WBBSE Class 10 Hindi रचना संवाद-लेखन

Students should regularly practice West Bengal Board Class 10 Hindi Book Solutions and रचना संवाद-लेखन to reinforce their learning.

WBBSE Class 10 Hindi रचना संवाद-लेखन

एक व्यक्ति का दूसरे से बातचीत करना ‘संवाद’ कहलाता है। एक आदर्श संवाद में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  • संवाद में किसी प्रकार का छिपाव नहीं होना चाहिए।
  • संवाद में मस्तिष्क के स्थान पर दिल का प्रयोग होना चाहिए।
  • संवाद में रिश्तों की पहचान बनी रहनी चाहिए।
  • संवाद अवसर तथा विषय के अनुसार ही होना चाहिए।
  • एक कुशल संवाद के द्वारा पराए अपने बनाए जा सकते हैं।
  • सही संवाद से दोनों पक्षों के विचार की सही जानकारी मिल जाती है।
  • संवाद सष्ट होने के साथ-साथ छोटे हों।
  • संवाद को रोचक बनाने के लिए अनेक शब्दों के बदले एक शब्द, मुहावरे या लोकोक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
  • संवाद वक्ता की योग्यता, मनःस्थिति तथा स्तर के अनुरूप हो।
  • संवाद किसी निष्कर्ष पर समाप्त होने चाहिए।

प्रश्न 1.
देश में चल रही महामारी पर दो मित्रो के बीच संवाद लिखें।
उत्तर :
राहुल : मित्र, ये कोरोना वायरस तो बहुत ज्यादा फैल रहा है, मुझे तो बड़ा डर लग रहा है ।
रोहित : डरने की तो बात है ही । आखिर कब तक हम यूँ घर में दुबक कर बैठे रहेंगे।
राहुल : पता नहीं अब क्या होगा आगे ?
रोहित : राहुल, भले ही अब तक इसका कोई पक्का ईलाज नहीं है और सब तक वैक्सीन पहुँचने में समय लगेगा। परंतु इसके संक्रमण से तो बचा ही जा सकता है।
राहुल : सही कह रहे हो, जब तक दवाई नहीं है तब तक मास्क, सेनेटाइजर एवं सामाजिक दुरी जरूरी है।
रोहित : दोस्त जब तक वैक्सीन सब तक नहीं पहुंचती है, तब तक मास्क ही वैक्सीन है।
राहुल : अब तो बस यही कामना है कि जल्दी ये महामारी पूरे विश्व से समाप्त हो जाए और हम फिर से अपनी पहले वाली जिंदगी जी सकें।
रोहित : हाँ, मैं भी स्कूल और दोस्तों को बहुत मिस कर रहा हूँ। बस जल्दी से स्कूल में सब सामान्य हो जाए। मुझे बहुत पढ़ाई और मस्ती करनी है ।
राहुल : रोहित तु बस अपने एग्जाम पर ध्यान दे। देखना नए सेशन से हम स्कूल में होंगे और कोरोना गायब हो जाएगा।

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प्रश्न 2.
‘मातृभाषा शिक्षा का माध्यम हो या न हो’ प्रस्तुत विषय को दृष्टि में रखते हुए दो मित्रों के मध्य वार्तालाप लिखिए।
उत्तर :
दिवाकर : कहो मोहित, कैसे हो ?
मोहित : मजे में हूँ। मैं तुमसे मिलना ही चाह रहा था। चलो आज मुलाकात हो गई।
दिवाकर : क्या बात है ?
मोहित : दरअसल मैं तुमसे यह जानना चाहता था कि मातृभाषा शिक्षा का माध्यम हो या न हो ?
दिवाकर : बहुत अच्छा सवाल है। दरअसल हमारी शिक्षा का माध्यम तो मातृभाषा ही होनी चाहिए-ऐसा मेरा मानना है।
मोहित : क्यों ?
दिवाकर : आज बच्चे अपनी मातृभाषा में गिनती करना तक भूल चुके हैं। उन्हें चाहिए कि वे मातृभाषा को धरोहर की तरह संभाल कर रखें।
मोहित : तुम ठीक कहते हो। पूरी दुनिया को ‘ट्विंकल द्विंकल लिटिल स्टार’ या ‘बा-बा ब्लैक शीप’ गुनगुनाने की बिल्कुल ही जरूरत नहीं है।
दिवाकर : सही बात है। अपनी मातृभाषा में ही कितने ही लोकगीत, बाल कविताएँ, दोहे, छंद तथा चौपाइयाँ हैं जिन्हें हम प्राय: भूलते जा रहे हैं।
मोहित : हाँ, हमारी मातृभाषा अपने-आप में काफी समृद्ध है।
दिवाकर : एक जर्मन बच्चा अपनी मातृभाषा जर्मन में ही गणित सीखता है न कि अंग्रेजी में। इसी प्रकार इटली में रहने वाला बच्चा भी गिनती इटालियन में तथा सेन का बच्चा स्पेनिश भाषा में सीखता है जबकि हम भारतीयों के साथ ऐसा नहीं है।
मोहित : अब मेरी समझ में आ गया कि वास्तव में हमारी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में ही होना चाहिए।

