Students should regularly practice West Bengal Board Class 10 Hindi Book Solutions Poem 1 रैदास के पद to reinforce their learning.
WBBSE Class 10 Hindi Solutions Poem 1 Question Answer – रैदास के पद
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : पाठचक्रम में संकलित पद के आधार पर संत रैदास की भक्ति-भावना का परिचय दें ।
प्रश्न – 2 : रैदास किस प्रकार की भक्ति करते थे ? पाठ के आथार पर स्पप्प कीजिए ।
प्रश्न – 3 : पठित पाठ के आधार पर ‘रैदास के पद’ का सारांश लिखें ।
प्रश्न – 4 : ‘रैदास के पद’ में निहित संदेश को लिखें ।
प्रश्न – 5 : भक्त कवि के रूप में संत रैदास का परिचय दें।
उत्तर :
संत रैदास उस जाति तथा समाज में पले-बढ़े थे जो हिन्दू होते हुए भी हिंदुओं द्वारा आदर न पाता था। वह कुल-परंपरा से विद्या प्राप्त करने के अयोग्य माना जाता था। शास्व-ज्ञान प्राप्त करने का दरवाजा उसके लिए बंद हो गया था। ये गरीबी में जनमते थे, गरीबी में ही पलते थे और उसी में मर जाया करते थे। ऐसे समाज तथा वातावरण में पैदा हुए व्यक्ति के लिए धर्म के आडंबर पर चोट करना जीवन-मरण का प्रश्न था । संत रैदास इसी समाज के रल थे । कबीर की तरह संत रैदास की भाषा सीधे चोट नहीं करती, वह तो मीठी छूरी की तरह वार करती है ।
जहाँ तक संत रैदास की भकित-भावना की बात है उनकी भक्ति दास्य भाव की है । रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुगंध-युक्त हैं तथा मैं पानी की तरह हूँ जिसमें कोई सुगध नहीं होती। आपकी सुंगध मेरे अंग-अंग में समायी हुई है। आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चकोर के लिए चंद्रमा । प्रभु आप तो दीपक तथा मैं बाती के समान हूँ।
वे कहते हैं कि मेरी बुद्धि चंचल है और इस चंचल बुद्धि से आपकी भवित भला कैसे की जा सकती है । ईश्वर का वास तो प्रत्येक के हूदय में है लेकिन मैं अज्ञानतावश उसे नहीं देख पाया । आपके गुण तो अपार हैं और मैं गुणहीन हूँ। आपने जो उपकार मेरे ऊपर किए हैं मैने उसे भी नहीं माना, भुला दिया । में अपनी-पराये के भेद्भाव में पड़ा रहा और इससे भला में कैसे मोक्ष पा सकता हूँ।
अविगत ईश्वर के चरण पाताल में तथा सिर आसमान को छूते हैं – भला जिनका विस्तार इतना विशाल है, जिसे शिव, सनक आदि भी न जान सके, जिसे खोजते-खोजते स्वय व्रहा ने भी अपने जन्म को गंवा दिया – वे भला मंदिर में कैसे समा सकते हैं। जिनके पैरों के नख से गंगा प्रवाहित होती हो, जिनकी रोमावली से ही अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ हो तथा चारों वेद जिनकी साँसों में बसा हो – उस असीम, निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना ही रैदास करते हैं।
काम, क्रोध, मोह, मद और माया ये पाँचों मिलकर मनुष्य को लूट लेते हैं। अर्धात् ईश्वर से विभुख कर देते हैं। पढ़लिखकर भी मनुष्य को तब तक सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती जब तक कि वह अनासक्त भाव से ईश्वर की भक्ति न करे । ठीक वैसे ही जैसे बिना पारस के स्पर्श के लोहा सोने में नहीं बदल सकता।
जो मित्र, शब्तु तथा जाति-अजाति के बंधन से मुक्त हैं, जिनके हुदय में सबके लिए हित की भावना हो – वही तीनों लोकों में यश की प्राप्ति कर पाते है – इसे वे लोग कहाँ जान पाते हैं जिनके हुदय में ईश्वर-भवित नहीं हैं। हे कृष्ण, आपने ही घड़ियाल के मुख से गज की रक्षा की तथा अजामिल एवं गणिका जैसे तुच्छ प्राणियों को मोक्ष प्रदान किया । जब आपने ऐसों-ऐसों का उद्धार किया तो फिर रैदास का उद्धार क्यों नहीं करते ?
इस प्रकार संत रैदास ने अपने पदों के द्वारा यह संदेश देना चाहा है कि श्रेष्ठ वही है जो धर्म, संप्रदाय, जाति, कुल और शास्ब्र की रूढ़ियों से नहीं बंधा हुआ है । धर्म के नाम पर दिखावा करना तथा संस्कारों की विचारहीन गुलामी रैदास को पसंद् नहीं थी तथा इन्हीं बेड़ियों को तोड़ने का संदेश उनके पदों में छिपा है । रैदास के लिए ईश्वर-प्रेम ही सबकुछ है । यह प्रेम, धर्म तथा समाज की बनाई रूढ़ियों से बहुत ऊपर है –
मित्र सत्रु अजाति सबते, अंतरि लावै हेत रे ।
लोग बाकी कहा जानैं, तीनि लोक पवित रे ।
वस्तुनिष्ठ सह व्याख्यामूलक प्रश्नोत्तर
1. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी जाकी अंग-अंग बास समानी
प्रभु ती तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत घंद चकोरा ||
प्रश्न – 1.
प्रस्तुत अंश के कवि का नाम लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश के कवि संत रैदास हैं।
प्रश्न – 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश में रैदास ईश्वर की आराधना करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुंगधयुक्त हैं और मैं पानी की तरह गंधरहित हूँ । आपकी सुगंध मेरे अंग में समायी हुई है । आप तो उस काले बादल के समान है जिसे देखकर मेरा मनरूपी मयूर नाच उठता है ।
2. प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जाकी जोति बरे दिन राती ।
प्रयु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहि मिलत सोहागा ।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करे रैदासा ।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उद्धुत है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘रैदास के पद्’ से उद्दृत है ।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में संत रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति-भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चाँद के लिए चकोर। आप दीपक तथा मैं बाती हूँ। आपके बिना मैं अधूरा हूँ। आपका ही प्रकाश इस संसार में फैला हुआ है । प्रभु, आप मोती तथा मैं धागा हूँ । मैने अपने-आपको आपकी भक्ति में वैसे ही विलीन कर दिया है जैसे सोने में सुहागा विलीन हो जाता है । हे प्रभु, आप मेरे स्वामी हैं तथा मैं आपका सेवक हूँ । इसी सेवक के भाव से मै आपकी भक्ति करता हूँ।
3. नहररिचंचल मति मोरी
कैसे भगति करों मैं तोरी ||
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पंक्तियों के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर :
रचनाकार संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न 2.
अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश में संत रैदास अपने मन की स्थिति का वर्णन करते हुए ईश्वर से कहते हैं कि मेरी मति तो चंचल है और इस चंचल मति के सहारे भला आपकी भक्ति कैसे की जा सकती है। कहने का भाव यह है कि जब तक मन एकाग्र नहीं होता तब तक उसे प्रभु-भक्ति में नहीं लगाया जा सकता ।
4. तू योहि देख, हाँ तोहि देख पीति परस्पर होई ।
तू मोहि देख, हैं तोहि न देखे, इहि मति सक किष खोई
प्रश्न 1.
प्रस्तुत अंश किस कविता से लिया गया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत अंश ‘रैदास के पद’ से लिया गया है ।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
संत रैदास कहते हैं कि हे ईश्वर जब तक हम एक-दूसरे को परस्पर नहीं देखते हैं तो भला प्रेम कैसे हो सकता है। आप तो मुझे देखते हैं पर मैं आपको नहीं देखता । अपनी इसी बुद्धि के कारण मैं अपनी सुध खो बैठा हूँ।
5. सब घट अंतरि रमसि निरतंरि, मे देखत हैं जहीं जाना ।
गुन सब तोर मोर सब औरुन, कित उपकार न माना ।
प्रश्न 1.
