्षेत्र की छोटी-बड़ी स्थानीय घटनायें संस्कृति, परम्परा, समाजिक, आर्थिक दशायें, खेल-कूद, कला-साहित्य की जानकारी देते है जो सभ्यता-संस्कृति के विकास में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाते है। कुमुद नाथ मल्लिक की नदिया की कहानी, अमनातुल्ला की कुचविहार का इतिहास तथा सुधीर कुमार मित्र का हुगली जिले का इतिहास इसके उदाहरण है।

प्रश्न 2.
‘सरकारी अभिलेख’ से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय सरकारों के अभिलेखागारो में सुरक्षित ढंग से रखे गये सरकारी प्रतिवेदन, सरकारी पत्र, प्रुलिस पत्र एवं डायरी, खुफिया रिर्पोट, साक्षात्कार आदि अन्य सरकारी दस्तावेज को सरकारी अभिलेख कहा जाता है।

प्रश्न 3.
समाचार पत्र एवं पत्रिका में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
समाचार पत्र नियमित रूप से प्रतिदिन की घटनाओं एवं सूचनाओं के साथ प्रकाशित होते है । जैसे – सोमप्रकाश 1 जबकि समाचार पत्रिका एक निश्चित अन्तराल पर एक निश्चित उद्देश्य एवं प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित होते है। जैसे – प्रवासी, सबुजपाता एवं बंगदर्शन।

प्रश्न 4.
परिवेश (पर्यावरण) के इतिहास का क्या महत्व है ?
उत्तर :
पर्यावरण का इतिहास मानव सभ्यता का इतिहास है। मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के मनमानी दुरूपयोग ने विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसी के प्रतिक्रिया स्वरूप पर्यावरण को बचाने के लिए ‘चिपको आन्दोलन,’ ‘नर्मदा बचाओं आन्दोलन शुरू हुआ। इस प्रकार पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना पर्यावरण इतिहास का महत्व है।

प्रश्न 5.
स्मृतिकथा अथवा आत्मकथा को आधुनिक भारतीय इतिहास के श्रोत के रूप में किस प्रकार व्यवहार किया जाता है ?
उत्तर :
इतिहास लेखन के क्षेत्र में स्मृतिकथा या आत्मजीवनी को एक प्रमाणिक स्त्रोत के रूप में व्यवहार किया जाता है इससे व्यक्तिगत गुण-स्वभाव के साथ-साथ उस समय के समाज की संस्कृति, घटनाएँ, समस्याए, राष्ट्रीय आन्दोलन आदि अन्य विविध विषयों की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 6.
सामाजिक इतिहास क्या है ?
उत्तर :
वह इतिहास जिसके अन्तर्गत मानव समाज के सभी वर्गों के सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों धर्म, नैतिकता, कृषि, वाणिज्य, खेल-कूद, खान-पान, वेश-भूषा, कला आदि अन्य विषयों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है, उसे सामाजिक इतिहास कहा जाता है।

प्रश्न 7.
इतिहास के स्रोत के रूप में समाचार पत्रों का क्या महत्व है ?
उत्तर :
इतिहास के स्रोत के रूप में समाचार पत्रों का यही महत्व है कि ये समसामयिक घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी होते हैं, इनसे घटनाओं की तिथी, (समय) कारण आदि अन्य बातों की क्रमबद्ध जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
स्थानीय इतिहास से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
स्थान विशेष के निवासियों की प्रकृति, इतिहास, आर्थिक क्रिया-कलाप संस्कृति, भाषा, भौगोलिक स्थिति तथा जीवन के तौर-तरीके आदि अन्य जटिल विषयों का अध्ययन स्थानीय इतिहास कहलाता है।

प्रश्न 9.
किस प्रकार एक आत्मकथा इतिहास के एक स्रोत के रूप में उपयोगी है ?
उत्तर :
स्मृति इतिहास जानने की एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है। स्मृति के द्वारा ही आत्मकथा, यात्रा-वृत्तांत, निबध लेखन आदि संपन्न होते हैं। आत्मजीवन मूलक ग्रंथों का प्रधान विषय-वस्तु स्मृति कथा है। स्मृति कथाओं की रचना विशेषकर ज्ञानी व्यक्ति ही करते हैं। उनके द्वारा दिये गये विवरण से अतीत के विभिन्न वास्तविक घटनाओं के तथ्यों की जानकारी प्राप्ति होती है।

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प्रश्न 10.
ब्रिटिश सरकार द्वारा क्यों 1878 ई० में ‘सोमप्रकाश’ पत्रिका का प्रकाशन बन्द कर दिया था ?
उत्तर :
लार्ड लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम के पारित हो जाने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा इस पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया, क्योंकि इस पत्रिका के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विभिन्न जनस्वार्थ विरोधी नीतियों का विरोध किया जाता था तथा जनमत तैयार किया जाता था। इस प्रकार सरकार जन विरोध की भावनाओं को रोकने के लिए सोम प्रकाश के प्रकाशन पर रोक लगा दी थी।

प्रश्न 11.
इतिहास क्या हैं ? या इतिहास का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अध्ययन के आधार तत्वों का उल्लेख कीजिए ?
उत्तर :
इतिहास का अर्थ : इतिहास हिन्दी के दो शब्दों इति + हास से मिलकर बना है। ‘इति का अर्थ है – ऐसा ही’ और ‘हास’ का अर्थ है – ‘हुआ है’। इस प्रकार इतिहास का अर्थ हुआ ऐसा ही हुआ है। अतः इतिहास वह सामाजिक विषय हैं। जिसके अर्न्तगत अतीत की सत्य और महत्वपूर्ण घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।
इतिहास के अध्ययन के तत्व : इतिहास मानव समाज के अतीत की घटनाओं का अध्ययन करने वाला महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय हैं। इसलियें इसके अध्ययन के मुख्य तत्व स्थान, समय (काल), व्यक्ति एवं घटनाएँ हैं। इतिहास के इन्हीं चारों तत्वों का विश्वसनीयता एवं परीक्षण के आधर पर घटनाओं का विश्लेषण कर सत्य तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 12.
सामाजिक इतिहास से क्या समझते है ? कितने भेद हैं ?
उत्तर :
सामाजिक इतिहास : मनुष्य के सामाजिक जीवनकाल के विभिन्न पक्षों और रूपों जैसे – सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, सामरिक आदि का अध्ययन किया जाता है, उसे सामाजिक इतिहास कहते हैं।

यह इतिहास के अध्ययन का एक नया दृष्टिकोण हैं। जिसमें मानव जीवन से संबंधित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। सामाजिक इतिहास के भेद : आधुनिक इतिहासकारों ने अध्ययन की सुविधा के लिये इतिहास को दो भागों में बाँटा है :-
(अ) प्राचीन सामाजिक इतिहास
(आ) नवीन समाजिक इतिहास।

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प्रश्न 13.
इतिहास के अध्ययन में खाद्य इतिहास की भूमिका क्या है ?
उत्तर :
इतिहास द्वारा प्राचीन काल से आधुनिक काल तक लोगों के द्वारा व्यवहार में लाए गए खाद्य पदार्थों का वर्णन है। सभी इतिहासकारों का मानना है मनुष्य आरंभ में मांसाहारी प्राणी था। इसके अलावा किसी स्थान विशेष की भू-प्रकृति, जलवायु, संस्कृति, पेशा, धार्मिक विश्वास एवं परम्परा के द्वारा भी हम लोगों के खाद्य अभ्यास के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

प्रश्न 14.
नूतन सामाजिक इतिहास में किन-किन तथ्यों का अध्ययन किया जाता है।
उत्तर :
नूतन सामाजिक इतिहास में मानव जीवन के सामाजिक, धर्म, राष्ट्रीय, अर्थ व्यवस्था, नैतिकता, आचारव्यवहार, भोजन वस्त्र, कला संस्कृति आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 15.
खाद्य इतिहास एवं पाकशैली का सूत्रपात कैसे हुआ ?
उत्तर :
नियण्डरथल मानव ने आग का आविष्कार किया और मानव मांस भुनकर खाने लगा, फलस्वरूप खाद्य इतिहास एवं पाक शैली का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 16.
विज्ञान प्रौद्योगिकी और चिकित्सा के इतिहास से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
इतिहास की इस शाखा में जैविक विज्ञान, इंजोनियरिंग, कम्प्यूटर और सूचना विज्ञान, भूगोल, गणित एवं विकास, दवा, न्यूरोसाइसेस, फार्मेसी, भौतिक विज्ञान, मानसिक रोगो की चिकित्सा, सार्वर्जनिक स्वास्थ एवं प्रौद्योगिक के आविष्कार एवं विकास का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 17.
फोटोग्राफी से क्या लाभ है ?
उत्तर :
फोटोग्राफी की खोज से मनुष्य के अन्दर प्रकृति का रूप, रंग एवं स्वरूप तथा मनुष्य के द्वारा बनाए गये आश्चर्यों को कैमरे में कैद करने की प्रवृत्ति बढ़ गई। फोटोग्राफी के द्वारा मनुष्य को किसी भी स्थान, व्यक्ति एवं घटना की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 18.
खेल के इतिहास से हमें क्या पता चलता है ?
उत्तर :
खेल के इतिहास से हमें पता चलता है कि कौन सा खेल कब, कहाँ शुरू हुआ। इनके खेलने के नियम, तौरतरीके, खिलाड़ियों के गुण-स्वभाव आदि अन्य बातों की जानकारी होती है।

प्रश्न 19.
विपिन्न चन्द्र पाल को घर क्यों छोड़ना पड़ा ?
उत्तर :
विपिन चन्द्र पाल जब बड़े हुए तो उनके पिता से उनकी अनबन हो गयी और उन्होंने स्वतंत्र-जीवन-यापन के लिए घर छोड़ दिया।

प्रश्न 20.
विपिन चन्द्र पाल कैसे व्यक्ति थे ?
उत्तर :
विपिन्न चन्द्र पाल कठोर सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे। वे टूट सकते थे पर अपने सिद्धान्त से हिल नहीं सकते थे। यही कारण है कि विपिन चन्द्र पाल को अपने व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में संघर्ष करना पड़ा।

प्रश्न 21.
सरकारी दस्तावेज क्या है ?
उत्तर :
सरकारी दस्तावेज इतिहास तथा सरकारी क्रिया-कलापों को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसकी मदद से हमें अतीत की विभिन्न पक्षों की जानकारियाँ प्राप्त होती है, जिनका विश्लेषण कर तत्कालीन इतिहास की सत्य बातों को जाना जा सकती है। सरकारी दस्तावेज विभिन्न प्रकार के होते है, जैसे – प्रतिवेदन, विवरण, पुलिस के दस्तावेज तथा गुप्त समाचार इत्यादि।

प्रश्न 22.
नव जागरण काल किसे कहा गया है ?
उत्तर :
19 वीं शदी के प्रारम्भ में भारत के बंगाल में हुए सामाजिक, सांस्कृतिक, रजजनीतिक तथा धार्मिक आंदोलन के कारण लोगों में जागरुकता को ही नव जागरण काल कहा जाता है। नव जागरण काल मुख्यतः राजा राममोहन राय के काल से रवीन्द्रनाथ टैगोर के काल तक माना जाता है।

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प्रश्न 23.
विज्ञान प्रौद्योगिकी और चिकित्सा के इतिहास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
इतिहास की जिस शाखा में जैविक विज्ञान, इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर और सूचना विज्ञान, भूगोल, गणित एवं विकास, दवा, न्यूरोसाइन्सेस, फार्मेसी, भौतिक विज्ञान, मानसिक रोगों की चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं प्रौद्योगिक के आविष्कार एवं विकास का अध्ययन किया जाता है। उसे विज्ञान प्रौद्योगिकी और चिकित्सा का इतिहास कहते है।

