WBBSE Class 10 Life Science Solutions Chapter 2B प्रजनन तथा वृद्धि

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WBBSE Class 10 Life Science Chapter 2B Question Answer – प्रजनन तथा वृद्धि

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
बैक्टेरिया में किस प्रकार का प्रजनन होता है ?
उत्तर :
द्विभंजन (Binary fission)।

प्रश्न 2.
लैंगिक प्रजनन की इकाई क्या है ?
उत्तर :
युग्मक (Gamete)।

प्रश्न 3.
अलैंगिक प्रजनन की इकाई क्या है ?
उत्तर :
बीजाणु (Spore)।

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प्रश्न 4.
नर गैमिट क्या है ?
उत्तर :
शुक्राणु (Sperm)।

प्रश्न 5.
मादा गैमिट क्या है ?
उत्तर :
अण्डा या अण्डाणु (Ova या Ovum)।

प्रश्न 6.
एक ऐसे जन्तु का नाम बताओ जिसमें लैंगिक तथा अलैगिक दोनों प्रकार की प्रजनन क्रिया होती है।
उत्तर :
हाइड्रा (Hydra)।

प्रश्न 7.
एक जन्तु का नाम बताओ जिसमें अलैंगिक प्रजनन होता है।
उत्तर :
अमीबा (Amoeba)।

प्रश्न 8.
एक ऐसे पौधे का नाम बताओ जिसमें पत्ती द्वारा प्रजनन होता है।
उत्तर :
अजूबा (Bryophyllum)।

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प्रश्न 9.
एक ऐसे पौधे का नाम बताओ जिसमें कंजुगेशन होता है।
उत्तर :
स्पाइरोगाइरा (Spirogyra)।

प्रश्न 10.
एक ऐसे जन्तु का नाम बताओ जिसमें कंजुगेशन होता है।
उत्तर :
पैरामिसियम (Paramoecium)।

प्रश्न 11.
पार्थेनोजेनेसिस में भाग लेने गैमिट को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
एजाइगोस्पोर (Azygospore)।

प्रश्न 12.
एक एककोशिकीय पौधे का नाम बताओ जिसमें लैंगिक प्रजनन होता है।
उत्तर :
क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas)।

प्रश्न 13.
दो असमान गैमिट के मिलन से उत्पत्न सन्तान क्या कहलाता है ?
उत्तर :
संकर (Hybrid)।

प्रश्न 14.
कुछ जीवों में भ्रूण का निर्माण अनिषेचित अण्डे से होता है, उस क्रिया का नाम बताओ।
उत्तर :
पार्थेनोजेनेसिस (Parthenogenesis)।

प्रश्न 15.
एक ऐसे पौधे का नाम बताओ जिसमें जड़ द्वारा प्रजनन होती है।
उत्तर :
शकरकन्द (Sweet Potato)।

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प्रश्न 16.
वृद्धि मापक यंत्र क्या कहलाता है ?
उत्तर :
ऑक्जेनोमीटर (Auxanometer)।

प्रश्न 17.
अग्र प्रविभाजी में होने वाला वृद्धि क्या कहलाती है ?
उत्तर :
प्राथमिक वृद्धि (Primary growth)।

प्रश्न 18.
पार्श्व प्रविभाजी में होने वाली वृद्धि क्या कहलाती है ?
उत्तर :
द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth)।

प्रश्न 19.
नर तथा मादा गैमिट के परस्पर संयोग को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
सिनगेमी (Syngamy)।

प्रश्न 20.
वृद्धि की उच्च दर का समय क्या है ?
उत्तर :
रात में (In night)।

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प्रश्न 21.
पौधे द्वारा एक दिन में प्रकाश प्राप्त करने की अवधि को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
फोटो अवधि (Photo period)।

प्रश्न 22.
जाइगोट क्या है ?
उत्तर :
निषेचन के पश्चात् उत्पन्न डिप्लायड कोशिका को जाइगोट कहते हैं।

प्रश्न 23.
एजाइगोस्पोर क्या है ?
उत्तर :
पार्थेनोजेनेसिस में भाग लेने वाले गैमिट को एजाइगोस्पोर कहते हैं।

प्रश्न 24.
बीजाणु क्या है ?
उत्तर :
बीजाणु अलैंगिक प्रजनन की इकाई है जो अंकुरित होकर नये पौधे को जन्म देती है।

प्रश्न 25.
मेरिस्टेम क्या है ?
उत्तर :
वह पादप उत्तक जिनमें कोशिका विभाजन की क्षमता अधिक होती है।

प्रश्न 26.
कंजुगेशन क्या है ?
उत्तर :
प्रजनन हेतु एक ही जाति के दो सदस्यों के अस्थाई संयोग को कंजुगेशन कहते हैं।

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प्रश्न 27.
श्रूण क्या है ?
उत्तर :
यह प्राय: निषेचित या कभी-कभी अनिषेचित ओवम द्वारा विकसित अपरिपक्व जन्तु अथवा पौधा है।

प्रश्न 28.
निषेचन क्या है ?
उत्तर :
नर तथा मादा गैमिट के परस्पर मिलन को निषेचन कहते हैं।

प्रश्न 29.
ट्यूब केन्द्रक किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पराग नलिकाओं में उपस्थित अगले बड़े केन्द्रक को ट्यूब केन्द्रक (tube nucleus) कहते हैं।

प्रश्न 30.
सिनगेमी क्या है ?
उत्तर :
नर तथा मादा गैमिट के परस्पर संयोग को सिनगेमी कहते हैं

प्रश्न 31.
आइसोगैमिट क्या है ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन में भाग लेने वाले नर तथा मादा गैमिट सभी प्रकार से समान हो, उसे आइसोगैमिट (Isogamete) कहते हैं।

प्रश्न 32.
एनआइसोगैमिट क्या है ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन में भाग लेने वाले नर तथा मादा गैमिट आकार, आयतन तथा प्रकृति में भिन्न होते हैं, उसे एनआइसोगैमिट (Anisogamete) कहते हैं।

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प्रश्न 33.
प्रजनन क्या है ?
उत्तर :
सजीवों द्वारा अपने जैसी सन्तान उत्पन्न करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 34.
लैंगिक प्रजनन के लिए फूल का कौन सा चक्र आवश्यक है ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन के लिए फूल का पुमंग (Androecium) तथा जायांग (Gynaecium) आवश्यक है।

प्रश्न 35.
मैटिंग क्या है ?
उत्तर :
मैथुन क्रिया हेतु नर तथा मादा के जननांगों के परस्पर संयोग को Mating कहते हैं।

प्रश्न 36.
जननांग क्या है ?
उत्तर :
प्रजनन क्रिया में भाग लेने वाले गैमिट्स को उत्पन्न करने वाले अंग जननांग (Gonads) कहे जाते हैं। जैसेवृषण, अण्डाशय आदि।

प्रश्न 37.
बीजाण्ड में अण्डे की स्थिति क्या है ?
उत्तर :
बीजाण्ड में अण्डे सदा माइक्रोपाइल की ओर स्थित होता है।

प्रश्न 38.
परागण क्या है ?
उत्तर :
परागकोष (Anther) से परागकणों के गर्भकुण्ड (Stigma) पर पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।

प्रश्न 39.
अण्डप के विभिन्न भाग कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
अण्डप (Carpel) के तीन भाग हैं –
(a) Style
(b) Stigma
(c) Ovary

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प्रश्न 40.
वृद्धि क्या है ?
उत्तर :
सजीवों के शरीर के आयतन तथा शुष्क भार में होने वाली स्थायी परिवर्तन को वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 41.
वृद्धि को प्रभावित करने वाले बाह्य कारकों के नाम बताओ ।
उत्तर :
वृद्धि को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक तापक्रम, प्रकाश, वायु, जल आदि हैं।

प्रश्न 42.
वृद्धि के लिए आवश्यक अन्तःकारकों के नाम बताओ ?
उत्तर :
वृद्धि के लिए आवश्यक अन्तःकारक हार्मोन, भोज्य पदार्थ, इन्जाइम आदि हैं।

प्रश्न 43.
क्रेस-को-ग्राफ क्या है ?
उत्तर :
वह उपकरण जिसके द्वारा पौधों की वृद्धि लगभग 10,000 गुना बढ़ा कर मापी जाती है, क्रेस-को-ग्राफ कहलाता है।

प्रश्न 44.
क्रेस-को-ग्राफ का अविष्कार किसने किया ?
उत्तर :
सर जगदीश चन्द्र बसु ने क्रेस-को-ग्राफ का अविष्कार किया था।

प्रश्न 45.
प्राथमिक वृद्धि क्या है ?
उत्तर :
अग्र प्रविभाजी उत्तक में होने वाली वृद्धि को प्राथमिक वृद्धि कहते हैं।

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प्रश्न 46.
द्वितीयक वृद्धि क्या है ?
उत्तर :
पार्श्थ प्रविभाजी या कैम्बियम में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 47.
परागण कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
परागण दो प्रकार के होते हैं –
(i) स्व परागण (Self pollination),
(ii) पर परागण (Cross pollination)

प्रश्न 48.
अण्डाशय क्या है ?
उत्तर :
अण्डप के सुराही के समान फूली हुई आधार को अण्डाशय कहते हैं।

प्रश्न 49.
कुक्षि वृन्त या गर्भ दण्ड क्या है ?
उत्तर :
अण्डाशय के ऊपर खोखली नली के आकार वाली रचना को style कहते हैं।

प्रश्न 50.
कुक्षि क्या है ?
उत्तर :
Style के ऊपर फूली हुई घुण्डी के समान रचना को Stigma कहते हैं।

प्रश्न 51.
पुष्प के सहायक चक्र का नाम लिखिए।
उत्तर :
वाह्यदलयुंज एवं दलपुंज पुष्प के सहायक चक्र हैं।

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प्रश्न 52.
नीचे दिया गया जोड़ा मिलते-जुलते शब्द हैं। दूसरे जोड़े की खाली जगह में उपयुक्त शब्द भरिए :
Fertilization : Sporophytic plant :………….. : Gametophytic plant.
उत्तर :
Fertilization: Sporophytic plant : Sporulation : Gametophytic plant.