रचना के कवि का नाम लिखें ।
उत्तर :
इस रचना के कवि संत रैदास हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश में संत रैदास कहते हैं कि ईश्वर का वास तो प्रत्येक व्यक्ति के हूदय में है लेकिन मैं अज्ञानतावश आपको नहीं देख पाया । आप तो गुणों की खान हैं और मैं गुणहीन हूँ, इसलिए मैंने आपके द्वारा किए गए उपकार को नहीं माना ।
6. मे तैं तोरि योरि असमझ सों, केसे करि निसतारा ।
कहे ‘रैदास’ कृस्न करुणां में, जे जे जगत अधारा
प्रश्न 1.
कविता का नाम लिखें ।
उत्तर :
कविता का नाम ‘रैदास के पद’ है ।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश में संत रैदास कहते हैं कि मैं इस संसार में अपने-पराये के भेद-भाव में पड़ा रहा । इस बुद्धि के रहते भला मुझे मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है । मेरे कृष्ण तो करूणामयी हैं, वही इस जगत के आधार हैं। ऐसे करूणामयी कृष्ण की मैं जय-जयकार करता हूँ।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग सहित आश स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद में रैदास ने राम-नाम की महत्ता का गुणगान करते हुए कहते हैं कि बिना राम (ईश्वर) का नाम लिए मनुष्य संशय से नहीं छूट सकता है। काम, क्रोध, मोह, मद और माया ये पाँचों मिलकर मनुष्य को लूट लेते हैं। अर्थात् ईश्वर-नाम से विमुख कर देते हैं।
12. हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी |
र्दांनी गुनीं सूर हम दाता, बहु मति कदे न नासी ||
प्रश्न 1.
रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर :
रचनाकार भक्तिकालीन संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में संत रैदास कहते हैं कि मन का यह भाव कि मैं बड़ा कवि हूँ, कुलीन हूँ, पंडित हूँ, योगीसन्यासी हूँ. गुणी-ज्ञानी तथा दाता हूँ – कभी नष्ट नहीं होता । जब तक मन का यह भाव नष्ट नहीं होता तब तक भला ईश्वर की भक्ति कैसे की जा सकती है।
13. पढ़ें गुनें कहु समझि न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै ।
लोहा हर न होड हूं कैसे, जो पारस नहीं परसे ||
प्रश्न 1.
रचनाकार तथा रचना का नाम लिखें ।
उत्तर :
रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं तथा रचना का नाम ‘रैदास के पद’ है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में संत रैदास कहते हैं कि इस संसार में केवल पढ़ने-लिखने से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, सच्चा ज्ञान तो अनुभव से ही प्राप्त किया जा सकता है। अनुभव के बिना मनुष्य ज्ञानी नहीं बन सकता है ठीक वैसे ही जैसे पारस के स्पर्श के बिना लोहा सोने में नहीं बदल सकता।
14. कहै रैदास और असमझसि, भूमि परे क्रम भोरे ।
एक अधार नाम नरहरि कौ, जीवनि प्रान घन मोरे।
प्रश्न 1.
रचना का नाम लिखें ।
उत्तर :
रचना का नाम ‘रैदास के पद’ है ।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में संत रैदास कहते हैं कि मनुष्य अज्ञानतावश भ्रम के बंधन में पड़ा रहता है । इस संसार में एकमात्र आधार राम-नाम ही है और वही राम-नाम मेरा प्राणरूपी धन है ।
15. दे चित चेति कहि अचेत काहे, बालमीकाहै देख ?
जाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगाति बिसेषरे ||
प्रश्न 1.
रचनाकार का नाम लिखें
उत्तर :
रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : रैदास कहते हैं कि मेरे मन तू चेतता क्यों नहीं है ? सावधान क्यों नहीं हो जाता । उदाहरण के लिए वाल्मीकि को देखो । वे जाति के कारण विशेष पद को प्राप्त नहीं कर सके । ईश्वर की भक्ति से ही वे विशेष पद को पा सके । इसलिए चेतकर अपना सारा ध्यान ईश्वर-भक्ति में लगा।
16. बटकम सहित जे विप्र होते, हरि भगति चित द्रिढ़ जांहि रे।
हरिकथा सुहाय नांहीं, सुपच तुले तांहि रे ||
प्रश्न 1.
इस रचना के कवि कौन हैं?
उत्तर :
इस रचना के कवि रैदास हैं।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
संत रैदास कहते हैं कि कोई ब्राह्मण छ: कर्मों से युक्त होकर भी अपने हुदय को दृढ़त्तूपर्वक ईश्वर-भक्ति में नहीं लगाता है तथा उसे हरिकथा नहीं सुहाती है तो उसके जैसा अधम कोई नहीं है ।
17. मिश्र सत्रु अजानि सब के, अंतर लावै हैतर ।
लोरि बाकी कहा जानें, तीनि लॉक पवित है ||
प्रश्न – 1.
कवि का नाम लिखें ।
उत्तर : कवि का नाम रैदास है ।
प्रश्न 2.
पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
संत रैदास कहते हैं कि जो मित्र-शत्रु, जाति-अजाति सबके लिए अपने हृदय में हित की भावना रखता है वही तीनों लोकों में यश पाता है । यह बाकी लोग कहाँ जान पाते हैं जिनके हृदय में यह भावना नहीं है।
18. अजामिल गज गनिका तरी, काटी कुजर की पासि रे।
से दुखति मुकती किये, तो क्येँ तिर्दैस ? ।
प्रश्न 1.
रचना का नाम लिखें ।
उत्तर :
रचना का नाम ‘रैदास के पद’ है ।
प्रश्न 2.
पंक्ति का भाव स्पष्ट करें
उत्तर :
संत रैदास कहते हैं कि हे ईश्वर, आपने अजामिल गज, तथा गणिका को मोक्ष दिया। संकट में पड़े गज के बंधन को काटा । जब आप ऐसे दुरमतिवालों को मोक्ष देते हैं तो भला रैदास को मोक्ष की प्राप्ति क्यों नहीं हो सकती ? केवल आपकी कृपा-दृष्टि चाहिए।
अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रैदास का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1388 में ।
प्रश्न 2.
रैदास का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
काशी में ।
प्रश्न 3.
रैदास के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर :
रघु ।
प्रश्न4.
रैदास की माता का नाम क्या था ?
उत्तर :
घुरविनिया।
प्रश्न 5.
रैदास किस जाति के थे ?
उत्तर :
चर्मकार।
प्रश्न 6.
रैदास का पैतृक व्यवसाय क्या था ?
उत्तर :
जूते बनाना ।
प्रश्न 7.
रैदास किसके समकालीन थे ?
उत्तर :
कबीर के ।
प्रश्न 8.
रैदास के गुरु कौन थे ?
उत्तर :
रामानंद।
प्रश्न 9.
रैदास के गुरुभाई का नाम लिखें ।
उत्तर :
कबीर ।
प्रश्न 10.
रैदास किसकी शिष्य मण्डली के महत्वपूर्ण सदस्य थे ?
उत्तर :
रामानंद।
प्रश्न 11.
रैदास के स्वभाव की क्या विशेषताएँ थी ?
उत्तर :
परोपकारी, द्यालु तथा दूसरों की सहायता करना।
प्रश्न 12.
रैदास के माता-पिता उनसे क्यों नाराज़ रहते थे ?
उत्तर :
उनकी दानशीलता तथा परोपकारिता के कारण।
प्रश्न 13.
रैदास ने व्यावहारिक ज्ञान किससे प्राप्त किया था ?