प्रश्न 24.
निम्नवर्गीय इतिहास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
निम्नवर्गीय इतिहास से आशय उस इतिहास लेखन से है जिसके अन्तर्गत कृषक, मजदूर एवं समाज के निम्नवर्ग के लोगों के रहन-सहन, भाषा, खान-पान एवं आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 25.
आधुनिक काल के इतिहास लेखन में चलचित्र की भूमिका क्या है ?
उत्तर :
चलचित्र का इतिहास किसी समाज या देश की स्थिति का ज्ञान कराती है। कलाकारों ने विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं एवं घटनाओं के माध्यम से सजीव चित्रण करते है, उसे देखकर उस समय की राजनीतिक दशा, सामाजिक दशा, लोगों का जीवन-यापन एवं उनकी स्थिति का ज्ञान होता है इससे इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से देखने और महशुश करने का अवसर मिलता है जो इतिहास लिखने में चलचित्र भूमिका निभाते है ।

प्रश्न 26.
इतिहास के अध्ययन के तत्व स्वरूप आत्मजीवनी एवं संस्मरणों के महत्व क्या हैं ?
उत्तर :
स्तृति के द्वारा ही आत्मकथा, यात्रा-वृतांत, निबंध लेखन आदि संपन्न होते हैं। आत्मजीवन मृलक ग्रंथों का प्रधान विषय-वस्तु स्मृति कथा है। इस प्रकार स्मृति कथा एक प्रकार का साहित्य है जहाँ लेखक अपने जीवन में घटित घटनाओं का विवरण अपने स्मृतियों के माध्यम से प्रस्तुत करता है जो समसामयिक घटनाओं को समझने में मदद करते है।

प्रश्न 27.
जवाहरलाल नेहरू अपनी पुत्री को पत्र क्यों लिखते थे ?
उत्तर :
जवाहरलाल नेहरू जी को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अधिकतर समय जेल में रहना पड़ता था और इन्दिरा घर पर रहती थीं, अतः नेहरू जी पत्र के माध्यम से ही उन्हे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे तथा ज्ञान की अनेक बातें समझाया करते थे। इस प्रकार वे देश-दुनिया की संस्कृति की जानकारी देने के लिए अपनी पुत्री इन्दिरा को पत्र लिखा करते थे।

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प्रश्न 28.
सत्तर बच्छर की विषय-वस्तु क्या है ?
उत्तर :
सत्तर बच्छर विपिन चन्द्र पाल की आत्म जीवनी हैजिसकी विषय-वस्तु तत्कालीन भारत की राजनीतिक परिस्थितियों के उल्लेख के साथ-साथ उनकी जीवन से जुड़ी घटनायें है।

प्रश्न 29.
पर्यावरण इतिहास क्या है ?
उत्तर :
इतिहास की वह शाखा जिसमें प्रकृति एवं समय के साथ जमीन, जल, जंगल, वातावरण, जीव-मण्डल तथा मानवीय क्रियाकलापों का प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। उसे पर्यावरण इतिहास कहते है।

प्रश्न 30.
इतिहास के लेखन में फोटोग्राफी किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर :
आधुनिक भारतीय इतिहास में फोटोग्राफी का काफी महत्व है। फोटोग्राफी की खोज 19 वी शताब्दी के तीसरे दशक में हुई थी। ब्रिटिश ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के अधिकारियों ने फोटोम्राफी को काफी महत्व दिया। उनके अनुसार स्थापत्य कला, पुरातात्विक स्मारको तथा यात्रियों के यात्रा-वृत्तांत को सही रूप में मूल्यांकन करने में फोटोग्राफी की भूमिका काफी सहायक सिद्ध हुई।

प्रश्न 31.
प्रथम ओलम्पिक खेल कब तथा कहाँ आयोजित किए गये ?
उत्तर :
प्रथम ओलम्पिक खेल 776 ई० पू० में यूनान के ओलम्पियाँ नगर में आयोजित किया गया। 1896 ई० में आधुनिक ओलम्पिक खेलों को पुन: यूनान के एथेन्स में आरम्भ किया गया जो आज तक जारी है।

प्रश्न 32.
नारीवादी आन्दोलन (फिमिनिस्ट मुवमेंट) से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
जिस आंदालन के द्वारा महिलाओं के अधिकार तथा उनकी दशा सुधारने की मांग की गई, उसे ही नारीवादी आन्दोलन (फिमिनिस्ट मुवमेंट) कहा जाता है। जिसकी शुरूआत 1960 के दशक में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में शुरू हुआ था।

प्रश्न 33.
नया सामाजिक इतिहास और परम्परागत इतिहास में एक अन्तर बताइए।
उत्तर :
इतिहास के जिस नवीन शाखा में धर्म, नैतिकता, भोजन, कला, संस्कृति तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को जाना जाता है उसे नूतन सामाजिक इतिहास कहा जाता है जब कि परम्परागत इतिहास में वंशीय, राजनीतिक तथा संवैधानिक इतिहास का अध्ययन किया जाता है। परम्परागत इतिहास में राजनीतिक, वशीय व संवैधानिक इतिहास का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 34.
सैनिक इतिहास का उपयोग क्या है ?
उत्तर :
साधारणतया युद्ध को एक राजनीतिक क्रियाकलाप माना जाता है, परन्तु युद्ध में सैन्य इतिहास के द्वारा युद्ध के कारणों, सैन्य नीतियों, रणनीतियों तथा उनके संगठन का अध्ययन किया जाता है। जिससे सैन्य संगठन को अधिक कुशल एवं मजबूत बनाने में सैन्य इतिहास उपयोगी होते है।

प्रश्न 35.
नारी इतिहास लेखन क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
आधुनिक नारीशक्ति के संघर्ष, उपलब्धियों, गाथाओं को सही ढंग से जानने व समझने के लिए नारी इतिहास लेखन आवश्यक है।

प्रश्न 36.
जीवनेर झड़ापाता की लेखिका के कष्टों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
विश्वप्रसिद्ध कविगुरू रवीन्द्रनाथ की भाँजी सरला देवी चौधुरानी द्वारा लिखित पुस्तक ‘जीवनेर झड़ापाता’ उनकी आत्मजीवनी है जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कष्टों का ज़िक्र किया है कि पैदा होते ही माता से तिरस्कार, डर के मारे जोर से क्रन्दन ना करना माता द्वारा उनको कभी न चूमना न तो गोद में लेना तथा उनकी इच्छा के विरूद्ध उनकी शादी कर देना इत्यादि घटनाओं के द्वारा उनके जीवन के अनुहुए पहलुओं की जानकारी से पता चलता है जि उनका बचपन कष्टकारक था।

प्रश्न 37.
डॉ॰ जे० चौबे द्वारा प्रस्तुत ‘कैंची तथा गोंद विधि’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
कैंची तथा गोंद विधि उन पद्धतियों में से एक है जिसमें डॉ॰ जे० चौबे ने ऐतिहासिक स्रोतों के उपयोग की पद्धतियों का वर्णन किया है। इस पद्धति के अन्तर्गत तथ्य या साक्ष्मों को ज्यों का त्यों रचना में स्थान दिया जाता है।

प्रश्न 38.
भारत में परिवेश आंदोलन से युक्त कुछ नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर :
चाँदनी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा एवं मेधा पाटेकर आदि परिवेश आंदोलन से युक्त प्रमुख नेता हैं।

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प्रश्न 39.
इतिहास की विचित्रता से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
इतिहास की विचित्रता से यही समझा जाता है कि इतिहास के माध्यम से प्राचीन या अतीत की समस्त विषयों एवं घटनाओं का अध्ययन किया जाता है और उसकी जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 40.
विपिन चन्द्र पाल की ‘सत्तर बच्छर’ का ऐतिहासिक महत्व क्या है ?
उत्तर :
‘सत्तर बन्छर’ के लेखक विपिन चन्द्र पाल हैं। इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के उन महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया है जिसके द्वारा हमें उनके स्वभाव, सिद्धान्त एवं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उनके कारों का पता चलता है। विपिन चन्द्र पाल एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे, उन्होंने अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
नारी इतिहास के ऊपर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
विधाता की नायाब सृष्टि नारी का इतिहास उनके अस्तित्व के संघर्ष, उपलब्धियों एवं योगदान का इतिहास है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक इनका इतिहास संघर्ष तथा योगदान से भरा पड़ा है। मध्यकाल में इनकी छबि घूमिल हुई, निसके कारण उन्हें अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा। इसी खोये हुए आत्मसम्मान और अधिकारों की प्राप्ति के लिए उन्हें आन्दोलन करने पड़े जिसे ‘नारीवादी आन्दोलन’ कहा जाता है। इस आन्दोलन से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें काफी बल मिला है।

आज की नारी अपने अधिकार और कर्त्तव्य के प्रति सजग है। वह विविध शक्ति रूपों जैसे – माँ, पत्नी, गृहिणी, क्षत्राणी, खिलाड़ी, वीरागंना आदि रूपों में संस्कृति एवं परम्पराओं की संरक्षिका, शैक्षणिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, स्वतन्त्रता आन्दोलन, विज्ञान-तकनीकी, राजनीति, प्रशासनिक, साहित्यिक, अन्तरीक्ष विज्ञान, कला-खेलकुद सभी क्षेत्रों में अपने कर्त्तव्य कर्मठता और सुजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र के निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान देते हुए, पुरूष प्रधान समाज को चुनौती दे रही है। इस प्रकार नारी की उपस्थिति, योग्यता, योगदान, उपलब्धिया, मार्मिकता एवं सृजनशीलता प्रत्यक्ष रूप से उनके अस्तित्व का परिचय देती है। चाहे लोपा, मत्रेयी या गार्गी हो चाहे रजिया, नेफरतीती या जीजा बाई होचाहे कल्पना चावला, सुनिता विलियम, इन्दिरा गाँधी, कुमार भण्डारनायके, एनजेला मैथुज व मार्गेट थैचर हो, ये सभी नारियाँ इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में तथा नारी समाज को जागृत एवं प्रेरित करने का कार्य किया।

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प्रश्न 2.
दृश्य कला की एतिहासिक क्षेत्र में चित्रकारी तथा छाया चित्रण (फोटोग्राफी) का विकाश भारत में किस प्रकार हुआ ?
अथवा
आधुनिक इतिहास के अध्ययन में दृश्य कला की धारणाओं का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक इतिहास की इस शाखा में चित्रकला और छायाचित्र कला के ऐतिहासिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। चित्रकारी : औपनिवेशिक शासन में कई तरंह के नए कला रूपों, शैलियों, सामग्री और तकनीकों का सूत्रपात हुआ, इन्हें भारतीय कलाकारों ने सभभन्त और जनसाधारण दोनों ही क्षेत्रों ने अपने स्थानीय ग्राहकों और बाजारों के हिसाब से अपनाकर नई शक्ल दी। आप पाएंगे कि जिन दृश्य कलाओं को आप आज स्वाभाविक मान लेते हैं, उनमें से बहुत सारी कलाओं का जन्म उसी काल में हुआ था। उदाहरण के लिए बुर्जियों, मीनारों और महुराबों वाली भव्य सार्वजनिक इमारतें, कई मनोहारी दृश्य, तस्वीर में यथार्थ परक मानव छ्छवि या किसी देवी-देवता की तस्वीर तथा मशीनों द्वारा असंख्य मात्रा में छापी गई तस्वीरें आदि इसी तरह के उदाहरण हैं। मध्ययुग के शासकों ने चित्रकला में अपनी रूचि दिखाते हुए उस समय के प्रमुख चित्रकारों को अपना राजाश्रय दिया। कुछ प्रमुख चित्रकारों तथा उनकी चित्रकारी जैसे लियोनार्दो द विशी कृत मोनालिसा, राफेल कृत द लॉस्ट सॉपर इत्यादि प्रमुख हैं।

छायाचित्रण : उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप से कई छाया-चित्रकार भारत आने लगे थे। उन्होंने तस्वीरें खींची, स्टुडियो खोले और छायाचित्रकारी की कला को बढ़ावा देने के लिए छायाचित्रकारों से जुड़ी समितियों का गठन किया। इनमें से कुछ ऐसे चित्रकार थे जो अंग्रेज अफसरों की तस्वीरें खींचने लगे थे। इन तस्वीरों में अंग्रेज अफसरों को रोबीले और ताकतवर अंदाज में दिखाया जाता था। कई छायाचित्रकारों ने टूटी-फूटी इमारतों और मनोहारी भू-दृश्यों की खोज में देशभर की यात्राएँ की। कई छाया चित्रकार ऐसे थे जो ब्रिटिश सैनिक विजय के दृश्यों को कैमरे में कैद करते थे। इनके अलावा कई ऐसे छाया चित्रकार भी थे जो भारत को एक आदिम देश साबित करने के लिए यहाँ की सांस्कृतिक विविधता को दर्ज कर रहे थे।