प्रश्न 3.
आतंकवाद पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखें।
उत्तर :
राहुल : कल जम्मू स्टेशन पर जो आंतकवादी हमला हुआ, उसे सुनकर तुम्हें कैसा लगा?
मनुज : यह समाचार तो दिल दहलाने वाला है। मासूम एवं निर्दोष लोगों पर गोलियाँ चलाकर आंतकवादियों ने चालीस आदमियों को मौत के घाट उतार दिया।
राहुल : आतंक फैलानेवालों को बच्चों, विधवाओं तथा महिलाओं पर भी तरस नहीं आता है।
मनुज : इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं। इनका एक ही उद्देश्य है कि दहशत फैलाई जाए।
राहुल : इन हमलों के पीछे आई. एस. आई. का हाथ है। इन आतंकवादियों को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी जाती है। इन हमलावारों का न कोई धर्म होता है, न कोई मज़हब।
मनुज : मैं तो कहता हूँ ऐसे जो भी आंतकवादी पकड़े जायं उन्हें फाँसी दे देनी चाहिए।
राहुल : पाकिस्तान इन आतंकी कार्यवाही को भी जेहाद का नाम देता है।
मनुज : मैं तो कहता हूँ कि पाकिस्तान पर हमला करके इस समस्या को हमेशा के लिए मिटा देना चाहिए।
राहुल : ठीक कहते हो। अब फैसले का सही समय आ गया है।

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प्रश्न 4.
बढ़ती महँगाई के बारे में दो मित्रों के बीच संवाद लिखें।
उत्तर :
रहीम : सुरेश, तुम चिंतित क्यों लगते हो? तुम्हें क्या हो गया है?
सुरेश : क्या तुम नहीं देखते कि कीमतें किस तरह बढ़ रही है?
रहीम : हाँ, तुम ठीक कहते हो। जीवन-यापन का खर्च नए शिखर पर पहुँच चुका है।
सुरेश : और कहना कठिन है कि क्या होगा ? कुछ चुने हुए लोग चाँदी काट रहे हैं और हम गरीबी तथा मूल्यवृद्धि के कारण पिसे जा रहे हैं।
रहीम : सचमुच यह नेताओं तथा व्यापारियों का युग है।
सुरेश : और अफसरों का भी। वे अपना ही सुख-साधन देख रहे हैं।
रहीम : हाँ, भ्रष्टाचार का बाजार गर्म है और ईमानदारी की कोई पूछ नहीं।
सुरेश : हम किधर जा रहे हैं? क्या हमारा देश एक भयंकर संकट की ओर सरपट नहीं दौड़ रहा हैं?
रहीम : तुम ठीक कहते हो। यही तो दु:ख की बात है अपार धन के देश में निर्धनता है।