उत्तर :
साधु-संतों की संगति से ।
प्रश्न 14.
रैदास किस काल के कवि थे ?
उत्तर :
भक्तिकाल के।
प्रश्न 15.
रैदास किस धारा के कवि थे ?
उत्तर :
ज्ञानाश्रयी शाखा के ।
प्रश्न 16.
रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर :
ऊँब-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किए जानेवाले विवाद को ।
प्रश्न 17.
रैदास के समय में कौन काशी के सबसे प्रसिद्ध प्रतिष्ठित संत थे ?
उत्तर :
रामानंद ।
प्रश्न 18.
रैदास की भक्ति किस भाव की है ?
उत्तर :
दास्यभाव की।
प्रश्न 19.
रैदास के अनुसार ईश्वर का वास कहाँ है ?
उत्तर :
हुदय में ।
प्रश्न 20.
रैदास ने जगत का आधार किसे बताया है ?
उत्तर :
ईश्वर को ।
प्रश्न 21.
रैदास ने किसकी मति को चंचल बताया है ?
उत्तर :
अपनी मति को ।
प्रश्न 22.
किसके चरण पाताल तथा सिर आसमान को छूते हैं ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर के
प्रश्न 23.
कौन निर्गुण-निराकार ईश्वर का अंत (रहस्य) न पा सके ?
उत्तर :
शिव और सनक आदि ।
प्रश्न 24.
ब्रहा ने किसकी खोज में अपना जन्म गंवा दिया ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर की खोज में ।
प्रश्न 25.
किसके नाखून के पसीने से गंगा प्रवाहित हुई है ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर के ।
प्रश्न 26.
किसकी रोमावली से अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ है ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर की रोमावली से ।
प्रश्न 27.
चारों वेद किसकी सांसों में बसा है ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर की सांसों में ।
प्रश्न 28.
किसके बिना संशय की गांठ नहीं छूट सकती है ?
उत्तर :
राम (ईश्वर) की भक्ति।
प्रश्न 29.
‘इन पंचन’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
काम, क्रोध, मोह, मद तथा माया।
प्रश्न 30.
‘घटकम’ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
अध्ययन, अध्यापन, यजन, याजन, दान तथा प्रतिग्रह ।
प्रश्न 31.
‘ऐसे दुरमति’ का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
उत्तर :
अजामिल तथा गणिका के लिए।
प्रश्न 32.
रैदास ने जीवन का आधार किसे माना है ?
उत्तर :
ईश्वर के नाम-स्मरण को ।
प्रश्न 33.
रैदास ने अपना जीवन-प्राण किसे माना है ?
उत्तर :
नरहरि को ।
प्रश्न 34.
कोई मनुष्य उच्च पद को कैसे प्राप्त करता है ?
उत्तर :
ईश्वर-भक्ति के द्वारा।
प्रश्न 35.
‘तुम चंदन हम पानी’ में चंदन और पानी कौन है ?
उत्तर :
घंदन ईश्वर हैं तथा पानी रैदास ।
प्रश्न 36.
‘घन’ और ‘मोर’ से किसे संकेतित किया गया है ?
उत्तर :
घन से ‘ईश्वर’ को तथा ‘मोर’ से रैदास ने अपने-आप को संकेतित किया है ।
प्रश्न 37.
किसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है ?
उत्तर :
ईश्वररूपी दीपक की।
प्रश्न 38.
‘मोती’ और ‘धागे’ से कौन संकेतित हैं ?
उत्तर :
ईश्वर तथा रैदास ।
प्रश्न 39.
‘स्वामी’ और ‘दासा’ कौन हैं ?
उत्तर :
‘स्वामी’ ईश्वर तथा ‘दासा’ रैदास हैं।
प्रश्न 40.
रैदास के राम कौन हैं ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार बह्म।
प्रश्न 41.
रैदास ईश्वर से क्या इच्छा प्रकट करते हैं ?
उत्तर :
वे उन्हें भी मोक्ष प्रदान करें ।
प्रश्न 42.
किसका सिर आसमान को छूता है ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार बह्न के ।
प्रश्न 43.
रैदास की भाषा क्या है ?
उत्तर :
ब्रजभाषा।
प्रश्न 44.
रैदास ने किसे सहर्ष अपनाया ?
उत्तर :
अपने पैतृक व्यवसाय को।
प्रश्न 45.
रैदास के अनुसार भक्ति-मार्ग की सबसे बड़ी बाथा क्या है ?
उत्तर :
अज्ञानता तथा अहंकार।
प्रश्न 46.
लोहा किसके स्पर्श से सोने में बदल जाता है ?
उत्तर :
पारस के स्पर्श से ।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रैदास जी ने भक्ति मार्ग को सबसे बड़ी बाधा किसे माना है?
उत्तर :
रैदास जी ने मन की चंचलता को भक्ति-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा माना है ।
प्रश्न 2.
पाँच विकार कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
पाँच विकार इस प्रकार हैं – काम, क्रोध, मोह, मद, माया।
प्रश्न 3.
ईश्वर का निवास स्थान कहाँ है ?
उत्तर :
संत रैदास जी के अनुसार ईश्वर का निवास-प्रत्येक घट अर्थात् शरीर है। कण-कण में भी है।
प्रश्न 4.
रैदास के प्रभु के चरण और शीश कहाँ तक हैं ?
उत्तर :
रैदास के प्रभु के चरण पाताल तक और शीश आसमान तक हैं।
प्रश्न 5.
रैदास के अनुसार ईश्वर का वास कहाँ है ?
उत्तर :
हद्दय में ।
प्रश्न 6.
रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर :
ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किए जानेवाले विवाद को।
प्रश्न 7.
मानव को कौन पाँच मिलकर लूटते हैं ?
उत्तर :
मानव को काम, क्रोध, मोह, मद तथा माया – ये पाँच मिलकर लूटते हैं।
प्रश्न 8.
रैदास के अनुसार सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर :
रैदास के अनुसार अनुभव से ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है ।
प्रश्न 9.
ईश्वर की कृपा से कौन-कौन तर गए/मोक्ष पा गए ?
उत्तर :
ईश्वर की कृपा से अजामिल, गज तथा गणिका मोक्ष पा गए।
प्रश्न 10.
रैदास ईश्वर से क्या विनती करते हैं ?
उत्तर :
रेदास ईश्वर से यह विनती करते हैं कि उन्होंने अजामिल, गज तथा गणिका जैसे अधम को मोक्ष प्रदान किया तो उन्हे क्यों नहीं मोक्ष देते हैं।
प्रश्न 11.
रैदास के अनुसार किसे हरिकथा नहीं सुहाती है ?
उत्तर :
रैदास के अनुसार उन्हें हरिकथा नहीं सुहाती है जो जीविका हेतु षटकर्म तो करते हैं लेकिन हदयय में ईश्वर के प्रति दृढ़ भक्ति नहीं हैं।
प्रश्न 12.
अजामिल कौन था ?
उत्तर :
अजामिल कन्नौज का व्वाह्मण था। एक वेश्या के प्रेम में पड़कर उसने पल्नी का त्याग कर दिया तथा उसे घर ले आया। वेश्या के चक्कर में उसने अपना सब कुछ गंवा दिया। वेश्या से उत्पन्न सबसे छोटे बेटे का नाम उसने नारायण रखा। मृत्यु के समय नारायण का नाम लेने पर यमदूत भाग खड़े हुए तथा ईश्वर के दूत आकर उसे स्वर्ग ले गए।
प्रश्न 13.
‘रैदास के पद’ में उल्लिखित गज-कथा को संक्षेप में लिखें ।
उत्तर :
‘भागवत पुराण’ की कथा के अनुसार दक्षिण का पांड्यवंशी राजा अगस्य मुनि के शाप से हाथी की योनि में जन्म लिया। एक दिन य्यास बुझाने सरोवर में गया तो एक ग्राह ने उसे पकड़ लिया । ग्राह से मुक्ति के लिए उसने विष्यु से पार्थना की। विष्णु ने ग्राह से गज को मुक्त कराया।
प्रश्न 14.
