Students should regularly practice West Bengal Board Class 10 Hindi Book Solutions एकांकी Chapter 1 दीपदान to reinforce their learning.
WBBSE Class 10 Hindi Solutions Chapter 1 Question Answer – दीपदान
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 : ‘दीपदान’ एकांकी के आधार पर पन्ना धाय की प्रमुख विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न 2 : ‘दीपदान’ एकांकी के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न 3 : ‘दीपदान’ एकांकी में जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है उसका चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 4 : “नमक से रक्त बनता है, रक्त से नमक नहीं ” – के आधार पर पत्रा का चरित्र-चि:न
अथवा
प्रश्न 5 : “यहाँ का त्योहार आत्पबलिदान है” – के आधार पर पन्ना की चारित्रिक विशेषताओं को लगकें
अथवा
प्रश्न 6 : ‘थाय माँ पन्ना’ के पुत्र का क्या नाम था ? उसने अपने पुत्र को कहाँ और क्यों सुला ‘दीपदान’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा
प्रश्न 7 : ‘मेरे महाराणा का नमक मेरे रक्त से भी महान् है’ – के आधार पर संबंधित चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 8 : “आज मैने भी दीप-दान किया है। दीप-दान”। – पंक्ति के आधार पर पन्ना का ‘स्त्रचित्रण करें।
अधवा
प्रश्न 9 : “अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है” – पंक्ति के आधार पर प क? चरित्र-चित्रण करें।
अथवा.
प्रश्न 10 : “ऐसा दीप-दान भी किसी ने किया है”! – पंक्ति के आधार पर पत्रा की चा” जाक विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न 11 : “सारे राजपूताने में एक ही धाय माँ है, पत्ना ! सबसे अच्छी !”- गृ्यांश के आघहर पर पब्ना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 12 : “महल में धाय माँ अरावली पहाड़ बनकर बैठ गई है” – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 13 :
सिद्ध कीजिए कि पत्रा के चरित्र में माँ की ममता, राजपूतानी का रक्त, राजभक्ति और आत्म-त्याग की भावना है ।
उत्तर :
‘धाय माँ पत्ना’ के पुत्र का क्या नाम चन्दन था।
पम्ना धाय ‘दौपदान’ एकांकी की प्रतिनिधि पात्रा है। सच कहा जाय तो वही इस एकांकी की नायिका है तथा एकाकी की संपूर्ण कथा उसके इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस एकांकी में उसका चरित्र एक वीरांगना के रूप में प्रस्तुत है जा है। यह वह भारतीय नारी नहीं है जिसके बारे में प्रसाद जी ने कहा था –
“‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग-पग तल में।
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।”
पन्ना धाय में हमें एक साथ पृथ्वी की-सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की-सी गंभीरता, चन्द्रमा की-सी शॉंतलता तथा पर्वतों के समान मानसिक उच्चता दिखाई पड़ती है।
पत्ना धाय केवल एक आदर्श धाय ही नहीं है बल्कि उसमें सच्ची देशभक्ति तथा कर्त्तव्य परायणता भी कूटकृट कर भरी है। इन्हीं गुणों के कारण वह चित्तौड़ के उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह की रक्षा बनवीर से करने के लिए अपने पुत्र को बलिदान करने से भी नहीं हिचकती। यद्यपि रणवीर उसे धन का लालच देकर खरीदना चाहता है लैकिन पत्ना उसे दो दूक जवाब देती है –