प्रश्न 53.
बीजरहित फल उत्पादन की विधि को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
पार्थेनोकार्पी।

प्रश्न 54.
ओल (सूरन) में किस प्रकार का प्रजनन पाया जाता है ?
उत्तर :
सूरन या ओल में वर्धी प्रजनन होता है।

प्रश्न 55.
निषेचन किस प्रकार के प्रजनन में होता है ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन।

प्रश्न 56.
निर्दिष्ट केन्द्रक की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
पुष्पीय पौधों के निषेचन में एक नर गैमिट निर्दिष्ट केन्द्रक से संयोग कर त्रिगुणित 3) इन्डोस्पर्मिक केन्द्रक (Triploid Endospermic Nucleus) का निर्माण करता है। इससे भूरणोष Endosperm) उत्पन्न होता है।

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प्रश्न 57.
जल परागित पुष्प की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
जल परागित पुष्प में बड़ी संख्या में परागकण (Pollengrains) उत्पन्न होते हैं। इसके गर्भमुण्ड पर परागकण चिपक जाते हैं। बीज कड़े आवरण द्वारा ढ़के होते हैं, जो जल में सड़ते नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
स्पाइरोगायरा तथा प्लैनेरिया में कौन से विधि से अलैंगिक प्रजनन होता है ?
उत्तर :
(i) स्पाइरोगाइरा – अपखणण्डन (Fragmentation)
(ii) प्लैनेरिया – पुनरूत्पादन (Regeneration)

प्रश्न 2.
मनुष्य के विकास में अंतिम परिणति या प्रौढ़ावस्था में हड्डियों तथा दृष्टि संबंधी दो बदलाव का उल्लेख करो।
उत्तर :
(i) हड्डियाँ – हड्डियाँ कमजोर हो जाती है। इनमें उपस्थित अस्थिमज्जा का निमार्ण भी कम होने लगता है।
(ii) दृष्टि – आँख से देखने की क्षमता में कमी आ जाती है।

प्रश्न 3.
नीचे दिये पौधों में कौन कारक परागण का कार्य करते हैं :
धान, शिमूल, हाइड्रिला,आम

पौधा परागण कारक
(i) धान वायु
(ii) शिमूल पक्षी
(iii) हाइड्रिला जल
(iv) आम कीट

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प्रश्न 4.
प्रजनन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
ऐसी जैविक प्रक्रिया जिसके द्वारा सजीव अपने समान अन्य जीव की सृष्टि कर अपनी वंश परम्परा को कायम रखते हैं तथा वंश वृद्धि करते हैं, उसे प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजनन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
प्रजनन निम्न चार प्रकार के होते हैं –

  1. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction)
  2. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction)
  3. अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction)
  4. पार्थेनोजेनेसिस (Parthenogenesis)

प्रश्न 6.
वर्धी प्रजनन क्या है ?
उत्तर :
वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) : पौधों के वर्धी भाग में होने वाली प्रजनन की वह विधि जिसमें पौधे का कोई अंग पौधे से अलग हो जाता है तथा अनुकूल परिस्थिति में विकसित होकर नये पौधे को जन्म देता है, वर्धी प्रजनन कहलाता है।

प्रश्न 7.
लैंगिक प्रजनन क्या है ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) : नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संयोग से उत्पन्न जाइगोट नामक रचना के विकसित होने से नये जीव के उत्पन्न होने की विधि को लैंगिक प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 8.
अलैंगिक प्रजनन क्या है ?
उत्तर :
अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) : केवल एक ही जन्तु या पौधे से दूसरे जन्तु या नया पौधा बनने की उस विधि को जिसमें प्रजनन की इकाई गैमिट भाग नहीं लेती है, उसे अलैंगिक प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 9.
पार्थेनोजेनेसिस क्या है ?
उत्तर :
प्रजनन की वह विशेष विधि जिसमें बिना निषेचन के ही अण्ड कोशिका से नये जीव का निर्माण होता है उसे पार्थेनोजेनेसिस कहते हैं।

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प्रश्न 10.
वर्धी प्रजनन के दो महत्व बताओ।
उत्तर :
(i) इस विधि द्वारा उत्पन्न पौधे अपने जनक पौधों के समान फल तथा फूल उत्पन्न करते हैं।
(ii) इस विधि द्वारा कम खर्च में तथा कम समय में अधिक से अधिक पौधे उत्पन्न किये जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
लैंगिक प्रजनन के दो महत्व लिखिए।
उत्तर :
(i) इससे उत्पन्न सजीवों में वातावरण के प्रति अनुकूलन की क्षमता अधिक होती है।
(ii) इससे उत्पन्न सन्तानों में विभिन्नताएँ आती हैं, जो क्रम विकास के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 12.
पुष्पिय पौधों के निषेचन को द्वि-गुणित निषेचन क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
परागण में उपस्थित दोनों नर गैमिट भूण कोष में उपस्थित Ova तथा Polar nucleus में अलग-अलग संयोग करते हैं, अतः पुष्पिय पौधों के निषेचन को double fertilization कहते हैं।

प्रश्न 13.
मुकुलन (Buidding) द्वारा प्रजनन करने वाला एक पौधा एवं एक प्राणी का नाम लिखिए।
उत्तर :
मुकुलन द्वारा प्रजनन करने वाला पौधा – यीस्ट
मुकुलन द्वारा प्रजनन करने वाला प्राणी – हाइड्रा

प्रश्न 14.
कृत्रिम वर्धी प्रजनन की कौन-कौन विधियाँ हैं ?
उत्तर :
कृत्रिम वर्धी प्रजनन निम्न विधियों द्वारा होता है-

  1. दाब कलम (Layering)
  2. शाखा कलम (Cutting)
  3. रोपण (Graftiŕg)
  4. शाखा बन्धन (Inarching)
  5. गुटी द्वारा (By Goottee)

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प्रश्न 15.
वर्धी प्रजनन से दो हानि बताओ।
उत्तर :

  1. वर्धी प्रजनन द्वारा नये गुण वाले पौधे उत्पन्न नहीं होते हैं।
  2. इस प्रजनन द्वारा उत्पन्न पौधे शारीरिक रूप से दुर्बल या हीन होते हैं, तना पतले तथा टेढ़े होते हैं।

प्रश्न 16.
जन्तुओं में अलैंगिक प्रजनन की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
उत्तर :

  1. द्विविखण्डन द्वारा (By binary fission) – अमीबा, पारामिसियम
  2. बहुविखण्डन द्वारा (By multiple fission) – प्लाज्मोडियम
  3. कलिका द्वारा (By budding) – हाइड्रा
  4. प्रनर्जनन (Regeneration) – प्लेनेरिया।

प्रश्न 17.
पार्थेनोकार्पी क्या है ?
उत्तर :
बिना निषेचन के ही अण्डाशय से फल में बदलने की क्रिया को पार्थेनोकार्पी कहते हैं। इस फल में बीज नहीं पाये जाते हैं। जैसे- केला, शहतूत, अमरूद इत्यादि।

प्रश्न 18.
नर युग्मक तथा मादा युग्मक का नाम बताओ।
उत्तर :
प्रजनन क्रिया में भाग लेने वाले नर युग्मक पौधे में परागकण तथा जन्तुओं में शुक्राणु (Sperm) तथा मादा युग्मक ओवम या अण्डे (Ovum or Egg) होते हैं।

प्रश्न 19.
अन्तः निषेचन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जब निषेचन की क्रिया जनन अंगों के अन्दर सम्पन्न होती है तो उस निषेचन को अन्तः निषेचन कहते हैं। जैसेसरीसृप वर्ग, पक्षी तथा स्तनपायी वर्ग।

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प्रश्न 20.
पुनर्जनन क्या है ?
उत्तर :
प्रजनन की वह विधि जिसके द्वारा किसी जीव का अंग कई खण्डों में विभक्त होने पर प्रत्येक भाग पुन: एक नये जीव के रूप में विकसित हो जाता है। इस क्रिया को पुनर्जनन कहते हैं।

प्रश्न 21.
पौधों में वृद्धि का क्षेत्र क्या है ?
उत्तर :
पौधों के वृद्धि प्रदेश के मेरिस्टेमेटिक ऊत्तकों में वृद्धि के फलस्वरूप तने तथा जड़ की लम्बाई में वृद्धि होती है। पार्श्व प्रविभाजी में वृद्धि के फलस्वरूप पार्श्र शाखाओं में वृद्धि होती है।

प्रश्न 22.
वृद्धि को प्रभावित करने वाले विभित्र कारक कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक –

  1. अन्त:कारक (Internal factor) – हार्मोन, इन्जाइम, भोज्य पदार्ध आट्।
  2. बाह्ध कारक (External factor) – प्रकाश, ताप, वायु, जल आदि।
  3. विशेष कारक (Special factor) – वातावरण, वंशागति।

प्रश्न 23.
पुनर्निर्माण वृद्धि क्या है ?
उत्तर :
पौधों के कटे या टूटे-फूटे अंगों में कोशिका विभाजन की क्रिया तीव्र होती है, फलस्वरूप टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है जिससे घाव भरते हैं, पुनर्निमाण वृद्धि कहलाता है।