‘रैदास के पद’ में उल्लेखित गणिका से संबंधित कथा को संक्षेप में लिखें ।
उत्तर :
जोवंती नामक वेश्या अपने तोते को बहुत प्यार करती थी। एक दिन भिक्षा माँगने आए एक साधु ने उसे तोते को राम नाम पढ़ाने को कहा । तोते को सिखाने के क्रम में उसकी जीभ इतनी अभ्यस्त हो गई कि मृत्यु के समय भी अनायस उसके मुख से राम-राम निकला और उसे मोक्ष प्राप्त हो गया।
प्रश्न 15.
कौन-सी मति कभी नष्ट नहीं होती है ?
उत्तर :
यह मति कि हम बड़े कवि हैं, पंडित हैं, योगी-सन्यासी हैं, दानी हैं – कभी नष्ट नहीं होती है।
प्रश्न16.
वाल्मीकि कैसे ऊँचे पद को प्राप्त हुए ?
उत्तर :
संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में वाल्मीकि की प्रसिद्धि है। तमसा नदी के तट पर व्याध द्वारा क्रोंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार डालने पर वाल्मीकि के मुंह से व्याध के लिए शाप के जो उद्गार निकले वे लौकिक छंद के एक श्लोक के रूप में थे। इसी छंद में उन्होंने नारद से सुनी राम-कथा के आधार पर रामायण की रचना की और वे ऊँचे पद को प्राप्त हुए।
प्रश्न 17.
रैदास चित्त को किसे देखने को कहते हैं?
उत्तर :
ईश्वर (कृष्णा) को देखने को कहते हैं।
प्रश्न 18.
भक्ति के मार्ग को सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
उत्तर :
भक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानव का चंचल चित्त है ।
प्रश्न 19.
रैदास जी कबीर के गुरू भाई कैसे थे ?
उत्तर :
दोनों एक ही गुरू रामानंद के शिष्य होने के कारण गुरूभाई थे।
प्रश्न 20.
‘अविगत नाथ’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
अविगत नाय का अर्थ है – वह ईश्वर जिसे आज तक कोई समम्र रूप में नहीं जान सका।
प्रश्न 21.
रैदास ने किसकी मति को चंचल बताया है।
उत्तर :
रैदास ने अपनी मति को चंचल बताया है।
प्रश्न 22.
रैदास के ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर :
रैदास के ईश्वर निर्गुण, निराकार, असीम, अविगत तथा अविनासी है ।
प्रश्न 23.
रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर :
रैदास ने अहंकार के भाव को सारहीन तथा निरर्थक बताया है।
प्रश्न 24.
राम के बिना संसै की गाँठ क्यों नहीं खुलती है ?
उत्तर :
राम की कृपा के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती और न ही मनुष्य काम, कोध, मोह, मद, माया के बंधन से नहीं छूट सकता है – इसलिए संसै की गाँठ नहीं खुलती है।
प्रश्न 25.
संत कवि रैदास को अपने तरने का दृढ़ विश्वास क्यों है ?
उत्तर :
रैदास के कृष्ण ने अजामिल, गज, गणिका, कुजर जैसो को तारा इसलिए उन्हें अपने तरने का दृढ़ विश्वास है।
प्रश्न 26.
आदिकवि किसे कहा गया है ?
उत्तर :
वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया है।
प्रश्न 27.
रैदास क्या थे ?
उत्तर :
रैदास संतकवि थे।
प्रश्न 28.
किसके चरण पाताल, सिर आसमान को छूते हैं ?
उत्तर :
निर्गुण-निराकार ईश्वर के चरण पाताल तथा सिर आसमान को छूते हैं।
प्रश्न 29.
रैदास के ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर :
रैदास के ईश्वर का स्वरूप निर्गुण॰निराकार है।
प्रश्न 30.
संत रैदास ने किसे मोती और किसे धागा कहा है ?
उत्तर :
संत रैदास ने ईश्वर को मोती और स्वंय को धागा कहा है।
प्रश्न 31.
पंच विकार क्या करते हैं?
उत्तर :
पंच विकार मिल कर मनुष्य का सर्वस्त लूट लेते हैं।
प्रश्न 32.
रैदास ने अपने-आप को किस-किस के समान बताया है ?
उत्तर :
रैदास ने अपने आपको पानी, मोर, बाती, चकोर, धागा तथा दास के समान बताया है।
प्रश्न 33.
रैदास की भक्ति किस प्रकार की है ?
उत्तर :
रैदास की भक्ति दास्य भाव की है जिसमें भक्त ईश्वर को स्वामी तथा अपने को दास के समान मानता है।
प्रश्न 34.
‘गुन अब तोर मोर सब सौगुन, क्रित उपकार न माना’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि सारे गुण आपके हैं तथा सारे अवगुण मेरे हैं क्योंकि मैंने आपके किए हुए उपकार को नहीं माना ।
प्रश्न 35.
रैदास ने ईश्वर की तुलना किस-किस से की है ?
उत्तर :
रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन, घन, दीपक, चंद्रमा, मोती तथा स्वामी से की है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘रोमावली अठारह’ का क्या अर्थ है?
(क) अट्नारह रोमावती
(ख) अद्ठारह भक्त
(ग) अद्ठारह गुण
(घ) अट्ठारह पुराण
उत्तर :
(घ) अद्ठारह पुराण
प्रश्न 2.
मोर किसे देखकर नाचता है ?
(क) सूर्य
(ख) चन्द्रमा
(ग) बादल
(घ) व्यक्ति
उत्तर :
(ग) बादल
प्रश्न 3.
रैदासजी के अनुसार ईश्वर का निवास है ?
(क) घर में
(ख) मस्जिद में
(ग) घट-घट में
(घ) मंदिर में
उत्तर :
(ग) घट-घट में ।
प्रश्न 4.
रैदास के पिता का नाम क्या था ?
(क) रघुवीर दास
(ख) रग्यु
(ग) जग्गू
(घ) रामदास
उत्तर :
(ख) रग्यु ।
प्रश्न 5.
रैदास की माता का नाम क्या था ?
(क) हुलसी
(ख) तुलसी
(ग) मीरा
(घ) घुरविनिया
उत्तर :
(घ) घुरविनिया।
प्रश्न 6.
रैदास का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1388 में
(ख) सन् 1288 में
(ग) सन् 1188 में
(ब) सन् 1488 में
उत्तर :
(क) सन् 1388 में।
प्रश्न 7.
रैदास किसके शिष्य थे ?
(क) रामानंद के
(ख) रामानुजाचार्य के
(ग) भगवान राम के
(घ) मीरा के
उत्तर :
(क) रामानंद के।
प्रश्न 8.
रैदास की साहत्यिक भाषा क्या है ?
(क) खड़ी बोली
(ख) अरबी
(ग) अवधी
(घ) ब्रजभाषा
उत्तर :
(घ) ब्रजभाषा ।
प्रश्न 9.
रैदास का पैतृक व्यवसाय क्या था ?
(क) बढ़ईगिरी
(ख) चर्मकार
(ग) लुहार का
(घ) कृषि
उत्तर :
(ख) चर्मकार (जूते बनाना)।
प्रश्न 10.
रैदास किसके भक्त थे ?
(क) कृष्ण के
(ख) मीरा के
(ग) राम के
(घ) हनुमान के
उत्तर :
(क) कृष्ण के ।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन वेद नहीं है ?
(क) ॠ्वेद
(ख) सामवेद
(ग) अथर्ववेद
(घ) रामायण
उत्तर :
(घ) रामायण
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन वेद नहीं है?