प्रश्न 5.
मोबाईल फोन की अच्छाई और बुराई विषय पर दो मित्रों के वार्तालाप लिखिए।
उत्तर :
दीपक : कहो आकाश कैसे हो ?
आकाश : अच्छा हूँ । मैं एक मोबाईल फोन खरीदने जा रहा हूँ । अगर तुम्हारे पास समय हो तो मेरे साथ चलो।
दीपक : हाँ-हाँ, क्यों नहीं ?
आकाश : अभी तक मैं मोबाईल को समय और पैसे की बर्बादी समझता था लेकिन वास्तव में यह बहुत उपयोगी है ।
दीपक : हाँ सही कह रहे हो । अगर पास में मोबाईल फोन हो तो समझो सारे विश्वकोष तुम्हारे पास हैं । पाठ्यक्रम से जुड़ी इतनी चीजें इसमें मिल जाती है कि उतना तो पुस्तकालयों में भी प्राप्त नहीं हो सकता और वे भी घर बैठे, जब चाहो।
आकाश : इन्हीं कारणों से तो मैं भी अब पढ़ाई में सहायता के लिए मोबाईल फोन खरीदना चाह रहा हूँ।
दीपक : लेकिन एक बात और भी ध्यान में रखने को है – हर चीज के दो पहलू होते हैं अगर हम मोबाइल फोन का सही इस्तेमाल करें तो यह हमारे भविष्य को स्वर्णिम बना सकता है और गलत इस्तेमाल करें तो भविष्य अधंकारमय भी हो सकता है ।
आकाश : हाँ, तुमने बिल्कुल सही कहा । सर कार को भी चाहिए कि इण्टरनेटे पर गलत और अश्लील चीजों के प्रसार पर रोक लगाए तथा इण्टरनेट पर ऐसी चीजों को डालनेवाले के लिए सजा देने का प्रावधान भी करे ।
दीपक : अगर ऐसा हुआ तो मोबाईल का शिक्षा के ही नहीं, जीवन के अन्य क्षेतों में भी काफी बड़ा योगदान होगा। आकाश : सच कहें तो मोबाईल वैश्वीकरण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मुझे तो ऐसा लगता है कि आनेवाले दिनों में हमें पुस्तकों का बोझ लेकर नहीं चलना होगा – एक मोबाईल फोन ही काफी होगा।
दीपक : अरे, बात-बात में पता ही न चला कि हमलोग कब दुकान पर पहुँच गए । चलो, अंदर चलकर देखते हैं।
आकाश : हाँ, तुमने ठीक कहा। चलो।

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प्रश्न 6.
दो विद्यार्थियों के मध्य ‘पुस्तकालय के महत्व’ विषय पर वार्तालाप लिखिए।
उत्तर :
राजेश : हाय रवि, क्या हाल है ?
रवि : ओ, राजेश ! कैसे हो, कहाँ जा रहे हो ?
राजेश : मैं पुस्तकालय जा रहा हूँ! रवि।
रवि : क्या तुम प्रतिदिन पुस्तकालय जाते हो ?
राजेश : नहीं, मैं सप्ताह में एक दिन, यानी मंगलवार को पुस्तकालय जाया करता हूँ। क्या तुम नहीं जाते?
रवि : नहीं, मैं पुस्तकालय नहीं जाता, मुझे वहाँ जाना अच्छा नहीं लगता।
राजेश : क्या कहते हो रवि, हम छात्रों को तो पुस्तकालय अवश्य जाना चाहिए, पुस्तकालय से सम्बन्ध रखना चाहिए । यह हम छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
रवि : पुस्तकालय से सम्बन्ध रखने की क्या आवश्यकता है, राजेश । यह क्यों उपयोगी है ?
राजेश : पुस्तकालय से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित पुस्तकों की उपलब्धि आसान है जो हमारी ज्ञान वृद्धि में सहायक हैं।
रवि: ऐसा है क्या ? मैं तो इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
राजेश : मैं प्रत्येक मंगलवार को पुस्तकालय जाता हूँ, वहाँ से एक पुस्तक लाता हूँ और उसे पढ़कर वापस कर देता हूँ । इससे हमारी पाठ्यपुस्तक की कमी की पूर्ति भी हो जाती है ।
रवि : ठीक है राजेश, आगामी मंगलवार से मैं भी तुम्हारे साथ पुस्तकालय जाया करूँगा ।

प्रश्न 7.
परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए पुत्र तथा पिता के बीच संवाद लिखें ।
उत्तर :
पिता : रमेश! बेटे रिजल्ट निकल गया ? क्या बात है बेटे ? रिजल्ट ठीक नहीं रहा क्या ?
रमेश : पिताजी!
पिता : हाँ, हाँ, बोल ! क्या हुआ ? इतना परेशान क्यों है ?
रमेश : पिताजी, मैं फेल हो गया हूँ।
पिता : क्या कहा ? फेल!
रमेश : पेपर अच्छे नहीं हुए थे ।
पिता : लेकिन तूने तो कभी बताया नहीं ?
रमेश : मेरा पहला पेपर ही खराब हो गया था, पिताजी । दूसरे पेपर्स भी उतने अच्छे नहीं हुए।
पिता : परन्तु बेटे ! हमारे खानदान में आज तक कोई फेल नहीं हुआ। यह तो हमारे लिए बड़े कलंक की बात है।
रमेश : पिताजी! मैं लज्जित हूँ।
पिता : बेटे ! पढ़ाई में तू कमजोर था, तो बताया क्यों नहीं ? मैं अच्छे शिक्षक का प्रबन्ध कर देता जोतुझे घर पर पढ़ाते, मैं तुझे खुद पढ़ाता । तूने बताया क्यों नहीं ।
रमेश : पिताजी ! मुझे बड़ा दुःख है । मुझे माफ कर दें । अबकी बार मैं खूब पढूँगा ।
पिता : खैर ! ठीक है बेटे ! जो हुआ सो हुआ । अब मैं स्वयं तुझे पढ़ाऊँगा ।
रमेश : क्षमा करें पिताजी ! इस बार मैं खूब परिश्रम करूँगा।