प्रश्न 24.
परागण क्या है ?
उत्तर :
परागण (Pollination) – परागकोष से परागकणों के गर्भमुण्ड (Stigma) पर पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। परागण दो प्रकार का होता है –
(i) स्व परागण (Self pollination)
(ii) पर-परागण (Cross pollination)।

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प्रश्न 25.
पर परागण क्या है ?
उत्तर :
किसी एक ही प्रजाति के दो पौधे के फूलों में एक के पराग कण दूसरे फूल के Stigma पर पहुँचने की क्रिया को पर-परागण कहते हैं।

प्रश्न 26.
Definitive केन्द्रक क्या है ?
उत्तर :
भूण कोष के बीच उपस्थित वह केन्द्रक जो दो केन्द्रको के fussion से बनती है उसे definitive या seconctary nucleus कहते हैं।

प्रश्न 27.
Am’ipodal Cells क्या है ?
उत्तर :
भुण, कोष के अन्दर आधार पर तीन कार्य विहीन कोशिकाओं के समूह को Antipodal Cell कहते हैं।

प्रश्न 28.
शिशुकाल अवस्था क्या है ?
उत्तर :
जन्म के 10 महीने से 12 वर्ष की अवस्था को शिशु अवस्था या शैशव काल कहते हैं। इस अवस्था में वृद्धि की दर क्रमश: बढ़ती जनाती है।

प्रश्न 29.
पुमंग में कौन-कौन सी रचनायें पायी जाती हैं।
उत्तर :
पुमंग में निम्नलिखित रचनायें पायी जाती हैं –
(a) पुष्प तन्तु (F lament)
(b) परागकोष (Anther)
(c) संयोजक (Connective)

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प्रश्न 30.
भ्रूणकोष त्या है ?
उत्तर :
Nucellus कोशिकाओं में अण्डाकार थैलीनुमा रचना पायी जाती है जिसे भूणकोष कहते हैं। इसके अन्दर 8 केन्द्रक उपस्थित रहते हैं।

प्रश्न 31.
माइक्रोपाइल क्या है ?
उत्तर :
Ovule चारों ओर से इन्टीगुमेनट्स (Integuments) नामक आवरण से ढका रहता है। चारों ओर से आवरण युक्त Ovule एक ओर से खुला रहता है। इस खुले भाग को माइक्रोपाइल (Micropyle) कहते हैं।

प्रश्न 32.
परण नली क्या है ?
उत्तर :
Stigma पर परागकण फूल कर बड़े हो जाते हैं तथा जर्म स्सोर के रास्ते से एक नली द्वारा बाहर निकलते हैं। इस नली को पराग नली (Pollen tube) कहते हैं।

प्रश्न 33.
लैंगिक प्रजनन से क्या-क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन से हानि :

  1. यह प्रजनन की एक जटिल प्रक्रिया है, इसमें समय अधिक लगता है।
  2. इस प्रजनन के लिए नर तथा मादा एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
  3. इस प्रजनन से अधिक सन्तान उत्पन्न करने पर जनक प्राय: नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 34.
पर-परागण का एक लाभ और एक हानि लिखिए।
उत्तर :
लाभ : (i) नई किस्मों का उत्पादन (ii) हानिकारक गुणों को पृथक करना।
हानि : (i) पराग कण अधिक मात्रा में बनते हैं जो व्यर्थ जाते हैं। (ii) हानिकारक प्रभावी गुणों का संतति में प्रकट होना।

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प्रश्न 35.
स्व-परागण के किन्हीं एक लाभ तथा एक हानि लिखिए।
उत्तर :
स्व-परागण से लाभ :- (i) जनको के गुण संतति में सुरक्षित रहते हैं।
स्व-परागण से हानि : – (i) पीढ़ी दर पीढ़ी एकान्तरण होने से वह प्रजाति कमजोर हो जाती है।

प्रश्न 36.
स्टॉक और सिऑन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
स्टॉक और सिऑन :- रोपण विधि द्वारा कृत्रिम वर्धी प्रजनन में जड़युक्त पौधे के तना को स्टॉक कहा जाता है, जो घटिया किस्म का होता है। इसके ऊपर उच्च कोटि का तना लगाया जाता है, जिसे सिऑन कहते हैं।

प्रश्न 37.
यूक्रोमैटिन की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर :
यूक्रोमैटिन (Euchromatin) :- कोशिका विभाजन के समय क्रोमैटिन तन्तु कसा हुआ कुण्डलित तथा मोटा हो जाता है, इसे युक्रोमैटिन कहते हैं। इसमें अधिक मात्रा में DNA होता है। इसी भाग में क्रॉसंग ओवर (Crossing Over) की क्रिया होती है।

प्रश्न 38.
दो पौधा का नाम बताइए जिसमें वर्धी प्रजनन होता है।
उत्तर :
(i) जल कुम्भी एवं
(ii) आलू में वर्धी प्रजनन होता है।

प्रश्न 39.
‘बडिंग’ किस प्रकार का प्रजनन है ? यह किस पौथा में पाया जाता है ?
उत्तर :
(a) बडिंग अलैंगिक प्रजनन है।
(b) यह यीस्ट में पाया जाता है।

प्रश्न 40.
एक पौथा और एक जंतु प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए जहाँ पार्थेनोजिनेसिस होता है।
उत्तर :
(i) पौधा-केला (Banana)
(ii) जंतु-नर मधुमक्खी (Honeybee)

प्रश्न 41.
वायु द्वारा परागण करने वाले पौधों के पुष्प का अनुकूलनीय विशेषता बताइए।
उत्तर :
(a) परागकण हल्के किन्तु अधिक संख्या में उत्पन्न होते हैं।
(b) वर्तिकाग्र पंखदार होता है।
(c) परागवं गष जल्द फटने वाले होते हैं।

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प्रश्न 42.
स्व-परागण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब एक फूल के परागकोष से निकला परागकण अपने ही फूल की वर्तिकाग्र पर या इसी पौधे के नि की दूसरे फूल की वर्तिकाग्र पर पहुँचता है तो इसे स्व-परागण कहते हैं।

प्रश्न 43.
दोहरा निषेचन से आप क्या समझते हैं ? यह कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर :
(a) दोहरा निषेचन (Double fertilization) : भूणकोष में स्थित दो मादा युग्मकों को दो नर युग्मकों से मिलने की क्रिया को दोहरा निषेचन कहते हैं।
(b) यह पुष्प के अंडाशय के अंदर स्थित भूरकोष में पाया जाता है।

प्रश्न 44.
प्राकृतिक वर्धी प्रजनन कितने प्रकार के होते हैं।
उत्तर :
प्राकृतिक वर्धी प्रजनन निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. विभाजन द्वारा (By fission)
  2. विखण्डन द्वारा (By fragmentation)
  3. कलिका द्वारा (By budding)
  4. अपस्थानिक कलिका द्वारा (By ac/entitious buds)

प्रश्न 45.
निषेचन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
निषेचन की क्रिया निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. अन्त: निषेचन (Internal fertilization)
  2. बाद्य निषेचन (External fertilization)
  3. स्व निषेचन (Self fertilization)
  4. पर निषेचन (Cros fertilization)

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS

प्रश्न 1.
कलिका द्वारा प्राकृतिक वर्धी प्रजनन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
कलिका द्वारा (By budding) प्राकृतिक वर्धी प्रजनन : इस प्रकार का प्रजनन Yeast में हो ता है। Yeast अपने शरीर पर कलिकायें उत्पन्न करता है। इसका केन्द्रक एमाइटोसिस पद्धति द्वारा साधारण रूप से ववभाजित होकर दो केन्द्रक उत्पन्न करता है। इसमें एक केन्द्रक कोशिका द्रव्य के साथ एक कलिका में प्रवेश कर जारit है। बाद में यह केन्द्रक युक्त कलिका Yeast से अलग होकर नये पौधे में बदल जाता है।

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प्रश्न 2.
वर्धी प्रजनन के महत्व क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
वर्धी प्रजन के महत्व निम्नलिखित हैं –

  1. इस प्रजनन में कम समय में अधिक संततियाँ उत्पन्न होती हैं तथा उत्पन्न संततियाँ जनक के समान होते हैं।
  2. इसमे वंश वृद्धि निश्चित रहती है।
  3. कृत्रिम वर्धी प्रजनन द्वारा उत्पन्न किस्म के पौधे उत्पन्न किये जा सकते हैं।
  4. इस प्रजनन में समय तथा मेहनत कम लगता है तथा क्षति की सम्भावना भी कम रहती है।

प्रश्न 3.
वर्धी प्रजनन से क्या-क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर :

  1. इस प्रजनन द्वारा नये गुण वाले पौधे उत्पन्न नहीं हो पाते हैं।
  2. वर्धी प्रजनन द्वारा उत्पन्न पौधे शारीरिक रूप से दुर्बल या हीन होते हैं।
  3. इसके तने पतले तथा टेढ़े होते हैं।

प्रश्न 4.
पुनर्जनन क्या है ?
उत्तर :
इस क्रिया में जन्तुओं के शरीर से प्रवर्धन निकलते हैं जिन्हें कलिका(buds) कहते हैं। ये कलिका मात्त कोशिका में बढ़ती रहती है तथा अनुकूल परिस्थिति में ये मातृ देह से अलग होकर व्यस्क प्राणी में बदल जाते हैं। जैसे- हाइड्रा, प्लेनेरिया, स्पंज आदि।