(क) मग्वेद
(ख) अथर्ववेद
(ग) यजुर्वेद
(घ) महाभारत
उत्तर :
(घ) महाभारत ।
प्रश्न 13.
रैदास किस शाखा के कवि थे ?
(क) प्रेमाश्रयी
(ख) ज्ञानात्रयी
(ग) रीतिबद्ध
(घ) रीतिसिद्ध
उत्तर :
(ख) ज्ञानाश्रयी ।
प्रश्न 14.
रैदास समर्थक थे –
(क) मूर्तिपूजा के
(ख) मंदिर जाने के
(ग) इस्लाम के
(घ) निर्गुण-निराकार ब्रह्म के
उत्तर :
(घ) निर्गुण-निराकार ब्रह्म के ।
प्रश्न 15.
रैदास से कौन अप्रसन्न रहते थे ?
(क) माता-पिता
(ख) कबीर
(ग) रामानंद
(घ) लोग
उत्तर :
(क) माता-पिता ।
प्रश्न 16.
रैदास किस काल के कवि थे ?
(क) रीतिकाल
(ख) आदिकाल
(ग) भक्तिकाल
(घ) आधुनिककाल
उत्तर :
(ग) भक्तिकाल ।
प्रश्न 17.
रैदास की भाषा क्या है ?
(क) ब्रजभाषा
(ख) अवधी
(ग) सधुक्कड़ी
(घ) खड़ी बोली
उत्तर :
(क) ब्रजभाषा।
प्रश्न 18.
रैदास जी का अधिकार समय व्यतीत होता था ?
(क) चित्रकारी में
(ख) पर्यटन में
(ग) ईश्वर भजन एवं सत्संग में
(घ) लेखन में
उत्तर :
(ग) ईश्वर भजन एवं सत्संग में।
प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से रैदास ने ईश्वर को किसके समान नहीं बताया है ?
(क) मोती
(ख) सागर
(ग) चंदन
(घ) दीपक
उत्तर :
(ख) सागर ।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित में से रैदास ने किसके समान अपने को नहीं बताया है ?
(क) धागा
(ख) सोहागा
(ग) बाती
(घ) चंदन
उत्तर :
(घ) चंदन ।
प्रश्न 21.
रैदास किसकी भक्ति करना चाहते हैं ?
(क) राम की
(ख) कृष्ष की
(ग) विष्णु की
(घ) गणेश की
उत्तर :
(क) राम की।
प्रश्न 22.
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर किसका निवास है ?
(क) ईश्वर का
(ख) कृष्ण का
(ग) रैदास का
(घ) तुलसीदास का
उत्तर :
(क) ईश्वर का।
प्रश्न 23.
रैदास ने किसे ‘करुणामैं’ कहा है ?
(क) स्वयं को
(ख) कृष्ण को
(ग) राम को
(घ) ईश्वर को
उत्तर :
(ख) कृष्ण को ।
प्रश्न 24.
‘अविगत’ कौन है ?
(क) रैदास
(ख) कृष्ण
(ग) ईश्वर
(घ) आत्मा
उत्तर :
(ग) ईश्वर ।
प्रश्न 25.
रैदास ने इस जगत का आधार किसे बताया है ?
(क) कृष्ण को
(ख) राम को
(ग) शेष नाग को
(घ) विष्यु को
उत्तर :
(क) कृष्ण को।
प्रश्न 26.
रैदास ने हरि-सेवा का कौन-सा मार्ग बताया है ?
(क) ज्ञान
(ख) प्रेम
(ग) सहज समाधि
(घ) बाह्याडंबर
उत्तर :
(ग) सहज समाधि ।
प्रश्न 27.
‘सुरसरि’ का अर्थ है ?
(क) नदी
(ख) गंगा
(ग) सागर
(घ) सुरसा
उत्तर :
(ख) गंगा ।
प्रश्न 28.
किसके बिना संशय की गांठ नहीं छूटती ?
(क) राम
(ख) ज्ञान
(ग) प्रेम
(घ) भक्ति
उत्तर :
(क) राम ।
प्रश्न 29.
किसके नाखून के पसीने से गंगा प्रवाहित हुई है ?
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) ईश्वर
(घ) रैदास
उत्तर :
(ग) ईश्वर ।
प्रश्न 30.
शिव, सनक मुनि आदि किसका अंत नहीं पा सके ?
(क) निर्गुण-निराकार ईश्वर
(ख) राम
(ग) कृष्ण
(घ) पृथ्वी
उत्तर :
(क) निर्गुण-निराकार ईश्वर।
प्रश्न 31.
चारों वेद किसका गुणगान करते हैं ?
(क) राम का
(ख) कृष्ण का
(ग) रैदास का
(घ) निर्गुण, निराकार ईश्वर का
उत्तर :
(घ) निर्गुण, निराकार ईश्वर का ।
प्रश्न 32.
‘अनभैभाव’ का अर्थ है –
(क) अनुभवहीन
(ख) अनुभव का भाव
(ग) अनगढ़
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) अनुभव का भाव ।
प्रश्न 33.
लोहा किसके स्पर्श से सोने में बदल जाता है ?
(क) पारा
(ख) तांबा
(ग) पारस
(घ) संगमरमर
उत्तर :
(ग) पारस ।
प्रश्न 34.
रैदास ने ‘प्राणधन’ किसे कहा है ?
(क) राम को
(ख) कृष्ण को
(ग) ईश्वर के नाम को
(घ) साँस को
उत्तर :
(ग) ईश्वर के नाम को।
प्रश्न 35.
निम्नलिखित में से कृष्ण ने किसका उद्धार नहीं किया ?
(क) रावण का
(ख) अजामिल का
(ग) गज का
(घ) गणिका का
उत्तर :
(क) रावण का ।
प्रश्न 36.
रैदास ने ईश्वर और अपनी तुलना निम्न में से किससे नहीं की है ?
(क) फूल-काँटा
(ख) चंदन-पानी
(ग) दीपक-बाती
(घ) मोती-धागा
उत्तर :
(क) फूल-काँटा।
प्रश्न 37.
किसने ईश्वर को खोजते-खोजते अपना जन्म गंवा दिया ?
(क) शिव
(ख) सनक
(ग) अजामिल
(घ) बह्या
उत्तर :
(घ) बह्या।
प्रश्न 38.
वेदों की संख्या कितनी है ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(ग) चार।
प्रश्न 39.
रैदास किसे चेत जाने को कहते हैं ?
(क) कवियों को
(ख) भक्तों को
(ग) मन को
(घ) प्राणियों को
उत्तर :
(ग) मन को ।
प्रश्न 40.
‘घटक्रम’ का अर्थ है।
(क) छ: क्रमांक
(ख) छ: क्रम
(ग) छ: का
(घ) छ: कर्म
उत्तर :
(घ) छ: कर्म ।
प्रश्न 41.
‘सुरसरि’ का अर्थ है ?
(क) यमुना
(ख) गंगा
(ग) सरस्वती
(घ) नर्मदा
उत्तर :
(ख) गंगा।
प्रश्न 42.
रैदास के राम कौन हैं ?
(क) दशरथ के पुत्र
(ख) अयोध्या के राजा
(ग) निर्गुण-निराकार ईश्वर
(घ) वनवासी राम
उत्तर :
(ग) निर्गुण-निराकार ईश्वर ।
प्रश्न 43.
पुराणों की संख्या कितनी है ?
(क) पंद्रह
(ख) सोलह
(ग) सव्रह
(घ) अठारह
उत्तर :
(घ) अठारह ।
प्रश्न 44.
रैदास ने प्रभु को किसके समान बताया है ?
(क) धागा
(ख) दास
(ग) घन
(घ) मोर
उत्तर :
(ग) घन।
प्रश्न 45.
रैदास ने प्रभु को निम्न में से किसके समान बताया है ?