“राजपूतानी व्यापार नहीं करती, महाराज ! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर।” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पन्ना धाय ‘दीपदान’ एकांकी की प्रमुख पात्रा होने के साथ-साथ एक आदर्श भारतीय नारी का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 14 : ‘दीपदान’ एकांकी के आघार पर बनवीर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्रश्न 15 : “महाराज बनवीर नहीं कहा? मेरे कहने भर से तुम देवी हो गई” !- गद्यांश के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 16 : “रक्त तो तलवार की शोमा है’ – कथन के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 17 : ‘विश्राम मैं करूँ ? बनवीर ! जिसे राजलक्ष्मी को पाने के लिए दूर तक की यात्रा करनी है ” – कथन के आधार पर संबेधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 18 : “यदि मेरा नाम लेना है तो जयकार के साथ नाम लो” – पंक्ति के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 19 : “चुप रह घाय ! बच्चे को पालने वाली – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्रचिन्नण करें।
अध्रवा
प्रश्न 20 : “लोरियाँ सुनानेवाली एक साधारण दासी महाराणा से बात करती है ?”-क्थन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 21 : “वह दैत्य बन गया है – संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 22: “सर्प की तरह उसकी भी दो जीभें हैं जो एक से नहीं कुझेगी” – कथन के आयार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 23 : “उसे दूसरा रक्त भी चाहिए” – संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 24 : “वह पशु से भी गया-बीता है” – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 25 : “विलासी और अत्याचारी राजा कभी निष्केटक राज नहीं करता” – संबंयित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 26 : आज की रात में ही वह अपने को पूरा महाराणा बना लेता चाहता है – कथन के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर :
बनवीर ‘दीपदान’ एकांकी का दूसरा प्रमुख पात्र है। वह महाराजा साँगा के भाई पृथ्वौराज का दासपुत्र है। प्रकृति से वह कूर तथा विलासी है। उसके रक्त में विश्वासधात का जहर भरा हुआ है। ऐसे ही चरित्र के कारण भारत का मध्यकालीन इतिहास का पन्ना काले अक्षरों में लिखा गया है। बनवीर के चरित्र को निम्नांकित शीषकों के अंतर्गत रखा जा सकता है –
(क) विलासी प्रकृति – बनवीर की बिलासी प्रकृति का पता इसी से चलता है उसने रावल सरूप सिंह की रूपवती, नटखट बेटी सोना को अपने प्रेम-जाल में फांस लिया है। वह बनवीर की प्रकृति से बेखबर उसके झृं प्रम में पागल हो चुकी है। बनवीर के प्रेम को वह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि मानती है।
(ख) राजसत्ता का लालची – बनवीर के अंदर राजसत्ता का लालच इतना भर चुका है कि वह अपना विवेक खों बैठता है। राजसिंहासन पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है मौका देखकर वह राजदरबागियों तथा सैनके के भी लालच देकर अपनी ओर मिला लेता है।