प्रश्न 5.
बहु विखंडन क्या है ?
उत्तर :
यह अलैंगिक प्रजनन की एक विधि है। इस प्रकार के प्रजनन में व्यस्क कोशिका का केन्द्रक अनेक केन्द्रिका (Nuclei) में विभाजित हो जाता है। प्रत्येक केन्द्रक के चारों ओर साइटोप्लाज्म एकत्रित होकर प्रत्येक केन्द्रक को बीजाणु में बदल देता है। अन्त में यह बीजाणु मातृकोशिका से बाहर निकल आते हैं तथा व्यस्क प्राणी में बदल जाते हैं। जैसेअमीबा, प्लाज्मोडियम आदि।

प्रश्न 6.
प्रजनन क्रिया discontinuous growth क्यों कहलाती है ?
उत्तर :
प्रजनन क्रिया के अन्तर्गत जनक तथा भावी सन्तान के बीच एक ऐसी अवस्था आती है जिसमें कुछ समय के लिए वृद्धि रुक जाती है तथा प्रजनन के बाद उत्पत्न सन्तानों में यह पुन: आरम्भ हो जाती है। इसलिए प्रजनन क्रिया को discontinuous growth कहते हैं।

प्रश्न 7.
पार्थेनोकार्पी की परिभाषा लिखो तथा कृषि में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालें।
उत्तर :
बिना निषेचन के ही अण्डाशय के फल में बदलने की क्रिया को पार्थेनोकार्पी कहते हैं। इस प्रकार उत्पन्न फल में बीज नहीं पाया जाता है, जैसे- संतरा, केला, नींबू आदि। ऑक्सिन हार्मोन बीजहीन फल उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है। पार्थेनोकार्पी फलों की माँग बाजार में अधिक है। खेती को उन्नत करने में पर्थेनोकार्पी प्रमुख भूमिका निभाता है।

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प्रश्न 8.
अलैंगिक प्रजनन के महत्व क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
अलैंगिक प्रजनन के महत्व :-

  1. अलैंगिक प्रजनन, प्रजनन की सरल विधि है। इस प्रजनन में केवल एक ही जनक की आवश्यकता पड़ती है।
  2. इस प्रजनन में एक ही साथ अनेक जीवों की उत्पत्ति हो जाती है।
  3. इस प्रजनन में वंश वृद्धि की दर तेज होती है।
  4. इस प्रजनन द्वारा उत्पन्न जीव अपने जनक के समान होते हैं।

प्रश्न 9.
लैंगिक प्रजनन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन मुख्यत: दो प्रकार का होता है-
1. सिनगैमी (Syngamy) : यह निम्न प्रकार का होता है-
(a) आइसोगैमी (Isogamy)
(b) ऐनआइसगैमी (Anisogamy)
(c) ऊगैमी (Oogamy)।

2. कंजुगेशन (Conjugation)

प्रश्न 10.
पार्थेनोकार्पी की परिभाषा लिखो तथा कृषि में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालें।
उत्तर :
बिना निषेचन के ही अण्डाशय के फल में बदलने की क्रिया को पार्थेनोकार्पी कहते हैं। इस प्रकार उत्पन्न फल में बीज नहीं पाया जाता है, जैसे- संतरा, केला, नींबू आदि। ऑक्सिन हार्मोन बीजहीन फल उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है। पार्थेनोकार्पी फलों की माँग बाजार में अधिक है। खेती को उन्नत करने में पार्थेनोकार्पी प्रमुख भूमिका निभाता है।

प्रश्न 11.
लैंगिक प्रजनन के महत्व क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन के महत्व :-

  1. यह प्रजनन की एक उन्नत विधि है, इस प्रजनन में उत्पन्न सन्तान में माता-पिता दोनों के गुणों का समावेश रहता है।
  2. इस प्रकार के प्रजनन में Crossing over की क्रिया होती है जिससे विभिन्नताये उत्पन्न होती हैं।
  3. इस प्रजनन में उत्पन्न जीवों में अनुकूलन की प्रचूर क्षमता पायी जाती है।
  4. इस प्रजनन में उत्पन्न सन्तान अधिक स्वस्थ तथा उनमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।

प्रश्न 12.
लैंगिक प्रजनन से क्या-क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन से हानि :

  1. यह प्रजनन की एक जटिल प्रक्रिया है, इसमें खर्च के साथ-साथ समय भी अधिक लगता है।
  2. इस प्रजनन के लिए नर तथा मादा एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
  3. इस प्रजनन से अधिक सन्तान उत्पन्न करने पर जनक प्राय: नष्ट हो जाते हैं।

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प्रश्न 13.
अलैंगिक प्रजनन की अपेक्षा लैंगिक प्रजनन अधिक उत्तम है, क्यों ?
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन में नर तथा मादा गैमिट का संयोग होता है। फलस्वरूप इस विधि से उत्पन्न जीव में दोनों गुण का समावेश होता है। परन्तु अलैंगिक प्रजनन में नर तथा मादा गैमिट का fusion नहीं होता बल्कि बीजाणु का निर्माण होता है। अतः उसमें नर तथा मादा दोनों के गुण उपस्थित नहीं रहते। इसीलिए, अलैंगिक प्रजनन की अपेक्षा लेंगिक प्रजनन उत्तम है।

प्रश्न 14.
लैंगिक प्रजनन के लिए क्रम विकास महत्वपूर्ण है, क्यों ?
उत्तर :
सन्तानों की उत्पत्ति तथा उनमें नये गुणों का समावेश लैंगिक प्रजनन के द्वारा होता है। इन गुणों के कारण ही सन्तानों में विभिन्नताएँ आती हैं, जो क्रम विकास में सहायक है। अत: क्रम विकास के लिए लैंगिक प्रजनन आवश्यक है।

प्रश्न 15.
प्रजनन को स्वनित्यता माना जाता है – क्यों ?
उत्तर :
प्रजनन एक ऐसी क्रिया है जिसमें सजीव अपने संतान द्वारा अस्तित्व को बनाये रखता है अर्थात मृत्यु के बाद भी सजीव अपने सन्तान के रूप में जीवित रहता है। इसलिए प्रजनन को स्वनित्यता(Self perpetuation) का एक साधन माना जाता है।

प्रश्न 16.
पुष्पिय पौधों के निषेचन को द्वि-गुणित निषेचन क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
परागण में उपस्थित दोनों नर गैमिट भूण कोष में उपस्थित Ova तथा Polar nucleus में अलग-अलग संयोग करते हैं, अत: पुष्पिय पौधों के निषेचन को double fertilization कहते हैं।

प्रश्न 17.
स्व-निषेचन क्या है ?
उत्तर :
स्व निषेचन (Self fertilization) : जब एक ही लैंगिक अंग से उत्पन्न शुक्राणु अपने ही अन्दर उपस्थित Ova को निषेचित करता है तो इस प्रकार के निषेचन को स्व निषेचन कहते हैं। यह निषेचन उभयलिंगी जन्तु या फूल में होता है। जैसे – फिता कृमी।

प्रश्न 18.
प्लासेन्टा क्या है ?
उत्तर :
यह मादा जनन अंग का एक महत्वपूर्ण भाग है जो पुष्प के अण्डाशय तथा स्तनपायी में गर्भाशय की दीवार एवं भ्रूण के मध्य एक नली के रूप में पाया जाता है। पुष्पीय पौधों में यह अपने ऊपर बीजाण्ड धारण किये रहता है। स्तनीय जन्तुओं में यह भ्रूण को पोषण तत्व, O2 आदि की उपलब्धि कराने के साथ-साथ उसके रक्त परिवहन एवं उत्सर्जन क्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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प्रश्न 19.
जन्तुओं तथा पौधों में अलैंगिक प्रजनन की कौन-कौन विधियाँ हैं ?
उत्तर :
जन्तुओं तथा पौधों में अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ :-

  1. बीजाणु निर्माण द्वारा – बैक्टेरिया
  2. विखंडन द्वारा – स्पाइरोगाइरा, युलोध्रिक्स
  3. कलिका द्वारा स्साइरोगाइरा, युलोधिक्स – हाइड्रा आदि
  4. बहु विखंडन द्वारा हाइड्रा आदि – इन्टअमीबा (Entamoeba)
  5. द्विविखंडन द्वारा इन्टअमीबा (Entamoeba) – अमीबा, बैक्टेरिया आदि

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
अनुक्रम तालिका (फ्लोचार्ट) की सहायता से फर्न में पीढ़ी एकांतरण को समझाओ। ‘ ‘प्रोफेज तथा टेलोफेज़ में विपरीत प्रकृति में बदलाव होता है” – ऐसे दो बदलावों को लिखो। 3 + 2
उत्तर :
फर्न में पीढ़ीयों का एकान्तरण :- कुछ पौधों का जीवन-चक्र दो स्पष्ट पीढ़ियों में पूरा होता है। जैसे – फर्न का पौधा। फर्न का मुख्य पौधा बीजाणुद्भिज (Sporophyte) द्विगुणित (Diploid) होता है। इसमें जड़, तना और पत्तियाँ होती हैं। कुछ पत्तियों के निचली सतह पर बीजाणुधानियाँ (Sporangia) पाई जाती हैं। इन पत्तियों को बीजाणुपर्ण (Sporophylls) कहते हैं। प्रत्येक बीजाणुधानी में 1216 बीजाणु मातृ कोशिकाएँ (Spore mother cells) होती हैं।

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प्रत्येक बीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्रण (Meosis) कोशिका विभाजन की क्रिया के द्वारा चार अगुणित(Haploid) पुत्री कोशिकाएँ (Daughter cells) उत्पन्न करती हैं। इन पुत्री कोशिकाओं को बीजाणु (Spore) कहते हैं। बीजाणु के अंकुरण से गैमेटोफाइट पौधा प्रोथैलस बनता है। इसके नर अंग ऐथेरिडियम में नर युग्मक ऐन्थ्रोज्वाएड तथा मादा अंग आर्किगोनियम में मादा युग्मक अण्डकोशिका का निर्माण होता है। नर युग्मक और मादा युग्मक आपस में संयोग करके द्विगुणित जाइगोट का निर्माण करते हैं जो विकसित होकर स्फोरोफाइट पौधे का निमार्ण करते हैं।