(क) धागा
(ख) सोना
(ग) मोर
(घ) घन
उत्तर :
(घ) घन।
प्रश्न 46.
‘तुम मोती हम धागा’ में मोती कौन है ?
(क) चंदन
(ख) मोर
(ग) चकोर
(घ) प्रभु
उत्तर :
(घ) प्रभु।
प्रश्न 47.
किसकी बास अंग-अंग में समा जाती है?
(क) चंदन
(ख) प्रभु
(ग) सोहागा
(घ) सोना
उत्तर :
(क) चंदन।
प्रश्न 48.
किसकी मति चंचल है ?
(क) प्रभु
(ख) रैदास
(ग) नरहरि
(घ) चकोर
उत्तर :
(ख) रैदास।
प्रश्न 49.
प्रत्येक घट के अंदर किसका वास है ?
(क) पानी
(ख) प्रभु
(ग) रैदास
(घ) सोना
उत्तर :
(ख) प्रभु।
प्रश्न 50.
गुन सब तोर – में ‘तोर’ किसके लिए आया है?
(क) प्रभु
(ख) रैदास
(ग) घट
(घ) प्रीति
उत्तर :
(क) प्रभु।
प्रश्न 51.
‘अविगत’ से क्या तात्पर्य है ?
(क) जो विगत नहीं है
(ख) ईश्वर
(ग) रैदास
(घ) भक्ति
उत्तर :
(ख) ईश्वर।
प्रश्न 52.
रैदास के लिए एकमात्र आधार क्या है ?
(क) पृथ्वी
(ख) आकाश
(ग) भक्ति
(घ) नरहरि
उत्तर :
(घ) नरहारि।
प्रश्न 53.
प्रभु ने निम्न में से किसको मोक्ष नहीं दिया ?
(क) अजामिल
(ख) गज
(ग) रैदास
(घ) गणिका
उत्तर :
(ग) रैदास।
प्रश्न 54.
रैदास कैसी भक्ति करते हैं ?
(क) गुरू-शिष्य की
(ख) स्र्री-पुरुष की
(ग) स्वामी-दास की
(घ) नर-नारी की
उत्तर :
(ग) स्वामी-दास की।
प्रश्न 55.
कवि रैदास ने प्रभुजी को चंदन एवं अपने को माना है?
(क) हवा
(ख) पानी
(ग) पर्वत
(घ) बर्फ
उत्तर :
(ख) पानी।
प्रश्न 56.
‘प्रभुजी तुम चंदन हम पानी’ में पानी किसे कहा गया है ?
(क) सेवक
(ख) भक्त
(ग) ईश्वर
(घ) दीया
उत्तर :
(ख) भक्त।
प्रश्न 57.
रैदास किसकी भक्ति करना चाहते हैं ?
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) विष्यु
(घ) गणेश
उत्तर :
(ख) कृष्ण।
प्रश्न 58.
रैदास ने अपने-आपको किसके समान बताया है ?
(क) पानी
(ख) चंदन
(ग) दीपक
(घ) सोहागा
उत्तर :
(क) पानी।
प्रश्न 59.
रैदास किसके गुरुभाई थे ?
(क) रहीम के
(ख) कबीर के
(ग) बिहारी के
(घ) वृंद के
उत्तर :
(ख) कबीर के।
WBBSE Class 10 Hindi रैदास के पद Summary
कवि परिचय
संत कवि रैदास का जन्म सन् 1388 में काशी (वाराणसी) में हुआ था । पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरविनिया था। रैदास भक्तिकाल के उन कवियों में से हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से साभाजिक कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । इनकी लोकवाणी आज भी जनजन के हृदय में गुंजती है । हलांकि ये ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि थे फिर भी इनका काव्य ज्ञानाश्रयी तथा प्रेमाश्रयी शाखा के बीच सेतु (पुल) का काम करता है । रैदास संत कबीरदास के गुरूभाई थे क्योंकि इनके गुरु भी स्वामी रामानंद ही थे ।
संत रैदास जाति से चर्मकार थे तथा इनका पैतृक व्यवसाय जूते बनाना था। उन्होंने भी इस व्यवसाय को ही अपनाया। प्राय: जरूरतमंदों तथा गरीबों को ये बिना मूल्य लिए ही जूते भेंट कर दिया करते थे । इसी से उनके परोपकारी तथा दयालु स्वभाव का पता चलता है। उनकी इस दानशीलता तथा परोपकारिता के कारण माता-पिता अप्रसन्न रहते थे ।
रैदास ने कबीर की ही तरह ईश्वर-भक्ति के नाम पर बाह्याडबर को बुरा बताया तथा लोगों को आपस में प्रेमपूर्वक मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया। उनका ऐसा मानना था कि सदाचार, परहित की भावना तथा सद्व्यवहार से ही ईश्वर को पाया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि भक्तिकाल की सुपसिद्ध कवयित्री मीराबाई ने भी रैदास को ही अपना गुरु बनाया था ।
संत रैदास की भाषा सरल, सहज, मर्मस्पर्शी तथा व्यावहारिक ब्रज़ाषा है। इनकी भाषा में अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली तथा अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है ।
भावार्थ
पद सं० -1
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी ।
जाकी अंग-अंग बास समानी ।
प्रभु जी तुम घन बन हुम मोरा।
जैसे धितवत चंद चकोरा |
म्रभु जी तुम दीपक हम बाती ।
जाकी जोति बरे दिन राती ।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहि मिलत सोहागा ।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भक्ति करे रैदासा
शब्दार्थ :
- जाकी = जिसकी
- बास = सुग्ध ।
- समानी = समावा हुआ ।
- घन = बादल ।
- मोरा = मयूर ।
- चितवत = उदय में बसा हुआ ।
- चकोरा = बकोर (पथीं)
- जोति = ज्योति ।
- बरे = जलता है।
- दिन राती = दिन – रात ।
- सोनहिं = सौना ।
- सोहागा = एक म्रकार का रसायन ।
- दासा = दास ।
प्रश्न 1.
प्रसुत काव्यांश किस पाठ से उड्यात है ?
उत्तर :
घस्तुत काव्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्दुत है।
प्रश्न 2.
इस पध्यांश के रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर :
इस पद्यांश के र्वनाकार भाकाकाल के संत काव रैदास है।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्ष लिखें।
उत्तर :
प्रसुत्र पद में रैदास ईंश्वर के पाति अपनी भावना प्रकट करते तुए कहते है कि आप बंदन की तरह सुग्षयुक्त हैं तथा मे पानी की तरह हूं जिसमें कोई सुग्य नहीं होती। आपकी युगध मेरे आग-अंग में समायी हुई है। आप तो उस काले बादस के समान है जिसे देधकर मेरा मनरूपी मवूर नाब उठता है । आप मेरे लिए वैसे ही है जैसे बकोर के लिए चंद्रमा। प्रपु आप तो दोपक तथा में बाती के समान हूं। आपके बिना में अभूरा है तथा आपका ही एकाश दिन-रात कैला रहता है। प्यु, आण मोती तथा मै थागे के समान हैं । मेंने अपने-आपको आपकी माक्त में बैसे ही बिलीन कर दिया
काव्यगत सौदर्य :
1. मस्तुत पद में रैदास की ईश्वर के पति दार्य-भावना प्रकट हुई है।
2. प्रस्तुत्त पद के ‘चितबन, चद, बकोरा’, ‘जाकी जोति’ में अनुपास तथा ‘अंग-अंग’ में चेकानुमास अलंकार है ।
3. रैदास ने ईश्वर को सर्वगुण संपन्न तथा अपने को गुणरहित बताया है ।
4. रस शांत है ।
5. भाषा सरल बजभाषा है।
पद सं० 2.