(ग) असभ्य – बनवीर असभ्य है। सत्ता-लालच में वह यह भी भूल गया है कि जिस पन्ना को पूरा महल घाइ गा कहकर पुकारता है, वह उसके साथ अत्यंत कूर तथा असभ्यता से पेश आता है।
विश्वासधाती – बनवौर को महाराणा विक्रमादित्य काफी प्रेम करते हैं। इतना कि उनकी आत्मोयता में वह आभल है। इतना ही नहीं, अंत-पुर की रानियाँ भी उनसे काफी स्नेह करती हैं इसलिए वह अंत पुर में बेरोक-टोक आबा सकता है। अपने स्वार्थ के लिए वह इतने सारे लोगों के साध विश्वासघात करता है।
(द) हत्यारा – बनबौर की सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ जाती है कि वह रातो-रात ही राजा बन जाना चाहता है। इसके लिए वहृ वड्बंत्न रचकर नगर में दौप-दान का उत्सव कराता है। उसी शोर-शराबे के बीच वह महाराणा के कक्न मे जाकर अनकी हत्या कर देता है। महाराणा का उत्तराधिकारी कुवंर उदय सिंह है। इसलिए चह उसे भी अपने रासे से हटाने के निए उम्म की हत्या करने का निश्चय कर सेता है। इसकी आशंका महल की परिचारिका सामली को पहले ही हो जाती है। वह कत्रा से कहती है –
“मर्ष की तरह उसकी भी दो जीभें हैं जो एक से नहीं दुझेंगी। उसे दूसरा रक्त भी चाहिए।”
अंतः वह कुंवर उदय सिंह के धोखे में पन्ना धाय के पुत्र चंदन को हत्या कर देता है।
हैस प्रकारह्म कह सकते हैं कि बनवीर का वरित्र एक स्वार्थलोलुज, विश्वासघाती तथा हत्यारे का चरित्र है। सेकिन अमें चरित्र का यह काला पहलू हो पज्ञा धाब के चरिज् को और भी उज्जल बना देता है।
प्रश्न 27 : ‘दीपदान’ एकांकी के सोना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 28 : “धाय माँ, पागलपर्त कहीं कम होता है”‘ – के आधार पर सोना का चरित्र-चित्रण करें। अथवा,
प्रश्न 29 : “शायद सामंब्त की बेटी बनुँ, शायद महाराज की बेटी बनूँ” – पंक्ति के आघार पर सोना का यरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 30 : “कुछ बहुकर ही बनूनीय” – कथन के आयार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें। अथवा,
प्रश्न 31 : “यहाँ आग की लपटें नाचती हैं, सोना जैसी रावल की लड़कियाँ नहीं “- कथन के आजा पर सोना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न 32 :
“में रावल की बेटी हैँ, शायद सार्मंत की बेटी बनूं” – पंक्ति के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर :
सोना ‘दीपदान’ एकांकी के प्रमुख पात्रों में से एक है। यद्यापि वह बहुत कम समय के लिए एकाकी में आती है होकित इतने समय में ही अपना प्रभाव छोड़ जाती है। म्षोता का चरित्र-वित्रण निम्नांकित शौर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –
(क) रावल की पुत्री-सौना चित्तौड़ के महाराजा के अधौन रावल (सरदार) की पुत्री है। राजदरबार से गुड़े होने के कारण दछाँ के सभी लोगों से उसका संबंध परिवार की तरह हो गया है। इस बात का पता उसकी बातदीत से चलता है उनको (बनवीर) हमारा नाच बहुत अच्छा लगा। ओहो बनवीर। उन्हें श्री महाराजा बनवीर कहो।”