प्रोफेज तथा टेलोफेज़ में विपरीत प्रकृति में बदलाव :

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प्रश्न 2.
माइक्रोप्रापगेशन् या सुक्ष्म प्रवर्धन (Micropropagation) किस प्रकार सम्पन्न होता है ? सपुष्पक पौधों के लैंगिक प्रजनन में निम्न तीन अवस्थाओं में क्या होता है ? गैमेट या प्रजनन कोशिका का निर्माण निषेचन, भ्रूण और नये पौधे का निर्माण। 3 + 2
उत्तर :
‘माइक्रो’ से तात्पर्य किसी वस्तु के सूक्ष्म आकार से होता है, जो पृथक किए गए किसी कोशिका अथवा ऊतक का अत्यंत छोटा टुकड़ा होता है। सर्वप्रथम वांछित भाग को संवर्धन माध्यम पर वृद्धि कर कैलस प्राप्त करते हैं। इसकी सभी कोशिकाएं समान होती हैं इसमें विभिन्न रसायनों के माध्यम से विभेदीकरण कराकर छोटे-छोटे पादप प्राप्त करते हैं जिन्हें पौधाशाल में रोपित कर पौधा प्राप्त कर सकते हैं।

गैमेट या प्रजनन कोशिका का निर्माण :- पौधो के पुष्प के पुकेसर के पराग कोष की जनन कोशिकायों में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। जिसके फलस्वरूप हेप्लायड क्रोमोसोम्स वाले नर युग्मक का निर्माण होता है। इसे पराग कण कहते हैं।
पुष्प के अण्डाशय के भाग की जनन कोशिकाओं में अर्ध सूत्री विभाजन के फलस्वरूप भ्रुणकोष में मादा युग्मकों का निर्माण होता हैं जिन्हें पोलर केन्द्रीकायें और अण्डा कहते हैं।

निषेचन (Fertilization) : Stigma पर के द्रव को शोषित करके परागकण फूल कर बड़े हो जाते हैं । परागकण को केन्द्रक विभाजित होता जाता है। इसकी बाहरी भिति exine फट जाती है। अन्दर की Intine एक नली के रूप में स्टाइल में प्रवेश करती हैं। इसे परागनली कहते हैं। इसमें दो नर केन्द्रक उपस्थित हैं। पराग नली धीरे-धीरे बढ़कर बीजाणु के बीजाण्डद्वार नामक छिद्र से होकर भ्रूण कोष की दीवाल सो स्पर्श करता है। इस स्थान की भूण कोष की दीवाल और पराग नली का शीर्ष भाग नष्ट हो जाता है जिससे पराग नली की दोनों नर केन्द्रक भ्रूण कोष के अंदर प्रवेश कर जाती हैं। अब अंडाणु की केन्द्रक एक नर केन्द्रक से मिलकर युग्मनज में बदल जाती है। इस विधा के निषेचन कहते हैं।

भूण का विकास (Development of Embryo) : इस प्रकार निषेचित अण्डाणु, लगातार विभाजित होकर बहु कोशिकीय भूण का निर्माण करता है। इसके पथ्वात अण्डाशय के विभिन्न भाग निम्न रूपों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा फूल के अन्य अंग जैसे- वृति, दलचक्र आदि झड़कर गिर जाते हैं।

अण्डाशय (Ovary) का रूपान्तरण फल (Fruit) में बीजाण्ड (Ovule) का रूपान्तरण बीज (Seed) में तथा definitive nucleus इण्डोस्पर्म में होता है।
बीजाण्ड आवरण (Integument) का रूपान्तरण बीज खोल (Seed Coal) में होता है।

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प्रश्न 3.
वर्धी प्रजनन की व्याख्या करो। वायु परागित और जल-परागित पुष्पों की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
(क) वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) : पौधों के वर्धी भागों द्वारा नये पौधे उत्पन्न करने को वर्धी प्रजनन कहते हैं। उदाहरण- budding, grafting, cutting आदि।

व्याख्या : वर्धी प्रजनन केवल पौधों में एक विशेष प्रकार का प्रजनन है। इसके अन्तर्गत पौधे का कोई भी वर्धी भाग प्राकृतिक अथवा कृत्रिम विधि से मुख्य पौथे से अलग हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में इस भाग से जड़ों तथा शाखाओं का विकास होने लगता है और अन्य में एक नये पौधे का जन्म हो जाता है।

वायु-परागित पुष्प की विशेषता :

  1. पुष्प छोटे तथा फीके रंग के होते हैं।
  2. इनमें गंध नहीं होती है।
  3. इनके पुंकेसर लम्बे होते हैं जो पुष्प के बाहर निकले होते है।

जल-परागित पुष्प की विशेषता :

  1. परागकण अधिक संख्या में उत्पन्न होते हैं।
  2. परागकण जल में तैरते रहते हैं क्योंकि इनका विशिष्ट गुरूत्व जल से कम होता है।
  3. परागकल मादा पुष्य से मिलने तक तैरते रहते हैं। जैसे – वैलिस्नेरिया।

प्रश्न 4.
अलैंगिक जनन की तुलना में लैंगिक जनन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न आनुवांशिक गुणों में ठीक जनकों के समानता होती है, उनमें किसी तरह की भिन्नता नहीं पाई जाती है। लेकिन लैंगिक जनन में दो भिन्न लिंग (नर एवं मादा) भाग लेते हैं। उनके द्वारा अलग-अलग नर एवं मादा युग्मक, अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बनते हैं। इस अर्द्धसूत्री विभाजन की क्रिया के दौरान होने वाली कॉसिंग ओवर के कारण DNA में भिन्नता उत्पन्न होती है। इस तरह लैंगिक जनन द्वारा दो जीवों से प्राप्त DNA के निषेचन के बाद युग्मनज में समाहित होने से विभिन्नताओं के नए संयोजन पैदा होते हैं, जो जीवों में विविधता उत्पन्न करता हैं और यह जैव विकास को गति देता है। अत: अलैंगिक जनन की तुलना में लैंगिक जनन जीवों में विविधता एवं जैव विकास के लिए लाभप्रद जनन विधि है।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक वर्धी प्रजनन किन-किन विधियों द्वारा होती है? मुकुलन द्वारा, विखण्डन द्वारा, पत्तियों द्वारा तथा तने द्वारा होने वाली प्राकृतिक वर्धी प्रजनन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
प्राकृतिक वर्धी प्रजनन निम्न विधियों द्वारा होता है –

  1. मुकुलन द्वारा (By budding)
  2. विखण्डन द्वारा (By fragmentation)
  3. पत्तियों द्वारा (By leaves)
  4. जड़ो द्वारा (By roots)
  5. भूमिगत तने द्वारा (By under ground stems)।

मुकुलन द्वारा (By budding) : इस प्रकार का वर्धी प्रजनन यीस्ट इत्यादि पौधों में देखा जाता है। इसमें सर्वप्रथम यीस्ट कोशिका से एक कलिका (bud) विकसित होती है जो बाद में मातृकोशिका से अलग होकर नये पौधे को जन्म देती है। लगातार कलिका निर्माण के फलस्वरूप कलिकाओं की एक कड़ी सी बन जाती है और केन्द्रक माइटोसिस विभाजन द्वारा विभाजित होकर प्रत्येक कलिका में चला जाता है। प्रत्येक कलिका एक नये पौधे को जन्म देने के लिए स्वतंत्र होती है।

निषेचन के पश्चात जाइगोट में बार-बार में समसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप बीजाण्ड् बीज के सम में और अण्डाशय फलस्वरूप में परिवर्तित हो जाता है। कुछ समय बाद आवश्यक परिस्थितियों को प्राप्त कर बीज अंकुरित होकर नये पौधा को जन्म देता है।

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विखण्डन द्वारा (By fragmentation) : विखण्डन द्वारा प्रजनन कुछ निम्न श्रेणी के जलीय पौधों में होती है। इस प्रजनन में ये प्राकृतिक कारणों से छोटे-छोटे खण्डों में टूट जाते हैं और प्रत्येक खण्ड से एक नये पौधे का जन्म होता है। जैसे स्पाइरोगाइरा म्यूकर आदि में।

पत्तियों द्वारा (By leaves) : कुछ पौधों की पत्तियाँ वर्धी प्रजनन में भाग लेती हैं। इन पत्तियों पर अपस्थानिक कलिकायें (Adventitious buds) विकसित हो जाती है। प्रत्येक कलिका एक नये पौधे को जन्म देती हैं। जैसे- अजूबा (Bryophyllum), बिगोनिया (Begonia), कलंची (Kalanchee) इत्यादि की पत्तियाँ।

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तने द्वारा (By stem) :
(a) भूमिगत तने द्वारा (By under ground stems) : आलू, प्याज, अदरख, सूरन आदि के तने भूमिगत होते हैं जो भोजन संचय के कारण फूले होते हैं। इन पर अग्रस्थ तथा कक्षस्थ कलिकायें विकसित होती हैं जिनसे अनुकूल परिस्थितियों में नये पौधे विकसित होते हैं।