प्रश्न 3.
नवीन सामाजिक इतिहास से आप क्या समझते हैं ? इस प्रकार के इतिहास लेखन की शुरुआत कब व किसके द्वारा शुरू हुआ है ?
उत्तर :
नवीन सामाजिक इतिहास : सामाजिक इतिहास की वह नवीन शाखा जिसके अन्तर्गत सामज की छोटी-बड़ी वे सभी घटनाएँ जो साधारण से साधारण लोगों के जीवन से सम्बंधित हैं। और किसी न किसी रूप में समाज को प्रेरित व आन्दोलित करती हैं, उसे नवीन सामजिक इतिहास कहते हैं।
नवीन समाजिक इतिहास के अर्त्तगत मनुष्य के सामाजिक जीवन के सभी पक्षों, धर्म, आर्थिक क्रियाकलाप, नैतिकता, रीत-रीवाज, खान-पान, भेष-भूषा, खेल-कूद, नृत्य-संगीत, युद्ध आदि का अध्ययन किया जाता है।
नवीन समाजिक अध्ययन की शुरूआत : सर्वप्रथम नीवन समाजिक इतिहास के लेखन की शुरुआत 1960 ई० में जर्मन इतिहासकार रील और फ्रेटेग ने शुरू की थी। इसके बाद इस तरह के इतिहास लिखने की शुरुआत अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, कनाडा में तेजी से शुरु हुई। आज विश्व के हर देशों में ऐसे इतिहास लिखे और पढ़े जाने लगे है।

प्रश्न 4.
नवीन समाजिक इतिहास के विभिन्न आयाम या रूपों से आप क्या समझते हैं ? उन रूपों में से कुछ महत्वपूर्ण रूपों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नवीन सामाजिक इतिहास के आयाम/प्रकार/रूप : नवीन सामाजिक इतिहास के विभिन्न आयाम या स्वरूप का अर्थ हैं मनुष्य के सामाजिक जीवन के सभी प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करने से है। इस इतिहास के अन्तर्गत केवल बड़े-बड़े व्यक्तियों के बड़े-बड़े कारनामों का ही नहीं बल्कि साधारण से साधारण लोगों के जीवन एवं उपलब्धियों से जुड़ी घटनाओं का अध्ययन किया जाता है।

नवीन सामाजिक इतिहास के भेद या प्रकार : नवीन समाजिक इतिहास के अध्ययन ने इतिहास के अध्ययन के विषय क्षेत्र को अधिक व्यापक बना दिया हैं। इस दृष्टि से नवीन सामाजिक इतिहास के अर्त्तगत इतिहास के कई आयाम और रूप का विकास हुआ है। जिनमें से कुछ प्रमुख आयाम खेल-कूद का इतिहास, पाक (भोजन) कला का इतिहास, निष्पादित कलाओं का इतिहास, वस्त्रों का इतिहास, दृष्य कला का इतिहास, वास्तुकला का इतिहास, यातायात का इतिहास, स्थानीय इतिहास, सैनिक इतिहास, शहरी इतिहास, पर्यावरण इतिहास, विज्ञान-तकनीकी का इतिहास, महिलाओं का इतिहास, सरकारी दस्तावेज एवं प्रशासनिक इतिहास आदि प्रमुख हैं।

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प्रश्न 5.
ऐतिहासिक स्रोत से क्या समझते हैं ? इसके कितने प्रकार हैं ? यह किस प्रकार इतिहस लेखन में उपयोगी होते हैं ?
Ans.
ऐतिहासिक स्रोत : वह विषय, वस्तु या सामग्री जो अपने काल की इतिहास लिखने और बताने में सहायक होते हैं, उन्हें ऐतिहासिक स्रोत कहते हैं। जैसे : पुरातात्विक अवशेष, शीलालेख, प्राचीन-मुद्राएँ, सरकारी दस्तावेज, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ लेखकों के लिखी आत्मकथाएँ ये सभी ऐतिहासिक सोत के उदाहरण हैं।

ऐतिहासिक स्रोत के प्रकार : ऐतिहासिक स्रोतों के दो प्रकार हैं – (i) प्राथमिक स्रोत या प्रधान स्रोत (ii) द्वितीय स्रोत या गोण स्रोत
(i) प्राथमिक या प्रधान स्रोत : वे ऐतिहासिक स्रोत जो मौलिक एवं प्रत्यक्ष रूप में पाये जाते है तथा विश्वसनीय एवं प्रमाणित होते हैं, उन्हें प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोत कहते हैं। पत्र-पत्रिकायें, आत्मकथाएँ, मौलिक सोतों के आधार पर ऐंतिहासिक पुस्तकें आदि हैं।

(ii) द्वितीय या गौण स्रोत : वे एतिहासिक स्रोत जो विभिन्न मौलिक स्रोतों के आधार पर इतिहासकारों द्वारा पुस्तकें लिखी जाती हैं, वे सब द्वितीय एतिहासिक स्रोत कहलाते हैं। जैसे :- इतिहासकार एडम स्मिथ की लिखी पुस्तक ‘ ‘बिटिश इण्डया”, जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखी एतिहासिक पुस्तक “भारत एक खोज” क्लहर की लिखी पुस्तक ‘राज तररगिनी इत्यादि। इतिहास लेखन में उपयोग एव/महत्व : इतिहास के मौलिक एवं गौण दोनों स्रोत विभिन्न प्रकार की एतिहासिक सूचनाएँ प्रदान करते हैं। ये सूचनाएँ इतिहास के विद्यार्थी के लिए शोध या खोज करने में उपयोगी होते हैं। और एक पेशेवर इतिहास लेखन के लिए प्रमाणित सोत प्रदान करते हैं। इस प्रकार एतिहासिक सोत मनुष्य के ज्ञान बढ़ाने और इतिहास लेखन में उपयोगी होती हैं।

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प्रश्न 6.
सोमप्रकाश पत्रिका का संपादन कब और किसने शुरू किया ? इस पत्रिका का महत्व या भारतीय आन्दोलन में इसके योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
Ans.
सोमप्रकाश समाचार पत्र या पत्रिका : सोमप्रकाश समाचार पत्रिका का प्रकाशन 15 नवम्बर 1858 ई० में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कलकत्ता में किया था। इसका प्रथम सम्पादक द्वारिकानाथ विद्याभूषण थे।
सोमप्रकाश पत्रिका का योगदान : सोमप्रकाश बंगला भाषा में कलकत्ता से प्रकाशित होने वाला अपने समय का एक चर्चित साप्ताहिक समाचार पत्र था। यह पत्रिका बहुत कम समय में अपनी भाषा की सरलता, निडरता के साथ-साथ आलोचनाओं के कारण ख्याति (प्रसिद्धि) प्राप्त कर ली। प्रति सोमवार को प्रकाशित होने के कारण इस पत्रिका का नाम

सोमप्रकाश पड़ा था। इस पत्रिका ने अंग्रेजों की शोषण नीति, नील किसानों का शोषण, जमींदारों, उद्योगपतियों के अत्याचार, मजदूरों के हितों की रक्षा, बाल-विवाह, बली प्रथा, कुलीन प्रथा का विरोध, विधवा विवाह तथा स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह पत्र बिना किसी डर-भय के अंग्रेजों की शासन नीति और अत्याचार का खुलकर विरोध किया तथा देशवासियों के अन्दर राजनीतिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जगारूकता पैदा की।

इस समय की सभी छोटी-बड़ी महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं आर्थिक घटनाएँ इसी पत्रिका में छपा करती थी। इस कारण इस पत्रिका ने अंग्रेजों के विरूद्ध देश की जनता को जागृत एवं संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब 1878 ई० में तत्कालीन वायराय लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट कानून लागू किया, तो उसका सबसे पहला शिकार सोमप्रकाश पत्रिका ही बना अर्थात् अंग्रेजों को शर्तों को न मानने के कारण इस पत्रिका का प्रकाशन बन्द कर देना पड़ा। इस प्रकार आधुनिक भारत को एक नई दिशा देने, भारतीयों की आवाज को बुलंद करने और उनके स्वाभीमान को अंग्रेजों के सामने न झुकने का साहस दिखाया। इस प्रकार सोमप्रकाश पत्रिका ने देश में जागरूकता, उत्साह, साहस एवं देशप्रेम की भावना को जगाने में अमूल्य योगदान दिया।

प्रश्न 7.
यातायात के इतिहास की विशेषता लिखिए।
अथवा
यातायात के इतिहास के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
परिवहन का इतिहास हमें नये वैज्ञानिक आविष्कारों के विषय में बतलाता है। विज्ञान की उन्नति से ही परिवहन की उन्नति हुई। जल, स्थल तथा वायु परिवहन सभी विज्ञान के आविष्कार से ही प्रगतिशील हुए। मनुष्य ने सबसे पहले स्थल यातायात की सुविधा दूर-दराज जाने के लिए किया था जो घोड़ों या बैलों से खींची जानेवाली गाडियाँ थीं। फिर उसके बाद यातायात के साधनों में डोंगी, छोटी नाव प्रमुख थी जिससे जलमार्ग द्वारा यात्रा होती थी। धीरे-धीरे यातायात के क्षेत्रों में विकास होता गया। कच्ची सड़कों के स्थान पर पक्की सड़के बनने लगी। जल एवं स्थल से बढ़कर मनुष्य ने वायुमार्ग से भी यातायात के साधनों को बनाया।

पटरियों पर दौड़नेवाली रेलगाड़ियाँ बनाई गई, जल में चलनेवाली छोटी नाव की जगह विशाल एवं कई मंजलों वाली जलयान बनाए गए। यातायात के क्षेत्र में सबसे अधिक विकास औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप हुआ। औद्योगिक क्रांति ने मोटर से चलनेवाले यातायात के साधन बनाए तथा उनके चलने लायक पक्की सड़कें बनाई। आज सड़कों पर साइकिल, मोटर साइकिल, बस, ट्रक, कार एवं इलेक्ट्रानिक गाड़ियां जैसे ट्राम इत्यादि बहुतायत चलती हैं। भारत में पहली बार रेल 1853 ई० में बम्बई से ठाणे तक चली थी। पक्षियों को आकाश में उड़ते देख कभी मनुष्य ने भी इसी तरह उड़ने की कल्पना की थी और उसने अपने मेहनत और लगन से अपने सपने को साकार किया। इस दिशा में प्रथम प्रयास पतंग के रूप में रहा। तत्पश्चात गुख्बारा बनाकर उड़ाया गया। ‘राईट ब्रादर, ऑरबिल राईट और बिलवर राइट” ‘ने इस दिशा में नई उपलब्धियाँ प्राप्त की तथा वायुयान का आविष्कार किया।

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प्रश्न 8.
स्थानीय या आंचलिक इतिहास की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
स्थानीय या आंचलिक इतिहास : किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले मानव समुदाय के समाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, लोक गाथाएँ आदि की सूचनाओं का संग्रह करने वाला इतिहास आंचलिक या स्थानीय इतिहास कहलाता है। आंचलिक इतिहास में स्थानीय राजाओं – महाराजाओं, प्रजा और उनके क्रियाकलाप का वर्णन होता है। कल्हण द्वारा कशमीर की राजाओं या राजवशो पर लिखी गई पुस्तक ‘राजतरंगिनि” भारत की पहली ऐतिहासिक ग्रंथ स्थानीय इतिहास का उदाहरण है।

इसमें उस स्थान के सांस्कृतिक एवं सामाजिक दशा का वर्णन होता है। घटनाओं की जानकारी स्थानीय लोगों के द्वारा लिखित पत्रों या मौखिक रूप में मिलती है। स्थानीय इतिहास से उन स्थानों की जानाकरी प्राप्त होती है जिनका उल्लेख या महत्व ज्यादा नहीं होता है। इन ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह इतिहासकारों द्वारा शौकिया किया गया होता है जिससे वास्तविक स्थिति का ज्ञान पूरी तरह नहीं हो पाता है।