(ख) रुपवती एवं नटखट – सोना की उन्न सोलह वर्ष है। वह जितनी रुपवती है उतनी ही नटखट भी है। जितनी वेर वक वह एकांकी में उपस्थित रहती है उसके नटखटपन का अंदाजा हमें लगता रहता है। वह थोड़ी देर के लिए भी चुररकानहीं जानती –
“‘धाय माँ, पागलपन कहीं कम होता है? पहाड़ बढ़कर कभी छोटे हुए हैं ? नदियाँ आगे बढ़कर कभी लौटी हैं ? फूल खिलने के बाद कभी कली बने हैं ?'”
(ग) अपनी किस्मत पर इठलाने वाली — सोना एक साधारण सरदार की पुत्री होकर भी जिस तरह वह बनवीर की कृपापात्र बनी है उसे वह अपनी किस्मत ही मानती है। उसकी सोच है कि यह उसका भाग्य ही है जिसके कारण वह इतना कुछ पा रही है –
“भाग्य तो सबके होता है धाय माँ ! ये नूपुर मेरे पैरों में पड़े हैं, तो यह भी इनका भाग्य है। मेरे आगमन का संदेश पहले ही पहुँचा देते हैं, तो यह भी इनका भाग्य है।’
(घ) बनवीर के प्रेम में पागल – सोना बनवीर के प्रेम में पागल है। वह बनवीर की कूटनीति को समझ नहीं पाती तथा उसके प्रेम को सच्चा मानती है जबकि पन्ना उसे सावधान करते हुए कहती है-
“‘आँधी में आग की लपट तेज ही होती है, सोना ! तुम भी उसी आँधी में लड़खड़ाकर गिरोगी। तुम्हारे ये सारे नूपुर बिखर जाएंगे। न जाने किस हवा का झोंका तुम्हारे इन गीतो की लहरों को निगल जाएगा।”
(ङ) सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाली – सोना का यह विश्वास है कि आगे चलकर शायद उसकी किस्मत भी खुल जाएगी। वह आने वाले उन दिनों को याद करती हुई पन्ना से कहती है –
“मैं रावल की बेटी हूँ, शायद सामंत की बेटी हूँ, शायद महाराज की बेटी बनूँ ! कुछ बढ़कर ही बनूँगी। और तुम धाय माँ ? सिर्फ धाय माँ ही रहोगी।” इस प्रकार हम पाते हैं कि सोना का चरित्र इस एकांकी में बनवीर के चरित्र का प्रतिबिंब बनकर आया है। उसकी बातों से बनवीर के दुष्चक्र की गंध आती है। इन्हीं कारणों से वह एकांकी के प्रमुख पात्रों में अपना स्थान बनाती है।
प्रश्न 33 : ‘दीपदान’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रश्न 34 : ‘दीपदान’ एकांकी के शीर्षक का औचित्य निर्धारित कीजिए।
अथवा
प्रश्न 35 :
‘दीपदान’ शीर्षक एकांकी की कथावस्तु को अपने में समेटे है – अपना विचार प्रस्तुत करें।
उत्तर :
‘दीपदान’ डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा रचित एक ऐतिहासिक एकांकी है। किसी भी रचना का शीर्षक उसके प्रमुख पात्र या घटना पर आधारित होता है। इस एकांकी में दीप-दान कई अर्थों में हमारे सामने आता है – पहले अर्थ में दीप-दान – जो चित्तौड़ का एक सास्कृतिक उत्सव है तथा इसमें तुलजा भवानी की अराधना कर दीप-दान किया जाता है।
दूसरे अर्थ में दीप-दान का आशय अपने कुलदीपक चंदन के बलिदान से है। एक ओर जब सारा चित्तौड़ तुलजा भवानी के लिए दीप-दान कर रहा है तो वहीं दूसरी और मातृभूमि तथा भावी राजा की रक्षा के लिए पत्ना अपने ही पुत्र चंदन को मातृभूमि की भेंट चढ़ा देती है – ” आज मैंने भी दीपदान किया है, दीपदान ! अपने जीवन का दीप मैने रक्त की धारा पर तैरा दिया है। ऐसा दीपदान भी किसी ने किया है।”
तीसरे अर्थ में जहाँ एक ओर राज्य की सुख-समृद्धि के लिए चित्तौड़ के लोग दीपदान करते हैं, पत्रा मातृभूमि के लिए अपने पुत्र का ही दीपदान करती है वहीं बनवीर भी है जो अपनी सत्ता लोलुपता के कारण अपने रास्ते के कॉंटे कुँवर उदयसिंह के धोखे में चंदन का दीप-दान करता है –
” आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीप-दान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूँगा। यमराज ! लो इस दीपक को। यह मेरा दीप-दान है।’ इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि चाहे विषय की दृष्टि से हो, चाहे चित्तौड़ की संस्कृति की दृष्टि से हो या अपने कुल के दीप के दान करने की बात हो या फिर बनवीर द्वारा सत्ता पाने के लिए यमराज को दीपदान करने की बात हो हर दृष्टि से इस एकांकी का शौर्षक ‘दीपदान’ बिल्कुल सार्थक एवं उपयुक्त है।
प्रश्न 36 :
‘दीपदान’ एकांकी के आधार पर कीरत बारी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
कीरत बारी ‘दीपदान’ एकांकी का गौण पात्र है लेकिन अपनी कर्तन्तन्यनिष्ठा, साहस तथा राजभक्ति से वह पाठको का दिल जीत लेता है। कीरत बारी यद्याप राजमहल में जूठी पत्तलें उठाता है लेकिन वह पक्का राजभक्त है। यह सच्चाई उसके इस कथन से झलकती है – “अन्नदाता ! प्यार कहने में जबान पर कैसे आवे ? वो तो दिल की बात है। मौके पे ही देखा जाता है और कहने को तो मैं कह चुका हूँ कि उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ।”
जब कीरत बारी को पन्ना धाय से यह पता चलता है कि कुंवर जी की जान को खतरा है तो वह पन्ना धाय के कहने के अनुसार उसे जूठी पत्तलों की टोकरी में छिपाकर बाहर निकालने को तैयार हो जाता है। उसे यह पता है कि पकड़े जाने पर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा पर वह अपनी जान की परवाह नहीं करता।
इस प्रकार हम पाते हैं कि कीरत बारी एक अत्यंत ही छोटा आदमी है लेकिन अपने कार्य से वह आसमान की ऊँचाइयों को छूता है। पन्ना धाय भी उसके इस उपकार तथा राजभक्ति के बारे में कहती है – “तो जाओ कीरत! आज तुम जैसे एक छोटे आदमी ने चित्तौड़ के मुकुट को संभाला है। एक तिनके ने राज-सिंहासन को सहारा दिया है । तुम धन्य हो!” इस प्रकार हम पाते हैं कि कीरत बारी ‘दीपदान’ एकांकी का आदर्श पात्र है।
प्रश्न 37 :
“बनवीर की महत्वाकाष्था ने उसे हत्यारा बना दिया है” – इस कथन की पुष्टि अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
बनवीर ‘दीपदान’ एकांकी का खलनायक है। वह महाराज साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासपुन्त है लेकिन उसमें राजसिंहासन पाने की महत्वाकांक्षा बुरी तरह घर कर चुकी है। अपने इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए वह बड़े से बड़े जधन्य तथा अनैसिक काम कर सकता है। उसकी इस प्रवृत्ति ने उसे प्रकृति से क्रूर तथा विलासी बना दिया है।
राजसिंहासन पाने के लिए वह मौका देखकर राजदरबारियों तथा सैनिकों को अपनी ओर मिला लेता है ताकि वह महाराजा के उत्तराधिकारी कुंबर सिंह की हत्या कर रातो-रात राजा बन जाय। लेकिन पन्नाधाय तथा कीरत बारी के बलिदान से वह कुंवर की हत्या के बदले पत्रा धाय के पुत्र की हत्या कर देता है। बनवीर का यह कार्य इस बात को सिद्ध करता है कि वह स्वार्थलोलुप, विश्वासघाती तथा हत्यारा है। उसकी महत्वाकांक्षा ने ही उसे हत्यारा बना दिया है।