नरहरि चंथल मति मोरी
कैसे भगति करौं मैं तोरी ।
तू मोहि देखी, हाँ तोहि देखी, प्रीति परस्पर होई ।
वृ मोहि देखे, हों तोहि न देखं, इहि मति सब बुधि खोई |
सब घट अंतरि रमसि निरतारि, मैं देखत हैँ नहीं जाना ।
गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपकार न माना ।
मैं तैं तोरि मोरि असमझ सों, वैसे करि निसतारा ।
कहै ‘रैदास’ वृस्न करुणां मैं, जै जै जगत अधारा
शब्दार्थ :
- नरहरि = ईश्वर ।
- चंचल = अस्थिर ।
- मति = बुद्धि ।
- मोरी = मेरी ।
- भर्गति = भक्ति ।
- तोरी = तुम्हारी ।
- मोहि = मुझे ।
- तोहि = तुझे ।
- इहि = इसी ।
- बुधि = बुद्धि
- खोई = खो दिया ।
- घट = शरीर ।
- अंतरि = अंदर ।
- रमसि = रमा रहता है ।
- निरतंरि = लगातार ।
- गुन = गुण ।
- तोर मोर = तुम्हारा – मेरा ।
- औगुन = अवगुण ।
- क्रित = किए गए।
- उपकार = भलाई ।
- असमझ = अविवेक।
- सों = से ।
- कैसे करि = कैसे किया जाय ।
- निसतारा = समाधान ।
- कृस्न = कृष्ण।
- करूणांमें = करूणामय ।
- जै जै = जय-जय ।
- अधारा = आधार ।
प्रश्न – 1.
प्रस्तुत काव्यांश किस पाठ से उद्धुत है ?
उत्तर :
प्रस्तुत काव्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्दृत है ।
प्रश्न – 2.
इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर :
इस पद्यांश के रबनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न – 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद में रैदास ने अपनी भक्ति के मार्ग में आनेवाली बाधाओं का उल्लेख किया है। वे कहते हैं कि मेरी बुद्धि चंचल है और इस चंचल बुद्धि से आपकी भक्ति भला कैसे की जा सकती है। जब तक हम दोनों एक-दूसरे को देख नहीं पाएंगे तो फिर पेम कैसे उपजेगा । न आप मुझे देखते हैं और न मैं आपको । मैं अपनी सुध-बुध खो बैठा हूँ।
ईश्वर का वास तो प्रत्येक के ब़दय में है लेकिन में अज्ञानतावश उसे नहीं देख पाया। आपके गुण तो अपार हैं और मैं गुणहीन हूँ । आपने जो उपकार मेरे ऊपर किए हैं मैने उसे भी नहीं माना, भुला दिया। मैं अपनी-पराये के भेदभाव में पड़ा रहा और इससे भला मैं कैसे मोक्ष पा सकता हूँ। कृष्ण तो करूणामयी हैं, वही इस संपूर्ण जगत के आधार हैं। ऐसे करूणामयी कृष्ण की मैं जय-जयकार करता हूँ ।
काव्यगत सौंदर्य :
1. पस्तुत पद में रैदास ने कृष्ण के पति अपनी भक्ति-भावना प्रकट की है ।
2. रैदास अपनी अज्ञानता तथा अवगुणों को ही ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में बाधक मानते हैं।
3. प्रस्तुत पद के ‘मति मोरी’, ‘प्रीति परस्पर’, ‘कैसे करि’ तथा ‘कृस्न करूणां में में अनुपास अलंकार है ।
4. ‘जे-जै’ में छेकानुपास अलंकार है।
5. रस शांत है ।
6. भाषा सरल ब्रजभाषा है।
पद सं० – 3
अविगत नाथ निरंजन देवा ।
मैं का जानूं तुम्हरि सेवा ||
बांधू न बंधन छांऊँ न छाया, तुमही सेऊँ निरंजन राया ।
चरन पताल सीस असमाना, सो ठाकुर कैसे संपटि समाना ॥
सिव सनकादिक अंत न पाया, खोजत ब्रह्वा जनम गंवाया ।
तोड्डू न पाती पूर्जौं न देवा, सहज समाधि करौं हरि सेवा ||
नख प्रसेद जाके सुरसुरी धारा, रोमावली अठारह धारा ।
चारि बेद जाकै सुमृत सासा, भगति हेत गावै रैदासा ।।
शब्दार्थ :
- अविगत = जिसे जाना न जा सके ।
- नाथ = स्वामी ।
- निरंजन = ईश्वर ।
- देवा = देवता
- का = क्या।
- छाऊँ = छवाना ।
- तुमही = तुम्हें ही ।
- सेऊँ = सेवा करूँ ।
- राया = । चरन = वरण ।
- पताल = पाताल ।
- सीस = सिर ।
- असमाना = आसमान ।
- सो = वह ।
- ठाकुर = ईश्वर ।
- संपटि = नेत्र, आँख ।
- समाना = समा सकता है ।
- सिव = शिव ।
- सनकादिक = सनक मुनि आदि
- गंवाया = बिता दिया, खो दिया।
- पाती = परंपरा ।
- पूजौं = पूजा करूँ ।
- सहज = आसानी ।
- प्रसेद = पसीना ।
- जाके = जिसकी ।
- सुरसरि = गंगा ।
- चारि बेद = चारों वेद ।
- सुमृत = । सासा = ।
- भगति = भक्ति ।
- हेत = के लिए ।
- गावे = गाते हैं ।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत काव्यांश किस पाठ से उद्धुत है ?
उत्तर :
प्रस्तुत काव्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्धृत है ।
प्रश्न 2.
इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर :
इस पद्यांश के रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पद में रैदास कहते हैं कि ईश्वर तो अविगत हैं और उनको किस सेवा के द्वारा प्रसन्न किया जाय-यह मैं नहीं जानता । उस अविगत ईश्वर के चरण पाताल में तथा सिर आसमान को छूते हैं- भला जिनका विस्तार इतना विशाल है, जिसे शिव, सनक आदि भी न जान सके, जिसे खोजते-खोजते स्वय बहा ने भी अपने जन्म को गंवा दिया वे भला मंदिर में कैसे समा सकते हैं ।
न तो में उन पर पूजन-सामग्री चढ़ाता हूँ, न अन्य लोगों की तरह उनकी पूजा ही करता हूँ । मैं तो अपनी सहज समाधि के द्वारा ही उनकी अराधना करता हूँ । जिनके पैरों के नख से गंगा प्रवाहित होती हो, जिनकी रोमावली से ही अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ हो तथा चारों वेद जिनकी सांसों में बसा हो – उस असीम, निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना ही रैदास करते हैं।
काव्यगत सौंदर्य :
1. यहाँ रैदास ने कबोर की ही भांति निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना की है।
2. इस ईश्वर को केवल सहज समाधि के द्वारा ही पाया जा सकता है, किसी बाह्याडंबर से नहीं।
3. प्रस्तुत पद के ‘नाथ निरंजन’, ‘संपटि समाना’, ‘सिवन सनकादिक’, ‘पाती पूजाँ’, ‘सहज समाधि’ तथा ‘सुमृत सासा’ में अनुभास अलंकार है ।
4. रस शांत है ।
5. भाषा सहज-सरल ब्रजभाषा है।
पद सं० – 4
राम बिन संसै गाँठि न छूटै ।
काम क्रोध मोह मद माया, इन पंचन मिलि लूटै ।।
हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी।
ग्यांनी गुनीं सूर हम दाता, यहु मति कदे न नासी ||
पढ़ें गुनें कछु समझ़ न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै ।
लोहा हर न होइ धाँ वैदसें, जो पारस नही परसै ||
कहै रैदास और असमझासि, भूमि परै खम भोरे ।
एक अधार नाम नरहारि कौ, जीवनि प्रान धन मोरै ||
शब्दार्थ :
- बिन = बिना ।
- संसै = संशय ।
- गाँठि = गाँठ, बंधन (जन्म और मृत्यु का बंधन) ।
- काम = इच्छा ।
- मोह = लालच
- मद = मिलकर ।
- लूटै = लूटते हैं।
- बड़ = बड़े ।
- कुलीन = बड़े कुल (खानदान, वंश) का ।
- जोगी = योगी।
- ग्यांनी = ज्ञानी ।
- गुनीं = गुणवान, गुणी ।
- दाता = देने वाला।
- यहु = यह ।
- मति = बुद्धि ।
- कदे न = कभी नहीं ।
- नासी = नाश होता है ।
- पढ़े-गुनें = पढ़ना और समझना ।
- कछु = कुछ भी ।
- समझि न परई = समझ में नहीं आता है ।
- जौ लौ = जब तक ।
- दरसै = दिखायी देता है ।
- हर = हीरा ।
- न होइ = नहीं हो सकता है ।
- पारस = एक प्रकार का पत्थर जिसके
- सर्श से लोहा सोने में बदल जाता है।
- परसै = स्पर्श ।
- असमझ़ास = असमझ्श के कारण ।
- भूाल परं = भूल में पड़कर ।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत काव्यांश किस पाठ से उद्दृत है ?