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प्रश्न 8.
‘रक्तदान’ पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखें ।
उत्तर :
सोहन कहाँ की तैयारी है ?
सुरजीत : कॉलेज की।
सोहन : क्या कोई विशेष प्रयोजन है ?
सुरजीत : हाँ, मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में रक्तदान देना है।
सोहन : पागल तो नहीं हो गये हो ! इस उम्र में रक्तदान !
सुरजीत : पागल तो नहीं, शुभचिन्तक अवश्य हो गया हूँ।
सोहन : शुभचिन्तक ! अपने या पराये के ?
सुरजीत : अपनी चिन्ता तो सभी करते हैं, लेकिन जो पराये की चिन्ता करता है वही सच्चा शुभेच्छु माना जाता है।
सोहन : रक्तदान से खून कम हो जायेगा, कमजोरी के शिकार हो जाओगे ? घर कैसे लौटोगे ?
सुरजीत : वहाँ डॉक्टर हैं। बाकायदा डॉक्टरी परीक्षा होती है। रक्त की जाँच की जाती है। रक्तचाप देखा जाता है। रक्त लेने के बाद खाने-पीने के लिए फल और दूध दिया जाता है ताकि कमजोरी न रहे।
सोहन : आखिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?
सुरजीत : हमारे देश में लाखों मरीज ऐसे हैं, जिन्हें रक्त की नितान्त आवश्यकता होती है। यदि हम जैसे स्वस्थ नवयुवक रक्तदान न करें तो रोगियों की जीवन-रक्षा कैसे होगी ?
सोहन : तुम्हें यह प्रेरणा कहाँ से मिली ?
सुरजीत : कल के समाचार-पत्र में एक समाचार छपा था। एक नवयुवती रक्त न मिलने के कारण असमय ही मौत की गहरी नींद में सो गयी। यदि उस समय उसके रक्तमुप का खून रहता तो उसे अवश्य बचा लिया जाता।
सोहन : तब तो यह बड़े पुण्य का कार्य है ।
सुरजीत : पाप-पुण्य की बात तो नहीं जानता, पर यह अवश्य जानता हूँ कि यदि मेरे रक्त से किसी को नया जीवन मिलता है तो मेरी जिन्दगी कृतार्थ हो जायेगी । जानते हो अब तो अस्सतालों में लोग रक्तदान की तरह नेत्रदान भी कर रहे हैं। मरनेवाला अपना नेत्रदान कर देता है। इससे किसी की अंधेरी दुनिया रोशन हो जाती है ।
सोहन : अब मुझे तुम्हारी बात समझ में आ गयी। चलो, मैं भी तुम्हारे साथ रक्तदान करूँगा, ताकि किसी की प्राण-रक्षा में सहायक बनने का सौभाग्य हासिल कर सकूँ।