WBBSE Class 10 Hindi दीपदान Summary
सुप्रसद्धि एकांकीकार डॉ०० रामकुमार वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले के गोपालगंज नामक मुहल्ले में सन् 1905 में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए०, एम० ए० तथा सन् 1940 में नागपुर विश्वविद्यालय से पी एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही अध्यापन कार्य किया तथा सन् 1966 में अवकाश प्राप्त किया। इस महान साहित्यकार का निधन सन् 1990 में हो गया। डॉ० रामकुमार वर्मा की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं।
एकांकी-संग्रह – ‘पृथ्वीराज की आँखें’, ‘रेशमी टाई’, ‘चारममित्रा’, ‘विभूति’, ‘सप्तकिरण’, रूपरंग’, ‘रजतरश्मि’, ॠतुराज’, ‘दीपदान’, ‘रिमझिम’, ‘इंद्रधनुष’, ‘पांचजन्य’, ‘कौमुद्महोत्सव’, ‘मयूर पंख’, ‘खट्टे-मीठे एकांकी’, ‘ललित-एकांकी’, ‘कैलेंडर का आखिरी पन्ना’, ‘जूही के फूल’।,
नाटक – ‘विजयपर्व’, ‘कला और कृपाण’, ‘नाना फड़नवीस’, ‘सत्य का स्वप्न’।
काव्य-संग्रह – ‘चित्ररेखा’, ‘चंद्रकिर’, ‘अंजलि’, ‘अभिशाप’, ‘रूपराशि’, ‘संकेत’, ‘एकलव्य’, ‘वीर हम्मीर’, ‘कुल ललना’, ‘चित्तौड़ की चिता’, ‘नूरजहाँ शुजा’, ‘निशीथ’, ‘जौहर’, ‘आकाश-गंगा’, ‘उत्तरायण’, ‘कृतिका’।
गद्यगीत-संग्रह – ‘हिमालय’।
आलोचना एवं साहित्य का इतिहास – ‘कबीर का रहस्यवाद’, इतिहास के स्वर’, ‘साहित्य समालोचना’, ‘साहित्य शास्त्र’, ‘अनुशीलन’, ‘समालोचना समुच्चय’, ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास एवं हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’।
संपादन – कबीर ग्रंथावली’।
पुरस्कार – पद्मभूषण (सन् 1963), साहित्य वाचस्पति (सन् 1968)
हिंदी की लघु नाटय परपरा को नया मोड़ देनेवाले डॉ० रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य में एकांकी समाट के रूप में जाने जाते हैं। एकांकी साहित्य के विकास और वृद्धि में उन्होंने जो योगदान दिया इसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।
शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या – 160
- संरक्षण = अच्छी तरह से पालन-पोषण करना, रक्षा करना।
- धाय = दाई माँ।
- रूपवती = सुंदर।
- अन्त पुर = महल का वह भीतरी भाग जहाँ रानियाँ रहती थीं।
- परिचारिका = सेविका, सेवा करनेवाली।
- कूर = कठोर।
- विलासी = ऐश करने वाला, अय्याश।
- कक्ष = कमरा।
- पार्श्व = पीछे ।
- शैया = बिस्तर ।
- सिरहाने = सिर की ओर।
- नेपथ्य = रंगमंच का पिछला हिस्सा।
- नृत्य धन्वनि = नाचने गाने की आवाज।
- मृदंग = ढोल की तरह का एक वाद्य।
- कड़खे = एक प्रकार का वाद्य।
- कंकन-बंधन = विवाह के बंधन में बँधना।
- रण चढ़ण = युद्ध में जाना।
- पुत्र बधाई = पुत्र प्राप्ति की
- बधाई = चाव = इच्छा ।
- दिहाड़ा = दिन ।
- रंक = दरिद्र। राव = राजा।
- घर जातां = पलायन करना।
- श्रम पलटतां = परिश्रम से भागना।
- त्रिया = स्त्री।
- पडंत = पड़ना ।
- ताव = पलायन, तीव्र बुखार।
पृष्ठ संख्या – 161
- ऐ = ये ।
- तीनहु = तीनों ।
- मँरण रा = मरण के समान ।
- तुलजा भवानी = एक देवी ।
- राजवंश = राज का वंश।
- कुलदीपक = वंश का दीपक।