प्रश्न 9.
खेल-कूद का इतिहास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
खेल -कूद का इतिहास : मनुष्य के सामाजिक जीवन के शुरुआत के साथ ही मनोरजन के साधन के रूप में खेल-कूद का विकास हो चुका था। मनुष्य के बढ़ते ज्ञान और साधनों ने खेल के रूप एवं प्रकार को परिवर्तित किया जिससे नये-नये खेलो का विकास हुआ। कुश्ती विश्र का सबसे पुराना खेल है। प्राचीन काल में कुश्ती के अलावा दौड़, ऊँची-लम्बी कूद, तैराकी, निशानेबाजी, वजन उठाना, घुड़सवारी जैसे खेल-खेले जाते थे। आजके प्रचलित खेलों में क्रिकेट, टेनिस, फुटबाल, हॉकी बेस-बाल, तैराकी आदि प्रमुख हैं।

आज विभ का सबसे प्रचलित जो ओलम्पिक खेल खेला जाता है। इसकी शुरुआत 776 ई०पू० यूनान के ओल्मपिया नगर से शुरु हुआ था। बीच में 393 ई० के आस-पास रोमन सम्राट थीयोडोसिस ने इस पर रोक लगा दिया था। बाद में 1892 ई० में फ्रांस के प्रयास से इसकी शुरुआत हुई। आज ओलम्पिक (olympic) का खेल विश्भ के भाई-चारे, एकता, शक्ति, शांति और सम्पन्नता का प्रतीक बन गया हैं, इस खेल का आयोजन प्रति चौथे वर्ष में होता है और खेला जाता है।

इस प्रकार खेलो का इतिहास उतना ही पुराना और महत्वपूर्ण है। जितना पुराना मनुष्य और उसका इतिहास है। प्राचीन काल में जब लोगों के पास मनोरंजन के साधन नहीं थे, उस समय खेल-कूद ही मनोरंजन का प्रमुख साधन था, और आज भी बना हुआ है।

प्रश्न 10.
सैनिक इतिहास क्या है ? इसके महत्व पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
सैनिक इतिहास : आन्तरिक और बाह्य शत्रुओं से देश एवं उसके नागरिको की रक्षा करने वाले वीर,साहसी, लडाकू. योद्धाओ को सैनिक कहते हैं तथा सैनिको के युद्ध की कला, हथियार, अस्त्र-शस्त्र आदि के निर्माण रख-रखाव संचालन, युद्ध के कारण, परिणाम, महत्व, सैनिक के जीवन का इतिहास आदि अन्य विषयों का अध्ययन करने वाला विषय सैनिक इतिहास कहलाता है।

सैनिक इतिहास का महत्व : भारत के प्रसिद्ध कूटनीतिज़ चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सप्तांग सूत्र में सैनिको एवं उनके युद्ध का महत्व का उल्लेख करते हुए कहा है, कि जिस देश की सेना अधिक शक्तिशाली, कुशल अस्त्र-शस्त्रों से युक्त होती है, वो राज्य ही सुरक्षित, शक्तिशाली बन सकता है। इस प्रकार सैनिक इतिहास से हमे उनके खान-पान, रहन-सहन, नियमप्रशिक्षण, युद्ध कला, तकनीकी, हथियारों के निर्माण-संचालन, युद्ध के जय-पराजयों की गाथाओं, नये-नये अस्वों की खोज, उनकी जासूसी आदि बातों की जानकारियाँ प्राप्त होती है, ये सभी जानकारियाँ सैन्य शक्ति को मजबूत बनाती है, जिसकी मजबूती पर देश और नागरिको का जीवन निर्भर करता है, इस कारण सैनिक इतिहास के अध्ययन का महत्व बढ़ जाता है।

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प्रश्न 11.
पर्यावरण इतिहास और उसके महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
पर्यावरण इतिहास : पर्यावरण इतिहास का अर्थ मानव संसार के संदर्भ में अतीतकाल (भूतकाल) के पर्यावरण के उन परिस्थितियों का अध्ययन करना है। जिसने मानवीय क्रियायों को प्रभावित किया। अत: मानवीय क्रियायों के सम्बन्ध में प्राकृतिक वातावरण के अच्छे व बुरे प्रभावों का अध्ययन पर्यावरण इतिहास कहलाता है।

पर्यावरण इतिहास के अध्ययन की शुरुआत 1960 ई० में अमेरिका से शुरु हुई जो आज धीरे-धीरे पुरे विश्ष में प्रचलित होकर इतिहास के एक महत्वपूर्ण विषय-वस्तु के रूप में स्थापित हो चुका है। पर्यावरण इतिहास के अन्तर्गत मुख्य रुप से तीन विषयों प्रकृति का बदलता स्वरूप प्रभाव और प्रकृति के वस्तुओ का उपयोग, प्रकृति और मनुष्य के समन्वय (सहयोग) से उत्पन्न परिस्थितियों का प्रभाव आदि का अध्ययन किया जाता है।

पर्यावरण इतिहास का महत्व या प्रभाव : पर्यावरण इतिहास का महत्व या प्रभाव यही है कि ये प्रकृति और मनुष्य के मित्रतापूर्ण सम्बन्धों को दर्शाता है प्रकृति से मनुष्य का प्राचीन काल से ही सम्बन्ध रहा है। इसी प्रकृति के मिट्टी में लोटपोट कर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर आज मनुष्य यहाँ तक पहुँचा है। किन्तु आज मनुष्य प्रकृति को एक वस्तु मानकर उपयोग करने लगा है। इस कारण पर्यावरण सम्बन्धी उसकी समस्याये-सूखा, बाढ़, मिट्टी अपक्षरण, प्रदूषण जैसीसमस्याएं पैदा हो गई है जिसने मानव सहित पृथ्वी के समस्त जीवधारियों के जीवन के लिये संकट पैदा कर दिया है।

इस प्रकार पर्यावरण इतिहास ने पर्यावरण के उपयोग, बचाव, संरक्षण में योगदान दिया है। आज पर्यावरण को स्वस्थ, सुंदर और सुरक्षित बनाये रखने के लिए कई पर्यावरण आन्दोलन चलाए जा रहे हैं, या गये है। पर्यावरण आन्दोलनों में ‘सुंदरलाल बहुगुणा’ द्वारा गढ़वाल का ‘चिपको आन्दोलन’ तथा ‘बाबा आमटे’ और ‘मेधा पाटेकर’ का ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने वाला पर्यावरण आन्दोलन था। इस तरह पर्यावरण आन्दोलन से जनता में यह जागरण हुआ कि वह उसके रक्षा के लिए सक्रीय हुआ।

प्रश्न 12.
सरकारी दस्तावेज से आप क्या समझते हैं ? यह किस प्रकार इतिहास लेखन में सहायक सिद्ध हुआ है ? उदाहरण सहित इसका स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर :
सरकारी दस्तावेज (प्रपत्र) : सरकारी दस्तावेज का अर्थ सरकार के उन कागज पत्रों से है जो समय-समय पर एक विभाग के अधिकारी द्वारा दूसरे विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को लिखे जाते हैं। वे सब कागजात सरकारी दस्तावेज कहलाते हैं। इन दस्तावेजो को सरकार द्वारा प्रमाणित तथ्य के रूप में सुरक्षित रखे जाते हैं।
एक सरकारी दस्तावेज के अन्तर्गत अधिकारियों के पत्र, रिर्पोट, आँकड़े, खोज एवं जाँच पत्र समय-समय पर जारी सूचनाएँ, आदि आते हैं।

इतिहास लेखन में योगदान : सरकारी दस्तावेज इतिहास के प्राथमिक स्रोत होते हैं जो योग्य अधिकारियों एवं विद्धानों द्वारा लिखे जाते हैं इस कारण ये अधिक तथ्यपूर्ण, प्रमाणित और विश्शनीय माने जाते हैं। इस कारण इन दस्तावेजो से मिलने वाली सूचनाएँ इतिहास लिखने में तथा इतिहास के शोधकर्त्ता के लिए अधिक उपयोगी और लाभदायक होते हैं।

सरकारी दस्तावेज के सम्बंध में 1905 ई० में ‘लाई्ड कर्जन’ का यह पत्र बताता है कि 1905 ई० में धर्म, जाति एवं भाषा के आधार पर बंगाल का विभाजन कर बंगाल की जनता सहित पूरे देश में फूट डालकर देश को कमजोर बनाना और उन पर मजबूती के साथ शासन करंना था। जबकि उसने उस समय जनता के सामने घोषणा की थी कि प्रशासनिक सुविधा के लिए बंगाल का विभाजन करना आवश्यक है; कर्जन का यह सरकारी पत्र बतलाता है कि कर्जन (उसने) जनता से मिथ्या बोला था। इस तरह सरकारी दस्तावेज घटनाओं का प्रमाणिक बनाने में सबूत का कार्य करते हैं।

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प्रश्न 13.
आत्मकथा या जीवनी से आप क्या समझते हैं ? यह किस प्रकार इतिहास लेखन में उपयोगी है ?
उत्तर :
आत्मकथा/जीवनी :-जब कोई व्यक्ति अपने जीवन से सम्बंधित कार्यों एवं घटनाओं को ईमानदारी से लिखकर या लिखवाकर समाज के सामने प्रस्तुत करता है; तो इस तरह की लिखित पुस्तकें आत्मकथा/जीवनी कहलाती हैं।

इतिहास लेखन में उपयोगी :- आत्मकथा व्यक्ति विशेष के जीवन से सम्बन्धित सत्य घटनाओं के आधार पर लिखी जाती है; इसलिए ये प्रमाणित और विश्शसनीय माने जाते हैं। ऐसी पुस्तके इतिहास के प्राथमिक स्रोत मानी जाती हैं। इन पुस्तकों से अतीत की बहुत सी बातों की जानकारी होती हैं। जो उस समय किसी कारणवश सत्य बाते सामने नहीं आ सकी। कुछ विद्वान आत्मकथा की विश्धसनीयता पर संदेह व्यक्त करते हैं।

व्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार अपने फायदे के लिऐ सच्चाई को तोड़-मड़ोर कर प्रस्तुत करते हैं, फिर भी जीवनी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इतिहास लेखन के प्राथमिक प्रमाणिक (प्रमाणित) स्रोत के रूप में अधिक उपयोगी होते हैं। अब्दुल कलाम आजाद की आत्मकथा “अग्नि की उड़ान” तथा सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा पुस्तके ‘प्लेइंग इट माईवे” (“Playing it my way”) ऐसे हीं प्रसिद्ध पुस्तके हैं जो उनके जीवन से सम्बन्धित बातो को समाज के सामने उजागर करने मे सहायक व लाभकारी है।

प्रश्न 14.
बंग-दर्शन पत्रिका का सम्पादन कब और किसके द्वारा शुरू की गयी थी ? यह पत्रिका देशानासियों में किस प्रकार से राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने में सहायक सिद्ध हुई ?
उत्तर :
बंग-दर्शन पत्रिका : बंग-दर्शन बंगला भाषा में प्रकाशित होने वाली एक मासिक पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन श्री बकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा 1872 ई० में कलकत्ता से शुरू की गयी थी।
इस पत्रिका के माध्यम से हमें उस समय के उपन्यासों, कहानियों, हास्य-व्यंग्य चित्रों, निबन्धों, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, एवं उनकी सूचनाओं आदि विषयों के भिन्न-भिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त होती है।

बंग-दर्शन पत्रिका का भारत की राष्ट्रीयता में योगदान/महत्व : बंगाली जाति के पहचान को देश-दुनिया में उजागर करने एवं बंगाल सहित पूरे देश में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने में बंग-दर्शन पत्रिका ने महत्वपर्ण योगदान दिया था। इस पत्रिका द्वारा पढ़े-लिखे एवं साधारण वर्ग दोनों के विकास कार्यो का प्रचार होता था, जिससे लोग एक-दूसरे की भावना से परिचित होते थे। इस पत्रिका में पश्चिमी रंग-ढंग में ढले बंगाली बाबू पर व्यंग किया जाता था।