उत्तर:
पस्तुत काव्यांश रैदास के पद’ से उद्धृत है ।
प्रश्न 2.
इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर :
इस पद्यांश के रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं ।
प्रश्न 3.
पंच विकार क्या करते हैं?
उत्तर :
पंच विकार मनुष्य का सबकुछ लूट लेते हैं अर्थात् उसे ईश्वर-नाम से विमुख कर टेते हैं, ईश्वर की भवित से दूर कर देते हैं।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग सहित आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद में रैदास ने राम-नाम की महत्ता का गुणगान करते हुए कहते हैं कि बिना राम (ईश्वर) का नाम लिए मनुष्य संशय से नहीं छूट सकता है। काम, क्रोध, मोह, मद और माया ये पाँचों मिलकर मनुष्य को लूट लेते हैं। अर्थात् ईश्वर-नाम से विमुख कर देते हैं। मनुष्य का यह भाव कि हम बड़े कवि हैं, हम कुलीन हैं, हम पंडित हैं, हम योगीसन्यासी हैं, ज्ञानी-गुनी और महान दाता है|
नष्ट नहीं हो पाता पदी-लिखकर भी मनुष्य को तब तक सच्चे ज्ञान को प्राप्ति नहीं होती जब तक कि वह अनासक्त भाव से ईश्वर की भक्ति न करे। ठीक वैसे ही जैसे बिना पारस के स्पर्श के लोहा सोने में नहीं बदल सकता । मनुष्य अपनी असमझ तथा भम के कारण ही ईश्वर से विमुख हो जाता है । रैदास कहते हैं कि उनके जोवन का प्राणधन तथा एकमात्र आधार तो ईश्वर का नाम-स्मरण ही है ।
काव्यगत सौंदर्य :
1. प्रस्तुत पद में रैदास ने ज्ञान तथा अनुभव के द्वारा ईश्वर को जानने-पाने की बात कही है ।
2. काम, क्रोध, मोह, मद और माया से बचकर ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
3. सच्चा ज्ञान पुस्तकों से नहीं, अनुभव से ही पाया जा सकता है।
4. अनासक्त भाव के बिना ईश्वर की प्राप्ति वैसे ही नहीं हो सकती जैसे बिना पारस के स्यर्श के लोहा सोने में नहीं बढल सकता ।
5. प्रस्तुत पद के ‘काम क्रोध’, ‘मोह मद माया’, ‘कवि कुलोन’, ‘ज्ञानी-गुनी’, भ्रम भोरे’ में अनुप्रास अलंकार है।
6. रस शांत है ।
7. भाषा सहज ब्रज भाषा है ।
पद सं० – 5
रे चित चेति कहिं अचेत काहे, बालमीकहिं देखि रे ।
ज्ञाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगति बिसेषरे ||
षटक्कम सहित जे विप्र होते, हरि भगति चित द्रिद्ध नांहि रे
हरिकथा सुहाया नांहीं, सुपच तुलै तांहि रे ||
मित्र सत्रु अजाति सब ते, अंतरि लावे हेत रे ।
लोग बाखी कहा जानें, तीनि लोक पवित रे
अजामिल गज गनिका तारी, काटी कुंजर की पासि रे ।
ऐसे दुरमति मुकती किये, तो क्यूँ न तिरै रैदासरे ।
शब्दार्थ :
- चित = चित्त, हुदय ।
- चेति = चेत जाओ, सावधान हो जाओ ।
- अचेत = बिना चंतना के ।
- बालमीकहिं = वाल्मीकि (मुनि) को ।
- देखि रे = देखो रे ।
- थैं = से ।
- पदि = पद ।
- पहुच्या = पहुँचा ।
- बिसेषरे = विशेष है ।
- घटक्रम = छ: कर्म ।
- विप्र = गरीब ।
- द्रिढ़ = दृढ़ ।
- सुहाय = सुहाना, अच्छा लगना ।
- तांहि = उसे ।
- सत्रु = शत्रु ।
- अंतरि = हददय से ।
- हेत = हित ।
- कहा = कहाँ ।
- तीनि = तीनों ।
- पवित = पवित्र ।
- गज = हाथी ।
- गनिका = वेश्या ।
- तारी = तार दिया, मोक्ष दिया ।
- कुंजर = हाथी
- पासि = बंधन ।
- दुरमति = बुरी मति, बुरी बुद्धि ।
- मुकती = मुक्त, मोक्ष ।
- तिरै = तर जाते हैं, मोक्ष पा जाते हैं।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत काव्यांश किस पाठ से उद्धुत है ?
उत्तर :
प्रस्तुत काव्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्धृत है ।
प्रश्न 2.
इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर :
इस पद्यांश के रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न – 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर :
पद की इन पंक्तियों में भक्त कवि रैदास ने ईश्वर-भक्ति की महत्ता को दर्शाया है। वे कहते हैं कि हे मन, अब भी चेत जा । ऐ मन, वाल्मीकि को उदाहरण के रूप में देखो। उन्होंने जाति के आधार पर इतना ऊँचा पद नहीं प्राप्त किया बल्कि राम की भक्ति से प्राप्त किया । जिस ब्राह्मण को ईश्वर की कथा में कोई रूचि नहीं है, वह अपने छ: कर्मों – अध्ययन, अध्यापन, यजन (यज्ञ करना), याजन (यज्ञ कराना), दान और प्रतिग्रह के होते हुए भी उनका मन चंचल रहता है।
जो मित्र, शत्रु तथा जाति-अजाति के बंधन से मुक्त हैं, जिनके हादय में सबके लिए हित की भावना हो – वही तीनों लोकों में यश की प्राप्ति कर पाते हैं – इसे वे लोग कहाँ जान पाते हैं जिनके हुदय में ईश्वर-भक्ति नहीं हैं । हे कृष्ण, आपने ही घड़ियाल के मुख से गज की रक्षा की तथा अजामिल एवं गणिका जैसे तुच्छ प्राणियों को मोक्ष प्रदान किया । जब आपने ऐसों-ऐसों का उद्धार किया तो फिर रैदास का उद्धार क्यों नहीं करते ?
काव्यगत सौदर्य:
1. प्रस्तुत पद में रैदास ने कहना चाहा है ईश्वर की अनन्य भक्ति से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
2. ईश्वर-भक्ति से बड़े से बड़े अधम को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।
3. ईश्वर को कृपालु बताने के लिए पौराणिक कथा को उद्दुत किया गया है ।
4. पस्तुत पद के ‘चित चेति’, ‘षटक्रम सहित’, ‘गज गनिका’, ‘काटी कुंजर’ में अनुप्रास अलंकार है ।
5. रस शांत है ।
6. भाषा बजभाषा है ।