पृष्ठ संख्या – 162
- कुंड = तालाब।
- उद्यत = बेचैन
- प्रस्थान = जाना।
पृष्ठ संख्या – 163
- नुपुर-नाद = घुंघरू के स्वर।
- अट्टहास = भयंकर हँसी।
- मातृत्व = ममता।
- झूल = आवरण।
- चीर = वस्व।
पृष्ठ संख्या – 164
- भवसागर = संसाररूपी सागर।
- ज्ञात = मालूम।
- उषा = रात्रि बीतने तथा प्रात: होने के बीच का समय।
- अनुग्रह = कृपा।
- मल्ल-कीड़ा = कुश्ती।
- प्रलाप = रोना।
- स्नेह = प्रेम ।
- राजसेवा = राजा की सेवा।
पृष्ठ संख्या =165
- आगमन = आने ।
- संदेश = सूचना, समाचार ।
- मौन = चुप ।
- आप-से-आप = खुद, स्वंय।
- सूर्यलोक = स्वर्गलोक।
- विद्रोह = बागावत ।
- राग-रंग = प्रेम और मस्ती।
- जौहर = अपनी इज्जत बचाने के लिए स्वियों का आग में कूदना।
- आत्मबलिदान = अपने-आप को बलिदान करना।
पृष्ठ संख्या – 166
- प्रतिध्वनि = ध्वनि की ध्वनि, गूँज।
- जमाव = जमा होना
- गुमसुम = चुपचाप
पृष्ठ संख्या – 167
- धावा = आक्रमण।
- दाने = मोती।
- यकायक = अचानक।
- धमक = आवाज।
पृष्ठ संख्या – 168
- सर्वनाश = सब कुछ नाश।
- कुसमय = बुरा समय।
पृष्ठ संख्या – 169
- कांड = घटना।
- रच देता = अंजाम दे देता।
- निष्कंट = बिना किसी काँटे / अवरोध के।
पृष्ठ संख्या – 170
- सिसकी = घीरे-धीरे रोने की आवाज।
- युक्ति = उपाय।
पृष्ठ संख्या – 171
- चरन लागों = पैर पड़ता हूँ, चरण स्सर्श करता हूँ।
- पैड़े = महल।
- पैसारा = प्रवेश।
- बारी = जूठी पत्तलें उठानेवाला।
- बेखटके = बिना रोक-टोक के ।
- मालमता = घन-दौलत।
- ब्यालू = भोजन ।
- उजियार = उजियाला ।
- हर-भजन = ईश्वर का भजन।
- चौर-छतर = सिंहासन एवं छत्र सगर जहान = सारी दुनिया।
- बन्दगी = वंदना।
- तीन तिरबाचा = तीन-पाँच।
पृष्ठ संख्या – 172
- धूर = धूलि।
- सरीखा = तरह ।
- तरवार = तलवार ।
- तरकीब = उपाय।
- हुकुम करा = आदेश किया।
पृष्ठ संख्या – 173
- जस = यश।
पृष्ठ संख्या – 174
- सिर पर खून चढ़ना = बदले की भावना से भरा होना।
पृष्ठ संख्या = 175
- वज = बिजली।
- भीषण = भयंकर ।
- प्रहार = चोट ।
- मयार्दा = प्रतिष्ठा ।
- धर्म = कर्त्तव्य ।
- झरोखे = खिड़की।
पृष्ठ संख्या – 176
- आखेट = शिकार।
पृष्ठ संख्या – 177
- जागीरें = भू-संपत्ति।
- धावा = हमला।
- स्मरण = याद।
पृष्ठ संख्या – 178
- शूल-सी = दर्द जैसा।
- बेरूआ = पक्षी।
- साँझ = शाम।
- बाटडली जोही = रास्ता देखा।
- मेड्या = मेड़ पर, खेत की सीमा पर बना मिट्टी का घेरा।
पृष्ठ संख्या – 179
- भारिया = भर गया ।
- नैन = आँख।
- भयी = हो गयी मुसकल = मुश्किल, कठिन।
- घड़ी = समय ।
- नित्रा = नौंद कपट = धोखा।
- अंगरों = आग।
- सेज = बिछावन ।
- फूल-से = फूल की तरह कोमल ।
- लाल = पुत्र।
- मुख = चेहरा।
- मघ्घ = शराब।
पृष्ठ संख्या – 180
- मंगल-कामना = अच्छी भावना, इच्छा।
- जागीर = संपत्ति।
- रक्त = खून।
पृष्ठ संख्या – 181
- चिता = लकड़ी का ठेर जिसपर लाश जलायी जाती है।
- नारकी = नरक में जानेवाला।
पृष्ठ संख्या – 182
- तीव्रता = तेजी।
- चिर-निद्रा = हमेशा के लिए नींद में सो जाना, मृत्यु।
- नराधम = नीच व्यक्ति।
- कटार = एक प्रकार का चाकू ।
- अबोध = भोला।
- कंटक = काँटा।
- मूच्छिंत = बेहोश।
- मन्द = धीमी।