इस पत्रिका में मुस्लिम जमींदारों के विरुद्ध विद्रोह, सन्यासी विद्रोह का भी वर्णन किया गया था; जिससे लोग प्रभावित होकर उस आन्दोलन के पक्ष में उठ-खड़े हुए थे। ‘आनन्दमठ’ उपन्यास की क्रान्तिकारी घटनाओं के प्रकाशन ने देश के नवयुवकों में आजादी की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने को प्रेरित किया। फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में क्रान्तिकारी एवं राजनीतिक संगठनों की स्थापना हुई। आनन्दमठ का ‘बन्दे मात्रम’ गीत-गाते अजादी के दिवाने स्वतंत्रता की बलीबेदी पर कुर्बान हो जाया करते थे।

इस प्रकार बंग-दर्शन पत्रिका ने एक तरफ देश के लोगों को सांस्कृतिक गौरव की प्राप्ति के लिए उत्साहित किया तो दूसरी तरफ अंग्रेजों के शासन के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध घृणा और नफरत की भावना पैदा की और इसी भावना ने देश के जन-जन के मन में देश-प्रेम की भावना अर्थात राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया और आजादी प्राप्ति के लिए लड़नेमरने को तैयार हो गये। इस प्रकार बंग-दर्शन पत्रिका ने देश में राष्ट्रीयता के विकास में अमूल्य योगदान दिया था।

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प्रश्न 15.
आधुनिक इतिहास के अध्ययन के तत्वों में पुलिस एवं गुप्तचरों द्वारा पालन की गई भूमिकाओं की चर्चा करो साथ ही इतिहास की व्याख्या में इन तत्वों की उपयोगिता का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत के आधुनिक इतिहास को जानने में सरकारी दस्तावेजों की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक भारत के इतिहास को जानने के विभिन्न साधन में सरकारी दस्तावेज एक महत्वपूर्ण सोत है। इनकी मदद से हमें अतीत की घटनाओं की तारीख, स्थान आदि कई महत्वपूर्ण जानकारीयाँ प्राप्त होती हैं। इन जानकारियों को संभाल कर रखा गया था इसलिए इनके नष्ट होने की संभावना भी बहुत कम है।

रिपोर्ट : किसी भी घटना की सरकारी जाँच होती थी एवं सरकार के द्वारा उस घटना पर एक रिपोर्ट तैयार की जाती थी। इन रिपोरों में उस घटना की विस्तृत जानकारी होती थी। उस घटना के आरंभ से लेकर अन्त तक सरकार द्वारा उठाये गये कदम, उस घटना से जुड़े लोगों की जानकारियाँ, सरकारी अफसरों के बयान आदि सभी विषय एकत्रित की गई होती थी। पुलिस की चिट्ठी : किसी भी घटना की जानकारी सबसे पहले पुलिस को होती थी। पहले के समय में चिट्ठियों के द्वारा अधिकारियों तक सूचना पहुँचाई जाती थी। इन चिट्टियों में घटनाओं की जानकारियाँ लिखी होती थी। इन चिट्ठियों के द्वारा उस घटना की पूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन चिट्ठयों में भेजने वाले एवं पाने वाले दोनों अधिकारियों के नाम लिखे होते थे इस कारण पुलिस पत्र समसामयिक घटनाओं के जानकारी के प्रमाणिक स्रोत माने जाते है।

गोपनीय सूचना : किसी भी घटना की जानकारी या पहले से उक्त घटना के घटने की आशंका को ध्यान में रुख कर सरकार के द्वारा पहले से कई स्थानों पर गुप्तचर लगे रहते थे। इनके द्वारा किसी घटना की सूचना सरकार को पहले मिल जाती थी। ऐसे ही खबर सरकारी विभागों में भी होते थे जो सरकार की सूचनाओं को समाचार-पत्रों एवं विशिष्ट व्यक्तियों को बतलाते थे। इनकी सूचनाएँ भी इतिहास को सही तरींक से जानने में सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 16.
विपिन चन्द्र पाल द्वारा रचित ‘सत्तर बच्छर’ नाम की आत्म-जीवनी का मुख्य मुद्दा क्या है ?
अथवा
सत्तर बच्छर से हमें कौन-सी ऐतिहासिक जानकारी मिलती है ?
उत्तर :
सत्तर बच्छर : सत्तर बच्छर के लेखक विपिन चन्द्र पाल हैं। यह उनकी आत्मकथा है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1927 ई० में हुआ था। इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के उन महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया है जिसके द्वारा हमें उनके स्वभाव, सिद्धान्त एवं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उनके कार्ये का पता चलता है। यह पुस्तक करीब 650 पृष्ठों का है। विपिन चन्द्र पाल ने लोगों को इस पुस्तक की सच्चाई से अवगत कराने के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण तध्यों को सबके समक्ष उपस्थित करने का प्रयास किया। इस पुस्तक से हमें पता चलता है कि विपिन चन्द्र पाल एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे, उन्होंने अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया।

यहाँ तक कीउनके अनेक सिद्धान्त पिता और पुत्र के मधुर सम्बन्धों के बीच अनबन के कारण बन गये। इस कारण इन्होंने अपने पिता से गुजारा भत्ता लेने से भी इंकार कर दिया और रोजो-रोटी की खोजमें घर छोड़ना पड़ा। इसी क्रम में इन्होंने कटक में प्रधानाध्यापक का कार्य भार संभाला। लेकिन वहाँ भी विद्यालय के प्रबंधक से इनके विचार नहीं मिले जिसके कारण इन्होंने प्रधानाध्यापक के पद से त्याग पत्र दे दिया। विपिन चन्द्र पाल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वे लाल-बाल-पाल की प्रसिद्ध तिकड़ी के सद्स्य थे। इनकी आत्मकथा में तत्कालीन भारत की राजनीतिक परिस्थितियों की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है। कांग्रेस के द्वारा चलाये गए विभिन्न आन्दोलनों की विस्तृत जानकारारयाँ, रणनीति एवं तत्कालीन परिस्थितियों का स्पष्ट ज्ञान इस पुस्तक से प्राप्त होता है।

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प्रश्न 17.
सरला देकें की रचना ‘जीवनेर झड़ापाता’ एवं रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना ‘जीवन स्मृति’ के ऐतिहासिक महत्व फा संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
जीवनेर झड़ापाता से हमें कौन-कौन सी ऐतिहासिक जानकारियाँ प्राप्त होती है ?
उत्तर :
जीवनेर झड़ापाता : यह सरला देवी चौधुरानी की आत्मकथा है। ये रवीन्द्रनाथ टेगौर के बड़े भाई की पुत्रो थी। टैगोर परिवार में जन्म लेने के कारण शुरू से ही राजनीति एवं साहित्य में इनकी जिजासा रही। इन्होंने बेधुन स्कूल एवं कालेज से शिक्षा प्राप्त की। यह एक शिक्षाविद् एवं नारीवादी महिला थी। इनकी आत्मकथा में नारियों की स्थिति एवं उनकी समस्याओं का सजीव वर्णन मिलता है। इन्होने नारी उत्थान एवं उनकी शिक्षा के लिए काफी कार्य किया था। इन्होंने कई समाचार पत्रों का अनुवाद भी किया था। उस समय की महिला आत्मकथा की यह एक अनमोल कृति है। इस संस्मरण में सरला के बाल्यकाल का वर्णन है। जैसाकि सरला देवी ने उल्लेख किया है कि जन्म से ही इनके जीवन में पतझड़ शुरू हो गया था जिसकी शुरुआत माता के तिरस्कार से होती है।

जीवनेर झड़ापाता का प्रारम्भ जोड़सांकू के टेगौर परिवार के घर के दूसरे तल्ले से शुरू होता है जहाँ सरला का डूबते सूर्य वाले घर में जन्म होता है। इसके शीघ्र बाद ही घर की परम्परा के अनुसार उसे एक नर्स के हाथों सौप दिया गया। अपने संस्मरण में सरला ने लिखा है कि जब वह चार वर्ष की थी तो संगमरमर पत्थर पर खेलते हुए सीढ़ियों से लुढ़क गयी, दो दाँत टूट गए और वो खून से भर गई। आया के भय से उसे जोर से रोने का साहस भी न था। माँ ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, पिता नीचे आए और उन्होंने दवा आदि लगाई।

वह कहती है कि वह नहीं जान पाई कि माँ का प्यार क्या होता है ? उनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध कर दिया गया था। उनका दाम्पत्य जीवन भी सुखमय नहीं बीता और 1923 ई० में उनके पति की मृत्यु हो गई। वह स्वामी विवेकानन्द के विचारों से काफी प्रभावित थी। इस पुस्तक में सरला देवी चौधरानी के महात्मा गाँधी के साथ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने का वर्णन है। 1944 ई० में सरला देवी चौधुरानी की मृत्यु हो गई। अतः इस पुस्तक से उनके जीवन के विविध पक्षों की जानकारी प्राप्त होती है।

जीवन स्मृति : जीवन स्मृति से हमें रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रारम्भिक 27 वर्षों के जीवन की झाँकी की जानकारी मिलती है। इस पुस्तक में रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन के उन पहलुओं का वर्णन है जिसके बारे में पूरा विश्व अनजान है। इस पुस्तक में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है कि उनका बचपन बड़े ही कठोर निर्देशन तथा अनुशासन में बीता, वे प्रकृति की गोद में अपने घर पर ही शिक्षा अध्ययन करते थे। उनकी देखभाल करने वाले उनपर कठोर नियंत्रण रख़ते थे। वे अपने घर के खिकी पर बैठे-बैठे प्राकृतिक दृश्यों को निहारा करते थे तथा उनपर कविताएँ लिखते थे। इसके अलावा उनकी इस पुस्तक में बालकों के मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है।

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प्रश्न 18.
सोमप्रकाश के द्वारा हमें तत्कालीन इतिहास की जानकारी किस प्रकार मिलती है ?
उत्तर :
सोमप्रकाश एक साप्ताहिक समाचार पत्र था जिसके प्रकाशन की शुरूआत ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने एक वधिर विद्वान को रोजगार देने के उद्देश्य से की थी। 1858 ई० में इस समाचार पत्र ने एक मुकाम प्राप्त कर लिया, परन्तु वधिर विद्वान ने कभी इस पत्र के प्रकाशन में भाग नहीं लिया। इस पत्र की त्रुटियों को देखने, उन्हें सुधारने तथा प्रकाशन का पूरा जिम्मा विद्या भूषण ने उठाया। उस समय बंगाल में दैनिक समाचार पत्र, जैसे – संवाद प्रभाकर तथा संवाद भास्कर ने बंगाल में नैतिक वातावरण को फैलाने में काफी अहम भूमिका निभाई थी। अपनी सहज भाषा, विषय-वस्तु निष्पक्ष आलोचना के द्वारा सोमप्रकाश ने बंगाली समाचार पत्रों में सर्वश्रेष्ठ स्थान ग्रहण कर लिया था। इस प्रकार यह समाचार पर बंगाल के एक बहुत बड़े पढ़े-लिखे वर्ग को प्रभावित किया।

प्रश्न 19.
निष्पादित कलाओं के इतिहास का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
निष्पादित कलाओं के इतिहास का आरम्भ नवपाषाण काल में हुआ था। इस युग में मनुष्यों की रुचि संगीत में थी। इसका पता उस काल के पुरातात्विक वस्तुओं से मिलती है । इन वस्तुओं में हड्डी की सीटियाँ, बाँस की बाँसुरी, सितार और ढोल प्रमुख हैं। इसके द्वारा पता चलता है कि मिस्न में इस सभ्यता में वीणा का प्रयोग होता था। मेसोपोटामिया की सभ्यता में संगीत स्वतंत्र रूप से विकसित तथा बड़े भोजों में संगीत गोष्ठियों का आयोजन आवश्यक रूप से होता था। बाजों में वीणा, खंजड़ी, तुरही, मशक और बाँसुरी का अधिक प्रयोग होता था। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग नृत्य एवं संगीत के प्रेमी थे। खुदाई से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति एवं कई तरह के वाद्य यंत्र इसके परिचायक है। भारत में विदेशियों का आगमन एवं विभिन्न संस्कृतियों के लागों के आपस में मिलने से निष्पादित कलाओं जैसे संगीत, नृत्य, नाटक एवं चलचित्र के विभिन्न विधाओं एवं शैलियों का विकास बहुत ही तेज गति से हुआ जिसने भारत की निष्पादित कला-विज्ञान को समृद्ध बनाया।