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प्रश्न 9.
राष्ट्रीय एकता के महत्व पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखें ।
उत्तर :
वैभव : आज राष्ट्रीय एकता दिवस है।
अभिषेक : एकता से क्या तात्पर्य है ?
वैभव : एकता का अर्थ है-संगठन । अर्थात् एक ही लक्ष्य को लेकर, एकजुट होकर कार्य करना।
अभिषेक : यदि ऐसी बात है तो कुछ लोग क्षेत्रेयता, प्रान्तीयता, जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि की बातें क्यों करते हैं ?
वैभव : भारत विविधताओं से भरा हुआ है। इसमें विभिन्न भाषा-भाषी और धर्मावलम्बी निवास करते हैं। भारत का हदयय एक है, आत्मा एक है । जो संकीर्ण विचार वाले हैं, वही क्षेत्र, प्रान्त, धर्म, जाति, वर्ग, भाषा तथा सम्रदाय की बातें करते हैं।
अभिषेक : क्या हम हमेशा से एक हैं ?
वैभव : यह कहना तो मुश्किल है, पर हमने राष्ट्र-हित के हानि-लाभ को सामूहिक हानि-लाभ माना है । धर्म, जाति, सम्पदाय, वर्ग, प्रान्त, भाषा आदि के नाम पर हममें जो वैमनस्य एवं भेदभाव उत्पन्न होते रहे हैं, समय आने पर इन सब बातों से उठकर एकजुट होकर सब प्रकार के संकट का सामना करने के लिए हम सभी तैयार रहे हैं। चीन और पाकिस्तान के आक्रमण इसके पक्के सबूत हैं।
अभिषेक तब तो राष्ट्रीय जन-जीवन में एकता अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
वैभव : राष्ट्रीय जन-जीवन की रक्षा के लिए एकता जितनी जरूरी है, राष्ट्रीय नैतिकता के लिए भी उतनी ही आवश्यक है । आज हमारा देश विकास के संघर्षपूर्ण क्षणों से गुजर रहा है । बाह्य आक्रमणों तथा दबावों के भय भी बने हुए हैं । इनका सामना हम अपनी नैतिकता को ऊँचा उठा कर ही कर सकते हैं।
अभिषेक : अब मैं समझ गया। अपनी नैतिकता को ऊँचा उठा कर ही हम राष्ट्रीय एकता की सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं और सर्वगुण सम्पन्न राष्ट्र के रूप में उभर सकते हैं।

प्रश्न 10.
सरकार द्वारा चलाए जा रहे साक्षरता अभियान के बारे में दो मित्रों के बीच संवाद लिखें।
उत्तर :
रवि : नमस्कार दिवाकर ! आजकल किस काम में व्यस्त हो ? दिखाई नहीं देते ।
दिवाकर : नमस्कार, आजकल मैं साक्षरता-अभियान से जुड़ा हुआ हूँ। अपना अतिरिक्त समय लोगों को साक्षर बनाने में बिताता हूँ।
रवि : यह तो राष्ट्रीय महत्त्व का कार्य है । निरक्षरता सबसे बड़ा अभिशाप है ।
दिवाकर : हमारा देश बहुत बड़ा है । इसकी जनसंख्या भी बहुत बड़ी है। अधिकांश लोग किसान, मजदूर और निर्धन हैं । निर्धनता के कारण वे विद्यालय और पाठशाला तक पहुँच नहीं पाते और निरक्षर ही रह जाते हैं ।
रवि : सच है मित्र, बहुतों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर है । बहुतों को अपना नाम तक लिखना नहीं आता।
दिवाकर : हाँ, इसीलिए मेरे मुहल्ले के कुछ युवकों ने साक्षरता अभियान-कार्यक्रम चलाया है । उसमें मैं भी शामिल हूँ । साक्षरता लोगों के आत्म-विश्वास और स्वाभिमान को जगायेगी एवं उन्हें हीनताबोध से मुक्त करेगी ।
रवि : इतना ही नहीं साक्षरता रूढ़ियों, कुरीतियों और अन्धविश्वासों से अनपढ़-अशिक्षितों को मुक्ति दिलायेगी । यह सामाजिक उत्थान का कारगर तरीका है।
दिवाकर : बिल्कुल ठीक कहते हो, साक्षरता से समाज-सुधार और राष्ट्र का उत्थान होगा। जब लोग साक्षर रहेंगे तो उनको बरगलाया या फुसलाया नहीं जा सकेगा। उनके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं की जा सकेगी ।
रवि : दिवाकर, इससे निर्धनों को नि:शुल्क शिक्षा मिल सकेगी। प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह निरक्षरों को पढ़ना-लिखना सिखाये । तुम्हारे इस अभियान में में भी सम्मिलित होना चाहता हूँ।
दिवाकर : अच्छी बात है रवि ! यदि तुम्हारे जैसे युवक भी इस कार्यक्रम में स्वेच्छा से सहयोग करें, तो वह दिन दूर नहीं, कि देश में कोई निरक्षर नहीं रहेगा ।