(b) रेंगने वाले तने (Creeping stems): इस प्रकार के तने के उदाहरण निम्न हैं –

  1. भूप्रसारी (Runner) : मिट्टी की सतह के ऊपर रेंगने वाले तने जैसे – दूब, घास इत्यादि।
  2. भूस्तारी (Sucker) : मिट्टी की सतह के नीचे रेंगने वाले तने, जैसे – पुदीना (mint) इत्यादि।
  3. भू-स्तारिका (Offset) : जैसे जलकुम्भी उपर्युक्त पौधों के तनों की गाँठों पर कक्षस्थ कलिकायें विकसित होकर नये पौधे को जन्म देती है।

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प्रश्न 6.
कृत्रिम वर्धी प्रजनन किन-किन विधियों द्वारा होती है ? कलम लगाकर (By cutting) तथा रोपण (Grafting) द्वारा होने वाली कृत्रिम वर्धी प्रजनन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
कृत्रिम वर्धी प्रजनन निम्न विधियों द्वारा होती है –

  • कलम लगाना (Cutting)
  • दाब लगाना (Layering)
  • गूटी (Gootee)
  • रोपण (Grafting)

कलम लगाना (Cutting) : इस विधि से पौधे के स्वस्थ तने का एक छोटा टकडा (3-12 ईंच) काटकर नम मिट्टी में या तो क्षैतिज या तिरछा करके गाड़ देते हैं। कुछ दिनों बाद इसकी गाँठों के निचले भाग से आकस्मिक जड़ों तथा ऊपरी भाग से प्ररोह का विकास होता है। इस प्रकार प्रत्येक गाँठ से एक नया पौधा उत्पन्न हो जाता है। तिरछे रूप से गाड़े हुए तने के निचले भूमिगत गाँठों से जड़ों तथा ऊपरी गाँठों से प्ररोह का विकास होता है। जैसे – गन्ना, गुलाब, जवा, अनार, अंगूर इत्यादि में।

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रोपण (Grafting) : इस विधि में एक जड़युक्त पौधे की शाखा को छीलकर उस पर उसी जाति के अच्छी किस्म के कटे हुए शाखा को छीलकर बाँधते हैं। एक जड़ युक्त पौधे की शाखा को स्टॉक (Stock) तथा दूसरी कटी हुई शाखा को सीऑन (Scion) कहते हैं। दोनों शाखाओं (Stock तथा Scion) की मोटाई समान होनी चाहिए। दोनों शाख़ाओं के जोड़ पर नम मिट्टी रखकर उसे कपड़े से बाँघ देते हैं। कुछ दिनों के बाद ये अच्छी तरह जुड़ जाते हैं और Scion से शाखायें निकलने लगती हैं। इस प्रकार रोपण द्वारा बटिया किस्म से बढिया किस्म के पौधे तैयार किये जाते हैं। रोपण निम्न प्रकार का होता है –

(a) कशा रोपण (Whip grafting) : इसमें स्टॉक तथा सिऑन को तिरछा काटकर जोड़ते हैं। जैसे- आम, अमरुद इत्यादि में।

(b) वेज रोपण (Wedge grafting) : इस विधि में स्टॉक ‘V’ के आकार का गर्त बनाकर Scion को उसी के अनुसार छोलकर उसमें फिट करते हैं। जैसे- आँवला, आम इत्यादि में।

(c) शाखा बंधन (Inarching) : इस विधि में समान जाति के एक बढ़िया तथा दूसरे घटिया किस्म के पौधों की शाखाओं को छीलकर आपस में बाँधते हैं। कुछ समय पश्चात् जब दोनों के ऊत्तक एक दूसरे से सट जाते हैं तो ऊपर वाली शाखा, जिसे stock के रूप में प्रयुक्त करते हैं, को जोड़ के ऊपरी भाग से काटकर अलग कर देते हैं। इस प्रकार स्वसथ पौधे की शाखा (Scion) कमजोर पौधे की शाखा (Stock) पर जाती है तथा अच्छे किस्म का पौधा तैयार हो जाता है, जैसे- आम, लीची इत्यादि में।

(d) कली रोपण (Bud grafting) : इसमें Scion कोई कलिका होती है जिसे छाल सहित काटकर Stock पर बनाये हुए गर्त में रख देते हैं। अब इसे मुलायम नम मिट्टी से ढँककर बाँध देते हैं। कुछ दिनों में कलिका से एक नया पौधा उत्पन्न होता है। जैसे- गुलाब, सेब इत्यादि।

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प्रश्न 7.
कृत्रिम कायिक प्रवर्धक (Artifical vegetative propagation) क्या है ? पौधों में प्राकृतिक वर्धी प्रजनन के दो उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर : कृत्रिम कायिक प्रवर्धक : यह किया मानव द्वारा कल्पित है। पादप का कायिक भाग मातृ पादप से अलग कर स्वतंत्र रूप से उगाया जाता है तथा उससे नया पौधा प्राप्त करते हैं। इनकी मुख्य विधियाँ कलम लगाना (cutting), दाब कलम (layering), तथा रोपण (Grafting) आदि हैं।
पौघों में प्राकृतिक वर्धी प्रजनन :

  1. जड़ द्वारा (By root) : शकरकंद (Sweet potato) की जड़ मांसल होती है। अनुकूल परिस्थितियों में शकरकंद की मांसल जड़ों से नये पौधे का जन्म होता है।
  2. पत्तियों द्वारा (By leaves) : कुछ पौधों की पत्तियाँ वर्धी प्रजनन में भाग लेती हैं। इन पत्तियों पर आकस्मिक कलिकायें (Adventitious buds) विकसित हो जाते हैं। प्रत्येक कलिका एक नये पौधे को जन्म देती हैं। जैसे- अजूबा (Bryophyllum) !
  3. तने द्वारा (By stem) : आलू, प्याज, अदरख, सूरन आदि के तने भूमिगत होते हैं जो भोजन संचय के कारण फूले होते हैं। इन पर अग्रस्थ तथा कक्षस्थ कलिकायें विकसित होती हैं जिनसे अनुकूल परिस्थितियों में नये पौधे विकसित होते हैं।

प्रश्न 8.
कृत्रिम वर्धी प्रजनन तथा वर्धी प्रजनन का महत्व क्या है ? वर्धी प्रजनन से क्या-क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर :
कृत्रिम वर्धी प्रजनन के निम्नलिखित महत्व हैं –

  1. कृत्रिम वर्धी प्रजनन द्वारा इच्छित फूल तथा फल उत्पन्न करने वाले पौधे को उत्पन्न किया जा सकता है।
  2. कृत्रिम वर्षी प्रजनन द्वारा अधिक दिनों में फल देने वाले पौधों से उत्पन्न नये किस्म वाले पौधे कम समय में फल देने लगते हैं।
  3. बीजहीन फलों जैसे- केला, अंगूर, अनारस आदि से तथा गुलाब, चमेली, गुड़हल आदि फूल के पौधों से कृत्रिम वर्धी प्रजनन द्वारा अन्य पौधे उत्पन्न किये जा सकते हैं।
  4. दरक, आलू, सूरन, हल्दी आदि तनों द्वारा कृत्रिम वर्धी प्रजनन क्रिया द्वारा ही नये पौधों की उत्पत्ति होती है।
  5. इस प्रजनन में समय तथा मेहनत कम लगता है।
  6. इस विधि में क्षति की सम्भावना कम रहती है।
  7. इस विधि से उत्पन्न पौधों का गुण तथा प्रकृति बीजों से उत्पन्न पौधों की तुलना में अधिक टिकाऊ होता है।

वर्धी प्रजनन का महत्व या लाभ (Significance of vegetative reproduction) :

  1. इस विधि द्वारा उत्पन्न पौधे अपने जनक पौधों के समान फल तथा फूल उत्पन्न करते हैं।
  2. इस विधि द्वारा कम समय में अधिक से अधिक पौधे उत्पत्न किये जा सकते हैं।
  3. यह प्रजनन की सरल विधि है तथा इसमें खर्च भी कम लगता है।
  4. इस विधि रा बीजरहित पौधे उत्पन्न किये जाते हैं।
  5. इस विधि द्वारा पन्न पौधे जल्द ही फल तथा फूल उत्पन्न करने लगते हैं।
  6. इस प्रजनन में उत्पन्न होने वाले पौधे जनक पौधे से अपना भोजन ग्रहण करते रहते हैं।

वर्धी प्रजनन से हानियाँ (Demerits of vegetative reproduction) :

  1. इस प्रजनन द्वारा नये गुण वाला पौधा उत्पन्न नहीं होता है।
  2. इस विधि द्वारा उत्पन्न पौधों में अनुकूलन की क्षमता कम होती है।
  3. ये पौधे शारीरिक रूप से दुर्बल तथा हीन होते हैं।
  4. इनके तने पतले तथा टेढ़े होते हैं। इसके कारण मोटे व्यास वाली लकड़ियाँ प्राप्त नहीं हो पाती है।

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प्रश्न 9.
अलैंगिक प्रजनन क्या है ? यह कितने प्रकार का है ? संक्षेप में इसका उल्लेख करो। अलैंगिक प्रजनन के महत्व तथा हानियाँ बताओ।
उत्तर :
अलैंगिक प्रजनन : केवल एक ही जन्तु या पौधा से दूसरा नया पौधा या जन्तु बनने की उस विधि को जिसमें प्रजनन की इकाई गैमिट भाग नहीं लेती है, उसे अलैंगिक प्रजनन कहते हैं।
अलैंगिक प्रजनन निम्न प्रकार से होता है –
i. विभाजन (Fission) : इस प्रकार का प्रजनन एक कोशिकीय प्राणियों जैसे- अमीबा, पैरामिसियम, युग्लिना आदि में पाया जाता है। यह निम्न प्रकार का होता है –
(a) द्विविभाजन (Binary fission) : इस प्रकार के विभाजन में मातृकोशिका का केन्द्रक तथा साइटोप्लाज्म साधारण रीति अर्थात एमाइटोसिस प्रक्रिया द्वारा विभाजित होकर दो पुत्री कोशिकाओं की सृष्टि करते हैं। ये दोनों पुत्री कोशिकायें दो विभिन्न जीवों में बदल जाती हैं।