प्रश्न 20.
‘पिता का पत्र पुत्री के नाम’ शीर्षक ग्रंथ की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचन्द द्वारा अनुवादित एवं संपादित ‘पिता का पत्र-पुत्री के नाम’ पुस्तक एक संस्मरण या स्मृति ग्रथथ है, जो 30 पत्रों का संप्रह है जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1928 ई० में अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को लिखा था। इन पत्रों के द्वारा नेहरू जी ने इंदरा को प्राकृतिक इतिहास और विभिन्न सभ्यताओं की कहानी को बताया है। इन पत्रों में अतीतकालीन भारत के साथ वर्तमान भारत की तुलना प्रस्तुत की गयी है। भले ही इन पत्रों के द्वारा नेहरू जी ने अपनी पुत्री को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति तथा विश्व की अन्य सभ्यताओं की जानकारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदान की हो किन्तु आज ये सारे पत्र आधुनिक इतिहास लेखन की दिशा में एक सोत की भूमिका निभाते हैं। इन पत्रों में विभिन्न समय की वृतान्तों का पता चलता है जिसका संयोजन इतिहासकार अपनी पुस्तक के लेखन में प्रमाणिक तथ्यों के रूप में प्रस्तुत करते है।

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प्रश्न 21.
पहनावे के इतिहास से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
शायद ही हमारा ध्यान जाता हो कि हम जो कपड़े पहनते हैं उनका भी एक इतिहास है। पहनावे केआधार पर सामाजिक इतिहास का पता चलता है। विभिन्न वर्गों के लोग मर्द, औरत, बच्चे क्या पहने, इससे दुनिया में लोगों की पहचान बनती है। इन्हीं के जारिये वे खुद को परिभाषित करते हैं। इन्हीं से सभ्यता और सुन्दरता की, शर्म व मर्यादा की हमारी कसौटियाँ बनती हैं। वक्त बदलता है तो बदलते हैं विचार और कपड़ों में आये परिवर्तनों में इन विचारों की झलक आसानी से देखी जा सकती है। नवपाषाण काल में वस्त्र बनाने की कला का अविष्कार कर मनुष्य ने सभ्यता की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाया।

पुरापाषाण युग का मानव पेड़ के पत्तो, छालों तथा जानवरों के चमड़े से अपने शरीर ढँकते थें, किन्तु इस युग में उसने कताई और बुनाई का आविष्कार किया वस्त्र तैयार करने के लिए उसने चरखा और करघा बनाया उसने भेड़ों के ऊन और सन से कपड़ा बुनकर पहनना शुरू किया। सभ्यताओं के युग में पुरुष एवं स्त्रियों के बीच वस्त्र विन्यास में विषमता देखने को मिली। मिस्र सभ्यता एवं सुमेर की सभ्यता में औरत और मर्द लुंगी की तरह अधो वस्त्र पहनते थे। स्त्रियाँ छाती तक का भाग ढँकती थीं।

भारत की सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र पहनते थे। ये वस्त्र तीन प्रकार के थे अधोवस्त्र, अधिवास और पेशम्। वे मृगछाले का भी प्रयोग करते थे। वे वस्त्र कातने और सीने की कला से परिचित थे। पुरुष पगड़ी बाँधते और शाल धारण करते थे, कपड़े कपास, उन और रेशम से बनते थे, कपड़ों को रंगा जाता था। इस प्रकार कपड़ा के इतिहास से मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास की झलक मिलती है ?

प्रश्न 22.
स्थापत्य अथवा वस्तु कला के इतिहास का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
यदि स्थापत्य कला के इतिहास की चर्चा करें तो पाते हैं कि पशु-पालन के लिए मनुष्य को अब एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने की आवश्यकता महसूस हुई। पेड़ की खोहों और पर्वत की कन्दराओं को त्यागकर मनुष्य ने झोपड़ियों का निर्माण किया। पहले वह पशुओं के चमड़े का तंबु बनाकर रहता था। अब वह पेड़ की टहनियों, घास-फुस और मिट्टी से झोपड़ी बनाकर रहने लगे। बाद में ईंट और पत्थर के मकान बनने लगे। सभ्यता के काल में विभिन्न सभ्यताओं में कच्ची मिट्टी एवं पक्की ईंटों के मकान बनने लगे। इसका जानकारी अनातोलिया, सीरिया, उत्तरी मेसोपोटामिया, तथा मध्य एशिया में पक्की ईंटों के मकानों के अवशेष मिलते हैं। मिस्न का पिरामिड स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का उदाहरण आज भी मौजूद है।

वास्तु-कला से उस समय के राजा की स्थिति उसके तथा साम्राज्य की विशालता का भी अनुमान लगाया जा सकता है। राजा किस धर्म को मानता था, उसके इष्ट लोग कौन थे आदि की जानकारी भी मिलती है। सम्राट अशोक के बौद्ध-मंदिरों से मालूम होता है कि उसकी निष्ठा बौद्ध धर्म में थी, जहाँ-जहाँ उसका साम्राज्य था, वहाँ-वहाँ बौद्ध मठों की स्थापना करवाई गई। इससे पता चलता है कि उसका साम्राज्य कहाँ तक फैला हुआ था। वास्तु-कला प्राचीन युग के इतिहास को जानने का सबसे अच्छा स्रोत है।

इन कलाकृतियों में उस राजा व उसके कार्यों का वर्णन किया गया है। मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित ताजमहल से उनकी अपनी पत्नी के प्रति प्रेम का पता लगता है। प्राचीन काल की अनेक वास्तुकला आज भी अनोखी एवं अनमोल हैं। ग्राचीन समय में निर्मित कुछ वास्तु-कला आज भी मनुष्यों के लिए एक पहेली के समान है।

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प्रश्न 23.
ऐतिहासिक तथ्यों के संग्रहण में अन्तरजाल (इन्टरनेट) के उपयोग एवं दुरूपयोग बताइएँ ।
उत्तर :
आज के वर्तमान युग में इंटरनेट ने अपने आप को ज्ञान-विज्ञान, व्यापार-वाणिज्य एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के क्षेत्र में स्थापित किया है। पहले हमें किसी भी विषय-वस्तुओं को जानने और पहचानने के लिए किताबों का सहारा लेना पड़ता था। परन्तु इंटरनेट के प्रयोग ने इस क्षेत्र में कांति ला दी है। आज इंटरनेट के द्वारा पलक झपकते ही हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय की सारी जानकारियाँ प्राप्त हो जाती है। इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में आए इंटरनेट की क्रांति के द्वारा हमें इतिहास के क्षेत्र में हो रहे नित नये शोध-कार्यो का पता चलता है। किताबों का संग्रह करना लोगों के लिए आर्थिक दृष्टि से कष्टदायक है और सबके लिए संभव भी नहीं है।

लेकिन इंटरनेट के व्यवहार ने इसे सुविधाजनक बना दिया है। इसके माध्यम से हम विश्व के किसी भी स्थान, घटना, व्यक्ति विशेष, भू-प्रकृति, जलवायु एवं वहाँ के लोगों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का पता मिनटो में कर सकते हैं। इंटरनेट ने लोगों के मध्य संचार व्यवस्था को काफी दुरूस्त किया है। सोशल नेटवर्किंग साइट (Social networking sites) पर करोड़ों लोग एक-दूसर से जुड़े है तथा बातों एवं ज्ञान का आदान-श्रदान करते हैं। इस प्रकार इंटरनेट के प्रयोग ने इनिहास के अध्ययन को काफी सरल एवं सहज बना दिया।

ऐतिहासिक सूचनाओं को संप्रहित करने में इंटरनेट का जितना उपयोग है, उतना ही इसका दूरूपयोग भी है। इंटरनेट पर उपस्थित सूचनाएँ सब समय वैधानिक नहीं होती है। इंटरनेट के प्रयोग ने पुस्तकों के महत्व को कम कर दिया है।

प्रश्न 24.
19 वीं और 20 वीं सदीं में समाचार पत्र और पत्रिकाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर :
आधुनिक भारत के इतिहास को विश्लेषित करने में तत्कालीन समाचार पत्र एवं पत्रिकायें काफी मददगार साबित होते हैं। 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में भारत में बहुत बड़े पैमाने पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ जिनसे हमें इतिहास के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है । इस काल के कुछ प्रमुख समाचार पत्र हैं टाइम्स ऑफ इण्डिया, स्टेट्समैन, मद्रास मेल, पायनियर, सिविल एण्ड मिलेटरी गजट (सभी अंग्रेजी) ; अमृत बाजार पत्रिका, बंगवासी, सोमप्रकाश, बंगदर्शन (सभी बंगला) ; केसरी मराठी, कवि वचन सुधा, प्रदीप, हरिजन, उदन्त मार्तदप्ड हिन्दी, अल हिलाल, अल बिलाल, हमदर्द (उद्दू), गदर पंजाबी इत्यादि है। इसलिए भारत में 19 वीं सदी को समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं के विकास की सदी माना जाता है।

प्रश्न 25.
विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं दवा के इतिहास का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर :
19 वीं और 20 वीं का 200 वर्ष विज्ञान तकीकी दवा के आविष्कारों के वर्ष रहे हैं जिन्होने अनके प्रकार से आम-आदमी के जीवन को प्रभावित किया। बिजली, एंटीबायोटिक्स, टेलीफोन, उपम्रह, उर्जा जैसे आविष्कारों की उपयोगिता किसी एक राष्ट्र-विशेष या समाज-विशेष तक सीमित नहीं रही बल्कि अंततः इनसे समस्त मानव जाति लाभान्वित हुई।

एक विशाल परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास किसी राष्ट्र द्वारा की गई उत्रति के प्रमुख सूचक होते हैं। कोई भी समाज या राज्य प्रौद्योगिक दृष्टि से जितना अधिक उन्नत हैया उसकी अर्थव्यवस्था भी उतनी ही अच्छी होगी। प्रौद्योगिकीय उत्नति और आर्थिक विकास परस्पर संबंधित प्रकियाएँ हैं। विज्ञान की उन्नति दवा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तनों को जन्म दिया। नये-नये प्रयोगों की मदद से दवाएँ विकसित की गई। इस दौर में विटामिन, जीन, इंसुलिन, पेनीसीलिन की खोज हुई। दवा के क्षेत्र में खोज एवं शोध आज भी जारी है :

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प्रश्न 26.
भोजन एवं व्यंजन के इतिहास का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर :
सभी इतिहासकारों का मानना है कि मनुष्य आरंभ में मांसाहारी प्राणी था। कई वर्षो तक मनुष्य केवल मांस का ही भक्षण करता रहा। आरंभ से लेकर नव पाषाण काल तक करीब 10,000 वर्ष पहले तक मनुष्य घूम-घूमकर मास एव जंगली फलों का संग्रह करता था। कई इतिहासकार इस बात पर भी समहत हैं कि हमारे पूर्वज जंगली पत्तियों एवं पौधों की जड़ों का भी सेवन करते थे। समय-समय पर जंगली अनाज का भी वे भोजन किया करते थे। उस समय मनुष्य के शरीर में काफी ऊर्जा की आवश्यकता होती थी। उन्हें अपना भोजन खोजने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता था। मनुष्य पहाड़ों की गुफाओं तथा पेड़ों के डालियों पर रहता था।

रहने वे इन कठिन जगहों एवं वातावरण की मुश्किलों के कारण उन्हें भोजन की ज्यादा आवश्यकता पड़ती थी। नवपाषाण युग में मनुष्य स्थायी होकर रहने लगा था। इसी समय खाने की आदतों में काफी बदलाव आया। पशुपालन के वजह से मनुष्य को मांस प्राप्त करना आसान हो गया था। खेती की जानकारी हो जाने के कारण उसने अपने आस-पास की जगहों में अनाज की खेती आरंभ कर दी थी। बाद के समय में मनुष्य ने सब्जियाँ एवं फल उगाना भी सीख लिया था।