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प्रश्न 11.
सहशिक्षा के बारे में दो छात्रों के बीच संवाद लिखें ।
उत्तर :
विजय : तुमने किस शिक्षण संस्था में प्रवेश लिया है?
गौरव : मैंने जयपुरिया कॉलेज में प्रवेश लिया है।
विजय : अरे, यह तो सहशिक्षा वाला कॉलेज है ।
गौरव : इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है । आजकल विश्वविद्यालयों, अधिकांश महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में सहशिक्षा के रूप में शिक्षा दी जा रही है।
विजय : सहशिक्षा चारित्रिक पतन का प्रमुख कारण है ।
गौरव : मैं इस प्रावीन विचारधारा से सहमत नहीं हूँ । एक साथ पढ़ने तथा रहने से रूप लिप्सा समाप्त हो जाती है तथा यौन-आकर्षण जन्य विकारों का दमन हो जाता है । अत: चारित्रिक पतन का अवकाश ही नहीं रहता ।
विजय : प्राचीन भारत में सहशिक्षा की व्यवस्था किसी खास सोच या कारणवश ही नहीं की गयी थी ?
गौरव : इतिहास साक्षी है कि प्राचीन भारत में स्त्री व पुरुषों को समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। गार्गी, मैन्रेयी तथा मदालसा आदि विदुषियों ने अच्छे-अच्छे विद्वानों को शास्त्र-ज्ञान में परास्त किया था।
विजय : सहशिक्षा पाश्चात्य सभ्यता की देन है। पश्चिमी देशों में स्त्री-पुरुष बचपन से ही एक साथ रह कर विद्याध्ययन करते हैं तथा यौन-सम्बन्धों में स्वेच्छाचारी होते हैं। भारतीय संस्कृति ऐसी स्वतंत्रता के सर्वथा विपरीत है।
गौरव : यदि सहशिक्षा दी जाय तो न स्वेच्छाचारिता होगी, न भारतीय संस्कृति के विपरीत कार्य होगा। आज का युग परिवर्तन का युग है, जिसमें सहशिक्षा नितान्त आवश्यक है।
विजय : शरीर-भेद के साथ-साथ प्रारम्भ से ही स्री-पुरुषों के कर्त्तव्यों में भिन्नता रही है। अतः अपने-अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सक्रिय ज्ञान के लिए जरूरी है कि दोनों की प्रशिक्षण व्यवस्था भी भिन्न हो।
गौरव : भारतीय संविधान ने स्र्री-पुरुष को समानता का अधिकार दिया है, क्योंकि प्रजातांत्रिक प्रणाली को न्यायोचित तरीके से चलाने के लिए पुरुषों के समान स्त्रियों को भी उच्च शिक्षा देना नितान्त आवश्यक है । सहशिक्षा के परिवेश में शिक्षाप्राप्त कर स्री नारी सुलभ दुर्बलताओं को तिलांजलि देकर पुरुषों के साथ प्रत्येक क्षेत्र में अपने व्यक्वि का विकास कर सकती हैं।

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प्रश्न 12.
बेरोजगारी की समस्या पर दो मित्रों के संवाद को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
मानव : क्या बात है? तुम इधर कई दिनों से कुछ परेशान से नज़र आ रहे हो?
शुभम : क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता। तीन साल से नौकरी की तलाश में हूँ लेकिन निराशा ही हाथ लगी है।
मानव : यह आज की बड़ी कठिन समस्या है। यह समस्या भारत में बहुत वर्षों से चली आ रही है।
शुभम : अब तो इस बेरोजगारी की दौड़ में अध्यापक भी पीछे नहीं रहे। प्रशिक्षित अध्यापक भी घर पर बैठने को विवश हैं।
मानव : बेरोजगारी के कारण अपराध भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे,हैं।
शुभम : इस बेकारी का सारा दोष वर्तमान शिक्षा-प्रणाली तथा उद्योग-धंधों का अभाव है।
मानव : एक समय था, जब पंडित नेहरू कहा करते थे – “हमें देश के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञ चाहिए न कि बी. ए.।’ हमारी विवेकशील सरकार के प्रयासों से अब यह समस्या हल होती नज़र आ रही है।
शुभम : हाँ, प्रानममंत्री के ‘मेक इन इण्डिया’ के नारे से तो ऐसा लगता है कि अब इस समस्या का कुछ समाधान जरूर निकलेगा।
मानव : हाँ, तुम ठीक कह रहे हो। बहुत ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है।

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