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(b) बहु विभाजन (Multiple fission) : इस प्रकार के प्रजनन में व्यस्क कोशिका का केन्द्रक अनेक केन्द्रकों में विभाजित हो जाता है प्रत्येक केन्द्रक के चारों ओर साइटोप्लाज्म एकत्रित होकर प्रत्येक केन्द्रक को बीजाणु में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को sporulation कहते हैं। अन्तः में ये स्पोर मातृकोशिका से बाहर निकल आते हैं तथा व्यस्क प्राणी में बदल जाते हैं।

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ii. कलिका द्वारा (By budding) : हाइड्रा, फीता कृमि, एनिलिडा वर्ग के प्राणियों में इस प्रकार का प्रजनन होता है। इस क्रिया में जन्तुओं के शरीर से प्रवर्धन निकलते हैं जिन्हें कलिका (bud) कहते हैं। ये कलिका मातृकोशिका से भोज्य पदार्थ ग्रहण कर बढ़ती रहती है तथा अनुकूल परिस्थिति में ये मातृ देह से अलग होकर व्यस्क प्राणी में बदल जाते हैं।

iii. पुनरूत्पादन (Regeneration) : हाइड्रा, प्लानेरिया, लाइनिज, संज आदि में इस प्रकार की प्रजनन क्षमता पायी जाती है। इन जन्तुओं का शरीर कई खण्डों में विभाजित हो जाता है और प्रत्येक भाग एक नये जीव का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार की विशिष्ट प्रजनन क्रिया को regeneration कहते हैं।

अलैंगिक प्रजनन का महत्व (Importance of Asexual reproduction) :

  1. इस प्रजनन में एक ही साथ अनेक जीवों की उत्पत्ति हो जाती है
  2. इस प्रजनन में केवल एक ही जनक की आवश्यकता पड़ती है।
  3. इस प्रजनन से उतपन्न जीव के विकसित अंगों तथा शरीर की रचना में कोई विशेष अन्तर न होने के कारण प्राणियों के जीवित रहने की सम्भावना कम रहती है।
  4. इस प्रजनन में वंश वृद्धि की दर तीव्र होती है।
  5. इस प्रजनन द्वारा उत्पन्न जीव अपने जनक के सदृश्य होते हैं।
  6. यह प्रजनन विपरीत प्राकृतिक अवस्थाओं में होता है, अत: यह प्रजनन की सरल विधि है।

अलैंगिक प्रजनन से हानि (Demerits of Asexual reproduction) :

  1. इस प्रजनन में उत्पन्न सन्तानों में आनुवंशिक लक्षणों के संयोग न होने के कारण वंश में विभिन्नतायें उत्पन्न होती हैं।
  2. एक ही जनक से बार-बार प्रजनन होने से उनका अस्तित्व खतरा में पड़ जाता है।

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प्रश्न 10.
लैंगिक प्रजनन क्या है ? विभित्र प्रकार के लैंगिक प्रजनन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
नर तथा मादा गैमिट के संयोग से उत्पन्न जाइगोट नामक रचना के विकसित होने तथा नये जीव के उत्पन्न होने की विधि को लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) कहते हैं।
लैंगिक प्रजनन के प्रकार (Types of sexual reproduction) :
लैंगिक प्रजनन मुख्यतः दो प्रकार का होता है – 1. सिनगैमी (Syngamy), 2. कंजुगेशन (Conjugation)
(i) सिनगैमी (Syngamy) : इस प्रकार के प्रजनन में नर तथा मादा गैमिट का पूर्ण तथा स्थायी संयोग होता है। यह पौधों तथा जन्तुओं में लैंगिक प्रजनन की एक सामान्य विधि है। यह प्रजनन संयोग करने वाले नर तथा मादा गैमिट की विशिष्टता पर निर्भर करता है। यह प्रजनन निम्न तीन प्रकार का होता है।

(a) आइसोगैमी (Isogamy) : लैंगिक प्रजनन में भाग लेने वाले नर तथा मादा गैमिट सभी प्रकार से समान हों तो उन्हें आइसोगैमिट कहा जाता है तथा इनके संयोग को आइसोगैमी(Isogamy) कहा जाता है। जैसे- स्पाइरोगाइरा, म्यूकर, मोनोसिस्टिस आदि का लेगिक प्रजनन। आइसोगैमिट के मिलन से उत्पन्न द्विगुणित रचना को जाइगोस्पोर(Zygospore) कहते हैं।

(b) अनआइसोगैमी (Anisogamy) : लैंगिक प्रजनन में भाग लेने वाले नर तथा मादा गैमिट आकार, आयतन तथा प्रकृति में एक दूसरे से भिन्न होते हैं तो उन्हें अनआइसोगैमिट (Anisogamete) कहा जाता है तथा इनके संयोग को अनआइसोगैमी (Anisogamy) कहा जाता है। इसमें नर गैमिट छोटा एवं सक्रिय या सचल होता है जिसे शुक्राणु (Sperm) कहते हैं तथा मादा गैमिट बड़ा एवं निष्क्रिय होता है जिसे Ova कहते हैं। नर तथा मादा गैमिट का संयोग जनन अंगों के बाहर होता है, जैसे- क्लेमाइडोमोनास।

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(c) ओगैमी (Oogamy) : यह एक प्रकार का अनआइसोगैमी प्रजनन है जिसमें संयोग करने वाले गैमिट्स में नर गैमिट छोटा तथा सचल होता है तथा मादा गैमिट बड़ा तथा अचल होता है। मादा गैमिट मादा जनन अंगों के अन्दर रहता है तथा पुरुष गैमिट मादा जनन अंग में प्रवेश कर Ova के साथ संयोग कर जाइगोट की रचना करते हैं। अत: इस ओगैमी को अन्त: निषेचन (Internal fertilization) भी कहते हैं।

(ii) कंजुगेशन (Conjugation) : प्रजनन की वह विधि जिसमें एक ही जाति के दो विभिन्न गैमिट्स का अस्थाई संयोग होता है। फिर भी संयोग करने वाले गैमिट्स के जीवद्रव्य का आदानप्रदान होता है तथा नये जीव की उत्पत्ति होती है, इसे कंजुगेशन(Conjugation) कहते हैं। संयोग के समय कंजुगेशन नली द्वारा उनके केन्द्रिय पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। कंजुगेशन के पश्धात् डिप्लायड रचना को जाइगोस्पोर(Zygospore) कहते हैं। जैसे- स्पाइरोगाइरा पैरामिसियम, म्यूकर आदि।

प्रश्न 11.
लैंगिक प्रजनन के महत्व तथा हानियाँ बताओ।
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन का महत्व :

  1. लैंगिक प्रजनन में उत्पन्न सन्तान में माता-पिता दोनों के गुणों का समावेश होता है।
  2. यह प्रजनन की एक उन्नत विधि है।
  3. इस प्रकार के प्रजनन में crossing over की क्रिया होती है जिसमें विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है।
  4. इस विधि से उत्पन्न जीवों में अनुकूलन की प्रचुर क्षमता पायी जीत है।
  5. सन्तान अधिक स्वस्थ तथा उनमें प्रतिरोध की क्षमता अधिक होती है।

लैंगिक प्रजनन से हानि या दोष (Demerits of asexual reproduction) :

  1. लैंगिक प्रजनन में समय अधिक लगता है।
  2. यह एक जटिल प्रक्रिया है तथा खर्च भी अधिक पड़ता है।
  3. इस प्रजनन के लिए नर तथा मादा एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
  4. इस प्रजनन में सफलता भी सन्देहास्पद रहती है।
  5. अधिक प्रजनन या सन्तान उत्पन्न करने पर जनक प्राय: नष्ट या क्षीण नट्ट हो जाते हैं।

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प्रश्न 12.
पष्पीय पौधा में दोहरा निषेचन का वर्णन कीजिये।
उत्तर :
निषेचन (Fertilization) :
Stigma पर के द्रव को शोषित करके परागकण फूल कर बड़े हो जाते हैं। परागकण दो केन्द्रक विभाजित होता जाता है। दूसरी बाहरी भिति exine फट जाती है। अन्दर की intine एक नली के रूप में स्टाइल में प्रवेश करता है।

Pollen tube लम्बाई में बढ़ने लगता है तथा style द्वारा होता हुआ माइक्रोपाइल छिद्र के माध्यम से बीजाण्ड में प्रवेश करता है।

Pollen का जेनेरेटिव केन्द्रक (Generative nucleus) विभाजित होकर दो नर गैमिट का निर्माण करता है।

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Pollen tube, न्यूसेलस (Nucellus) कोशिकाओं को छेदकर भूण कोष के सम्पर्क में आ जाता है। यहाँ पर pollen tube का अग्र भाग फट जाता है जिससे दोनों नर गैमिट भूण कोष में प्रवेश कर जाते हैं। इस समय tube nucleus गायब हो जाता है।

दोनों नर गैमिट्स में एक नर गैमिट Ova या Egg से संयोग कर जाइगोट का निर्माण करता है। इस क्रिया को निषेचन कहते हैं। दूसरा नर गैमिट definitive nucleus से संयोग कर त्रिगुणित (3n) इन्डोस्पर्मिक केन्द्रक का निर्माण करता है।

चूँकि इस निषेचन में मादा गैमिट अलग-अलग स्थानों पर मादा तथा definitive nucleus से संयोग करता है, अतः इसे दोहरा निषेचन double fertilization भी कहते हैं।