प्रश्न 27.
शहरी इतिहास के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
शहरी इतिहास में एक विस्तृत नगर की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, वहाँ के उद्योग, पर्यावरण, लोग, रोजगार, शिक्षा आदि के इतिहास की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। शहरों का निर्माण, शहरों की व्यवस्था, लोगों की अधिकता, गाँवों से शहरों की तरफ पलायन आदि अनेक विषयों का ज्ञान हमें शहरों के इतिहास से ज्ञात होता है।

शहरी जीवन की शुरूआत मेसोपोटामिया में हुई थी। फरात और दजला नदियों के बीच स्थित वह प्रदेश आजकल इराक गणराज्य का हिस्सा है। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी संपन्नता, शहरी जीवन विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित और खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है। शहरी इतिहास में हमें सिन्धु घाटी की नगर सभ्यता का पता लगता है। इनमें हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो नामक नगर विशेष प्रमुख थे। इन नगरों का निर्माण योजमाबद्ध तरीके से हुआ था। पूरा नगर कई भागों में विभक्त एवं मकान एक निश्चित क्रम में बनाये जाते थे।

प्रश्न 28.
आत्म कथा और स्मृति के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
स्मृति इतिहास जानने की एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है। स्मृति के द्वारा ही आत्मकथा, यात्रा-वृतांत, निबंध लेखन, आदि संपन्न होते हैं। आत्मजीवन मूलक ग्रंथों का प्रधान विषय-वस्तु स्मृति कथा है। इस प्रकार स्मृति कथा एक प्रकार का साहित्य है जहाँ लेखक अपने जीवन में घटित घटनाओं का विवरण अपने स्मृतियों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। भारत में भी ऐसे साहित्यिक स्मृति कथा पाये गये जो तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के दृश्य को उपस्थित करते है। स्मृति कथाओं की रचना विशेषकर ज्ञानी व्यक्ति ही करते हैं। उनके द्वारा दिये गये विभिन्न विवरण से अतीत के विभिन्न वास्तविक घटनाओं के तथ्यों की प्राप्ति होती है। उदाहरण स्वरूप 1946 ई० की कलकत्ता में हुए दंगा की घटना विभिन्न व्यक्तियों की स्मृति के माध्यम से ही मिलते हैं।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
भारत के आधुनिक इतिहास को जानने में सरकारी दस्तावेजों की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक भारत को जानने के कई साधन हैं। सरकारी दस्तावेज एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इनकी मदद से हमें अतीत की जानकारियाँ प्राप्त होती है। घटनाओं की तारीख, स्थान आदि महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन जानकारियों को संभाल कर रखा गया था इसलिए इनके नष्ट होने की संभावना भी बहुत कम है।

रिपोर्ट : किसी भी घटना की सरकारी जाँच होती थी एवं सरकार के द्वारा उस घटना पर एक रिपोर्ट तैयार की जाती थी। इन रिपोर्टों में उस घटना की विस्तृत जानकारी होती थी। उस घटना के आरंभ से लेकर सरकार द्वारा उठाये कदम, उस घटना से जुड़े लोगों की जानकारियाँ, सरकारी अफसरों के बयान आदि सभी घटनाएँ एकत्रित की गई होती थी।

आख्यान : छापाखाने का विकास होने के कारण समाचार-पत्रों के प्रकाशन में अधिकता आ गई। किसी घटना की विस्तृत जानकारियाँ समाचार-पत्रों, लेखों एवं कहानियों के रूप में समय-समय पर प्रकाशित होती रहती थी। इन आख्यानों में घटनाओं की जानकारियाँ छपी होती थी। इनकी उपलब्धता भी आसान थी।

पुलिस की चिट्ठी : किसी भी घटना की जानकारी सबसे पहले पुलिस को होती थी। पहले के समय में चिट्ठियों के द्वारा अधिकारियों तक सूचना पहुँचाई जाती थी। इन चिट्ठियों में घटनाओं की जानकारियाँ लिखी होती थी। इन चिट्ठियों के द्वारा उस घटना की पूर्ण जानकारी प्राप्त होती थी। इन चिट्ठयों में भेजने वाले एवं पाने वाले दोनों अधिकारियों के नाम लिखे हांते थे जिनसे इनकी विश्वसनीयता बनी रहती थी।

गोपनीय सूचना : किसी भी घटना की जानकारी या पहले से उक्त घटना के घटने की आशंका को ध्यान में रुख कर सरकार के द्वारा पहले से कई स्थानो पर गुप्तचर लगे रहते थे। इनके द्वारा किसी घटना की सूचना सरकार को पहले मिल जाती थी। ऐसे ही खबर सरकारी विभागों में भी होते थे जो सरकार की सूचनाओं को समाचार-पत्रों एवं विशिष्ट व्यक्तियों को बतलाते थे। इनकी सूचनाएँ भी इतिहास को सही तरीके से जानने में सहायक होते हैं।

सरकारी राजपत्रित अधिकारी : सरकारी राजपत्रित अधिकारियों पर किसी भी घटना का उत्तरदायित्व होता था। उन्हें घटना की जानकारी देनी पड़ती थी। इन अधिकारियों के द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर उस समय के इतिहास को जाना जाता था।

उस समय में भारत में अंग्रेजों का अधिकार था। अत: सरकारी दस्तावेजों पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं किया जा सकता था। ये दस्तावेज अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा ही तैयार किए गये होते थे। प्रेस के ऊपर अंकुश लगा होने के कारण केवल वही समाचार प्रकाशित होते थे जिन्हें अंग्रेजों की तरफ से स्वीकृति मिली होती थी। जिस प्रकार जालियाँवाला बाग की घटना का पता देशवासियों को काफी दिनों के पश्चात चला था। अतः ये दस्तावेज संपूर्ण इतिहास को सही तरीके से नहीं बता सकते हैं।

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प्रश्न 2.
जवाहरलाल नेहरू के द्वारा इंदिरा गाँधी को लिखे पत्रों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। वे अपनी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी (बाद में गाँधी) को पत्रों के माध्यम से विश्व की जानकारियाँ दिया करते थे क्योंकि उस समय इंदिरा मसूरी में पढ़ती थी एवं नेहरूजी इलाहाबाद में रहते थे। जब इन्दिरा गाँधी नेहरु जी के साथ रहती थी तो उनसे विभिन्न प्रश्न पूछा करती थी। उनकी इसी जिज्ञासा के कारण नेहरू जी ने उन्हें इन पत्रों के माध्यम से जानकारी द्देनी चाही। 1928 से 1929 ई० के बीच उन्होनें इंदिरागाँधी को 31 चिट्ठियाँ लिखीं थी। इन पत्रों के माध्यम से नेहरू जी ने तत्कालीन भारत की स्थिति कैसी है एवं भारत पहले कैसा था इसकी जानकारी दी है।

उनके पत्रों में उस समय के भारत की राजनीतिक स्थिति एवं सामाजिक परिस्थितियों का वर्णन मिलता है। उन्होने लिखा है – आज हमारा मुल्क गरीब है और एक विदेशी जाति हमारे ऊपर राज्य कर रहा है। हम अपने ही मुल्क में आजाद नहीं है और जो कुछ करना चाहे नहीं कर सकते। लेकिन यह हाल हमेशा नहीं रहेगा और अगर हम पूरी कोशिश करें तो शायद हमारा देश फिर आजाद हो जाए जिससे हम गरीबों की दशा सुधार सकें और हिन्दुस्तान में रहना उतना ही आरामदेह हो जाए जितना की आज यूरोप के कुछ देशों में है। नेहरू जी के पत्रों से पता लगता है कि भारतीयों की दशा एवं यूरोपिय लोगों के रहन-सहन में क्या अंतर था।

गुलाम देश के लोगों की स्थिति की भी जानकारी हमें प्राप्त होती है। प्रकृति सबसे महान किताब है एवं हर एक पत्थर के पास कहने के लिए एक कहानी होती है। सोचने की शक्ति एवं बुद्धिमता ही जानवर एवं इसानों में फर्क का मुख्य कारण है। भविष्य में इसी में नई पीढ़ी को शक्ति मिलेगी एवं वह दासता की बेड़ियों को तोड़कर आजाद होगा एवं अपने सपनों को पूरा कर सकेगा। हम प्रकृति से अलग नहीं हैं। बचे रहने के लिए हमें प्रकृति के साथ मेल-मिलाप जरूरी है। हमारे ज्ञान की कमी एवं डर के कारण हमारे धर्मो मे अशुद्धियाँ आ गई है। अगर हमने समाज की भलाई के लिए कोई कार्य नहीं किया तो मनुष्य एवं पत्थर में कोई फर्क नहीं होगा।

पिता ने अपनी पुत्री को बतलाया है कि हम एक महान देश के निवासी हैं जो पहले से काफी सभ्य एवं संपन्न था। हमें अपने देश पर गर्व होना चाहिए। दु :ख की बात है कि अभी हम कमजोर एवं गुलाम हैं। ज्ञान एवं एकता से हम इस दु ख की घड़ी से ऊबर सकते हैं। नेहरू जी का यह व्यापक दृष्टिकोण था कि वे पूरे विश्व को एक गाँव के रूप में देखते थे एवं सभी जन-मानस को एक ही परिवार का सदस्य मानते थे।

प्रश्न 3.
बंग-दर्शन एवं सोम प्रकाश पत्रिका का आधुनिक इतिहास लेखन में क्या महत्व है ?
उत्तर :
बंग-दर्शन : 1872 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के द्वारा आरंभ की गई यह एक मासिक पत्रिका थी। इसका प्रकाशन बंगला भाषा में किया जाता था। 19 वी सदी के दक्षिणार्द्ध में इस पत्रिका ने बंगाल में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने में सहयोग किया था। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की सभी आंरभिक साहित्य इसी पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। इस पत्रिका ने बंगालियों में राष्टीयता की भावना को जन्म दिया था। बंकिम चन्द्र की इस पत्रिका का प्रकाशन केवल चार सालों तक ही हो सका।

इनते कम समय में भी इस पत्रिका ने बगाल के सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को काफी प्रभावित किया। बंगदर्शन पत्रिका के इतिहास को हम तीन भागों में देखते हैं। पहला बंकिमचन्द्र का काल (1872-1876) दूसरा संजीवचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं अंतिम रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1901) 19 वीं सदी के। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याग्र ने पत्रिका के माध्यम से हिन्दू धर्म का प्रचार किया। यह पहली पत्रिका थी जिसने बाबू संस्कृति पर सवाल उठाये थे।

इस विषय को बाद में जोगेन्द्र नाथ विद्याभूषण ने आर्य-दर्शन में उठाया था। अपने नाम बंग दर्शन की तरह ही इस पत्रिका के माध्यम से हमें 19 वी सदी के बंगाल की सामाजिक एवं सांस्कृतिक दशा का ज्ञान होता है। इस पत्रिका में तत्कालीन मुद्दों को बड़ी सहजता से दर्शाया गया है। समाज में बाबू संस्कृति का चलन, विभिन्न वर्गों के लोगों की स्थिति, समाज में व्याप्त बुराईयाँ, उनको दूर करने के उपाय एवं प्रयत्म, धर्म की व्याख्या आदि अनेक ऐतिहासिक विषयों की जानकारी उस समय की इन जैसी पत्रिकाओं से ही हमें प्राप्त होती है।

सोमप्रकाश का महत्व : ईश्वर चन्द्र विद्यासागार के प्रस्ताव पर एक बंगला समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया गया। इस समाचार पत्र का नाम सोमप्रकाश था। यह एक साप्ताहिक समाचार पत्र था। इस समाचार पत्र का संपादन एवं प्रकाशन दोनों की जिम्मेदारी द्वारकानाथ विद्याभूषण पर थी। 1858 ई० में इस समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया गया था। अपनी गरिमा एवं चमकदार भाषा तथा निडर आलोचना करने के कारण कम समय में ही यह पत्र बंगाल का लोकप्रिय समाचार पत्र बन गया। इस समाचार पत्र ने नील की खेती करने वाले जमीदारों के खिलाफ लोगों को जगाने का प्रयास किया था।