प्रश्न 13.
वृद्धि क्या है? वृद्धि के कारण क्या हैं ?
उत्तर :
वृद्धि (Growth) : सजीवों के शरीर का आयतन तथा शुष्क भार में होने वाली स्थायी परिवर्तन को वृद्धि कहते हैं। वृद्धि के कारण (Cause of growth) : सजीवों में कोशिका विभाजन की क्रिया होती रहती है। कोशिका विभाजन के फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है जिससे आकार तथा आयतन बढ़ता है। साथ ही साथ विभिन्न ऊत्तकों में विभेदन के कारण जीव देह में वृद्धि होती है। कभी-कभी जीवों के विभिन्न अंगों में संयमी पदार्थों के कारण भी जीवों में वृद्धि होती है।

सेल्युलोज, पेक्टिन, लिग्निन आदि पदार्थों का जमाव पौधों में होता है, जिसके कारण इसकी कोशिकाओं के आकार में वृद्धि होती है। जन्तुओं के दाँत, नाखुन आदि में फास्फोरस, कैल्सियम आदि के तथा बाल में केरोटिन जमाव से वृद्धि होती है। जीवों में रचनात्मक क्रियाओं की दर अधिक होने के कारण जीवों के शरीर में शुष्क भार में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 14.
वृद्धि की अवस्थाओं का वर्णन संक्षेप में करो।
उत्तर :
वृद्धि की अवस्था (Phase of Growth) :

  1. कोशिका विभाजन की अवस्था (Phase of cell division) : इस अवस्था में वृद्धि प्रदेश की कोशिका माइटोसिस विभाजन द्वारा विभाजित होकर अपनी संख्या में वृद्धि करता है।
  2. दीर्घीकरण अवस्था (Phase of Elongation) : कोशिका विभाजन से उत्पन्न पुत्री कोशिकाओं का आकार बढ़ता है तथा ये परिपक्व हो जाती हैं।
  3. विभेदन की अवस्था (Phase of differentiation) : पूर्ण आकार प्राप्त कर कोशिकायें विभिन्न प्रकार के ऊत्तको तथा उत्तक तंत्र का निर्माण करती है अर्थात कोशिकायें विभिन्न स्थायी ऊत्तकों में विभेदित हो जाती है।

प्रश्न 15.
विभिन्न प्रकार के वृद्धि का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
वृद्धि के प्रकार (Types of Growth) :
वर्धी वृद्धि (Vegetative Growth) : वर्धी वृद्धि के कारण निषेचन के पश्धात् जाइगोट बनता है। विभाजन प्रक्रिया द्वारा यह भूण में बदल जाता है तथा वृद्धि के द्वारा एक पूर्ण जीव की सृष्टि हो जाती है।

प्रजनन वृद्धि (Reproductive Growth) : इस प्रकार के प्रजनन द्वारा जीवों के जनन अंग परिपक्व होते हैं जिसके फलस्वरूप पौधों में फूल तथा फल उत्पन्न होता है तथा जन्तुओं के वृषण तथा अण्डाशय में वृद्धि होती है।

पुनर्निर्माण वृद्धि (Regenerative Growth) : पुनर्निर्माण वृद्धि के फलस्वरूप मृत तथा दूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है तथा नये कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है।

वृद्धि की दर (Rate of Growth) : जन्तुओं में वृद्धि की अवधि निश्चित होती है। जीवों के शरीर में वृद्धि सब समय समान नहीं होता है। प्रारम्भिक अवस्था में वृद्धि की दर बहुत कम रहती है, इसके बाद वृद्धि की दर बढ़ जाती है तथा अन्त में पुन: वृद्धि की दर घटने लगती है। वृद्धि की इस प्रारम्भ से लेकर अन्त तक की सम्पूर्ण अवधधि को Grand period of growth कहते हैं। ये अवधि क्रमश: Lag period, Accelerating period तथा Retarding period कहलाती है। पौधों में वृद्धि की दर ऑक्जेनोमीटर (Auxanometer) नामक यंत्र द्वारा मापा जाता है।

प्रश्न 16.
वृद्धि को प्रभावित करने वाले अन्तःकारकों का वर्णन करो।
उत्तर :
वृद्धि को प्रभावित करने वाले अन्त:कारक निम्न हैं –
इन्जाइम (Enzyme) : पौधों तथा जन्तुओं में विभिन्न प्रकार के इन्जाइम पाये जाते हैं। इस इन्जाइम से विभिन्न रासायनिक परिवर्तन द्वारा एनाबोलिक क्रियाओं की दर बढ़ती है, फलस्वरूप वृद्धि की दर बढ़ जाती है।
हार्मोन (Hormone) : पौधों में उपस्थित विभिन्न पादप हार्मोन जैसे- ऑक्सिन, साइटोकाइनिन, जिबरैलिन आदि वृद्धि को प्रभावित करते हैं। जन्तुओं में भी पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित STH हार्मोन, थाइरॉयड ग्रंथि द्वारा स्नावित थाइरॉक्सिन हार्मोन जन्तुओं की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
भोजन (Food) : पौधों तथा जन्तुओं में समुचित विकास के लिए भोजन आवश्यक है। भोजन से प्रोटोप्लाज्म का निर्माण होता है तथा वृद्धि नियंत्रित होती है।

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प्रश्न 17.
पौधों में वृद्धि के विभिन्न प्रकार का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
पौधों में वृद्धि निम्न तीन प्रकार की होती है-
भ्रूण का विकास (Development of Embryo) : पौधों में निषेचन के फलस्वरूप जाइगोट का निर्माण होता है जो विभाजित होकर भूण का निर्माण करता है। भूण का निर्माण बीजपत्र तथा इण्डोस्पर्म द्वारा होता है।
अंकुरण (Germination) : ऑक्सीजन, तापक्रम, जल आदि की उपस्थिति पादप हार्मोन जिबेरेलिन द्वारा भूरण की सुषुप्तावस्था टूटकर भूण बीज के बाहर अंकुरित हो जाता है। अंकुरण से भूणमूल जमीन में प्रवेश कर जड़तंत्र का निर्माण करता है तथा भ्रूणमुकुल मिट्टी से ऊपर निकलकर प्ररोह तंत्र का निर्माण करता है।
प्ररोह का विकास (Growth of seedling) : प्ररोह तंत्र अनुकूल वातावरण में विकसित होकर एक पूर्ण पौधे का रूप धारण कर लेता है। प्ररोह के विकास के समय पौधे में निम्न प्रकार की वृद्धि पायी जाती है।

(a) प्राथमिक वृद्धि (Primary Growth) : पौधों के अग्र प्रविभाजी में कोशिका विभाजन के फलस्वरूप पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है। विभिन्न प्रकार के ऊत्तक तंत्र का निर्माण होता है। इस ऊत्तक तंत्र से शाखायें प्रशाखायें निकलती हैं।
(b) द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) : प्राथमिक वृद्धि के बाद पार्श्ध प्रविभाजी या कैम्बियम में कोशिका विभाजन के फलस्वरूप पौधों की मोटाई में वृद्धि होती है।
(c) प्रजनन वृद्धि (Reproductive Growth) : प्राथमिक वृद्धि तथा द्वितीयक वृद्धि के पक्धात् पौधों में पुष्प कलिकायें निकलती हैं जिससे फूल व फल का निर्माण होता है तथा पोधों में वंश विस्तार की क्रिया सम्पन्न होती है।
(d) पुनर्निर्माण वृद्धि (Regenerative Growth) : पौधों के कटे या दूटे-फूटे अंगों में कोशिका विभाजन की क्रिया तीव्र होती है। फलस्वरूप टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है जिससे घाव भरता है।

प्रश्न 18.
मनुष्य के वृद्धि में किशोरावस्था का क्या महत्व है ? इस अवस्था के दौरान मनुष्य में देखे जाने वाले किन्हीं तीन संकेत को लिखिए।
उत्तर :
किशोरावस्था (Adolescence) : 12 से 18 वर्ष तक की आयु की अवस्था किशोरावस्था (Puberty Stage) कहलाता है। इस अवस्था में वृद्धि की दर अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप शरीर के प्रत्येक भाग में समूचित विकास प्रारम्भ हो जाता है। पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) तथा खियों में एस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone) हार्मोन का साव उत्पन्न होने लगता है, जिसके फलस्वरूप Secondary Sexual Character का विकास होने लगता है।

इस अवस्था के दौरान मनुष्य में देखे जाने वाले संकेत : इस अवस्था में कई परिवर्तन होने लगते हैं-

  1. गुप्त अंगों पर बालों का उगना
  2. पुरुषों में दाढ़ी तथा मूँछों का निकलना
  3. औरतों की बोली में मिठास, पुरुषों के गले की आवाज में मोटापन आदि लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं तथा मनुष्य पूर्ण वयस्क का रूप धारण करने लगता है।

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प्रश्न 19.
एक सजीव में वृद्धि कैसी होती है ? मनुष्य में शारीरिक वृद्धि की अवस्थाओं का नाम बताइए।
उत्तर :
जीवद्रव्य क्रियाशील होकर सम्पूर्ण शारीरिक क्रियाओं की सहायता से नए अंगों के निर्माण, शुष्क भार और आयतन में वृद्धि करते हैं। फलस्वरूप सजीवो को वृद्धि प्राप्त होती है।
मनुष्य में शारीरिक वृद्धि की कई अवस्थायें होती हैं जो निम्न हैं –

  1. शैश्वास्था (Infancy)
  2. बाल्यावस्था (Childhood)
  3. किशोरावस्था (Adolescence)
  4. वयस्कावस्था (Adulthood)
  5. जीर्णतश (Senescence)

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