नील कमीशन बनने के पूर्व इस समाचार पत्र की उपयोगिता के विषय में रेव जेम्स ने कहा था – भारतीय जनता की आवाज के रूप में ये पत्रिकायें महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। लार्ड लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम के पारित हो जाने पर इस पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया। स्वतंत्र समाचार-पत्रों के माध्यम से हमें उस समय के सरकारी आदेशों, समाज में भिन्न वर्ग की स्थिति आदि का सही चित्रण मिलता है। नील किसानों के विद्रोह को सरकारी दस्तावेजों में मात्र किसानों का हंगमा बतलाया गया था। उनकी स्थिति तथा उन पर होने वाले जुल्मों का कहीं जिक्र भी नहीं था।

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प्रश्न 4.
जीवनेर झड़ापाता तथा सत्तर बच्छर से हमें कौन-सी ऐतिहासिक जानकारी मिलती है?
उत्तर :
जीवनेर झड़ा पाता : यह सरला देवी चौधुरानी की आत्मकथा है। ये रवीन्द्रनाथ टेगौर के बड़े भाई की पुत्री थी। टैगोर परिवार में जन्म लेने के कारण शुरू से ही राजनीति एवं साहित्य में इनकी जिज्ञासा रही थी। इन्होने बेथुन स्कूल एवं कालेज से शिक्षा प्राप्त की। यह एक शिक्षाविद् एवं नारीवादी महिला थी। इनकी आत्मकथा में नारियों की स्थिति एवं उनकी समस्याओं का सजीव वर्णन मिलता है। इन्होने नारी उत्थान एवं उनकी शिक्षा के लिए काफी कार्य किया था। इन्होंने कई समाचार पत्रों का अनुवाद भी किया था। उस समय की महिला आत्मकथा की यह एक अनमोल कृति है। जीवन को झड़ा पाता नामक पुस्तक का रूप दे दिया गया। इस संस्मरण में सरला के बाल्यकाल का वर्णन है।

जैसा कि सरला देवी ने उल्लेख किया है कि जन्म से ही इनके जीवन में पतझड़ शुरू हो गया जिसकी शुरूआत माता के तिरस्कार से होती है। जीवनेर झड़ा पता का प्रारम्भ जोड़सांकू के टेगौर परिवार के घर के दूसरे तल्ले से शुरू होता है जहाँ सरला का डूबते सूर्य वाले घर में जन्म होता है। इसके शीघ्र बाद घर की परम्परा के अनुसार उसे एक नर्स के हाथों सौंप दिया गया। अपने संस्मरण में सरला ने लिखा है कि जब वह चार वर्ष की थी तो संगमरमर पत्थर पर खेलते हुए सिढ़ियों से लुढ़क गयी, दो दाँत दूट गए और वो खून से भर गई। आया के भय से उसे जोर से रोने का साहस भी न था। माँ ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, पिता नीचे आए और उन्होंने दवा आदि लगाई।

वह कहती है कि वह नहीं जान पाई कि माँ का प्यार क्या होता है। वह स्वामी विवेकानन्द के विचारों से काफी प्रभावित थी। उनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध कर दिया गया। उनका दाम्पत्य जीवन भी सुखमय नहीं बीता और 1923 ई० में उनके पति की मृत्यु हो गई। इस पुस्तक में सरला देवी चौधुरानी के महात्मा गाँधी के साथ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने का वर्णन है। 1944 ई० में सरला देवी चौधरानी की मृत्यु हो गई।

सत्तर बच्छर का महत्व : सत्तर बच्छर के लेखक विपिन चन्द्र पाल हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन 1927 ई० में हुआ था। इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के उन महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया है जिसके द्वारा हमें उनके स्वभाव, सिद्धान्त एवं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उनके कायों का पता चलता है। यह पुस्तक करीब 650 पृष्ठों की है। विपिन चन्द्र पाल ने लोगों को इस पुस्तक की सच्चाई से अवगत कराने के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इस पुस्तक के महत्वपूर्ण तथ्यों को सबके समक्ष उपस्थित करने का प्रयास किया। इस पुस्तक से हमें पता चलता है कि विपिन चन्द्र पाल एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे, उन्होंने अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया।

यहाँ तक की उनेक सिद्धान्त पिता और पुत्र के सम्बन्धों के बीच में भी आ गए थे। इस कारण इन्होंने अपने पिता से गुजारा भत्ता लेने से इंकार कर दिया और स्वयं ही रोजी-रोटी की खोज में निकल पड़े। इसी क्रम में इन्होंने कटक में प्रधानाध्यापक का कार्य भार संभाला। लेकिन वहाँ भी विद्यालय के प्रबंधक से इनके विचार नहीं मिले जिसके कारण इन्होंने प्रधान आचार्य के पद से त्याग पत्र दे दिया। विपिन चन्द्र पाल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

वे लाल-बाल-पाल की प्रसिद्ध तिकड़ी के सदस्य थे। इनकी आत्मकथा में तत्कालीन भारत की राजनीतिक परिस्थितियों की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है। कांग्रेस के द्वारा चलाये गए विभित्र आन्दोलनों की विस्तृत जानकारियाँ, रणनीति एवं तत्कालीन परिस्थितियों का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 5.
बंग दर्शन पत्रिका के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य क्या था ? इस पत्रिका के विकास में रवीन्द्रनाथ टैगोर की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
बंकिम चन्द्र चटर्जी ने सन् 1872 ई० में ‘बंग दर्शन’ नामक पत्रिका की शुरुआत की थी। यह एक मासिक पत्रिका थी। इसका प्रकाशन बंगला भाषा में किया गया था। इस पत्रिका ने बंगालियों में राष्ट्रीय भावना को जन्म दिया तथा उसे अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त किया।

इस पत्रिका में तत्कालीन मुद्दों को बड़ी सहजता से दर्शाया गया है। इतना ही नहीं, इस पत्रिका का मुख्य उद्देश्य विभिन्न वर्ग के लोगों की स्थिति को सुधारना, समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना, उनको दूर करने के उपाय एवं ‘प्रत्यन तथा धर्म’ की व्याख्या आदि था। जिस पर बंग दर्शन पत्रिका अपना कार्य करती थी। इतना ही नहीं, इसके अन्य उद्देश्यों में शिक्षित एवं अशिक्षित वर्ग के लोगों के बीच आपसी संबंध तथा भाईचारे को बनाये रखना था।

बंग दर्शन पत्रिका के अन्य उद्देश्यों में, ज्ञान के प्रचार-प्रसार में उपयोगी कदम उठाना था, विकास लाना था। इतना ही नहीं, निम्न वर्गों, मध्य वर्गों तथा उच्च वर्गों के बीच समन्वय को स्थापित करना था, जिससे समाज में ऊँच-नीच की भावना समाप्त हो जाय तथा मानवता के आधार पर समानता को स्थापित करना था। इस पत्रिका के अन्य प्रमुख उद्देश्यों में प्राच्य भाषा को पाश्चात्य भाषा की अपेक्षा प्रमुख स्थान दिलाना था। इस प्रकार हमलोग बंग दर्शन पत्रिका के विभिन्न प्रमुख उद्देश्यों को देख पाते हैं, जो समाज एवं समाजिक क्षेत्र के लिए अधिक उपयोगी है।

दूसरी तरफ हमलोग बंग दर्शन पत्रिका के विकास में रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की भूमिका को विभिन्न रूप में देख पाते हैं। इस पत्रिका के माध्यम से रवीन्द्रनाथ टैगोर जी प्रकाशित कहानियों को संग्रह करते थे । उनका मानना था कि इस पत्रिका की प्रसिद्धि पूरे विश्ध भर में थी। सन् 1901 ई० में ‘नव बंग दर्शन’ का प्रकाशन शैलेशचन्द्र मजुमदार के द्वारा रवीन्द्रनाथ की छोटी कहानियों को प्रकाशित किया जाने लगा।

इतना ही नहीं, इसी पत्रिका से टैगर जी की ‘चोखेर बाली’ (Chokher Bali) नामक कहानियों का क्रम प्रकाशित हुआ जिसे बाद में अनेक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इस पत्रिका का प्रमुख सम्पादन कार्यालय ‘मजुमदार एजेंसी’ (Majumdar Agency) था, जो बंगाल में था। इतना ही नहीं, इस पत्रिका के माध्यम से टैगोर जी की ‘गीतांजलि’ (Gitanjali) की विभिन्न कविताओं को छापा गया, जिसमें ‘आमार सोनार बांग्ला’ गीत भी था, जो वर्तमान में बंगलादेश का राष्ट्रीय गान भी है।
अतः इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने ‘बंग दर्शन’ पत्रिका के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 6.
विज्ञान एवं तकनीकी इतिहास का वर्णन कीजिए। नारी आन्दोलन (फेमिनिस्ट मूवमेंट) से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विज्ञान एवं तकनीकी इतिहास हमें विज्ञान और तकनीकी की ओर ले जाता है, जहाँ मनुष्य विज्ञान एवं तकनीकी के सारे संसार को अपने हाथों में कर चुका है। इतिहास की इस शाखा में जैविक विज्ञान, इंजीनीयरिंग, कम्प्यूटर और सूचना विज्ञान, भूगोल, गणित, दवा, न्यूरोसाइँसेस फार्मेसी, भौतिक विज्ञान, मानसिक रोगों की चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ एवं प्रौद्योगिकी के आविष्कार एवं विकास का अध्ययन किया जाता है। विज्ञान एवं तकनीकी इतिहास आधुनिक इतिहास लेखन की एक शाखा है जिसके जरिये मनुष्य अपने घर के समस्याओं को दूर कर लिया है।

भारत में 19 वीं और 20 वीं सदी में विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में विराट परिवर्तन हुआ था। जिसके आधार पर विभिन्न विज्ञान तकनीकी शिक्षा संस्थानें तथा शोध कार्यालय खोले गये, जो भारत को एक नयी दिशा की ओर ले गया, जो विकास का मार्ग था।

इस शाखा का इतिहास देखें तो प्राचीन भारत में इस शाखा में टुक-टाक विकास हो पाया था। परन्तु महानुभावी व्यक्तित्व जेसे :- महान गणितज्ञ आर्यभट्ट, भास्कर एवं ब्रह्मगुप्त आदि ने इस क्षेत्र में अनेकों कार्य किये जिससे इस क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन आ पाया था। वहीं मध्यकालीन भारत की बात करें तो इसमें कुछ कमियाँ पायी गयी थी परन्तु आधुनिक समय की भारत की बात करें तो इस क्षेत्र में काफी विकास रूपी परिवर्तन आया है।

विभिन्न विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्रों या संस्थानों का निर्माण किया गया है, जो इस क्षेत्र में विकास का प्रतीक है। जैसे :- ‘एशियाटिक सोसायटी’, ‘इण्डियन मैथेमेटिकल सोसायटी’ (IMS), तथा ‘बोस इंस्टीट्यूट’ आदि।
इस प्रकार हम विज्ञान एवं तकनीकी इतिहास के विवरण के बारे में जान पाते हैं, जो प्रत्येक समय में विस्तृत हुई।

नारी आन्दोलन (फेमिनिस्ट मूवमेंट) : फेमिनिस्ट मूवमेंट का अर्थ होता है, महिलाओं का आन्दोलन अर्थात् प्राचीन काल से महिलाओं के ऊपर जो अत्याचार किया जाता रहा था। उसके खिलाफ तथा अपने अधिकारों के माँग के लिए महिलाओं ने 19वीं सदी में जो आन्दोलन किये उसी आन्दोलन को हमलोग फेमिनिस्ट मूवमेंट (Feminist Movement) के नाम से जानते हैं। इस आन्दोलन को न केवल राष्ट्र के बल्कि समस्त संसार के महिला एवं पुरुष ने मिलकर चलाया था।

जिस समाज में महिला नजर उठाकर बात नहीं कर सकती थी, उसी समाज में आज महिला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष तथा प्रतिपक्ष के नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं। जहाँ महिला को समाज में कष्टों का सामाना करना पड़ता था, आज वे सम्मान से उसी समाज में रह पा रही हैं। ऐसा सिर्फ नारी आन्दोलन (फेमिनिस्ट मूवमेंट) (Feminist Movement) से ही संभव हो पाया है।
इस प्रकार महिलाओं ने अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष व आन्दोलन को आज भी जारी रखा है।

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